@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

चुनाव परिणाम से उत्पन्न अवसाद

 ल शाम मेरे साथी ब्लागर अख़्तर खान अकेला अवसाद में थे। उसी अवसाद में उन्हों ने कल शाम पोस्ट लिखी। लेकिन अच्छा यह हुआ कि अवसाद की यह धुंध तात्कालिक थी, जो सुबह तक छंट गई और वे पुनः अपनी शैली में आ गए। अवसाद का कारण था अभिभाषक परिषद कोटा के वार्षिक चुनाव के परिणाम। चुनाव में इस बार कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। कोटा की अभिभाषक परिषद को ऐसी कार्यकारिणी चाहिए थी जो वकीलों और वकालत के व्यवसाय के हितों का सही प्रतिनिधित्व कर सके। लेकिन इस के उपयुक्त उम्मीदवार तलाश के बावजूद भी नहीं मिल रहे थे।  
पिछले दो वर्ष कोटा की वकालत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण थे। इस बीच वकालत कम हुई और वकीलों की हड़तालें और कामबंदी अधिक। उस के कारण भी थे। कोटा राजस्थान का महत्वपूर्ण संभागीय मुख्यालय है। इस संभाग की भूमि उपजाऊ है। मध्य प्रदेश के पारयात्र पर्वत (विन्ध्याचल पर्वत का पश्चिमी भाग) से निकलने वाली पार्वती और चंबल और इस के बीच की सभी नदियाँ इसी संभाग में आ कर आपस में मिल जाती हैं, जिस के कारण जल संसाधन भरपूर हैं। जल की उपलब्धता के कारण इस संभाग में जनसंख्या घनत्व राजस्थान के सभी संभागों से अधिक है। कृषि उत्पादन भरपूर होता है, इस से व्यापार भी कम नहीं। संसाधनों के कारण यहाँ उद्योग भी लगे और कोटा नगर औद्योगिक हो गया। लेकिन हर वस्तु की भांति उद्योगों की भी एक आयु होती है। धीरे-धीरे उद्योग बूढ़े होते गए और मरते गए। 1997 में एक साथ पाँच बड़े उद्योग बंद हो गए। उन से बेरोजगारी का सैलाब उत्पन्न हुआ। लेकिन इस नगर की किस्मत अच्छी थी। इस बीच यहाँ के कुछ टेक्नोक्रेट्स ने आईआईटी, इंजिनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश परीक्षाओं में सफलता के लिए कोचिंग देना आरंभ किया और उन्हें सफलता हासिल हुई हजारों छात्र यहाँ कोचिंग लेने आने लगे। अब नगर में बाहर से आने वाले साठ हजार से अधिक कोचिंग छात्र रहने लगे तो उद्योगों से बेरोजगार हुए लोग उन्हें सेवाएँ प्रदान करने में जुटे और बेरोजगारी का दंश कुछ कम हुआ। लोग इस नगर को औद्योगिक नगर के स्थान पर शिक्षा नगरी कहने लगे। हालांकि यह एक गलत तखल्लुस है। क्यों कि यह अभी भी शिक्षा का केन्द्र नहीं अपितु केवल प्रवेश परीक्षा में सफलता के लिए प्रशिक्षण का केंद्र है।
राजस्थान के राज्य प्रशासन में कोटा जैसे महत्वपूर्ण संभाग का हिस्सा भी महत्वपूर्ण होना चाहिए था। लेकिन राजस्थान के गठन के समय जयपुर राजधानी हुई, जोधपुर को उच्चन्यायालय मिला, अजमेर को राजस्व मंडल मिला, उदयपुर को कुछ अन्य मुख्यालय मिले लेकिन कोटा को कुछ नहीं मिला। राजधानी होने के कारण जयपुर को उच्चन्यायालय की पीठ भी मिल गई। कोटा लगातार अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहा। जनसंख्या घनत्व अधिक होने से राज्य प्रशासन के हर क्षेत्र में कोटा संभाग का काम अधिक है। यदि संभागों की दृष्टि से देखा जाए तो उच्चन्यायालय में सर्वाधिक मुकदमे कोटा संभाग के हैं। इस दृष्टि से यदि राजस्थान उच्चन्यायालय की एक और पीठ स्थापित होती है तो वह कोटा का अधिकार है। लेकिन राजनैतिक समीकरणों में कमजोर होने के कारण लगता है कि उस का यह अधिकार भी उदयपुर, बीकानेर या अजमेर न छीन ले जाए। इसी आशंका को देखते हुए कोटा ने उच्चन्यायालय की पीठ के लिए आंदोलन आरंभ कर दिया। कोटा के वकील 2009-10 में पाँच महिने हड़ताल पर रहे, उन्हें देख कर उदयपुर, बीकानेर के वकील भी इस से कुछ कम समय हड़ताल पर रहे। राज्य के एक बड़े हिस्से में न्यायिक प्रक्रिया बिलकुल बाधित रही, लेकिन राज्य सरकार को इस की तनिक भी चिंता न हुई। पाँच माह की काम बंदी के बाद जब उच्चन्यायालय की बैंच के लिए स्थान तय करने के लिए समिति गठित हो गई और मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि कोटा में राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच, राजस्व मंडल की खंड पीठ स्थापित की जाएगी तथा वकीलों को मकान बनाने के लिए रियायती दर पर भूखंड दिए जाएंगे तो हड़ताल समाप्त हुई।  
लेकिन जब पूरा एक वर्ष जाने को हुआ और आश्वासन कोरे आश्वासन बने रहे तो वकीलों को फिर से संघर्ष के मैदान में उतरना पड़ा। नवम्बर में फिर से हड़ताल हुई। इस बीच आनन फानन में राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच के आरंभ होने की तिथि तय कर दी गई। वकीलों को भूखंड आवंटित करने की प्रक्रिया आरंभ करने के लिए नगर विकास न्यास से पत्र अभिभाषक परिषद को मिल गया। लेकिन राजस्व न्यायालय की खंड पीठ के लिए बात करने को मुख्यमंत्री ने समय नहीं दिया। उन का कहना है कि पहले हड़ताल समाप्त की जाए तब वे बात करेंगे। वकील इस बात पर अड़ गए कि हड़ताल के जारी रहते बात क्यों नहीं की जा सकती है? अब हड़ताल जारी है। इस बीच चुनाव का समय आ गया। यह लगातार दूसरा वर्ष है जब अभिभाषक परिषद कोटा के चुनाव हड़ताल के दौरान हुए हैं। 
बात अख़्तर खान अकेला के क्षणिक अवसाद से आरंभ हुई थी। जब उन्हों ने उम्मीदवारी के लिए पर्चा दाखिल किया तो मैं समझता था कि वे इसे वापस ले लेंगे, लेकिन उन्हों ने वापस नहीं लिया। उन का सोचना था कि वे वकीलों के हर संघर्ष, हर काम में आगे रहे हैं और वकीलों तथा न्यायिक व्यवस्था की बेहतरी के लिए अच्छा काम कर सकते हैं, इस कारण से वकीलों को उन्हें परिषद का अध्यक्ष चुनना चाहिए। लेकिन यह सोच मतदाताओं की नहीं है। मतदाताओं का समूह अभी किसी भी क्षेत्र में काम के आधार पर संगठित ही नहीं होता। मतदान के लिए अनेक आधार होते हैं जो परंपरागत अधिक हैं। जिनमें उम्मीदवार की जाति, धर्म, किन समूहों से वह जुड़ा है आदि आदि हैं। काम और योग्यता के आधार पर मतदान करने वाले लोग भी देखते हैं कि उम्मीदवार में इन परंपरागत आधारों पर जीत के नजदीक पहुँचने की क्षमता भी है या नहीं। स्वयं अख़्तर यह जानते थे कि वे इस पर खरे नहीं हैं, उन्हों ने कभी लॉबिंग नहीं की। नतीजा यह हुआ कि उन्हें केवल आठ-नौ प्रतिशत मत प्राप्त हुए। यह उन की अपेक्षा से बहुत कम थे। उसी ने उन में यह अवसाद उत्पन्न किया। यह अवसाद उन की कल शाम आई ब्लागपोस्ट में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। आज सुबह जो पोस्टें आई हैं वे बताती हैं कि वे अवसाद से पूरी तरह निकल चुके हैं। मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि उन्हें कल शाम उन का अवसाद प्रदर्शित करने वाली पोस्ट को हटा लेना चाहिए। 
स चुनाव में भाग लेने से अख़्तर को कोई हानि नहीं हुई है। उन्हें चुनाव का अनुभव हुआ है और बहुत सारी वास्तविक सचाइयाँ उजागर हुई हैं। वे इस अनुभव से और अधिक परिपक्व हुए हैं। यदि इस अनुभव के साथ वे आगे बढ़ेंगे और सही दिशा में काम करेंगे तो वह वक्त भी आ सकता है कि वे अभिभाषक परिषद कोटा के अध्यक्ष बनें। यहाँ तक वे सामान्य जनता में भी लोकप्रियता प्राप्त कर उन का अनेक मंचों पर प्रतिनिधित्व करें। मेरी शुभकामनाएँ उन के साथ हैं।

रविवार, 5 दिसंबर 2010

जरूरी गैरहाजरी

विवाह योग्य उम्र प्राप्त अविवाहित स्त्री-पुरुष चाहें तो दो साक्षियों के साथ विवाह पंजीयक के समक्ष उपस्थित हो कर विवाह कर सकते हैं और उसे पंजीकृत करवा सकते हैं। इस का समाचार वे किसी को दें या न दें, वह जंगल की आग की भांति शीघ्र ही कानों-कान बहुत दूर तक पहुँच जाता है। लेकिन यदि परंपरागत रीति से विवाह का आरंभ हो, लड़की के माता-पिता किसी लड़के को रोकने की रस्म भर कर दें तो उस का समाचार उस से भी अधिक तेजी से लोगों तक पहुँचता है। फिर सगाई और विवाह का तो कहना ही क्या? वह बेहद जटिल प्रक्रिया है। वह केवल न्योते बांट देने, मेहमानों को निमंत्रण पहुँचा देने, विवाह की समस्त व्यवस्था कर लेने मात्र से संपन्न नहीं होता। विवाह में केवल संबंधी, मित्र गण और परिचित ही नहीं जुटते, पूरा समाज जुटता है। न जाने किस-किस को मनाना पड़ता है, उन में विनायक से ले कर नायक तक जितनी भांति के लोग हैं वे सभी शामिल हैं। फिर भी बिना किसी की नाराजगी के विवाह संपन्न हो जाए तो शायद कोई भी उसे विवाह नहीं कह सकते। कुल मिला कर एक भारतीय विवाह अत्यन्त जटिल विधान है। 
ज तो मैं अपने काम से जयपुर जा रहा हूँ, लेकिन तुरंत ही शाम तक लौटूंगा और कल सुबह ही अपने साढू़ भाई श्री बीजी जोशी के पुत्र नीरज के विवाह में सम्मिलित होने चल दूंगा। पत्नी जी पिछले माह की अंतिम तिथि को ही जा चुकी हैं। वे अपने साथ पहली बार मोबाइल ले कर गई हैं। दो-तीन दिन तक जब भी मैं ने घंटी की मोबाइल पत्नी जी के स्थान पर मेरी किसी न किसी साली ने उठाया। (ऐसे पी.ए. सब को मिलें, पर हम पुरुषों की ऐसी किस्मत कहाँ?) कल मैं मेरी ससुराल से जाने वाले माहेरा (भात) (इस में दूल्हे के मौसा लोग अधिक होते हैं, शायद इस लिए इसे हमारे यहाँ मौसाला भी बोलते हैं) के बेड़े में सम्मिलित हो कर शाम तक सीहोर म.प्र. में बीजी जोशी से जा मिलूंगा।
ह सीहोर भोपाल के नजदीक है, वहाँ ग़ज़ल के मास्टर जी पंकज जी सुबीर से मुलाकात होगी। पहले की सीहोर यात्रा के समय वे वहाँ नहीं थे और मुलाकात नहीं हो सकी थी। कुछ मित्र और भी हैं, उन से भी मुलाकात होगी। विवाह आठ दिसंबर को संपन्न हो लेगा। पर पत्नी जी और उन की बहनों का कहना है कि वे विवाह के उपरांत भी दो दिन और रुकेंगी, जिस से बहिन को शेष  काम के निपटारे में सहायता कर सकें। मैं इन दो दिनों का सदुपयोग भोपाल के मित्रों और ब्लागरों से मिलने में करने वाला हूँ। वापसी में एक दिन ससुराल में रुकना पड़ेगा। यह रंजन भी आवश्यक है।
मित्रों! इस तरह मैं आज से पूरे सप्ताह के लिए कोटा के बाहर हूँ। संभावना इस बात की है कि अंतर्जाल संपर्क भी शायद ही हो सके। इस कारण ब्लाग जगत में किसी भी प्रकार की उपस्थिति असंभव ही होगी। इस आवश्यक अनुपस्थिति के लिए आप सभी से और अपने ब्लाग पाठकों से क्षमा चाहता हूँ। विशेष रूप से तीसरा खंबा के उन पाठकों से जो मुझ से कोई कानूनी सलाह तुरंत चाहते हैं, और उन्हें एक-दो सप्ताह प्रतीक्षा करनी होगी।

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

मेरी हड्डियाँ आर्सेनिक से बनी हैं।

वे पाँच बहुत इतराते हैं। हम हैं तो जीवन है। वह छठा? उस के लिए कहा जाता है कि वह घातक विष है, जीवन नष्ट करने वाला।
ब उन पाँचों के इतराने का वक्त ख़त्म हुआ। एक जगह उन पाँचों में से एक गायब पाया गया। उस के स्थान पर छठा मौजूद था, और जीवन बरकरार। 
नासा ने घोषणा की है कि उन्हों ने प्रकृति में ऐसा जीवित बैक्टीरिया पाया है जिसमें जीवन के लिए आवश्यक पाँच तत्वों कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन ऑक्सीजन फॉसफोरस और सल्फर में से फॉस्फोरस को आर्सेनिक से बदला गया और वह उस के बाद न केवल जीवित रहा अपितु उस ने प्रजनन भी किया। अब तक यह माना जाता था कि जीवन के लिए ये पाँच तत्व ही आवश्यक हैं। लेकिन आज उन में से एक अनावश्यक सिद्ध हो चुका है, उस के स्थान पर एक अन्य पाँचवें ने ले ली है। इस आविष्कार ने प्रकृति में जीवन के नए रूपों की संभावना को प्रबल किया है। कभी प्रकृति में ऐसा जीवन भी देखने को मिल सकता है जिस की कभी मनुष्य ने कल्पना भी न की हो। प्रकृति असीमित है और उस की संभावनाएँ भी, और जीवन वह अक्षुण्ण है। 
किसी दिन अखबार में यह समाचार हो सकता है कि एक बैक्टीरिया ने दूसरे से कहा, तुम पुरातनवादी! अभी तक फॉसफोरस इस्तेमाल करते हो। मुझे देखो! मैं ने उसे कभी से त्याग दिया है। मैं आर्सेनिक इस्तेमाल करता हूँ। कोई विज्ञापन दिखाई दे सकता है जिस में  खली टाइप कोई व्यक्ति यह कहता नजर आए, मैं विश्वचैम्पियन हूँ, मेरी हड्डियाँ आर्सेनिक से बनी हैं। हम विषकन्याओं के बारे में पढ़ते-सुनते आए हैं। पर यह बैक्टीरिया वह पहली विषकन्या है जिस के पास अपने शरीर में उर्जा संवाहक अणु में फॉस्फोरस के स्थान पर घातक विष आर्सेनिक (संखिया) मौजूद है।

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

भारतीय विवाह : मेल मुलाकात का अवसर

भारतीय समाज में विवाह अत्यन्त जटिल समारोह है। इतनी बातों का ध्यान रखना पड़ता है कि चूक हो जाना स्वाभाविक है। घर में कोई शादी नहीं है, पर पिछले कुछ महिनों से इस की चर्चा बहुत है। पिछले माह से तो शोभा पूरी तरह व्यस्त है। उस की छोटी बहिन कृष्णा के बेटे का आठ दिसंबर को विवाह है। कृष्णा के सास-ससुर नहीं हैं। वह रस्म-रिवाज़ों के बारे जितना जानती है वह उस ने अपने मायके और ससुराल में हुए विवाहों की स्मृति पर निर्भर है। उसे विवाह की हर एक रस्म और रिवाज़ के बारे में पूछताछ करनी पड़ रही है। शोभा की जानकारी कुछ अधिक है। मायके में सब से बड़ी पुत्री होने और ससुराल में सब से बड़ी पुत्रवधु होने से उसे विवाहों में जिम्मेदार भूमिका इतनी बार अदा करनी पड़ी है कि उसे लगभग सभी कुछ याद है, फिर हर बिन्दु पर औरों की राय जान कर किसी काम को कैसे करना है इस का निर्धारण करना उसे खूब आता है। कृष्णा तैयारी में लगी है वह लगभग प्रतिदिन शोभा से फोन पर बात करती है और एक बार से काम नहीं चलता तो कई बार भी करती है। शोभा ने बहुत सारी खरीददारी की जिम्मेदारी खुद पर ले ली और एक और छोटी बहिन ममता को साथ ले कर खरीददारी की। इस से कृष्णा का काम का बोझ बहुत कम हो गया। 
चूँकि बहिन के पुत्र का विवाह है, पिता को भात (माहेरा) ले जाना है। इस लिए पिता जी का फोन आता है कि शोभा एक दो दिनों के लिए मायके चली जाए और भात की तैयारी करवा दे। भात के लिए बेटी को पिता के यहाँ न्यौता देने आना है। इसे बत्तीसी झिलाना बोलते हैं। इस समय बेटी कुछ मीठा ले कर आती है। आम तौर पर गुड़ की भेली होती है। साथ में मायके में जितने लोग उम्र में उस से छोटे हैं उन के लिए नए वस्त्र ले कर आती है। अब कृष्णा को भात न्यौतने आना था। उन्हीं दिनों शोभा और ममता भी मायके पहुँच जाती हैं। पिता जी बहुत प्रसन्न हैं, वे सब कुछ प्रसन्नता पूर्वक करना चाहते हैं। वे ढोल वाले को बुलवाते हैं, साथ ही बैंड वाले को भी। सारे रिश्तेदारों और व्यवहारियों को बुलावा गया है। सब नियत समय पर इकट्ठे होते हैं। बत्तीसी झिलाई जाती है। मेहमानों को चीनी के बताशे वितरित किए जाते हैं। पिता जी ने भात की सभी तैयारी अपने हिसाब से कर ली है। जो कुछ कमी रह गई है उसे शोभा और ममता दोनों दो दिन और रुक कर करवा देती हैं। 
शोभा और उस की बहनों सनेह और ममता को एक सप्ताह पहले तो अपनी बहिन के यहाँ पहुँचना ही है, जिस से वे कृष्णा को विवाह की तैयारी करवा दें और काम में मदद करें। शोभा मायके से लौटी तो विवाह में जाने में दो दिन शेष रह गए हैं। उस ने आते ही घर को संभाला। जाने की तैयारी की। जो कुछ विवाह के लिए खरीदना शेष बचा था। उसे भी निपटाया। अब आज रवानगी की तारीख आ ही गई। शोभा और ममता तो यहीं हैं। एक मंझली बहिन सनेह को जयपुर से आना था, वह दोपहर शोभा के पास पहुँच गई। एक माह पहले ही रेल यात्रा के लिए रिजर्वेशन कराया गया था। तब  प्रतीक्षा सूची में क्रमांक कोई दो सौ से ऊपर था, आश्वासन मिला था कि हर हालत में कन्फर्म हो जाएगा, यदि रह भी गया तो विशेष कोटे में से व्यवस्था हो जाएगी। 
लेकिन आज चार्ट बनने तक प्रतीक्षा सूची क्रमांक 15 से 17 पर आ कर रुक गया। विशेष कोटे का प्रयोग भी वास्तविक विशिष्ट लोगों ने कर लिया। बस की तलाश आरंभ हुई। पता लगा कि साढ़े-दस की रात  की बस में स्थान है, उसे तुरंत आरक्षित करवाया गया और रेल का टिकट निरस्त करवाया गया। सब्र की बात यह थी कि जितना रुपया बस टिकट में खर्च हुआ उस से कोई पचास रुपया अधिक, बीस रुपये प्रति यात्री कटौती के बाद भी रेल टिकट निरस्त होने से वापस मिल गया। कृष्णा को सूचना दे दी गई है कि बस निकटतम स्थान पर सुबह सात बजे पहुँचेगी। कृष्णा ने उन्हें आश्वस्त कर दिया है कि उन्हें लेने के लिए वाहन नियत से पहले पहुँच जाएगा। तीनों बहिनें बस रवाना होने के पहले ही बस अड्डे पहुँच गई हैं और अपना आरक्षित स्थान हथिया लिया है। सीट पिछले वाले पहिये के ठीक ऊपर है। उन्हों ने अनुमान लगा लिया है कि बस में रात कैसी कटेगी?
अब बस रवाना हो चुकी है।  
मैं अपने साढ़ू भाई को फोन करता हूँ कि तीनों बहिनों को बस में बिठा दिया है। घर लौट आया हूँ। अब पाँच दिसम्बर की शाम तक मुझे अकेले रहना है, जब तक कि मैं स्वयं विवाह में सम्मिलित होने के लिए नहीं चल देता। इस विवाह का मुझे भी इंतजार है। विवाह में बहुत से प्रिय संबंधियों से तो भेंट होगी ही। विवाह ब्लाग जगत के ग़ज़ल के उस्ताद पंकज सुबीर जी के नगर में है। भोपाल निकट है, मुझे वहाँ भी जाना है। बहुत सारे ब्लागरों से मुलाकात का मौका जो मिलेगा।

सोमवार, 29 नवंबर 2010

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

पिछली 29 अक्टूबर की पोस्ट में मैं ने ब्लागीरी में पिछले दिनों हुई अपनी अनियमितता का उल्लेख करते हुए दीपावली तक नियमित होने की आशा व्यक्त की थी। मैं ने अपने प्रयत्न में कोई कमी नहीं रखी। उसी पोस्ट पर ठीक एक माह बाद भाई सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी ने मुझे स्मरण कराया कि मुझे अपने काम का पुनरावलोकन करना चाहिए, कम से कम नियमितता के मामले में अवश्य ही। तो अनवरत पर मेरी अब तक 15 पोस्टें हो चुकी हैं और यह सोलहवीं है। इस तरह मैं ने अनवरत पर हर दूसरे दिन एक पोस्ट लिखी है। तीसरा खंबा पर इस एक माह में 18 पोस्टें हुई हैं। मुझे लगता है कि इन दिनों जब कि कुछ व्यक्तिगत कामों में व्यस्तता बढ़ गई है, यह गति ठीक है। हालांकि इस बीच हर उस दिन जब कि मैं ने कोई पोस्ट इस ब्लाग पर नहीं की यह लगता रहा कि आज मुझे यह बात लिखनी थी, लेकिन समय की कमी से मैं ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ। लगता है कि ब्लागीरी मेरे लिए एक ऐसा कर्म हो गई है, जिस के बिना दिन ढल जाना क्षय तिथि की तरह लगने लगा है जो सूर्योदय होने के पहले ही समाप्त हो जाती है। 
ल से ही अचानक व्यस्तता बढ़ गई। शोभा की बहिन कृष्णा जोशी के पुत्र का विवाह है, और उस के पिता को वहाँ भात (माहेरा) ले जाना है। शोभा उसी की तैयारियों के लिए मायके गई थी, कल सुबह लौटी। चार दिन में घर लौटी तो, सब से पहले उस ने घर को ठीक किया। मुझे भी चार दिन में अपने घर का भोजन नसीब हुआ। वह कल शाम फिर से अपनी बहिन के यहाँ के लिए चल देगी और फिर विवाह के संपन्न हो जाने पर ही लौटेगी। इन दो दिनों में उसे बहुत काम थे। उसे घर को तैयार करना था जिस से उस में मैं कम से कम एक सप्ताह ठीक से रह सकूँ। उसे ये सब काम करने थे। इन में कुछ काम ऐसे थे जो मुझ से करवाए जाने थे। मैं भी उन्हीं में व्यस्त रहा। आज मुझे अदालत जाना था और वहाँ से वापस लौटते ही शोभा के साथ बाजार खरीददारी के लिए जाना था। शाम अदालत से रवाना हुआ ही था कि संदेश आ गया कि अपने भूखंड पर पहुँचना है वहाँ बोरिंग के लिए मशीन पहुँच गई है। मुझे उधर जाना पड़ा। वहाँ से लौटने में देरी हो गई। वहाँ से आते ही बाजार जाना पड़ा। जहाँ से लौट कर भोजन किया है। अभी अपनी वकालत का कल का काम देखना शेष है। फिर भी चलते-चलते एक व्यसनी की तरह यह पोस्ट लिखने बैठ गया हूँ।
ल फिर व्यस्त दिन रहेगा। आज जो नलकूप तैयार हुआ है उसे देखने अपने भूखंड पर जाना पड़ेगा, कल शायद नींव खोदने के लिए रेखाएँ भी बनाई जाएंगी। वहाँ से लौट कर अदालत भी जाना है और शोभा को भी बाजार का काम निपटाने में मदद करनी है। कल उस की एक बहिन और आ जाएगी, एक यहां कोटा ही है। कल रात ही इन्हें ट्रेन में भी बिठाना है। कल भी समय की अत्यंत कमी रहेगी। इस के बाद पाँच दिसम्बर सुबह से ही मैं भी यात्रा पर चल दूंगा। उस दिन जयपुर जाना है, शाम को लौटूंगा और अगले दिन सुबह फिर यात्रा पर निकल पड़ूंगा। इस बार यात्रा में मेरी अपनी ससुराल झालावाड़ जिले में अकलेरा, फिर सीहोर (म.प्र.) और भोपाल रहेंगे। विवाह के सिलसिले में सीहोर तो मुझे तीन दिन रुकना है। एक या दो दिन भोपाल रुकना होगा। मेरा प्रयत्न होगा कि यात्रा के दौरान अधिक से अधिक ब्लागीरों से भेंट हो सके। 
ब आप समझ ही गए होंगे कि मैं 12 दिसम्बर तक व्यस्त हो गया हूँ। दोनों ही ब्लागों पर भी 4 दिसंबर के बाद अगली पोस्ट शायद 13 दिसम्बर को ही हो सकेगी। इस बीच मुझे अंतर्जाल पर आप से अलग रहना और अपनी बात आप तक नहीं पहुँचाने का मलाल रहेगा। लेकिन क्या किया जा सकता है? 
फ़ैज साहब ने क्या बहुत खूब कहा है ....
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजै
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजै
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

शनिवार, 27 नवंबर 2010

दिखावे की औपचारिकता

न दिनों अपने आसपास लगातार कुछ ऐसा घटता रहा है कि ब्लाग लेखन की गति बाधित होती रही है। पिछले दस दिनों में एक दिन छोड़ कर शेष दिनों बरसात होती रही। मैं नगर के जिस क्षेत्र में रह रहा हूँ वहाँ की सड़क के किनारे पिछले दिनों ही सीवर लाइन के लिए पाइप डाले गए। निकली हुई मिट्टी वापस भर दी गई। लेकिन बहुत सी मिट्टी बाहर थी। बीच-बीच में जहाँ चैम्बर बनाए गए थे वहाँ मिट्टी का ढेर था। बरसात से सारी मिट्टी बह कर सड़क पर आ गई। पैदल चलना दूभर हो गया। मेरे घर के आगे की सड़क उसी मुख्य सड़क पर जहाँ मिलती है वहीं सीवर लाइन का पाइप डालने से जितनी सड़क टूटी वहाँ मिट्टी भर दी गई थी, लेकिन बरसात से बैठ गई और गड्ढा हो गया, उपर से चिकनी मिट्टी का कीचड़। वहाँ हो कर दुपहिया वाहन का निकलना तक दूभर हो गया। अब यदि कहीं जाना है तो अपनी कार में जाइए और उसी से वापस आ जाइए। यह सुविधा मेरे पास तो है लेकिन बाकी लोग? उन का आना-जाना कैसे हो रहा है? वे ही जानते हैं। 
प्ताह भर पहले सुबह-सुबह कार ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। बेचारी क्या करती। यह संकेत वह पिछले दो माह में तीन-चार बार दे चुकी थी। धकियाया  जाता तो चल पड़ती और एक-दो सप्ताह कोई शिकायत नहीं करती। मैं ने जिन्हें बताया उन्हों ने कहा कि बैटरी दिखाओ। मैं ने बैटरी वाले के यहाँ जो मेरा एक मुवक्किल भी है, बैटरी दिखाई, उस ने जाँच करवा कर बताया कि बैटरी बिलकुल ठीक है, इस का सेल्फ लोड ले रहा है आप उस की सर्विस कराइये। इस बीच समय नहीं मिला और सर्विस नहीं करवा पाया। वैसे कार की सर्विस का समय भी निकल चुका था। आखिर मैं ने कार को कुछ लोगों की मदद से धकिया कर चालू किया और उस के अस्पताल पहुँचा दिया। पास ही स्थित इस अस्पताल ने शाम को चमचमाती कार मेरे हवाले कर दी। कार एक सप्ताह शानदार चलती रही।फिर तीन दिन पहले एक शादी में गए, वहाँ से किसी को उन के घर छोड़ा, तो वहाँ कार ने फिर चालू होने से मना कर दिया। कार किसी तरह चालू कर हम घर ले आए। रात को बरसात आरंभ हो गई।  और सुबह कार ने चालू होने से इन्कार कर दिया।
मैं ने कार को रिवर्स में अपने घर से उतारा और रिवर्स में उसे चालू करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसने  इस तरह चालू होने से मना कर दिया। समय ऐसा था कि कोई धकियाने वाला नहीं दिखाई दिया। एक सज्जन आए तो उन्हों ने कोशिश की पर कार को चालू नहीं होना था वह चालू नहीं हुई। बरसात ने सड़क को कीचड़ से भर दिया था। पैदल कार-अस्पताल तक जाना संभव नहीं था। अस्पताल का फोन नंबर भी नहीं मिल रहा था। सोचा बाइक से जाया जाए। पर मुझे बाइक का इतना अभ्यास नहीं कि कीचड़ वाली सड़क और गड्ढों में आत्मविश्वास से चला सकूँ। आखिर बहुत दिनों से धूल खा रहा अपना बीस साल पुराना साथी बजाज स्कूटर काम आया। उस की धूल साफ की गई। फिर उसे दायीं तरफ झुका कर सलामी दी गई। एक सलामी से काम न चला तो दूसरी सलामी दी, जिस के बाद एक किक में स्टार्ट हो गया। 
कार अस्पताल में भीड़ थी।  मैं ने प्रबंधक को बताया कि चार दिन पहले सर्विस के समय मैं ने बताया था कि गाड़ी सेल्फ यूनिट से स्टार्ट होने मना करती है  इसे विशेष रूप से चैक कर लें। प्रबंधक कहने लगा, हमने चैक किया था और कार सामान्य रूप से चालू हो रही थी। हम ने उसे छेड़ना उचित नहीं समझा। अब मैं कुछ देर में मिस्त्री को फुरसत होते ही भेजता हूँ। वैसे भी आज तो सेल्फ यूनिट की सर्विस नहीं हो पाएगी। मैं परेशान, स्कूटर या बाइक से अदालत जाना कठिन था, बीच-बीच में बारिश हो रही थी। मैं घर आ कर मिस्त्री का इंतजार करता रहा। उसे न आना था, न आया। मैं ने आखिर महेन्द्र भाई (नेह) को शिकायत लगाई। वे कोटा के सब से बड़े सर्वेयर और क्षति निर्धारक हैं। उन के बात करने पर अस्पताल वाले ने संदेश दिया कि आप बाइक ले कर अस्पताल आ जाएँ। हम मिस्त्री भेजते हैं। मैं मिस्त्री को लेकर आया। वह एक नई बैटरी साथ ले कर आया था। बैटरी बदलते ही कार सामान्य रूप से चालू हो गई। कार को चालू छोड़ कर मिस्त्री ने अपनी बैटरी निकाल ली और पुरानी वापस डाल दी। कहने लगा आप अब तुरंत बैटरी बदल दीजिए। 
मैं ने कार से मिस्त्री को ठिकाने छोड़ा और बैटरी वाले के पास पहुँचा। उस ने बैटरी को चैक किया तो फ्लूड का घनत्व सही पाया लेकिन सेल सांसे गिन रहे थे। नई बैटरी डाल दी गई। मैं ने बैटरी वाले को पूछा कि दो सप्ताह पहले जब बैटरी चैक कराई थी तब क्या हुआ था। कहने लगा हमने तब केवल घनत्व जाँचा था। मैं ने उसे कहा कि मैं जब कह रहा था कि स्टार्ट होने में समस्या है तो आप को सेल भी जाँचना चाहिए था। उस के स्थान पर आप ने सेल्फ यूनिट की सर्विस कराने को कहा। उस दिन सेल जाँच लिया जाता  तो यह समस्या नहीं होती। उस ने अपने कर्मी की गलती स्वीकार की और कहा कि आगे से हर उपभोक्ता के मामले में इस बात का ध्यान रखूंगा।  मैं कार-वर्कशॉप आया, वर्कशॉप मैनेजर को धन्यवाद किया, इस उलाहने के साथ कि जब मैं ने सेल्फ यूनिट के ठीक काम न करने की शिकायत दर्ज कराई थी तो कार सर्विस के दौरान सेल्फ दुरुस्त पाए जाने पर बैटरी को जाँचना चाहिए था और उसी दिन बैटरी बदलने की सलाह दे देनी चाहिए थी। उस ने अपनी गलती स्वीकार की। 
मैं ने कष्ट इसलिए पाया कि बैटरी वाले ने और वर्कशॉप ने अपनी सेवाएँ ठीक से नहीं की थीं और यह सेवा दोष एक उपभोक्ता मामला बन चुका था। मैं चाहता तो दोनों को परेशानी और मानसिक संताप के लिए हर्जाना देने को कह सकता था। मना करने पर उपभोक्ता अदालत में जा सकता था। लेकिन दोनों ने गलती स्वीकार की थी। और भविष्य में सेवाएँ सुधारने का वायदा किया था। मैं यह भी जानता था कि उपभोक्ता अदालत में मुकदमों की भरमार है वहाँ भी साल-दो साल फैसला होने में लग जाएंगे। मुकदमे से परेशानी होगी वह अलग है। लेकिन यह जरूर है कि इन दोनों में से किसी ने भी सेवा में कोताही की तो मैं उपभोक्ता अदालत को शिकायत अवश्य करूंगा। हमारे यहाँ सेवादोष हर जगह मिलता है। उस का मुख्य कारण है कि उपभोक्ता सेवा प्रदाता या विक्रेता की शिकायत नहीं करता। उधर उपभोक्ता अदालतों की हालत यह है कि वहाँ मुकदमे जल्दी निपटाए ही नहीं जाते। अधिकतर जज  सेवानिवृत्त हैं और केवल समय बिता रहे हैं। फिर कभी कोरम पूरा नहीं होता, कभी सदस्यों की नियुक्ति नहीं होती तो कभी जज नहीं है। जब अदालतें मुकदमों के निपटारे में समय लगाने लगती हैं तो उपभोक्ता अदालत में मामला ले जाने से कतराने लगता है।  यदि उपभोक्ता अदालतों में मामलों के निर्णय छह माह से एक वर्ष के भीतर होने लगें तो विक्रेता और सेवाप्रदाताओं को उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा देने पर मजबूर होना पड़े। पर लगता है सरकारें समस्या के वास्तविक समाधान पर कम और दिखावे की औपचारिकता पर अधिक ध्यान देती हैं।

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

उन्हें जज नहीं, तोते चाहिए

ख़्तर खान अकेला (हालांकि फोटो बता रहा है कि वे अकेले नहीं) को आप द्रुतगामी ब्लागीर कह सकते हैं। वे वकील हैं और पत्रकारिता से जुड़े हैं। दिन भर अदालत में वकालत का काम करना और फिर दफ्तर करना। दफ्तर में जब भी वक़्त मिल जाए ब्लागीरी करना। ज़नाब ने 7 मार्च 2010 को अपने ब्लाग की पहली पोस्ट ठेली थी, आज यह पोस्ट लिखने तक उन की 1517वीं पोस्ट प्रकाशित हो चुकी थी। यदि वे दफ़्तर से निकल न चुके होंगे तो आज की तारीख में अभी और पोस्ट आने की संभावना पूरी पूरी है, यह पोस्ट लिखने तक यह संख्या 1518 ही नहीं 1520 भी हो सकती है। नवम्बर के 25 दिनों में पूरी 160 पोस्टें ठेली हैं ज़नाब ने। कब पाँच सौ, कब हजार और कब डेढ़ हजार पोस्टें डाल चुके पर चूँ तक भी नहीं की। कोई स्वनामधन्य होता तो अब तक के हर शतक पर एक-एक पोस्ट और ठेल कर ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएँ प्राप्त कर चुका होता। पर अख़्तर भाई हैं कि उन से कुछ कहो तो कभी मुस्कुरा कर और कभी हँस कर टल्ली मार जाते हैं। 
ब हम कोटा के वकील हड़ताल कुछ ज्यादा करते हैं। यह भी एक कारण है कि जो जो वकील ब्लागीर (मुझ समेत) हुआ सफल हो गया।  चार दिन पहले अख़्तर भाई ने लिखा, -कोटा के वकीलों की हड़ताल बनी मजबूरी। अब ये कोटा के वकीलों की मजबूरी थी या फिर हमारे मौजूदा नेताओं की। पर तीन दिन से अदालत में काम बंद है। आज मैं अदालत से जल्दी खिसक आया था। शाम होते होते पता लगा कि हड़ताल लंबी चलने वाली है, हो सकता है ये साल हड़ताल में पूरा हो जाए। इस साल की तरह फिर से हड़ताल को खत्म करने के लिए वकीलों के नेता बहाना तलाशने लगें।
ब हमारे यहाँ अभिभाषक परिषद के चुनाव हर साल होते हैं और विधान के मुताबिक 15 दिसंबर तक चुनाव होने जरूरी हैं और नए साल के पहले कार्यदिवस पर नयी कार्यकारिणी परिषद का कामकाज सम्भाल लेती है। इस बार प्रस्ताव आया कि चूँकि पिछले साल हमें चार माह की हड़ताल करनी पड़ी थी, मुख्य मंत्री ने कुछ आश्वासन दिए थे वे अब तक पूरे नहीं किये हैं। इस कारण से हमें लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है। मौजूदा कार्यकारिणी अच्छा संघर्ष चला रही है इस लिए संघर्ष के समापन तक चुनाव स्थगित कर दिया जाए। यूँ कहा जाता है कि वर्तमान कार्यकारिणी पर भाजपा के लोग शामिल हैं। पर ये इंदिरागांधी से सीधे प्रेरणा ले रहे थे। कि आपातकाल बता कर अपनी उमर बढ़वा लो। प्रस्ताव असंवैधानिक था और वकीलों की आमसभा ने उस पर बहस से ही इन्कार कर दिया। चुनाव होना तय हो गया। लेकिन कार्यकारिणी ने दूसरे दिन से ही तीन दिन की सांकेतिक हड़ताल की घोषणा कर दी। दबे स्वर में लोग कह रहे हैं कि कार्यकारिणी का सोच यह है कि पिछली ने चार माह हड़ताल कर के नयी कार्यकारिणी को सौंप गए थे। अब मौजूदा कार्यकारिणी नयी को हड़ताल का कार्यभार न सोंप कर जाएँ तो कहीं ऐसा न हो उन्हें ग़बन का आरोप झेलना पड़े। 
यूँ मुझे व्यक्तिगत तौर पर भारत के समाजवादी या हिन्दू राष्ट्र होने तक की हड़ताल मंजूर है। वकालत के अलावा और भी बहुत जरीए हैं खाने-कमाने के। पर आखिर हड़ताल से काम बंद होता है और पहले से ही चींटी की चाल से चल रही न्याय की गाड़ी और धीमी हो जाती है। मैं जब ये बात कहता हूँ तो वकील मित्र कहते हैं पहले ही कौन न्याय हो रहा है जो रुक जाएगा, नुकसान तो हमें हो रहा है, जेब में पैसे आने ही बंद हो जाते हैं। मैं उन्हें कहता हूँ कि वकालत की गाड़ी दौड़ाने का एक तरीका है। जितनी अदालतों में जज नहीं है वहाँ जजों की नियुक्ति के लिए लड़ो, अदालतों में पाँच-पाँच हजार मुकदमे इकट्ठे हो रहे हैं, अधिक अदालतें खोलने के लिए लड़ो। जल्दी फैसले होंगे तो अदालतों की साख बढ़ेगी, ज्यादा मुकदमे आएंगे। सरकारें फिजूल का बहाना बनाती है कि जजों के लिए काबिल लोग नहीं मिलते। वकीलों में तलाश करने जाएँ तो बहुत काबिल मिल जाएंगे। पर उन्हें काबिल वकील नहीं चाहिए। उन की परीक्षा ऐसी होती है कि कोई कामकाजी वकील उत्तीर्ण ही न हो। उन की परीक्षा ऐसी होती है कि वे ही उत्तीर्ण होते हैं जो साल-छह महीने से वकालत छोड़ कर सिर्फ किताबें रट रहा हो। उन्हें तोते चाहिए, जज नहीं। 
धर हड़ताल शुरू होने के पहले दिन से श्रीमती जी मायके चली गई हैं। मैं ने तो घर संभाल लिया है। आज हड़ताल समाप्त होने की खबर सुन कर वापस लौटने की उम्मीद थी। पर कल सुबह का अखबार जो कुछ बतायेगा उस से मैं ने तो उम्मीद छोड़ दी है। अब अख़्तर भाई इन दिनों क्या कर रहे हैं ये तो वही बताएंगे। चाहें तो आप पूछ कर देख लें।