आज मेरा सिर शर्म से झुका हुआ है। हो भी क्यों न? मेरे ही नगर के एक ऐसे मुहल्ले से जिस में आज से तीस वर्ष पूर्व मुझे भी दो वर्ष रहना पड़ा था, समाचार मिला है कि एक बेटे-बहू मुम्बई गए और पीछे अपनी 65 वर्षीय माँ को अपने मकान में बन्द कर ताला लगा गए। तीन दिन बाद ताला लगे मकान के अन्दर से आवाजें आई और मोहल्ले वालों की कोशिश पर पता लगा कि महिला अंदर बंद है तो उन्होंने महिला से बात करने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस पर महिला एवं बाल विकास विभाग, पुलिस और एकल नारी संगठन को सूचना दी गई। पुलिस ने दिन में महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम के साथ पहुँच कर महिला से रोशनदान से बात करने का प्रयास किया, लेकिन वह घर से बाहर आने को राजी नहीं हुई। इस पर पुलिस लौट गई। तब कुछ लोगों ने जिला कलेक्टर को शिकायत की इस पर देर रात उन के निर्देश पर पुलिस ने घर का ताला तोड़ा गया। पुलिस ने उस से पूछताछ की, लेकिन वह घर पर ही रहना चाह रही थी। पुलिस यह जानने का प्रयास करती रही कि आखिर मामला क्या है? पुलिस ने उससे बेटे-बहू के खिलाफ शिकायत देने को भी कहा, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। पड़ोसियों ने बताया कि महिला को बेटे-बहू प्रताड़ित करते हैं और इसी कारण वह सहमी हुई है और शिकायत नहीं कर रही है।
पुलिस व लोगों को देखकर वृद्धा की रुलाई फूट पड़ी। उसने बताया कि बेटे-बहू पांच दिन के लिए बाहर गए हैं और पांच दिन का खाना एक साथ बनाकर गए हैं। तीन दिनों में खाना पूरी तरह सूख चुका था और खाने लायक नहीं रहा था। दही भी था जो गर्मी के इस मौसम में बुरी तरह बदबू मार रहा था। पुलिस से शिकायत करने पर रुंधे गले से सिर्फ यही निकल रहा था, मैं अपनी मर्जी से रह रही हूँ। मुझे कोई गिला-शिकवा नहीं है। कलेक्टर ने बताया कि सूचना मिलते ही उन्होंने महिला एवं बाल विकास विभाग तथा पुलिस को इसकी जानकारी दी। महिला अपने बेटे-बहू के बारे में कुछ नहीं बोल रही। यदि वह किसी प्रकार की शिकायत देती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। इस महिला के पति की चार वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है जो एक बैंक में मैनेजर थे। महिला के एक पुत्री भी है लेकिन वह अपनी माँ से मिलने यहाँ आती नहीं है। एक ओर संतानें इस तरह का अपराध अपने बुजुर्गों के साथ कर रहे हैं। दूसरी ओर एक माँ है जो अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रही है लेकिन अपनी संतानों के विरुद्ध शिकायत तक नहीं करना चाहती। यहाँ तक कि उस मकान से हटना भी नहीं चाहती। उसे पता है कि उस के इस खोटे सिक्के के अलावा उस का दुनिया में कोई नहीं। उन के विरुद्ध शिकायत कर के वह उन से शत्रुता कैसे मोल ले?
इस घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में वृद्धों की स्थिति क्या है? सब से बुरी बात तो यह है कि कलेक्टर यह कह रहा है कि यदि महिला ने शिकायत की तो कार्यवाही होगी। जब सारी घटना सामने है। एक महिला के साथ उस के ही बेटे-बहु ने निर्दयता पूर्वक क्रूर व्यवहार किया है और वह घरेलू हिंसा का शिकार हुई है। जिस के प्रत्यक्ष सबूत सब के सामने हैं, इस पर भी पुलिस और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि वह महिला शिकायत देगी तब वे कार्यवाही करेंगे। इस से स्पष्ट है कि हमारी सरकार, पुलिस और प्रशासन जो उस के अंग हैं। इस हिंसा और अपराध को एक व्यक्ति के प्रति अपराध मान कर चलते हैं और बिना शिकायत किए अपराधियों के प्रति कार्यवाही नहीं करना चाहते। जब कि यह भा.दंड संहिता की धारा 340 में परिभाषित सदोष परिरोध का अपराध है। तीन दिनों या उस से अधिक के सदोष परिरोध के लिए दो वर्ष तक की कैद का दंड दिया जा सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार यह संज्ञेय अपराध है जिस में पुलिस बिना शिकायत के कार्यवाही कर सकती है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत यह उपबंध है कि हिंसा की ऐसी घटना पाए जाने पर संरक्षा अधिकारी इस तरह का आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर महिला को राहत दिला सकता है। लेकिन इन बातों की ओर न पुलिस का और न ही प्रशासन का ध्यान है। इस से पुलिस व प्रशासन की संवेदनहीनता अनुमान की जा सकती है।
सब से बड़ी बात तो यह है कि बच्चों, बुजुर्गों और असहाय संबंधियों के प्रति इस तरह का अमानवीय और क्रूरतापूर्ण व्यवहार को अभी तक दंडनीय, संज्ञेय और अजमानतीय अपराध नहीं बनाया गया है। जिस से लोग इस तरह का व्यवहार करने से बचें और करें तो सजा भुगतें। इस तरह के उपेक्षित और असहाय लोगों के लिए सरकार और समाज द्वारा कोई वैकल्पिक साधन भी नहीं उपलब्ध कराए गए हैं कि वे अपने संबंधियों की क्रूरतापूर्ण व्यवहार की शिकायत करने पर उन से पृथक रह सकें। आखिर हमारा समाज कहाँ जा रहा है? क्या समाज को इस दिशा में जाने से रोकने के समुचित प्रयास किए जा रहे हैं और क्या हमारी सरकारें और राजनेता वास्तव में इन समस्याओं पर गंभीरता से सोचते भी हैं?
51 टिप्पणियां:
वास्तव में शर्म और अफसोस की बात है। उन कुपात्र संतानों और कुपात्र प्रशासन को क्या दंड मिलना चाहिए?…
क्या कहें..अफसोसजनक एवं दुखद.
अफसोसजनक एवं दुखद और |
परस्थितियाँ चिंताजनक है |
शर्मिंदा है हम अपने आप पर की इसी समाज का हम भी एक हिस्सा है |दुखद ....
आखिर हमारा समाज कहाँ जा रहा है?
जी ,बहुत दुखद और डरावना है !
शर्मनाक और भयावह
we need to wake up and think about us because all of us are getting old everyday and we should lookwithin and see how many are emotionally dependent on their children and believe children will take care of them
and somewhere our generation is responsible because we never taught good values to new generation
shameful
पढ़कर दिल दहल गया। जिन पर आस टिकी है, वही विश्वास तोड़ रहे हैं।
अपराध केवल व्यक्ति ही व्यक्ति के प्रति नहीं करता है, बल्कि अपराध व्यक्ति समाज के प्रति भी करता है, ऐसे मामले में तो स्वत: संज्ञान लेकर रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई करना चाहिये.
लेकिन जिस देश में हत्या तक की रिपोर्ट दर्ज कराने में पसीने छूट जाते हों, वहां स्वत: पुलिस यह काम करेगी क्यों.
अत्यंत शर्मनाक , पतन का सिलसिला जारी है।
अँखें नम हो गयी कुछ कहते भी नही बनता। बहुत ही त्रास्द स्थिती है।
शर्मनाक है यह वाकेया. जहाँ तक आप का सवाल है की "क्या समाज को इस दिशा में जाने से रोकने के समुचित प्रयास किए जा रहे हैं"
.
जवाब यही है की नहीं. कहीं कुछ भी हो रहा है हमसे क्या मतलब ,हमने आज सीख लिया है. अपना अपना देखो दूसरों के पचड़ों मैं ना पड़ो. इस से बेहतर पुराना गाँव का समाज था ,ऐसा उस समाज मैं होता तो हुक्का पानी बंद हो जाता ऐसी औलादों का.
कोई टिप्पणी नहीं !
मानवता के लिए यह आचरण शर्मनाक है ! कम से कम मैं ऐसे मनुष्यों को इंसान नहीं मान सकता !
यह हरामजादे भूल जाते हैं कि वृद्धावस्था से तुम्हें भी गुज़रना है और जो रास्ता तुम दिखा रहे हो वही एक दिन तुम्हे भी देखना होगा !
आभार आपका !
अगर इस वृद्धा को कुछ सहायता हम लोग कर सकें तो अच्छा होगा भाई जी !
कृपया उनसे बात करें और बताएं कि हम क्या कर सकते हैं ! व्यक्तिगत तौर पर मैं इस पुन्य काम में आपके साथ रहूँगा !
सादर
कहीं न कहीं हम बच्चों को पालने मे गलती कर जाते हैं या माहौल ही बदलता जा रहा है...ऐसा क्यों हो रहा है ..कारण तो खोजने होंगे...तब तक बुर्ज़ुगो के लिए कुछ न कुछ तो सहारा हो, यह सोचने की बात है...
बेहद दुखद
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
कल अखबार में यह खबर पढ़ी थी ... सच तो यह है कि महिला शायद इस लिए शिकायर दर्ज नहीं करवाना चाहती क्यों कि उसे लग रहा होगा कि आगे की ज़िंदगी उसे बच्चों के साथ ही गुजारनी है ...ऐसे किस्से पढ़ कर मन दहल जाता है ..
आदरणीय द्विवेदी जी,
मैंने आपके चिट्ठे पर बहस क्या कर दी आज फिर छिड़ गई। http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html पर। इससे अच्छा था कि मैं चुप होकर पढ़ लेता था और निकल लेता था।
महिला शिकायत कैसे दर्ज करवाएगी?? आगे भी तो उसे अपने बेटे-बहु के साथ ही रहना है...इसमें पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती...समाज के.. महल्ले के ...आस-पास के लोग ही सामने आएँ...और उनके बेटे-बहु से बात करें...उन्हें समझाएं....उन्हें शर्मिंदा करें...और आने वाले दिनों में भी निगरानी रखें...तभी उन वृद्धा की स्थिति में सुधार आ सकता है.
लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं....लोग सोचते हैं..दूसरे के घर की बातें में हम क्यूँ दखल दें .
“उसे पता है कि उस के इस खोटे सिक्के के अलावा उस का दुनिया में कोई नहीं।”
सारी समस्या का विवेचन यही वाक्य करता है। हमारे समाज में बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा का कोई ढाँचा नहीं रहा। यह उनके भाग्य पर निर्भर है कि उन्हें कैसी संतान नसीब हुई।
उनके बेटे-बहू का पक्ष सामने आया क्या?
इमाम सादिक ए .स .: आप के माता पिता के साथ नेकी करो ताकि तुम्हारे साथ तुम्हारी ओलाद नेकी करे , दुसरो की औरतों से बचते रहो ताकि तुम्हारी औरतों से लोग दूर रहे.
दुखद !
एक लंबे अर्से से लोगों ने दौलत को ही केन्द्र मानकर जीने की व्यवस्था बना रखी है। मां-बाप भी अपने बच्चों को पैसा कमाने की मशीन ही बना रहे हैं।
इंसाफ़ यहां दुनिया में होता नहीं है। इसीलिए बदसुलूकी करने वाली औलाद के लिए जहन्नम और नर्क की व्यवस्था मालिक ने की है। लोग ज़ुल्म करके दुनिया की पुलिस और कचहरी से बच सकते हैं लेकिन परलोक में नहीं।
...लेकिन क्या करें कि परलोक की बातें करना आज बैकवर्ड कहलाना है। ईश्वर और परलोक को भुलाकर तो समाज का पतन होता ही है। यही हो रहा है।
दुःखद है बहुत !
जमाल साहब,
अजीब बात है! आप हर जगह एक ही ठप्पा लगा देते हैं परलोक और ईश्वर। यह मुद्दा सामाजिक है आध्यात्मिक नहीं।
मासूम जी,
आप हर आलेख को पढ़ने के बाद अपनी किताब खोलकर मिलाते हैं कि कुछ लिखा तो नहीं है ऐसा कुछ?
आपको बता दूँ कि भगतसिंह के सभी लिखे को देखें या किसी शायर के सभी शेरों और गजलों को
कुछ बातें तो निकल ही आती हैं जिसका संबन्ध पढ़े से है। इसलिए जरा सोचिए। जीवन सबसे बड़ा शिक्षक है, कोई किताब नहीं।
बहुत ज्यादा पश्चिम संस्कृति अपनाने का नतीजा है। आज शादी के बाद बच्चे मां बाप को भी अपने परिवार का हिस्सा नहीं समझते। बहुत ज्यादा व्यक्तिवाद, लोग क्या कहेगें इसका डर नहीं और समाज का भी चलता है नजरिया ऐसे शर्मनाक किस्सों को बढ़ावा देता है। कुछ दिन पहले अखबार में एक रिसर्च की रिपोर्ट आयी थी जिसमें पाया गया था कि अगर मां बाप गरीब हों तो बहुओं की बदसलूकी के शिकार होते हैं और अगर अमीर हों तो अपने ही बेटे प्रताड़ित करते हैं। बहुत बुरा लगा इस महिला के बारे में जान कर
@ आदरणीय चंदन कुमार मिश्र जी ! हमने अपने विचार दिए हैं इस सामाजिक मुददे पर, आपको अपने विचार देने चाहिएं। आप पोस्ट पर विचार प्रकट करने के बजाय हमारी टिप्पणियों पर रोष क्यों जता रहे हैं ?
क्या आप टिप्पणीकारों को मजबूर करेंगे कि वे आपकी पसंद के मुताबिक़ टिप्पणी किया करें ?
पोस्ट लेखक को हमारी टिप्पणी अनुचित लगेगी तो वे हटाने को आज़ाद हैं। आप नाहक़ क्यों भिड़ रहे हैं भाई ?
यह एक मर्माहत कर देने वाली पोस्ट है। इस पर भी आप एक लिंक अपने शास्त्रार्थ का दे गए और दूसरी टिप्पणी में भी आपने कोई हल नही सुझाया। यह तो हालत है आपकी और इस पर भी आप नसीहत देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं ?
जितना दुःखद उतना ही शर्मनाक
परम आदरणीय जमाल साहब,
अब हर जगह से तो मैं ही गलत हूँ। अपने चिट्ठे पर ही लिखूंगा अब। मेरा टिप्पणियाँ देना शायद किसी को रास नहीं आया। पहले किसी की लिखी चीजों को पढ़कर कुछ लिखता नहीं था, वापस उसी स्थिति में आना होगा क्योंकि मैं किसी को खुश रखने के लिए चापलूसी नहीं कर सकता। अब इस पर सवाल नहीं उठाइये क्योंकि अब जवाब देने के चक्कर में मेरा समय खराब हो जा रहा है।
वैसे भी अब मेरी हालत लोग ही बताएंगे। चलिए कम से कम इस लायक तो लोगों ने समझा।
अब इस घटना पर मैंने ही पहली टिप्पणी की है, आप देख रहे हैं।
और एक बात तय है कि आप कैसा सोचते हैं और वह इससे कि आप इस पोस्ट पर (मेरी गलती तू थी लेकिन आप?) दुबारा आए क्यों? अब मत पूछिए कि मैं कौन होता हूँ पूछनेवाला।
हाँ अगर मेरे कहे से आपको दु:ख पहुँचा हो तो माफी चाहूंगा और इससे काम न चले तो आगे भी हाजिर हूँ।
आदाब।
बीते वर्षों में माता पिता की दुर्दशा के ऐसे अनगिनत किस्से पढ़े ...
अफसोसजनक एवं दुखद ...
प्रबुद्ध नागरिकों और सरकारों को इस सामाजिक समस्या पर विचार करना ही होगा ...
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/06/blog-post_23.html
यही तोविडम्बना है कि माँ-बाप अपनी बहुत सी सन्तानों को पाल सकते हैं मगर सन्तान माँ-बाप को पालना तो दूर उनका कदम-कदम पर अपमान करते हैं!
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बहुत दुःख हुआ यह वाकया पढ़कर!
Samaj Main Kupatro ki kami nahi hai, unke bachhe bhi unke sath aisa hi karenge.
Kya kahun... mujhe to apne hi mata pita ki dayniye stithi yaad aa gayi..aur aankhon mai beshumaar ansu..
pata nahi kyun betiyaan maa bapka sath dene main sankoch karti hain, kyu aisi paristithton se unhe bahar nikalne main madad nahi kartin...
kyun fir bhi aurat putr ki chaah rakhti hai.? manti hoon sbhi bete ek se nahi hote.. lekin aaj ke samaaj main ladkiyaan bh apne mata pita ke sath larko jaisai bartaav karnelagi hain kahin maadad karke aur kahun unhe paareshan karke.
shayad ye paristithiyaan kabhi khatm nahi hongi ..isi baat ka behadd afsos hai..:(
sharm aati hai khud par ki hum aisa hote hue dekh bhi kaise lete hain...:((
http://neelamkashaas.blogspot.com
गैर जिम्मेदाराना बर्ताव है. अफ़सोस.
अत्यंत दुखद और शर्मनाक ...
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............ आख़िर कहें भी क्या
बेहद दुखद और अफसोसजनक.
जिस देश में "मातृ देवो भव, पितृ देवो भव" का पाठ पढ़ाया जाता है, उसी देश में एक माँ की स्थिति ऐसी है! बहुत ही दुखद...आज जो जवान हैं उन्हें नहीं पता कि एक दिन वे भी इस अवस्था में आने वाले हैं...
द्विवेदी जी, मैंने आपके इस आलेख को फेसबुक पर लिंक किया है..
aise na jaane kitne hi case maine bhi dekhe hain...
na jaane manavta ko kis tarah apne mann se nikaal fekte hain log...
ये समाज की एकमात्र घटना नहीं है, ऐसे किस्से से समाज भरा पड़ा है. जो अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में डाल देते हैं और तब आते हैं जब उनका पैसा निकलना होता है. वे भी खामोश रहते हैं. हम इतने संवेदनहीन कैसे होते जा रहे हैं. हमें शर्म आती है की हम सिर्फ और सिर्फ वर्तमानकी सोच रहे हैं और कल इतिहास अपने को ही दुहराता है.
hamare samaj me aisee ghatnayen bhari padi hain aur aise log bhi jo dukh sahkar bhi galat lam ke khilaf muhn nahi kholte kyonki o kam unke apno ne hi kiya hota hai.
कम से कम गाँवों में तो वृद्धाश्रम नहीं खोले गए हैं।
वास्तव में शर्म और अफसोस की बात है। उन कुपात्र संतानों और कुपात्र प्रशासन को क्या दंड मिलना चाहिए?…
wastav main bade dukh aur afsos ki baat hai.khoon bhi paani ho raha hai aajkal.bachchon ko apne swaarth ke alawaa kuch nahi dikhataa.kalyug isi ko kahate hain.
ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ घटी होंगी जो समाचार नहीं बन पाई .किस दिशा में बढ़ रहा है आधुनिक समाज ? ह्रदय विदारक और शर्मनाक घटना है.
मैं तो श्राप भी नहीं दे सकता...
वाकई में बहुत अफसोसजनक वारदात है. इस तरह का व्यवहार अपने माता-पिता के प्रति बहुत शर्मनाक है. किन्तु उस मजबूर माँ के पास भी तो अपने बेटे के पास रहने के अलावा और चारा भी क्या है. समाज तो केवल सहानुभूति ही प्रकट करता है...हर किसी की माँ को पनाह तो नहीं देता अपने घर में.
बहुत ह्रदय विदारक समाचार है ! ऐसे हैवान भी हमारे साथ और हमारे आस पास ही इस समाज में रहते हैं और हम असहाय हो सिर्फ देख ही सकते हैं कुछ कर नहीं पाते क्योंकि किसी दूसरे व्यक्ति के परिवार के मामलों में दखल देने का अधिकार किसीको नहीं है ! ऐसे में समाज के सभी लोगों को एक जुट होकर सामूहिक रूप से कोई संगठन बनाना चाहिये जहां ऐसे उपेक्षित बुजुर्गों की देखभाल सबके सम्मिलित प्रयासों से की जा सके !
पहली बात तो यह है कि यदि कोई गम्भीर रोग न हो तो ६५ वर्ष कोई असहाय उम्र नहीं है जिसमें कोई रसोई में खाना न बना सके।
दूसरी बातः बहुत सी संतान ६५ या ६८ या ७० कि उम्र में भी अपने माता पिता के साथ रहती हैं। कौन किसका ध्यान रखे? कौन वृद्ध कौन युवा?
तीसरी बातः मेरे अपने एक भाई ६८ के हैं और भाभी ६५ की! यदि माँ उनके साथ रह रही होती तो? कौन बुढ़िया होतीं मेरी भाभी या मेरी माँ? कौन किसका ध्यान रखती? भाई व भाभी दोनो अवकाश के बाद भी नौकरी कर रहे हैं।
यह माता पिता का ध्यान न रखने की ब्लाह ब्लाह प्रायः वे ही करते हैं जो स्वयं माता पिता की सेवा से मुक्त होते हैं। जो मेरे ५९ की उम्र के भाई की तरह पिछले ३५ वर्ष से सेवा कर रहे होते हैं वे ब्लाह ब्लाह नहीं करते, अपने बुढ़ापे व अपने बच्चों को उससे बचाने की चिन्ता में लगे होते हैं।
कटु किन्तु सत्य यही है.
घुघूती बासूती
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