@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: "शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"

मंगलवार, 28 जून 2011

"शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"

निशा, शायद यही नाम है, उस का। उस का नाम रजनी या सविता भी हो सकता है। पर नाम से क्या फर्क पड़ता है? नाम खुद का दिया तो होता नहीं, वह हमेशा नाम कोई और ही रखता है जो कुछ भी रखा जा सकता है। चलो उस लड़की का नाम हम सविता रख देते हैं।

ह ग्यारह वर्ष से जीएनएम  यानी सामान्य नर्सिंग और दाई का काम कर रही है। ग्यारह साल कम नहीं होते एक ही काम करते हुए। इतना अनुभव हो जाता है कि कोई भी अधिक जटिलता के काम कर सकता है। वह भी चाहती है कि उसे भी अधिक जटिल काम मिलें, नौकरी में उस की पदोन्नति हो। पर इस के लिए जरूरी है कि वह कुछ परीक्षाएँ और उत्तीर्ण करे। उस ने प्रशिक्षण  में दाखिला ले लिया। साल भर पढ़ाई की। जब परीक्षा हुई तो परीक्षक की निगाहें उस पर गड़ गईं। उस के काम में कोई कमी नहीं लेकिन फिर भी ... परीक्षक ने कहा पास नहीं हो सकोगी। होना चाहती हो तो कुछ देना पड़ेगा। उसे अजीब सा लगा, उस ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिणाम आया तो वह अनुत्तीर्ण हो गई। फिर एक साल पढ़ाई, फिर परीक्षा और परिणाम की प्रतीक्षा ...

इस बार वही परीक्षक ट्रेनिंग सेंटर के आचार्य की पीठ पर विराजमान था, कामचलाऊ ही सही, पर पीठ तो आचार्य की थी। उस ने सविता को देखा तो पूछा
-तुम पिछले साल उत्तीर्ण नहीं हुई? उस ने उत्तर दिया
-कहाँ सर? आप ने मदद ही नहीं की।
-मैं ने तो तुम्हें उपाय बताया था।
-नहीं सर! वह मैं नहीं कर सकती। हाँ कुछ धन दे सकती हूँ।
-सोच लो, धन से काम न चलेगा।
-सोचूंगी।
 कह कर वह चली आई। सोचती रही क्या किया जाए। आखिर उस ने सोच ही लिया। वह फिर आचार्य के पास पहुँची, कहा
-सर ठीक है जो आप कहते हैं मैं उस के लिए तैयार हूँ। पर मेरी दो साथिनें और हैं, उन की भी मदद करनी होगी। वे दो दो हजार देने को तैयार हैं। आचार्य तैयार हो गए। सविता को चौराहे पर मिलने के लिए कहा।
सविता चौराहे तक पहुँची ही थी कि स्कूटर का हॉर्न बजा। आचार्य मुस्कुराते हुए स्कूटर लिए खड़े थे। वह पीछे बैठ गई। स्कूटर नगर के बाहर की एक बस्ती की ओर मुड़ा तो सविता पूछ बैठी।
-इधर कहाँ? सर!
-वह तुम्हारी अधीक्षिका थी न? वह आज कल दूसरे शहर में तैनात है उस के घर की चाबियाँ मेरे पास हैं, वहीं जा रहे हैं। क्या तुम्हें वहाँ कोई आपत्ति तो नहीं?
-ठीक है सर! वहाँ मुझे कोई जानता भी नहीं।

कुछ देर में स्कूटर घर के सामने रुका। आचार्य ने ताला खोला अंदर प्रवेश किया। कमरा खोल कर सविता को बिठाया। सविता ने अपने ब्लाउज से पर्स निकाल कर चार हजार आचार्य को पकड़ा दिए।
-तुम बैठो! तुम बाहर का दरवाजा खुला छोड़ आई हो, मैं बंद कर आता हूँ।
आचार्य कमरे से निकल गया। सविता के पूरे शरीर में कँपकँपी सी आ गई। उसे लगा जैसे कुछ ही देर में उसे बुखार आ जाएगा। लेकिन तभी ..
आचार्य मुख्य द्वार बंद कर रहा था कि कुछ लोगों ने बाहर से दरवाजे को धक्का दिया। वह हड़बड़ा गया। उसे दो लोगों ने पकड़ लिया। अंदर कमरे में जहाँ सविता थी ले आए। इतने सारे लोगों को देख सविता की कँपकँपी बन्द हुई। आचार्य के पास से नोट बरामद कर लिए गए। उन्हें धोया तो रंग छूटने लगा। आचार्य के हाथों में भी रंग था।

विता को फिर से कँपकँपी छूटने लगी थी। वह सोच रही थी, जब उस के पति और ससुराल वालों को पता लगेगा तो क्या सोचेंगे?  उन का व्यवहार उस के प्रति बदल तो नहीं जाएगा? उस के और रिश्तेदार क्या कहेंगे? क्या उस का जीवन बदल तो नहीं जाएगा? और उस के परीक्षा परिणाम का क्या होगा? सोचते सोचते अचानक उस ने दृढ़ता धारण कर ली। अब कोई कुछ भी सोचे, कुछ भी परिणाम हो। उस ने वही किया जो उचित था और उसे करना चाहिए था। वह सारे परिणामों का मुकाबला करेगी। कम से कम कोई तो होगा जो यह कहेगा "शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"।

चार्य जी, जेल में हैं। पुलिस ने उन की जमानत नहीं ली। अदालत  भी कम से कम कुछ दिन उन की जमानत नहीं लेगी। अच्छा तो तब हो जब उन की जमानत तब तक न ली जाए जब तक मुकदमे का निर्णय न हो जाए।
(कल सीकर में घटी घटना पर आधारित)

27 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

ऐसा भी होता है, लेकिन शायद कभी-कभी.

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत बढ़िया काम इसने | शाबासी के लायक |

रश्मि प्रभा... ने कहा…

haan beti ... tumne sahi kiya . iska parinaam taklifdeh ho sakta hai, puri zindagi bojh ho sakti hai, per tumko khud per bharosa hoga

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

आचार्य सरीखे लोग आदतन अपराधी होते हैं,इन्हे सबक देकर अच्छा किया।

शाबास बेटी, तुमने ठीक किया।

डा० अमर कुमार ने कहा…

.अविता, कविता, शोभा या बिन्दु...
वह जो भी हो, क्या उसे कोई लाभ मिलेगा ?
शायद नहीं, यदि बचाव-पक्ष का वकील मज़बूत और रसूख़दार होगा ...
कदाचित हाँ, यदि त्वरित कोर्ट में अभियोजन-पक्ष ऎसा साबित कर ले जाये ।
दोनों ही स्थितियों में हमारा समाज उसे सहज नहीं रहने देगा... थुड़ीथुड़ी और चटखारे !
क्योंकि अदालतों में ऎसे केसों के लिये कोई सम्मानजनक न्याय-प्रक्रिया नहीं हैं... नतीज़ा..... अब मैं क्या कहूँ ?

रचना ने कहा…

yae haen bharat kaa smaaj jo bhartiyae sanskriti ki duhaaii daetaa rehtaa haen

slut walk ho rahee haen inhii sab kae liyae kyuki in behsarmo ko sharm sikhaani jaruri haen

रचना ने कहा…

aur is post par kam sae ek blogger to khud bhi maere upar ek vahiyaat post likh chukae hae aur apnae blog par modrashna kae baad behuda kament bhi aprove kar chukae haen

aaj tak unko maafi maangnae ki bhi yaad nahin aayee



wo jab yahaan shabash keh rahey haen to thuknae kaa man kartaa haen

dusro ko sajaa dena aasan hota haen lekin khud wahi karna ussae bhi aasan

निर्मला कपिला ने कहा…

उस लडकी को शाबास। आप आगे इसे अगर कहानी का रूप देना चाहें तो क्या देंगे? इससे अच्छी कहानी बन सकती है। शुभकामनायें।

mridula pradhan ने कहा…

badhayee ke layak......

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

अगर अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए ऐसे समझोते न करके सविता(काल्पनिक नाम) ने जैसा कार्य किया. अगर हर देशवासी अपनी समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी समझते हुए ऐसे कार्य करें तब भारत देश की एक नई तस्वीर होगी.शाबास सविता! शाबास.

ghughutibasuti ने कहा…

शाबास! बहुत सही किया। यदि ऐसा हजारों करने लगें तो अपराधियों की हिम्मत भी पस्त पड़ जाएगी और ऐसे पकड़वाना सहज स्वाभाविक भी माना जाने लगेगा।
घुघूती बासूती

anshumala ने कहा…

आचार्य जी का आगे क्या होगा ये तो न्यायलय पर निर्भर है पर इससे कई अन्य को भी हिम्मत आ जाएगी ये करने की | साथ ही लड़की आचार्य जी की अनुपस्थिति में शायद अपनी परिखा पास कर ले और पता नहीं और कितनी लड़किया ये परीक्षा पास कर ले जो आचार्य जी के कारण नहीं कर पा रही थी | शाबासी का काम तो किया ही है उस लड़की ने उसका जो भी नाम हो |

Arvind Mishra ने कहा…

ऐसे दृढ निर्णय लिए जाने चाहिए और अवश्य लिए जाने चाहिए -
और कोई विकल्प नहीं रहता .....शाबाश!

Mukesh ने कहा…

वास्तविक घटना पर एक अच्छा, शिक्षाप्रद, आँख खोल देने वाला आलेख....................ऐसा समाज में होता रहता है......ये प्रवृत्ति बढ़ रही है........क्योंकि कोई इस तरह विरोध नहीं करता। शठे शाठ्यम् आचरेत्। बिल्कुल सही किया। और सभी को इस तरह के समाज के अराजक तत्त्वों को ऐसे ही "ठीक" करनाअ चाहिये....ताकि इनके दुःसाहस से अनेक लोग बच सके...........और इनके चेहरे से नकाब उठ सके।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

शाबासी तो बनती है। पर इसके लिए हिम्‍मत कम ही लोग जुटा पाते हैं।

virendra sharma ने कहा…

सार्थक बदलाव की और ले जाती है यह पोस्ट सविताएं और भी हैं बस थोड़ा हौंसला चाहिए आचार्यों को नकेल डालने के लिए ये भकुए चारों तरफ मंडरा रहें हैं .

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

पुलिस ने ज़मानत नहीं ली! यह तो कमाल हो गया:)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सराहनीय साहसिक कृत्य।

Satish Saxena ने कहा…

वाकई उस बच्चे ने ठीक किया ...इस लड़की पर हमें गर्व है ! शुभकामनायें आपको !!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

वाकई यह सराहनीय है.

rashmi ravija ने कहा…

लड़कियों को इस तरह की हिम्मत करनी ही पड़ेगी...दोषी को सजा मिले ना मिले...एक सबक तो मिल जाएगा.
हाल में ही मुंबई में एक लड़की एक विषय में फेल हो गयी....जब उसने फोन करके कारण पूछा क्यूंकि उसके पेपर अच्छे गए थे. उसे इसी तरह का प्रस्ताव sms के जरिये मिला...उसने वो sms पुलिस को दिखा दिया...और वो शिक्षक पकड़ा गया.

नौकरी तो गयी ही...आगे से ऐसी हरकत करने की हिम्मत तो नहीं पड़ेगी.

राज भाटिय़ा ने कहा…

मजा आ गया !! इस कुते की सेवा भी साथ मे हो जाती तो ओर भी अच्छा होता...इस बिटिया को आशिर्वाद

Rangnath Singh ने कहा…

इस साहसी महिला ने एक उदाहरण कायम किया है।

Padm Singh ने कहा…

""शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"".... बहुत ठीक किया

रविकर ने कहा…

वास्तविक घटना पर एक अच्छा, शिक्षाप्रद, आँख खोल देने वाला आलेख ||

शाबास बेटी, तुमने ठीक किया।

सदा ने कहा…

बेहतरीन लिखा है आपने ...प्रेरक प्रस्‍तुति ।

Arunesh c dave ने कहा…

सही किया मार मार के भुर्ता बना देना चाहिये ऐसे दुश्कर्मियों को