तीन जून को मुझे अनपेक्षित भाग-दौड़ करनी पड़ी थी। इसलिए चार जून की सुबह मेरे लिए थकान भरी थी, मैं ने अपनी वकालत वाली डायरी पर सुबह ही नजर डाली, चार जून के पन्ने पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं था। मेरा अदालत जाने का मन भी नहीं था। मैं उस दिन आराम से तैयार हुआ था। यह वही दिन था जब रामलीला मैदान दिल्ली में बाबा रामदेव अपने हजारों समर्थकों के साथ अनशन आरम्भ करने वाले थे। घोषणा यह भी थी कि देश भर में सभी स्थानों पर उन के समर्थक अनशन करेंगे। कोटा में भी कलेक्ट्री के बाहर सड़क के किनारे अनशन करने वाले थे। दोपहर होने के करीब अपने दफ्तर में आ कर काम करने बैठा तो मन हुआ कि अदालत जा कर मित्रों के साथ कॉफी पी जाए और बाबा का मजमा भी देख लिया जाए। दुबारा डायरी देखी तो पता लगा कि आज तो प्रताप जयन्ती है और अवकाश है। मेरा मन फिर वापस हो गया। मैं छह तारीख को सुबह ही अदालत पहुँचा। यहाँ कोटा में स्टेशन जाने वाली सड़क के एक और कलेक्ट्री है और दूसरी ओर अदालतें। कुछ अदालतें कलेक्ट्री बिल्डिंग में भी हैं। हम वकीलों को दिन में कई बार इस सड़क को पार करना होता है। कलेक्ट्री की बाउंड्री से लगी हुई सड़क किनारे का स्थान अनेक वर्षों से प्रदर्शनकारियों और धरना आदि देने वालों के लिए आरक्षित सा हो चुका है और वहाँ सप्ताह में शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब कोई न कोई शामियाना न तना हो। ये शामियाने रोज अदालत जाने वाले लोगों के लिए इतने आम हो चुके हैं कि उन पर उड़ती हुई सी निगाह पड़ जाए तो पड़ जाए वर्ना हम लोगों को दूसरे दिन के अखबार से ही पता लगता है कि किस ने धरना दिया था।
छह जून की सुबह नौ बजे मैं अदालत पहुँचा तो अपना काम देखा, जरूरी काम आधे घंटे में निपटा लिया। पौने दस बजे नियमित चाय पर चला गया। वहाँ से लौटा और शेष काम के लिए कलेक्ट्री बिल्डिंग की और चला तो निहायत खूबसूरती से सजाए गए शामियाने पर बरबस निगाह पड़ गयी। शामियाने में वे सभी चित्र सजाए हुए थे जो अक्सर संघ और संघ परिवार वाले अपने जलसों और कार्यालयों में सजाए रहते हैं। अंदर देखा तो कुछ योग प्रेमियों के अलावा वही संघ परिवार के घिसे-पिटे चेहरे नजर आए। शामियाने के चारों और आठ दस बड़े आकार के कूलर लगे थे और इतनी हवा फैंक रहे थे कि उन से निकली हवा के सिवा दूसरी हवा शामियाने में प्रवेश न कर सके। एक और मंच सजा हुआ था। नीचे बैठने को गद्दे लगे थे जिन पर सफेद चादरें बिछी थीं। शामियाने के बाहर एक कोने पर शीतल पेय जल की बड़ी बड़ी वैसी ही बोतलें रखी थीं जैसी अक्सर आज कल मध्य और उच्च मध्यवर्गीय विवाहों के भोज स्थल पर रखी होती हैं। पास ही डिस्पोजेबुल गिलास रखे थे। यदि किसी को चार गिलास पानी पीना हो तो आराम से चार डिस्पोजेबुल गिलासों का उपयोग कर सकता था। मैं सोच रहा था कि कलेक्ट्री और अदालत परिसर में तपती रोहिणी की भीषण गर्मी का दिन बिताने के लिए इस से उपयुक्त स्थान और क्या हो सकता है।
शामियाने के अंदर जोर-शोर से भाषण चल रहे थे। सरकार और कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसा जा रहा था। वक्ताओं का अंदाज वही पुराना भाजपा ब्रांड था। मुझे उस में कोई नयापन नजर न आया। भाषणों में न भ्रष्टाचार मिटाने की बात थी और न तथाकथित व्यवस्था परिवर्तन की। बस कांग्रेस सरकार को विदा करने की बात पर जोर दिया जा रहा था। मैं अपने काम पर चल दिया। दोपहर बाद जब काम निपट गया और मित्र गण आपस में बैठे तो चर्चा यह भी रही कि आज घर चलने के स्थान पर शामियाने की ठंडक का आनन्द लिया जाए। पर बहुमत की राय यह थी कि इन उबाऊ और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले भाषणों को कौन झेलेगा? हम टीन के तपते चद्दरों के नीचे बैठ कर गर्म कॉफी के कुछ घूँट हलक के नीचे उतारते हुए आधे घंटे बतियाते रहे और फिर घर लौट आए।
सात जून की सुबह जब मैं घर से निकला तब तक बाबा सरकार को पिछले चार दिनों के करम के लिए माफ कर चुके थे। उन का कहना था "प्रधानमंत्री ने उन घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण माना है जिस से पता लगता है कि उन्हों ने अपना पाप स्वीकार कर लिया है। जब उन्हों ने अपना पाप स्वीकार कर लिया तो हम ने उन का पाप माफ कर दिया।" शायद बाबा अब भी केन्द्र सरकार से कुछ बेहतर समझौता करने का मार्ग बना रहे थे। मैं ने अदालत जाते ही सब को बताया कि बाबा का ताजा स्टेंड क्या है। इस दिन उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश नगर में थे और तमाम जजों की क्लास लगाए बैठे थे कि कैसे मामलों को समझौते के माध्यम से निपटा कर न्यायालयों के बोझे को कम किया जाए? सारी अदालतें खाली थीं। आवश्यक काम तक लंबित हो रहे थे। उन का सहयोग करने के लिए अभिभाषक परिषद ने साढ़े नौ बजे से काम स्थगित करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि उस का कारण ये बताया गया था कि आज वकील बाबा के समर्थन में धरने को आबाद करेंगे। मेरा शामियाने के नजदीक से निकलना हुआ तो एक वकील महोदय अपने बैठे गले से जोरदार भाषण दे रहे थे। लगता था जैसे इस बार केंद्र सरकार से कांग्रेस को बाहर कर देने के बाद ही उन का गला दुरुस्त होगा।
उधर एक जलूस आया और ठीक कलेक्ट्री के गेट पर एक पुतला जला कर चला गया। जिस में कुछ फटाखे चले और पूरी कलेक्ट्री और अदालत परिसरों में मौजूद लोगों को अपने अपने स्थान पर ही पता लग गया कि किसी का पुतला जलाया गया है। कोई घंटे भर में चार-पाँच अलग-अलग संगठनों ने एक-एक पुतला जला दिया। इतनी ही बार पटाखे चले। उस खूबसूरत शामियाने के नजदीक ही कुछ और शामियाने भी तने थे। मकसद एक ही था। पर अलग शामियाने की जरूरत इसलिए महसूस की गई होगी कि लोग यह न समझ ले हर नुमायश में लगने वाली वे पुरानी दुकानें अब बंद हो चुकी है। कुछ दुकानों के बारे में तो लोगों की इसी तरह की बन चुकी धारणा चकनाचूर हो गई थी और लगने लगा था कि नुमाइशों का मौसम फिर से आरंभ हो गया है।
13 टिप्पणियां:
नुमाईशें अभी और भी बाकी हैं....
न से नुमाइश, न से नकारे...
जय हिंद...
kuchh logon ku hamesha dekha ja sakta hai.
बढ़िया विवेचना कर रहे हैं आपक ...आभार आपका !
चलने दो ..यह भी ....!
:-) आपने शीतल पेय पदार्थ नहीं पिया??? आजकल तो इनकी बहुत ज़रूरत रहती है, एक तो मौसम की गर्मी, ऊपर से विचारों की तपिश... उफ्फ्फ!!!
यह विषय इतना शीघ्र ढलने वाला नहीं।
"इन उबाऊ और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले भाषणों को कौन झेलेगा?", बहुत बढ़िया दिनेश जी. लेकिन ऐसे तमाशों का मौसम गया कब था, हमेशा ही चलता रहता है! :)
बैठे-ठाले से अच्छा है कि किसी नुमाइश में शरीक ही हो लिया जाय। बात उठेगी तो दूर तलक जाएगी।
रिपोर्ट रोचक है।
सभी संगठन अलग-अलग नुमाईशे लगा रहे हैं, एक ही दुकान खोल लें तो जल्द कामयाबी मिलने के ज्यादा चांसेज हैं।
प्रणाम
जय हिन्द
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सर जी,
नुमाइशें हैं बहुत रंगीन सी, इंतजामात भी उम्दा हैं पर कितने ग्राहक बार बार जाते रहेंगे इनमें, इसी में थोड़ा शक है... ;)
धो डाला है आपने आज तो...
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शानदार प्रस्तुति ...आभार
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