कविता
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
नाच ..! नाच ...! नाच ...!
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
तनिक रुक कर साँस तक नहीं लेते
उखड़ने लगी हैं साँसें, लड़खड़ाने लगे हैं पैर,
फिर भी
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
हतप्रभ, हताश लोग छोड़ने लगे हैं नाचघर
ब्लेक में खरीदी गई टिकटें बिखरने लगी हैं
नाचघर के बाहर
लोग चीख रहे हैं, रुको-रुको-रुको
अब रुक भी जाओ, फिर भी रुक नहीं रहें हैं
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
दिखाई नहीं दे रहे हैं उन्हें
नाचघर छोड़ते हताश लोग
सुनाई नहीं दे रही हैं उन्हें
लोगों की चीखें, चीत्कार
अनिच्छा से थिरक रहे हैं अंग
अनिच्छा से उठ रहे हैं पैर
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
नहीं रुकेंगे वे, रुक नहीं सकते वे
नाचते ही रहेंगे, नाचते ही रहेंगे
देखो! देखो! देखो!
वे खुद नहीं नाच रहे हैं
हाथ, पैर, कमर और सिर
पारदर्शी धागों से बंधे हैं
धागे ही नचाए जा रहे हैं, और
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
कौन पकड़े है? इन धागों के सिरे
कौन है? जो नचाए जा रहा है
वही पवित्र (?) भूरी आँखों वाली बिल्ली
निष्प्राण! वित्तीय पूंजी
उसी की पकड़ में है, सारे धागों के सिरे
वही नचाए जा रही है, और
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
है कोई! जो काट दे इन धागों को
वरना, मर जाएंगे, अंकल सैम
कोई तो काटो, काट डालो इन धागों को
अरे! अन्न और कपास उपजाने वालों!
कारखानों में काम करने वालों!
पसीना बहा सब कुछ बनाने वालों
अपने अपने औजार लाओ, और
काट डालो इन धागों को
वरना, मर जाएंगे, अंकल सैम
नाच ..! नाच ...! नाच ...!
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम
- दिनेशराय द्विवेदी
19 टिप्पणियां:
वाकई अंकल सैम इन दिनों मुसीबत में हैं .....
शुभकामनायें उनको !
अंकल सैम ही नहीं हमारे देश के तारणहार (शासक)भी तांडव नृत्य में मग्न है |
सैम अंकल नाचते रहेंगे जब तक उनके धागे काट नहीं दिए जायेंगे , कई अर्थों को समाये हुए यह रचना , बहुत खूब .................
नाच मेरी बुलबुल, तुझे पैसा मिलेगा...
कहां दुनिया के बाज़ारों को कद्रदान ऐसा मिलेगा,
जय हिंद...
नाच नचैय्या...ता ता थयिया..अंकल सैम तो बैण्ड बजवा कर दम लेंगे अब...बहुत सटीक..
"कौन पकड़े है? इन धागों के सिरे
कौन है? जो नचाए जा रहा है
वही पवित्र (?) भूरी आँखों वाली बिल्ली
निष्प्राण! वित्तीय पूंजी
उसी की पकड़ में है, सारे धागों के सिरे
वही नचाए जा रही है, और
नाचते ही जा रहे हैं, अंकल सैम"
ये कड़ी तो साफ बताती है कि कविता क्या और किसे कह रही है।
साफ करें तो सोनिया एंड मनमोहन(एस एंड एम= सैम)।
जिस दिन अंकल सैम की आत्मा बिल्ली के चुंगल से छूटेगी उसी दिन जाग पायेंगे अंकल सैम ।
...गर्म तवे पर पिछवाड़ा टिकाने पर होने वाला डांस है ये..
पहले नचा रहे थे, अब नाच रहे हैं।
अंकल सैम के साथ सारी दुनिया का नाच जुडा है, नाचना ही पडेगा.
रामराम.
गुरुवर जी, आज की कुटिल राजनीति पर कटाक्ष करती कविता में सुन्दर अभिव्यक्ति है.
अच्छी अभिवयक्ति....
अब वो ठहरे अंकल सैम, उन्हें कौन रोक सकता है।
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ब्लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
आखिर इस दर्द की दवा क्या है ?
दोस्तों, आप सभी को आज का दोस्ती वाला दिन मुबारक हो! क्या दोस्ती के लिए एक दिन ही निश्चत है? सच्ची और पवित्र दोस्ती निभाने के लिए हर रोज दोस्ती का दिन होता है. जब भी आपके किसी दोस्त को आपकी मदद की जरूरत हो. तब ही उसकी यथासंभव मदद करना ही पवित्र दोस्ती है.
दोस्तों,"क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं?" अगर आपका उत्तर हाँ, है तब मैंने रोका कब है? क्लिक करो और खाओ
अंकल सैम ही नहीं हमारे देश के तारणहार (शासक)भी तांडव नृत्य में मग्न है |
Sahmat .
bahut hi sundar
सारी दुनिया का दु:ख हैं वे,
सारी दुनिया में,
सबसे दु:खी हैं वे,
पता नहीं,
इनमें से किस कारण से,
नाचते जा रहे हैं,
अंकल सैम।
मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
आज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
रोक पाना कठिन है इस नृत्य को
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