होमियोपैथी अन्य चिकित्सा पद्धतियों की अपेक्षा एक कम खर्चीली और गरीब जनता को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाने वाली चिकित्सापद्धति है। आज भाई सतीश सक्सेना जी ने होमियोपैथी के उपयोग से उन की पुत्री के थॉयरॉयड की परेशानी से मुक्त होने की जानकारी दी है। कुछ लोग इसे चमत्कार कहते हैं। लेकिन यह चमत्कार नहीं, अपितु होमियोपैथिक औषधि के उचित प्रयोग से प्राप्त एक सफलता है।
कोई छह माह पूर्व ही ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन ने कहा था कि अतितनुकृत (200C) शक्ति और इस से अधिक तनुकृत या शक्तिकृत होमियोपैथी औषधियों में मूल तत्व या यौगिक का कोई भी अंश उपस्थित नहीं रहता और वह औषध किसी भी प्रकार से रोगी, रोग या शरीर को प्रभावित नहीं कर सकती। इसी आधार पर होमियोपैथी को ब्रिटेन में किसी भी प्रकार की राजकीय सहायता से इन्कार कर दिया गया था। उन्हीं दिनों मेरी एक पोस्ट पर आई टिप्पणियों में बलजीत बस्सी ने कहा था कि शरीर में स्वयं ठीक होने की शक्ति होती है और दवा में विश्वास के कारण 60% प्लेसबो प्रभाव काम करता है। स्वयं होमियोपैथिक औषधि में कुछ भी प्रभाव नहीं होता। लेकिन मैं ने स्वयं अपने अनुभव के आधार पर यह कहा था कि अभी होमियोपैथी को अपनी तार्किकता सिद्ध करनी शेष है, लेकिन वह काम करती है और उस की औषधियों में प्रभावकारी क्षमता है।
अब इसी बात को आईआईटी मुंबई के केमीकल इंजिनियरिंग विभाग में चल रही शोध ने पुष्ट किया है। शोध करने वाले इस दल में प्रशांत चक्रमाने (पीएच.डी. रिसर्च स्कॉलर) डॉ. ए.के. सुरेश (प्रोफेसर एवं फैकल्टी डीन, डॉ. एस.जी.काने (एडजंक्ट प्रोफेसर एवं आईआईटी मुंबई एलुम्नी) तथा डॉ. जयेश बेल्लार (प्रोफेसर एवं आईआईटी मुंबई एलुम्नी) सम्मिलित हैं। इस दल के एक शोध पत्र में जो शोध पत्रिका होमियोपैथी में प्रकाशित हुआ है यह कहा गया है कि 200C तक तथा उस से अधिक तनुकृत/शक्तिकृत औषधियों में भी मूल पदार्थ के नैनो अंश पाए गये हैं। उन्हों ने इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, इलेक्ट्रॉन डिफ्रेक्शन तथा परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी आदि तकनीकों का उपयोग किया है। चिक्रमाने ने पाया कि अंकगणितीय निष्कर्षों के विपरीत आरंभिक पदार्थ इन उच्च शक्तिकृत औषधियों में नैनो पार्टिकल्स के रूप में मौजूद रहते हैं।