अन्ना अस्पताल में हैं। खबर है कि पहले उन का भार लगभग 500 ग्राम प्रतिदिन की दर से कम हो रहा था। अब जो कुछ तरल खाद्य वे ले रहे हैं उस से यह गिरावट 200 ग्राम प्रतिदिन रह गई है। दो दिन में वह स्थिति आ जाएगी कि उन का भार गिरना बंद हो जाएगा और उस के बाद उन्हें फिर से अपना वजन बढ़ाना होगा। आखिर अभी तो संघर्ष का आरंभ है। परिवर्तन की इस बयार को बहुत दूर तक जाना पड़ेगा।
आंदोलन के बाद आज अदालत का पहला दिन था। अन्ना के अनशन के दौरान अदालतों में जरुरी काम ही हो पा रहे थे। लोगों को जिन में न्यायार्थियों से ले कर वकील, वकीलों के लिपिक, टंकणकर्ता, न्यायाधीश और न्यायालयों के कर्मचारी सभी सम्मिलित हैं, इस आंदोलन ने कमोबेश प्रभावित किया था। आज जब मैं अदालत पहुँचा तो कार को पार्क करने के लिए मुश्किल से स्थान मिला। वहीं मैं समझ चुका था कि आज अदालत में लोगों की संख्या बहुत होगी। होनी भी चाहिए थी। पिछले 12 दिनों से काम की गति मन्थर जो हो चली थी। इस सप्ताह में फिर ईद और गणेश चतुर्थी के अवकाश हैं। कुल तीन दिन काम के हैं। इस कारण से जिन लोगों के काम अटके हैं वे सभी आज अदालत अवश्य पहुँचे होंगे। मैं ने अपना काम निपटाना आरंभ किया तो 1.30 बजे भोजनावकाश तक केवल दो-तीन काम शेष रह गए थे।
अदालत में चर्चा का विषय था कि क्या भ्रष्टाचार कम या समाप्त हो सकता है? मेरा जवाब था कि कम तो हो ही सकता है, समाप्त भी हो सकता है। पिछले पाँच-छह वर्ष से वकालत कर रहे एक वकील का कहना था कि यह संभव ही नहीं है। यदि धन का लेन-देन बन्द हो जाएगा तो बहुत से काम रुक ही जाएंगे। मैं ने उस से पूछा कि तुम कौन से काम के लिए कह रहे हो? उस का उत्तर था, 'पेशी पर गैरहाजिर होने वाले मुलजिम की जमानत जब्त होने और उस का गिरफ्तारी वारंट निकल जाने पर वह जिस दिन जमानत कराने के लिए अदालत आता है तो हमें उस के मुकदमे की तुरंत पत्रावली देखने की आवश्यकता होती है। जिसे देखने का कोई नियम नहीं है। पत्रावली देखने के लिए निरीक्षण का आवेदन करना होता है और अगले दिन निरीक्षण कराया जाता है। जब कि कुछ रुपए देने पर बाबू तुरंत पत्रावली दिखा देता है। यह काम बाबू को पैसे दिए बिना क्यों करेगा? मैं ने कहा आवेदन प्रस्तुत करने पर पत्रावली निरीक्षण का नियम है। समस्या केवल इतनी है कि यह तुरंत नहीं हो सकता। यह प्रबंध करने का दायित्व न्यायाधीश का है। हम अदालत के न्यायाधीश से निवेदन कर सकते हैं। यदि वहाँ संभव न हो तो जिला न्यायाधीश से अधिवक्ता परिषद का प्रतिनिधि मंडल मिल कर अपनी यह परेशानी बता सकता है। यह निर्धारित किया जा सकता है कि किन कामों के लिए तुरंत पत्रावली देखा जाना आवश्यक है और उन कामों को सूचीबद्ध किया जा सकता है। सूचीबद्ध कामों के लिए पत्रावली निरीक्षण हेतु तुरंत उपलब्ध कराए जाने का सामान्य निर्देश जिला न्यायाधीश सभी न्यायालयों को भेज सकते हैं। वैसी स्थिति में फिर किसी पत्रावली को देखने के लिए बाबू को घूस देने की आवश्यकता नहीं होगी।
इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि यदि हमें व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त बनाना है तो हमें हर क्षेत्र में बहुत से ऐसे नियम बनाने होंगे और स्थाई आदेश जारी करने होंगे जिस से आवश्यक और उचित कामों के लिए घूस नहीं देनी पड़े। लेकिन इस काम के लिए हर क्षेत्र के लोगों को समस्याएँ प्रशासकों के सामने रखनी होंगी जिस से उन के लिए नियम बनाए जा सकें या स्थाई आदेश जारी किए जा सकें।
7 टिप्पणियां:
आपके सुझाव सचमुच व्यवहारिक हैं।
------
कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
पूरे सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है..
sahi khaa sabhi ki nigaahen aandlon pr thi or jiit ke baad to bas mze hi aa gye .....akahtar kha akela kota rajsthan
सरकार और पब्लिक की चेतना के कारण ....बहुत कुछ ठीक होने की उम्मीद है !
प्रभाव आने वाले महीनों में ढंग से पता चलेगा।
शुरुआत तो हो ही गई है, ये कारवां चलता रहे यही उम्मीद है.
रामराम.
सही कह रहे हैं,बिना बदलाव लाये सार्थक प्रगति नहीं होगी.
एक टिप्पणी भेजें