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रविवार, 25 मई 2014

भारतीय हॉकी और मुश्किल पहाड़

  • बीजी जोशी
भी भी, कहीं भी और कैसे भी हॉकी पर चर्चा चलते कुछ ही पलों में सहमति बन जाती थी कि हॉकी यानी भारत-पाकिस्तान। लेकिन अब वह बात कहां। हॉलैंड में हॉकी का विश्वकप ३१ मई से खेला जाना है लेकिन पाकिस्तान इस विश्वकप से बाहर है। सर्वाधिक ४ मर्तबा विश्व चैंपियन रही पाकिस्तान को १३ वें विश्वकप में खेलने की पात्रता भी नहीं मिली है। जून २०१३ में मलेशिया में हॉकी वर्ल्ड लीग क्वार्टर फाइनल में भरोसेमंद और अनुभवी शकील अब्बासी द्वारा कोरिया के विरुद्ध पेनल्टी स्ट्रोक गंवाकर ३ के मुकालबे ४ गोल से हारना पाकिस्तान को महंगा पड़ा। एशियाकप चैंपियन बनने की राह में भी कोरिया ने पाकिस्तान को सेमीफाइनल में २-१ से हरा दिया। देखा जाए तो कोरिया ही विश्वकप में एशियाई हॉकी का ध्वजवाहक है। लगातार दो बार (२००२ और २००६) सेमीफाइनल खेलकर विश्वकप में चौथे क्रम पर रही कोरियाई हॉकी समृद्ध बन गई है। आक्रमण में समुद्री गहराई व रक्षण में हिमालयी दृढ़ता की कोरियाई विध्वंसक शैली ने योरपीय दिग्गजों को पछाड़ना शुरू कर दिया है। पेनल्टी कॉर्नर पर जॉन्ग यून जंग की करामाती फ्लिफ कहर बरपाती है।
पोह में आयोजित एशियाकप में जॉन्ग जंग ८ गोल के साथ टॉप स्कोरर रहे हैं। जर्मन गैहार्ड रैख, स्पेनिश ब्रासा, ऑस्ट्रेलियाई माइकल नॉब्स, डच औल्टमन व अब ऑस्ट्रेलियाई टैरी वाल्श के प्रशिक्षण में भारतीय टीम हॉकी की नई व्याकरण में ढल रही है पर त्रुटिरहित रक्षण व आक्रमण में पैनेपन की मुख्य कमजोरियां भारतीय हॉकी को विश्वपटल पर ओझल कर रही हैं। १९९८ से लागू "नो ऑफ साइड रूल" ने भारतीय रक्षण को भोथरा कर दिया है। इस नियम ने मिडफील्ड खेल खत्म कर दिया है। अब दोनों टीमों के २५ गज में ही खेल होता है। गेंद पर गिद्ध समान पैनी नजर रख सफाई से सही क्लियरंस में भारतीय जब तब फिसड्डी साबित हुए हैं। अधिकतर मैचों में भारतीयों के पासेस साथी खिलाड़ियों तक नहीं पहुंचे। खुद पर विश्वास नहीं होने से मानसिक रूप से कमतर खिलाड़ियों से अनजाने में हुई गलतियों ने विपक्षियों को आसान मौके दिए। विरोधियों की मैन टू मैन मार्किंग के साथ संयुक्त झोनल मार्किंग में भी भारतीय पूरी तरह असफल रहे। उक्त खामियों से ८ बार के ओलिंपिक चैंपियन भारत ने लंदन ओलिंपिक में सभी ६ मैच हारने का दुर्लभ निकृष्ट कीर्तिमान रचा है। 

प्रथम तीन विश्वकप स्पर्धाओं में विजयी मंच पर सुशोभित भारत ने तब मात्र दो मैच हारे थे जबकि पिछले दो विश्वकप में टीम मात्र दो मैच ही जीत पाई है। कौशल व रणनीति की कमियां भारतीयों को जीत से दूर रख रही हैं। आधुनिक हॉकी बेहद तेज तकनीक से भरा खेल बन गया है। गोलरक्षक के लिए एक तिहाई सेकंड ही रिएक्शन टाइम है। गेंद पर अपलक नजर व सही पोजिशनिंग ही गोल बचा पाती है। बुसान एशियंस चैंपियंस ट्रॉफी से खुद को सफल गोली के रूप में ढाल रहे हैं केरल के होनहार श्रीजैश। पूर्व में एंग्लो इंडियन समुदाय से विश्वस्तरीय गोली की तेजी वाले खिलाड़ी निकले हैं। चार्ल्स कॉर्नेलियस व सेड्रिक परैरा ने सातवें दशक में भारतीय हॉकी को शीर्ष पर बनाए रखा। हालांकि जूड मींजेज, एड्रियन डिसूजा व मार्क पैटरसन की भारतीय हॉकी को अव्वल स्थान पर लाने की कोशिशें ज्यादा सार्थक नहीं रहीं।
पृथ्वीपालसिंह, माइकल किंडो, सुरजीतसिंह, परगटसिंह व दिलीप तिर्की के समकक्ष फुलबैक की भारतीय टीम को अभी भी तलाश है। वर्तमान फुलबैक कमजोर रिकवरी व धीमे रिफलेक्सेस से टीम पर बोझा साबित हो रहे हैं। पेनल्टी कॉर्नर के विशेषज्ञ फुलबैक ही रहे, ऐसा किसी संविधान में नहीं है पर भारत में फुलबैक को ही पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ के रूप में ढालने की परंपरा रही है। दुर्भाग्य से अभी खेल रहे दोनों पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ रूपिंदरपाल सिंह व रघुनाथ सही टैकलिंग व उम्दा क्लियरंस में कमजोर हैं। रक्षण की विधा में पारंगत बन कर ही वे भारतीय टीम की संपदा बन सकेंगे। मिडफील्ड में बीरेंद्र लाकरा, सरदारसिंह, गुरबाजसिंह, धरमवीरसिंह तथा कोथाजीतसिंह ने पूर्ण तन्मयता से खेल दिखाया तो टीम चल निकलेगी। सौभाग्य से नवोदित भारतीय फॉरवर्ड्स सही पथ पर हैं, पर विपक्षियों की सघन नाकेबंदी उन्हें कम ही मौके देती है। निकिन थिमैया व एसबी सुनील मिले मौकों पर गोल जड़ने में सफलता पा रहे हैं। कुर्ग के अनुभवी सुनील का डॉजिंग-पासिंग भरा खेल टीम की धरोहर है। उनके इस हुनर से ही भारतीय टीम को पेनल्टी कॉर्नर की बढ़त मिलती है।
हॉलैंड का शहर हैग न्याय के लिए प्रसिद्ध है, वहां अंतरराष्ट्रीय न्यायालय है। विश्वकप के पूल मैचों में भारत को क्रमशः बेल्जियम, इंग्लैंड, स्पेन, मलेशिया व ऑस्ट्रेलिया से भिड़ना है। २०११ के जोहानसबर्ग चैंपियंस चैलेंज कप में ३-१ से जीत रही भारतीय टीम को ४-३ से हराने का करिश्मा रचने वाली बेल्जियम टीम उफान पर है। रेड लायंस की संज्ञा से विभूषित बेल्जियम ने लंदन कुछ ही दिन और फिर हॉलैंड में विश्वकप हॉकी के मुकाबलों में सभी खिलाड़ी जी-जान लगाते नजर आएंगे। प्रतिस्पर्धा इस बार जबरदस्त कांटेदार है। भारत के लिए जीत भले दूर हो लेकिन साख के लिए तो उसे खेलना ही होगा। ओलिंपिक, योरपीय कप तथा हॉकी वर्ल्डलीग में अच्छा प्रदर्शन किया है। आधुनिक हॉकी के सभी सूत्रों को समेटे बेल्जियम से पहली भिड़ंत में भारत पसीना बहा कर ही अपने सम्मान की रक्षा कर सकेगा। थोड़ी सी भी शिथिलता या चूक भारतीयों के टूर्नामेंट के पहले ही मैच में हारने का रिकॉर्ड बना देगी।
भी तक भारत ५९ बार पहले ही मैच में हारा है, इसमें विश्वकप में ४ बार यह दुर्दशा हुई है। विगत ओलिंपिक व विश्वकप २०१० में सेमीफाइनल में खेली इंग्लिश टीम बेहद मजबूत है। तीन ओलिंपिक, दो विश्वकप, तीन चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में खेली स्पेन की टीम को कम आंकना भी आत्मघाती होगा। मलेशिया को भारत हरा सकता है। जबकि बरसों बीत गए हैं ऑस्ट्रेलिया को हराए। ऐसे में कश्मकश मुकाबलों में भारतीय टीम का टॉप सिक्स में आना उसके लिए बोनस होगा। मेजबान हॉलैंड का हॉकी में दबदबा रहा है। डच टीम तीन मर्तबा विश्वकप जीत चुकी है। वस्तुतः १९९६ से २००६ तक डच टीम दुनिया में सरेफेहरिस्त बनी रही है। घरू मैदान पर उनका चौथी बार चैंपियन बनना यकीनी है क्योंकि अपनी सरजमीं पर उनका खेल आसमान छू जाता है। एम्स्टरडम में अपने से सवाया भारतीय टीम को और यूट्रेख्ट में दिग्गज स्पेन को हराकर डच चैंपियन बने हैं। विगत ११ संस्करण में लगातार सेमीफाइनल खेल रही बैक-टू-बैक ओलिंपिक चैंपियन जर्मनी मजबूत टीम है।
र्मन टीम के ट्रंपकार्ड मार्टिज फुर्स्ट मांसपेशियों में खिंचाव से टीम में नहीं होने से कोरिया व अर्जेंटीना की बन पड़ी है। गोनझालो पिलैत के रूप में अर्जेंटीना को जॉर्ज लांबी के बाद पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ मिल गया है। २००२ के विश्वकप में लांबी ने टॉप स्कोरर बन लैटिन अमेरिकी टीम को छठी पोजीशन दिलाई थी। संभवतः पहली बार अर्जेंटीना सेमीफाइनल में दहाड़ सकता है। भारतीय अर्जेंटीना के प्रति कृतज्ञ हैं। ज्ञातव्य है कि ब्रॉम्पटन(कनाडा) अमेरिकी कप (२०१३) में कनाडा के हारने पर ही भारत को विश्वकप का मौका मिला है। हॉकी वर्ल्डकप में छठवीं पोजीशन व एशियाकप में उपविजेता होने से भारत भी पाकिस्तान की तरह विश्वकप से बाहर होने की स्थिति में था। पूल-बी में दक्षिण अफ्रीका व न्यूजीलैंड भी उनके विरुद्ध कमतर खेलने वाली टीमों को अपसेट कर स्पर्धा का रोमांच बनाए रखेंगी। भारत की दृष्टि से विश्वकप भले ही दूर है, क्योंकि पूल विरोधियों के विरुद्ध भारत को पिछली पांच भिड़तों में महज २५ प्रतिशत जीत मिली है। लेकिन इस समय मुख्य प्रशिक्षक टैरी वाल्श के सहायक बने जूड फेलिक्स की कप्तानी में भारत ने सिडनी में ५ वां स्थान पाया था। उसकी पुनरावृत्ति भी भारत के लिए बड़ी बात होगी। 


"आओ हॉकी का उत्सव मनाएं" हैग विश्वकप टूर्नामेंट का यह आदर्श वाक्य एशियाई हॉकी के लिए भले ही मुफीद नहीं हो क्योंकि दो पीढ़ियों ने हॉकी में जीत का स्वाद नहीं चखा है पर कई खिलाड़ियों के लिए यह विश्वकप मील का पत्थर साबित होगा। खासकर उनके लिए जो अपने करियर को स्वर्णिम सफलता के साथ विदाई देना की इच्छा रखते हैं।

सोमवार, 19 अगस्त 2013

अर्जेंटीना की मेहरबानी से भारत को विश्वकप में प्रवेश का अवसर ...बीजी जोशी

विश्व कप में प्रवेश के लिए एशिया कप जीतना जरूरी नहीं

जायंट किलर अर्जेंटीना ने चौथे पैनअमेरिकी हॉकी कप के फाइनल में कनाडा को ४-० से रौंद कर भारत के विश्व कप हॉकी में खेलने की संभावनाएं बढाई है। अब भारत को २४ अगस्त से इपोह में शुरू हो रहा ९वां एशिया कप जीतना जरूरी नही रहा है।

जकल हॉकी विश्व कप में दो विश्व कप क्वालिफायर (वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल) में प्रथम तीन स्थान पर रही टीमें, मेजबान व पांचों महाद्वीप के चैंपियन सहित १२ स्थान है। जर्मनी, अर्जेंटीना, इग्लैंड ने मलेशिया में खेले गए तथा बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स ने नीदरलैंड्स में आयोजित क्वालिफायर से अपने पग विश्व कप में रख दिए है। क्वालिफायर में चौथे क्रम पर रही न्यूजीलैंड ने मेजबान नीदरलैंड्स की जगह प्राप्त कर ली है। वर्ल्ड लीग स्पर्धा में अर्जित रैंकिंग के आधार पर दक्षिण कोरिया, स्पेन, मलेशिया व भारत क्रमशः विश्व कप हेतु वेटिंग लिस्ट में है। 

अर्जेंटीना ने भारत की राह आसान की

पूर्व में ही विश्व कप में पहुंच चुकी अर्जेंटीना की जगह अब दक्षिण कोरिया को मिल गई है। ऐसे में योरप, ऑस्ट्रेलिया कप में पूर्व में ही विश्व कप में पहुंच चुकी टीम के विजेता बनने पर स्पेन व मलेशिया को मौका मिलेगा। अब इपोह एशिया कप में सूत्र है दक्षिण कोरिया या मलेशिया के जीतने पर भी भारत स्वतः ही विश्व कप में खेलेगा, हां पाकिस्तान द्वारा एशिया कप जीतने पर भारत विश्व कप से बाहर हो जाएगा। अर्जेंटीना ने मांट्रियल ओलिंपिक (१९७६) में ऑस्ट्रेलिया को हरा कर भारत को सेमीफाइनल का मौका दिया था। तब प्लेऑफ में भारत टाईब्रेकर में ऑस्ट्रेलिया से हार कर स्वर्णिम अवसर खो बैठा था। विदित है कि कुआलालंपुर (१९७५) में विश्व कप विजयी भारतीय टीम को अर्जेंटीना ने पुल मैच में हराया था। आज अमेरिकी हॉकी कप में कनाडा को हरा कर भारत की विश्व कप राह में फूल बिछा दिए है। 

-बीजी जोशी

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

किसी हॉकी खिलाड़ी को भी फुटबाल खिलाड़ी एंड्रीज इस्कोबार जैसा दुर्भाग्य झेलना पड़ सकता है


रक्षकटीम को रोकनी होगी हर गेंद
हॉकी में 'सेल्फ गोल' का नियम 
  - बीजी जोशी
फुटबॉल विश्व कप (1994) खेलप्रेमियों को अभी तक याद होगा । कोलंबिया के रक्षक एंड्रीज इस्कोबार ने अपने ही गोल में गेंद भेजकर टीम को अमेरिका के विरूद्व पहले ही राउंड में पराजित करा दिया था । कैलिफोर्निया राज्य के लॉस एजिंल्स शहर के रोज बाउल स्टेडियम में 22 जून को यह मैच खेला गया था। इस मैच के एक माह बाद ही इस्कोबार को जान से हाथ धोना पड़ा था। कोलंबियाई फुटबॉल प्रेमी ने उन्हें गोली मार दी थी। ऐसा ही दुर्भाग्य अब हॉकी खिलाड़ियों को भी झेलना पड़ सकता है ।
 

  अतंरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ नए वर्ष (1 जनवरी 2013) से "सेल्फ गोल" का नियम (नंबर 8) प्रभावी कर रहा है । अभी तक स्ट्राइकिंग सर्किल यानी "डी" के अंदर से अटैकर द्वारा गोल में गेंद भेजने पर ही गोल मान्य है । अब "डी" के बाहर से भी सर्किल में भेजी गई गेंद यदि डिफेंडर या गोली से लगकर गोल में चली गई तो "सेल्फ गोल" दर्ज होगा ।

नियम 7.4 के अंतर्गत अभी तक "डी" के बाहर से अटैकर द्वारा खेली गई गेंद (अ) सर्किल में बिना किसी की स्टिक छूए गोल में जाती थी, तो रक्षक टीम को 16 गज की फ्री हिट मिलती थी। (ब) यदि गेंद किसी रक्षक की स्टिक से सहज लगकर गोल में जाती थी तो अटैकर टीम को कॉर्नर दिया जाता था। (स) यदि गेंद को रक्षक या गोली द्वारा जानबूझकर गोललाईन के पार भेजी जाता था, तो अटैकिंग टीम को पेनल्टी कॉर्नर अवॉर्ड किया जाता था।

दले हुए नियम से रक्षक टीम को "डी" के बाहर से गोल में घुस रही हर गेंद को रोकना होगा यानी रक्षक व गोली से गहरे दबाव में उच्चतम कौशल की मांग । धीमे रिफ्लेक्सेस, ग्राउंड पर स्टिक रखकर झुककर गेंद पर नजर नहीं रखने वाले रक्षक टीम पर बोझ बनेंगे । सेल्फ गोल के चिराग से अपना ही आशियाना फूंकने की नादानी से बचने हेतु भारतीयों को अभी से इस नियम के अनुरूप अपने खेल को ढालना होगा।

शनिवार, 11 अगस्त 2012

जर्मनी और नीदरलैंड्स ओलिम्पिक में अब तक

लंदन ओलिम्पिक में पुरुष हॉकी का फाइनल मुकाबला आज

जर्मनी और नीदरलैंड्स (हॉलेंड) के मध्य

 मैच मध्यरात्रि बाद 12:00 बजे ईएसपीएन चैनल पर देखा जा सकता है

दोनों टीमों द्वारा ओलिम्पिक खेलों में अब तक खेले गए मैचों और आपसी मैचों का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध हॉकी स्क्राइब श्री बीजी जोशी -

 

पुरुष हॉकी : जर्मनी बनाम नीदरलैंड्स (हॉलेंड) अब तक का लेखा-जोखा






विवरण
जर्मनी
नीदरलैंड्स
कोच
मार्कुस वीसे
पॉलवन ऐस
कप्तान
मैक्समिलन मुलर
फ्लोरिस एवर्स
वर्तमान खिताब
मौजूदा ओलिम्पिक चैम्पियन (2008)
कुछ नहीं
ओलिम्पिक में उपस्थिति
17* बार
17 बार
स्वर्ण पदक
3 (1972 प. जर्मनी के रूप में, 1992, 2008)
2 (1996, 2000)
रजत पदक
3 (1936, 1984 एवं 1988 प. जर्मनी के रूप में)
3(1928, 1952, 2004)
कांस्य पदक
3 (1928, 1956, 2004)
3 (1936, 1948, 1988)
ओलिम्पिक में खेले
104 मैच
113 मैच
जीते
65 मैच
69 मैच
बराबर रहे
17 मैच
16 मैच
हारे
22 मैच
28 मैच
गोल किए
257
281
गोल खाए
124
178
सब से बड़ी जीत
9-1 स्पेन के विरुदध 1976 में पाँचवें स्थान के लिए हुए मैंच में
9-2 ब्रिटेन के विरुद्ध 2012 लंदन ओलिम्पिक के सेमीफाइनल में  
सब से बुरी हार
1-8  भारत से 1936 के ओलिम्पिक फाइनल में
0-6 पाकिस्तान से 1968 के पूल मैच में
सर्वकालिक रिकार्ड
कैलर परिवार ने 5 स्वर्ण और 4 रजत जीते  
टाइज क्रूज ने 1972 के ओलिम्पिक में 17 गोल किए
स्वर्ण हस्त
Golden Arms
स्टीफन टेवेस और जॉन पीटर टेवेस 1992, क्रिस्टोफर जीलर व फिलिप्स जीलर; टिम्पो वेस तथा बैंजामिन वेस ने 2008 में स्वर्ण
कजिन्स जेरीन डेल्मी और सेण्डर वान्डर वीडे ने 1996, 2000 में स्वर्ण तथा 2004 में पदक जीते
सांख्यिकी :  श्री बीजी जोशी द्वारा


 
जर्मनी-नीदरलैंड्स : ओलिम्पिक्स में हॉकी मैच
वर्ष
स्थान
मैच
विजेता
स्कोर
1928
एम्सटर्डम
पूल
नीदरलैंड्स
2-1
1936
बर्लिन
से.फा.
जर्मनी
3-0
1952
हेलसिंकी
क्वा.फा.
नीदरलैंड्स
1-0
1972
म्युनिख
से.फा.
जर्मनी
3-0
1988
सियोल
से.फा.
जर्मनी
2-1
1996
अटलाण्टा
से.फा.
नीदरलैंड्स
3-1
2000
सिडनी
पूल
बराबर
2-2
2004
एथेंस
से.फा.
नीदरलैंड्स
3-2
2008
बीजिंग
से.फा.
जर्मनी
1-1,
टा.ब्रे. 4-3
2012
लंदन
पूल
नीदरलैंड्स
3-1
कुल 10 मैचों में से जर्मनी ने 4 नीदरलैंड्स ने 5 जीते एक बराबर रहा दोनों ने 16-16 गोल किए
सांख्यिकी :  श्री बीजी जोशी द्वारा

*1964 के ओलिम्पिक में  जर्मन जनवादी गणतंत्र ने जर्मन संघीय गणतंत्र को 3 मैचों में हराया था। 1968 के ओलिम्पिक में दोनों टीमों ने अलग अलग हिस्सा लिया था। यहाँ उक्त दोनों ओलिम्पिक के रिकार्ड में से जर्मन जनवादी गणतंत्र का रिकार्ड के स्थान पर जर्मन संघीय गणतंत्र का रिकार्ड सम्मिलित किया गया है।