@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: क्रिकेट विश्वकप जीत का सबक 'एकता और संघर्ष' जनता के लिए मुक्ति का मार्ग खोल सकता है

रविवार, 3 अप्रैल 2011

क्रिकेट विश्वकप जीत का सबक 'एकता और संघर्ष' जनता के लिए मुक्ति का मार्ग खोल सकता है

ट्ठाईस वर्षों के बाद आखिर एक बार फिर एक दिवसीय क्रिकेट का विश्वकप हासिल हो ही गया। लंबे समय बाद मिली इस विजय के नशे का जुनून बहुत समय तक रह पाएगा इस की उम्मीद कम है। किसी एक दिवसीय मैच में एक हार इस नशे को हवा कर देने के लिए पर्याप्त होगी। कल ही जब सहबाग मैच की पहली ही गेंद पर आउट हो गए और कुछ देर बाद सचिन भी चलते बने तो वर्ड कप जीत जाने के अहसास हवा होता नजर आया। जो स्टेडियम भारतीय दर्शकों के उल्लास भरी आवाजों से गूंज रहा था वहाँ ऐसी शांति छा गई कि एक छोटी चिड़िया की चहचहाहट भी सुनाई दे जाती। लेकिन इन आरंभिक झटकों के बाद भी ऐसे दर्शकों की कमी न थी जो यह कहते नहीं रुक रहे थे कि जीत तो भारतीय टीम की ही होगी। 
कोई भी ...... कोई भी पहली गेंद पर आउट हो सकता था। इस प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरुस्कार प्राप्त करने वाले युवराज भी सेमीफाइनल में पहली गेंद पर आउट हुए थे। फाइनल मैच में सहबाग पहली गेंद पर आउट हो गए। किसी भी खिलाड़ी की एक पारी में सिर्फ एक गेंद होती है जिस पर वह आउट होता है।  अब यह संयोग ही है कि वह गेंद पहली होती है या सौवीं या कोई अन्य। यह भी हो सकता है कि ऐसी गेंद फेंके जाने के पहले ही मैच समाप्त हो जाए। ऐसे संयोग न हों या कोई ऐसा खिलाड़ी पैदा हो जाए जो आउट ही न हो तो खेल का सारा रोमांच ही नष्ट हो जाए। लेकिन मुश्किल से मुश्किल गेंद पर भी आउट न होने की महारत हासिल की जा सकती है। जो जितनी मुश्किल गेंदों पर खेलने की महारत हासिल कर लेता है वह अच्छा बल्लेबाज हो जाता है। इसी तरह माहिर खिलाड़ियों को आउट करने के लिए मुश्किल से मुश्किल गेंदे ईजाद की जाती रहती हैं। जो गेंदबाज हर समय नई गेंद ईजाद कर सकने की क्षमता रखता है वही श्रेष्ठ गेंदबाज हो जाता है। मानव शरीर का क्षमता विकसित करने का अद्भुद गुण हर समय मनुष्य को अपनी क्षमता विकसित करने में हमेशा मदद करता है। यही खेलों को जीवन्त बनाए रखने के लिए जिम्मेदार भी है। हमारे खिलाड़ियों ने अपनी क्षमता को उस ऊँचाई तक विकसित किया से वे इस विश्व कप को जीत सके। इस के लिए वे सभी बधाई और देश की जनता के प्यार पाने के अधिकारी हैं।
लेकिन केवल खिलाड़ियों के क्षमता हासिल कर लेने से ही जीतें हासिल नहीं हो जाती हैं। यदि ऐसा होता तो यह जीत पहले भी हासिल की जा सकती थी। किसी भी ऐसे क्षेत्र में जहाँ एक से अधिक लोग मिल कर ही जीत हासिल कर सकते हों वहाँ दो चीजों की आवश्यकता और होती है। पहली चीज है जीत के लिए आवश्यक व्यक्तियों की जीत के लक्ष्य के लिए अटूट एकता और दूसरी चीज है उस के लिए लगातार संघर्ष। यदि ये 'एकता और संघर्ष' न हों तो किसी भी क्षेत्र में कोई भी जीत कभी भी हासिल नहीं की जा सकती। 
म इस जीत का ही उदाहरण लें। सचिन तेंदुलकर पिछले विश्वकप के पहले ही एक लीजेंड खिलाड़ी हो चुके थे। उन के पास क्रिकेट का हर रिकॉर्ड मौजूद था। वे कहने लगे थे कि इन सब रिकॉर्डों का कोई अर्थ नहीं है यदि इतने लंबे कैरियर में मैं किसी विश्वकप विजेता टीम का हिस्सा नहीं बन सका। ये वे यह समझ चुके थे कि कोई भी एक खिलाड़ी अपने दम पर इस तरह की जीत को हासिल नहीं कर सकता। विश्वकप हासिल करने की उन की भूख इतनी जबर्दस्त थी कि उन्हों ने अगले विश्वकप के हर संभावित खिलाड़ी को इस के लिए तैयार करना आरंभ किया। जीत के बाद कल जब युवराज से पूछा गया वह वैरी वैरी स्पेशल व्यक्ति कौन था जिस के लिए वह यह विश्वकप हासिल करने के लिए अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी? तो उस का जवाब था -वह व्यक्ति सचिन तेंदुलकर ही है। वह दो वर्ष से लगातार मुझे प्रोत्साहित कर रहा था, अगला विश्वकप जीतने के लिए तुम्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। कप्तान धोनी ने भी कल यह कहा था कि इस विश्वकप के लिए उन की तैयारी दो वर्ष से चल रही थी। अधिकांश खिलाड़ियों ने यदि यह कहा कि उन्हों ने यह विश्वकप सचिन के लिए जीता है तो गलत नहीं कहा। आखिर एक सचिन ही थे जिन्हों ने टीम के प्रत्येक खिला़ड़ी में यह भावना भर दी थी कि यह विश्वकप जीतना है। कप्तान धोनी ने जरूर सेनापति की भूमिका अदा की लेकिन जीत की प्रेरणा तो सचिन ही थे। एक सचिन ही थे जो इस काम को सही तरीके से अंजाम दे सकते थे। वह इसलिए कि वे अपने व्यक्तिगत कौशल से इतने कीर्तिमान स्थापित कर चुके थे कि सारी टीम के प्रेरणा के स्रोत बन चुके थे। टीम में उन से ईर्ष्या करने वाला कोई नहीं था, वे सब के लिए आदर्श बन चुके थे। उन्हों ने वह भूमिका अदा की जो भारत को सिंकदर के आक्रमण से बचाने के लिए विष्णुगुप्त चाणक्य ने अदा की थी। लगातार खेलते हुए छोटी-छोटी जीतों के जरिए टीम की एकता को मजबूत करना, फिर संघर्ष के जरिए बड़ी एकता हासिल करने का मार्ग ही इस तरह की विश्वव्यापी विजय का मार्ग प्रशस्त करता है।   
प्रत्येक भारतीय को इस जीत का सबक सीख लेना चाहिए। 'एकता और संघर्ष' का यह सबक प्रत्येक जीत का मूल मंत्र है। इस मंत्र के माध्यम से कैसे भी शत्रु को परास्त किया जा सकता है। हमारी टीम ने एक दिवसीय क्रिकेट का विश्वकप हासिल कर लिया है, लेकिन उस ने जो मार्ग इस देश की जनता को दिखाया है उस पर चल कर इस देश की जनता को बहुत जीतें हासिल करनी है। गरीबी, भूख, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, असमानता, अन्याय, अत्याचार जैसी अनेक समस्याएँ देश के समक्ष मुहँ बाए खड़ी हैं। जब भी इन समस्याओं से निपटने की बात की जाती है तो निराशा में भरे लोग कहने लगते हैं कि कुछ नहीं होने का। जो भी इन समस्याओं से लड़ने चलता है वह जल्दी ही प्रतिआक्रमणों से धराशाई हो जाता है। आखिर ये सारी समस्याएँ व्यवस्था की देन हैं। व्यवस्था का मौजूदा ढ़ाँचा इन सारी समस्याओं का जनक है और इन से निपटने में पूरी तरह से अक्षम। हमें इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए पूरी व्यवस्था से जूझना होगा, जो अब विश्व व्यवस्था से नाभिनालबद्ध है। इतने मजबूत शत्रु से एक व्यक्ति या कोई छोटा-मोटा समूह नहीं लड़ सकता। उस से लड़ने के लिए इस व्यवस्था की शिकार देश की बहुमत जनता को एकजुट होना होगा। यह एकता एक दिन में भी नहीं बनती। यह लगातार संघर्ष करते हुए बनती है। कुछ लोगों की एकता और संघर्ष, फिर संघर्ष के जरिए जुड़े लोगों के  साथ एकता का निर्माण और फिर संघर्ष..... । 'एकता और संघर्ष' का लगातार सिलसिला ही एक दिन उस वृहद् एकता तक हमें पहुँचा सकता है जो संघर्ष के जरिए मौजूदा जन विरोधी व्यवस्था को धराशाई कर एक जनपक्षीय जनतांत्रिक व्यवस्था स्थापित कर सकता है और जनता के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

19 टिप्‍पणियां:

Learn By Watch ने कहा…

Hats off to you!!!

आपका यह लेख मैंने प्रिंट करके मेरे व्यक्तिगत नोटिस बोर्ड पर लगा लिया है|

बहुत ही सहज तरीके से आपने यह गंभीर बात कह दी|


भारत के विश्वविजेता बनने और यह लेख लिखने पर बधाई

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जीत की हार्दिक बधाई.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा आलेख....

बधाईयाँ...बधाईयाँ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मिलजुल कर जीतने से ही आत्मविश्वास बढ़ेगा।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

दूसरा विकेट गिरने पर मैं तो सो गया था, मुझे कलकता की याद आ गई थी. करीब दो सौ रन बन जाने पर मुझे घरवालों ने जगाया. आज ज़रूर कुछ तो बात है कि सभी अपना अपना खेल रहे हैं एक टीम बनकर. इसी एकता की शक्ति आज हमने फिर देखी.

amit kumar srivastava ने कहा…

team work and team spirit pays everywhere.

Rahul Singh ने कहा…

ढेरों-ढेर बधाई.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

हिन्दू नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ

http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/hindi-twitter.html

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत उम्दा आलेख....

बधाईयाँ..

Abhishek Ojha ने कहा…

क्रिकेट तो मैं देखता ही नहीं :) पर सीख अच्छी है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

जी हां। सबक कहीं से मिले, उसे उसकी इंट्रिंसिक वैल्यू पर स्वीकार करना चाहिये।

Arvind Mishra ने कहा…

एक बहुत अच्छी समीक्षा -सही है आउट करने वाली बाल ही अलग होती है !

सञ्जय झा ने कहा…

manbhavan post........harkhit bhaye......jeet ki subhkamnayen.....
sabhi ko......

pranam.

Khushdeep Sehgal ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट...
क्रिकेट ही नहीं पिछले 28 साल में देश भी बहुत कुछ बदल चुका है...

1983 का क्रिकेट सफ़ेद था...
2011 का क्रिकेट रंगीन है...

क्या इसके बाद भी कहने को कुछ रह जाता है...

जय हिंद...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना... साथी हाथ बढ़ाना :)

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

इस सार्थक लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सच है इस खेल और इसकी इस जीत से मिली उर्जा को को हमें अपनी समस्‍याओं के संदर्भ में देखना चाहिए।

वाणी गीत ने कहा…

एकता और संघर्ष , किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के मूल मंत्र हैं ...
देश के विकास के लिए इस जीत से सबक लिया जा सकता है ...
शानदार आलेख ...
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आप मुझे निराशावादी कह सकते हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि अब इस देश में कभी मुक्ति का मार्ग नहीं खुल सकता..