- बीजी जोशी
कभी भी, कहीं भी और
कैसे भी हॉकी पर चर्चा चलते कुछ ही पलों में सहमति बन जाती थी कि हॉकी यानी
भारत-पाकिस्तान। लेकिन अब वह बात कहां। हॉलैंड में हॉकी का विश्वकप ३१ मई से खेला
जाना है लेकिन पाकिस्तान इस विश्वकप से बाहर है। सर्वाधिक ४ मर्तबा विश्व चैंपियन
रही पाकिस्तान को १३ वें विश्वकप में खेलने की पात्रता भी नहीं मिली है। जून २०१३
में मलेशिया में हॉकी वर्ल्ड लीग क्वार्टर फाइनल में भरोसेमंद और अनुभवी शकील
अब्बासी द्वारा कोरिया के विरुद्ध पेनल्टी स्ट्रोक गंवाकर ३ के मुकालबे ४ गोल से
हारना पाकिस्तान को महंगा पड़ा। एशियाकप चैंपियन बनने की राह में भी कोरिया ने
पाकिस्तान को सेमीफाइनल में २-१ से हरा दिया। देखा जाए तो कोरिया ही विश्वकप में
एशियाई हॉकी का ध्वजवाहक है। लगातार दो बार (२००२ और २००६) सेमीफाइनल खेलकर विश्वकप
में चौथे क्रम पर रही कोरियाई हॉकी समृद्ध बन गई है। आक्रमण में समुद्री गहराई व
रक्षण में हिमालयी दृढ़ता की कोरियाई विध्वंसक शैली ने योरपीय दिग्गजों को पछाड़ना
शुरू कर दिया है। पेनल्टी कॉर्नर पर जॉन्ग यून जंग की करामाती फ्लिफ कहर बरपाती
है।
इपोह में आयोजित एशियाकप में जॉन्ग जंग ८ गोल के साथ टॉप
स्कोरर रहे हैं। जर्मन गैहार्ड रैख, स्पेनिश ब्रासा,
ऑस्ट्रेलियाई माइकल नॉब्स, डच औल्टमन व अब
ऑस्ट्रेलियाई टैरी वाल्श के प्रशिक्षण में भारतीय टीम हॉकी की नई व्याकरण में ढल
रही है पर त्रुटिरहित रक्षण व आक्रमण में पैनेपन की मुख्य कमजोरियां भारतीय हॉकी
को विश्वपटल पर ओझल कर रही हैं। १९९८ से लागू "नो ऑफ साइड रूल" ने
भारतीय रक्षण को भोथरा कर दिया है। इस नियम ने मिडफील्ड खेल खत्म कर दिया है। अब दोनों
टीमों के २५ गज में ही खेल होता है। गेंद पर गिद्ध समान पैनी नजर रख सफाई से सही
क्लियरंस में भारतीय जब तब फिसड्डी साबित हुए हैं। अधिकतर मैचों में भारतीयों के
पासेस साथी खिलाड़ियों तक नहीं पहुंचे। खुद पर विश्वास नहीं होने से मानसिक रूप से
कमतर खिलाड़ियों से अनजाने में हुई गलतियों ने विपक्षियों को आसान मौके दिए।
विरोधियों की मैन टू मैन मार्किंग के साथ संयुक्त झोनल मार्किंग में भी भारतीय
पूरी तरह असफल रहे। उक्त खामियों से ८ बार के ओलिंपिक चैंपियन भारत ने लंदन
ओलिंपिक में सभी ६ मैच हारने का दुर्लभ निकृष्ट कीर्तिमान रचा है।
प्रथम तीन विश्वकप स्पर्धाओं में विजयी मंच पर सुशोभित भारत
ने तब मात्र दो मैच हारे थे जबकि पिछले दो विश्वकप में टीम मात्र दो मैच ही जीत
पाई है। कौशल व रणनीति की कमियां भारतीयों को जीत से दूर रख रही हैं। आधुनिक हॉकी
बेहद तेज तकनीक से भरा खेल बन गया है। गोलरक्षक के लिए एक तिहाई सेकंड ही रिएक्शन
टाइम है। गेंद पर अपलक नजर व सही पोजिशनिंग ही गोल बचा पाती है। बुसान एशियंस चैंपियंस
ट्रॉफी से खुद को सफल गोली के रूप में ढाल रहे हैं केरल के होनहार श्रीजैश। पूर्व
में एंग्लो इंडियन समुदाय से विश्वस्तरीय गोली की तेजी वाले खिलाड़ी निकले हैं।
चार्ल्स कॉर्नेलियस व सेड्रिक परैरा ने सातवें दशक में भारतीय हॉकी को शीर्ष पर
बनाए रखा। हालांकि जूड मींजेज, एड्रियन
डिसूजा व मार्क पैटरसन की भारतीय हॉकी को अव्वल स्थान पर लाने की कोशिशें ज्यादा
सार्थक नहीं रहीं।
पृथ्वीपालसिंह, माइकल किंडो,
सुरजीतसिंह, परगटसिंह व दिलीप तिर्की के
समकक्ष फुलबैक की भारतीय टीम को अभी भी तलाश है। वर्तमान फुलबैक कमजोर रिकवरी व
धीमे रिफलेक्सेस से टीम पर बोझा साबित हो रहे हैं। पेनल्टी कॉर्नर के विशेषज्ञ फुलबैक
ही रहे, ऐसा किसी संविधान में नहीं है पर भारत में फुलबैक को
ही पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ के रूप में ढालने की परंपरा रही है। दुर्भाग्य से अभी
खेल रहे दोनों पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ रूपिंदरपाल सिंह व रघुनाथ सही टैकलिंग व
उम्दा क्लियरंस में कमजोर हैं। रक्षण की विधा में पारंगत बन कर ही वे भारतीय टीम
की संपदा बन सकेंगे। मिडफील्ड में बीरेंद्र लाकरा, सरदारसिंह,
गुरबाजसिंह, धरमवीरसिंह तथा कोथाजीतसिंह ने पूर्ण
तन्मयता से खेल दिखाया तो टीम चल निकलेगी। सौभाग्य से नवोदित भारतीय फॉरवर्ड्स सही
पथ पर हैं, पर विपक्षियों की सघन नाकेबंदी उन्हें कम ही मौके
देती है। निकिन थिमैया व एसबी सुनील मिले मौकों पर गोल जड़ने में सफलता पा रहे हैं।
कुर्ग के अनुभवी सुनील का डॉजिंग-पासिंग भरा खेल टीम की धरोहर है। उनके इस हुनर से
ही भारतीय टीम को पेनल्टी कॉर्नर की बढ़त मिलती है।
हॉलैंड का शहर हैग न्याय के लिए प्रसिद्ध है, वहां अंतरराष्ट्रीय न्यायालय है। विश्वकप के पूल मैचों में भारत को क्रमशः
बेल्जियम, इंग्लैंड, स्पेन, मलेशिया व ऑस्ट्रेलिया से भिड़ना है। २०११ के जोहानसबर्ग चैंपियंस चैलेंज
कप में ३-१ से जीत रही भारतीय टीम को ४-३ से हराने का करिश्मा रचने वाली बेल्जियम
टीम उफान पर है। रेड लायंस की संज्ञा से विभूषित बेल्जियम ने लंदन कुछ ही दिन और
फिर हॉलैंड में विश्वकप हॉकी के मुकाबलों में सभी खिलाड़ी जी-जान लगाते नजर आएंगे।
प्रतिस्पर्धा इस बार जबरदस्त कांटेदार है। भारत के लिए जीत भले दूर हो लेकिन साख
के लिए तो उसे खेलना ही होगा। ओलिंपिक, योरपीय कप तथा हॉकी
वर्ल्डलीग में अच्छा प्रदर्शन किया है। आधुनिक हॉकी के सभी सूत्रों को समेटे
बेल्जियम से पहली भिड़ंत में भारत पसीना बहा कर ही अपने सम्मान की रक्षा कर सकेगा।
थोड़ी सी भी शिथिलता या चूक भारतीयों के टूर्नामेंट के पहले ही मैच में हारने का रिकॉर्ड
बना देगी।
अभी तक भारत ५९ बार पहले ही मैच में हारा है, इसमें विश्वकप में ४ बार यह दुर्दशा हुई है। विगत ओलिंपिक व विश्वकप २०१०
में सेमीफाइनल में खेली इंग्लिश टीम बेहद मजबूत है। तीन ओलिंपिक, दो विश्वकप, तीन चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में खेली
स्पेन की टीम को कम आंकना भी आत्मघाती होगा। मलेशिया को भारत हरा सकता है। जबकि
बरसों बीत गए हैं ऑस्ट्रेलिया को हराए। ऐसे में कश्मकश मुकाबलों में भारतीय टीम का
टॉप सिक्स में आना उसके लिए बोनस होगा। मेजबान हॉलैंड का हॉकी में दबदबा रहा है।
डच टीम तीन मर्तबा विश्वकप जीत चुकी है। वस्तुतः १९९६ से २००६ तक डच टीम दुनिया
में सरेफेहरिस्त बनी रही है। घरू मैदान पर उनका चौथी बार चैंपियन बनना यकीनी है क्योंकि
अपनी सरजमीं पर उनका खेल आसमान छू जाता है। एम्स्टरडम में अपने से सवाया भारतीय
टीम को और यूट्रेख्ट में दिग्गज स्पेन को हराकर डच चैंपियन बने हैं। विगत ११
संस्करण में लगातार सेमीफाइनल खेल रही बैक-टू-बैक ओलिंपिक चैंपियन जर्मनी मजबूत
टीम है।
जर्मन टीम के ट्रंपकार्ड मार्टिज फुर्स्ट मांसपेशियों में
खिंचाव से टीम में नहीं होने से कोरिया व अर्जेंटीना की बन पड़ी है। गोनझालो पिलैत
के रूप में अर्जेंटीना को जॉर्ज लांबी के बाद पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ मिल गया है।
२००२ के विश्वकप में लांबी ने टॉप स्कोरर बन लैटिन अमेरिकी टीम को छठी पोजीशन
दिलाई थी। संभवतः पहली बार अर्जेंटीना सेमीफाइनल में दहाड़ सकता है। भारतीय
अर्जेंटीना के प्रति कृतज्ञ हैं। ज्ञातव्य है कि ब्रॉम्पटन(कनाडा) अमेरिकी कप
(२०१३) में कनाडा के हारने पर ही भारत को विश्वकप का मौका मिला है। हॉकी वर्ल्डकप
में छठवीं पोजीशन व एशियाकप में उपविजेता होने से भारत भी पाकिस्तान की तरह
विश्वकप से बाहर होने की स्थिति में था। पूल-बी में दक्षिण अफ्रीका व न्यूजीलैंड
भी उनके विरुद्ध कमतर खेलने वाली टीमों को अपसेट कर स्पर्धा का रोमांच बनाए रखेंगी। भारत की दृष्टि से विश्वकप भले ही दूर है, क्योंकि पूल
विरोधियों के विरुद्ध भारत को पिछली पांच भिड़तों में महज २५ प्रतिशत जीत मिली है। लेकिन
इस समय मुख्य प्रशिक्षक टैरी वाल्श के सहायक बने जूड फेलिक्स की कप्तानी में भारत
ने सिडनी में ५ वां स्थान पाया था। उसकी पुनरावृत्ति भी भारत के लिए बड़ी बात होगी।
"आओ हॉकी का उत्सव मनाएं" हैग विश्वकप टूर्नामेंट
का यह आदर्श वाक्य एशियाई हॉकी के लिए भले ही मुफीद नहीं हो क्योंकि दो पीढ़ियों ने
हॉकी में जीत का स्वाद नहीं चखा है पर कई खिलाड़ियों के लिए यह विश्वकप मील का
पत्थर साबित होगा। खासकर उनके लिए जो अपने करियर को स्वर्णिम सफलता के साथ विदाई
देना की इच्छा रखते हैं।