@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

कोई जीते, कोई हारे, हमें निर्वस्त्र दौड़ने का सिर्फ बहाना चाहिए

 राग्वे की महशहूर मॉडल लारिसा रिक्वेल्म ने अपने देश की फुटबॉल टीम के विश्वकप में जीतने पर शरीर को रंग कर सड़क पर नग्न दौड़ने की घोषणा की थी। लेकिन उन के मंसूबे उस समय धक्का लगा जब पराग्वे की टीम को क्वार्टर फाईनल में ही पराजय का मुहँ देखना पड़ा। खेल के इस परिणाम से न केवल लारिसा के मंसूबे आहत हुए अपितु लारिसा को इस प्रदर्शन में देखने की इच्छा रखने वाले लोगों को भी बेहद निराशा हुई।
लेकिन जो कोई किसी काम को करना चाहता है उस पर किसी की जीत या हार का क्या असर हो सकता है? लारिसा फुटबॉल के इस विश्व प्रदर्शन में अपने शरीर को दिखाने का अवसर नहीं छोड़ना चाहतीं। वे बस समाचारों में बनी रहना चाहती हैं। उस के लिए वे अपनी घोषणा को संशोधित कर सकती हैं। उन्होंने ऐसा किया है। उन्हों ने घोषणा की है कि वे स्पेन के विश्वकप जीतने पर ऐसा करेंगी। (समाचार)
ब जिसे यह नग्न दौड़ लगानी ही है। वह स्पेन के हारने पर और नीदरलैंड के विश्व चैंपियन बनने पर भी ऐसा कर सकती है। आखिर उसे बहाना ही तो चाहिए।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

ऑक्टोपस पॉल की भविष्यवाणियाँ जर्मन टीम पर भारी पड़ीं, स्पेन एक गोल से जीत कर विश्वकप फुटबॉल 2010 के फाईनल में

मैच का एक मात्र गोल लगाते कार्लेस पुयोल
ही हुआ, जो होना चाहिए था। विश्वकप फुटबॉल 2010 के दौरान जर्मन धीरे-धीरे ऑक्टोपस पॉल का विश्वास करने लगे, टीम के खिलाड़ी भी। उस की भविष्यवाणी जो सच निकलने लगी थी। उस से प्रभावित भी होने लगे। जब सेमीफाइनल के लिए पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी की तो शायद जर्मन खिलाड़ियों के दिल बैठ गए। आज उन के खेल में न तेजी दिखाई दी और न ही जीतने की तमन्ना खेल के उत्तरार्ध में कॉर्नर किक पर कार्लेस पुयोल के हेडर से मैच का एक मात्र गोल हुआ और जर्मनी का फाइनल पहुँचने के सफर का अंत हो गया। अब जर्मनी को तीसरे स्थान के लिए उरुग्वे से खेलना होगा। फाईनल स्पेन और नीदरलैंड के बीच खेला जाएगा।
मैच के बाद स्पेन की ओर से एक मात्र विजयी गोल लगाने वाले कार्लोस पुयोल जर्मन खिलाड़ी श्विनस्टिजर से हाथ मिलाते हुए

बुधवार, 7 जुलाई 2010

जर्मनी और स्पेन के बीच फुटबाल विश्वकप फाईनल देखें आज रात 12.00 बजे ईएसपीएन पर

सुबह दस बजे अदालत के लिए घर से चला था। अभी रात साढ़े आठ बजे वापस लौटा हूँ। आने के बाद एक कॉफी ली, कुछ दफ्तर में काम किया फिर स्नान कर भोजन और फिर कल के मुकदमों की फाइलें निपटाई हैं। पिछली पोस्ट  "शानदार, साफ सुथरी फुटबॉल देखने को मिली विश्वकप 2010 के पहले सेमीफाइनल में" पर  भाई सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी  की टिप्पणी देखी तो पता लगा वे विश्वकप फुटबॉल 2010 के दूसरे सेमीफाइनल जिस में आज रात जर्मनी और स्पेन की भिड़न्त होने वाली का समय और चैनल पूछ रहे हैं। मैं सब की सुविधा के लिए बता देता हूँ कि यह मैच भारतीय समय के अनुसार रात 12.00 बजे आरंभ होगा। आप दस मिनट पहले अपने टेलीविजन पर ईएसपीएन चैनल पर इसे देख सकते हैं।  
जर्मन टीम
फुटबॉल मैच को देखने का एक आनंद और भी है कि यह लगातार 45 से 50 मिनट तक चलता है और फिर 15 मिनट के विश्राम के बाद फिर इतना ही चलता है। यदि दोनों टीमें बराबर रहें तो अतिरिक्त समय और फिर भी बराबर रहें तो पैनल्टी शूट आउट तक चलता है। विश्राम के समय के अतिरिक्त मैच के दौरान कोई विज्ञापन दिखाया नहीं जाता। अर्थात मैच में कोई कमर्शियल ब्रेक नहीं होता। यदि आप को मैच न भी देखना हो तो भी लगातार 45-50 मिनट तक लगातार बिना किसी कमर्शियल ब्रेक के आप टीवी देखने का आनंद तो ले ही सकते हैं।
स्पेनी टीम
ज का मैच तो वैसे भी धुआँधार होने वाला है। कल जितना साफ सुथरा तो नहीं होगा (हालांकि राज भाटिया जी कल के मैच को भी बिलकुल साफ सुथरा नहीं मानते, लेकिन फिर भी अन्य मैचों से तो अधिक साफ था ही)
अपितु आज धक्कामार आदि सब कुछ हो सकती है। एक-दो खिलाड़ी स्ट्रेचर पर लेट कर मैदान से बाहर आ सकते हैं। इस कारण से मैच का आनंद दुगना रहेगा। यूँ तो लगभग सभी का अनुमान है कि जर्मनी का पलड़ा भारी है और पूरे टूर्नामेंट में उस के खेल को देखते हुए उसे ही जीतना चाहिए। लेकिन स्पेन ने जिस तरह टूर्नामेंट के दौरान अपने खेल में सुधार किया है उन की चुनौती भी भारी है, और वह जर्मनी को शिकस्त दे सकती है। दोनों ही टीमों में स्टार खिलाड़ियों की भरमार है। जर्मनों की सब से बड़ी परेशानी तो उन के एक चिड़ियाघर में मौजूद ऑक्टोपस बाबा हैं जो अब तक के सभी मैचों की भविष्यवाणी कर चुके हैं और उन की आज तक की सारी भविष्यवाणियाँ सही निकली हैं। ऑक्टोपस बाबा ने इस मैच की भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि स्पेन जीतेगा। अब जर्मनों को अपने ऑक्टोपस बाबा को गलत भी तो सिद्ध करना है।
तो हो जाइए तैयार अब डेढ़ घंटे से भी कम समय शेष रहा है मैच आरंभ होने में।  

शानदार, साफ सुथरी फुटबॉल देखने को मिली विश्वकप 2010 के पहले सेमीफाइनल में

हुत दिनों बाद ऐसी सुंदर फुटबॉल देखने को मिली। कहीं किसी तरह का फालतू टकराव नहीं। नतीजा ये हुआ कि फ्री-किक बहुत कम देखने को मिली। आखिर नीदरलेंड ने विजय पायी। पहला गोल नीदरलेंड ने शानदार फील्ड किक से किया तो पहले हाफ के उत्तरार्ध में यही कारनामा उरुग्वे के फोरलेन ने कर दिखाया। दूसरे हाफ के आरंभ में खेल 1-1 की बराबरी पर था।
दूसरे हाफ में जो दो चमत्कारी गोल नीदरलेंड की ओर से हुए उन्हों ने नीदरलेंड को 1974 और 1978 के बाद तीसरी बार फाइनल की राह दिखा दी। लेकिन उरुग्वे ने आखिर तक अपना खेल खेला और अंतिम क्षणों में एक गोल दाग कर नीदरलेंड की जीत के अंतर को 3-2 तक सीमित कर दिया। अब उरुग्वे को तीसरे स्थान के लिए आज दूसरे सेमीफाइनल में हारने वाली टीम से खेलना होगा।
नीदरलैंड के लिए कप्तान जियोवानी वान ब्रोर्कोस्ट ( 18वें मिनट ), वेस्ले श्नाइडर ( 70वें ) और अर्जेन रोबेन ( 73वें मिनट ) ने गोल किए।
उरुग्वे ने अपनी ओर से कोशिश कम नहीं की लेकिन उसकी ओर से कप्तान डियगो फोरलैन (40वें मिनट)और मैक्सिमिलियानो परेरा (90 मिनट, इंजुरी टाइम) केवल दो ही गोल कर पाए। 
दोनों ही टीमों ने शानदार और साफ सुथरी फुटबॉल खेली। मैच की सांख्यिकी इस बात की गवाह है ....

नीदरलैंड की ओर से दूसरा गोल करने वाला माथा दिखाते खिलाड़ी
  • गोल की तरफ उरुग्वे ने 12 निशाने लगाए तो नीदरलेंड उस से एक कम केवल 11
  • लक्ष्य से बाहर उरुग्वे ने 6 निशाने लगाए तो नीदरलेंड ने उस से दो कम केवल 4
  • लक्ष्य पर उरुग्वे ने 6 निशाने साधे तो नीदरलेंड ने उस से एक अधिक 7 निशाने
  • उरुग्वे ने 15 फाउल खेले तो नीदरलेंड ने उस से एक अधिक  कुल 16
  • उरुग्वे ने 47 % समय गेंद को अपने कब्जे में रखा तो 53% समय में नीदरलेंड ने
  • उरुग्वे के खिलाड़ी 4 बार ऑफसाइड हुए तो नीदरलेंड के खिलाड़ी 5 बार
  • उरुग्वे को कॉर्नर मिले 4 तो नीदरलेंड को कॉर्नर मिले 5
  • पीले कार्ड उरग्वे को 2 बार दिखाए गए तो नीदरलेंड को तीन बार
  • लाल कार्ड दिखाने की नौबत नहीं आई
गोल की ओर हैडर मारते नीदरलैंड का खिलाड़ी
कुल मिला कर खेलने के मामले में उरुग्वे ने भी निराश नहीं किया। लेकिन इस के साथ ही अंतिम दक्षिण अमरीकी टीम फाइनल की दौड़ से बाहर हो गई। फुटबॉल विश्वकप 2010 यूरोप में जाना तय हो गया। 
ज रात भारतीय समय के अनुसार फिर एक शानदार मुकाबला देखने को मिलेगा, जर्मनी और स्पेन के बीच। लेकिन जैसी संभावना है वह इतना साफ सुथरा शायद ही रहे जितना कल का मुकाबला था। हाँ खेल में आज की अपेक्षा अधिक तेजी देखने को मिलेगी। 


मंगलवार, 6 जुलाई 2010

देखते हैं, कौन सा शेर कितना भूखा है ......

स घंटा भर और शेष है फिर फुटबॉल विश्वकप 2010 का पहला सेमी फाइनल मैच आरंभ हो जाएगा। वैसे  एक पाठक ने यह आपत्ति की है कि इसे फुटबॉल कहना गलत है। यह सॉसर है, ना कि फुटबॉल। क्यों कि फुटबॉल तो गोल न हो कर कुछ लंबी हुआ करती थी। खैर हम तो इसे फुटबॉल ही कहेंगे। क्यों कि फीफा इसे फुटबॉल ही कहता है।

ब लोग मान कर चल रहे हैं कि पहले सेमीफाइनल में तो नीदरलैंड की जीत पक्की है। पर यह पक्का भी नहीं है। जहाँ नीदरलैंड को फीफा विश्वकप का फाइनल खेले 32 वर्ष हो चुके हैं वहीं उरुग्वे साठ वर्ष पहले फाइनल खेलने के बाद फिर से फाइनल  प्रवेश की तैयारी में है। अब यह तो मैच ही तय करेगा कि कौन सा शेर कितना भूखा है? और कौन किस का शिकार करता है? 
हाँ नीदरलैंड के विंगर डिर्क कुट का कहना है कि हम खुशी से सराबोर हैं कि हम फाइनल के कितने नजदीक हैं। यह वो चीज है जिस के लिए हम पूरे जीवन सपना देखते रहे हैं। लेकिन हमें सावधान भी रहना होगा, क्यों कि सेमीफाइनल विश्वकप में हमारा सब से मुश्किल मैच होगा।

धर उरुग्वे के सितारा खिलाड़ी डियेगो फोरलेन का कह रहे हैं कि उरुग्वे के लोग हमें सेमीफाइनल में देख कर कितने खुश हैं इस का अनुमान हम नहीं कर सकते। वर्षों से उन्होंने अपनी टीम को इतना आगे तक आते नहीं देखा। लेकिन हम चाहते हैं कि हम उन्हें और अधिक खुशी दे सकें। 
मैं जानता हूँ कि उरुग्वे के लिए नीदरलैंड को हरा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव जैसा है, लेकिन असंभव नहीं। वे फीफा विश्वकप के पहले विजेता हैं, और अब फिर से कप के इतने नजदीक पहुँच कर अपने विरोधियों पर टूट पड़ सकते हैं। निश्चय ही नीदरलैंड के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा। आज के इस खेल में हम दक्षिण अमरीकी फुटबॉल का कलात्मक खेल और यूरोप की ताकत और तेजी को देखेंगे।

मैं खुद चाहता हूँ कि उरुग्वे की सेमी फाइनल में पहुँची अकेली  दक्षिण अमरीकी टीम जीते और फाईनल खेले। जिस से फाईनल में हमें दो भिन्न महाद्वीपों की टीमों के बीच टक्कर दिखाई दे।

सोमवार, 5 जुलाई 2010

कीचड़ सूखने का इंतजार ही किया जाए

ल रात शोभा (श्रीमती द्विवेदी) ने पूछा, गाड़ी में पेट्रोल तो है ना? मैं चौंका। एक तो पिछले ही दिनों पेट्रोल की कीमतें बढ़ी हैं फिर अक्सर वे ये सवाल तभी करती हैं जब वे मेरे साथ कार में ऐसी जगह की यात्रा करती हैं जहाँ एक-दो किलोमीटर में पेट्रोल पम्प न हो और कोई सवारी भी न मिलती हो। मैं ने तत्काल पूछा, क्यों? कहीं जाना है क्या? वे बोलीं, नहीं मैं तो इस लिए कह रही थी कि कल भारत बंद है, सुबह जरूरत पड़ेगी तो क्या करोगे? नहीं हो तो अभी जा कर भरवा लाओ। -कल तक के लिए पर्याप्त होगा। इतना कह कर मैं ने अपनी जान छुड़ाई। चलो इस बहाने हमें भारत बंद का तो पता लगा। वरना हमें तो सुबह अखबार या टीवी समाचार से ही यह पता लगता। वैसे भी कल किसी टीवी वाले को धोनी की शादी से ही फुरसत नहीं थी।
सुबह अखबार आया तो पता लगा कि बंद के कारण यातायात की अस्तव्यस्तता रहने से अधिवक्ता परिषद ने घोषणा कर दी है कि वे भी काम लंबित रखेंगे। हम कुछ रिलेक्स हो गए। हमें पता था कि आज कोई अदालत परेशान नहीं करेगी। क्यों कि अधिवक्ताओं के काम न करने से आज का दिन उन के काम के कोटे की गणना से अलग हो गया है। यह न्यायिक अधिकारियों के लिए बोनस का दिन है। इस दिन जितना काम वे अपने अपने चैंबर में करते हैं वह उन के कोटे को सुधार देता है। हम भी आराम से निबटे। बस भोजन करना शेष था कि बंगलूरू से बेटे का फोन आ गया। बता रहा था कि वह जल्दी ही नीचे जा कर कुछ नाश्ता ले आया है वरना दिन भर भोजन से वंचित रहना पड़ता। यूँ तो वह अपना भोजन खुद बनाता रहा है। लेकिन अभी इसे के लिए वहाँ पर्याप्त साधन नहीं जुटा पाने के कारण चाय आदि के अलावा वह बाजार पर ही निर्भर रहता है। उस ने बताया कि यहाँ सारी कंपनियाँ आज बंद रहेंगी। ट्रेफिक भी बंद रहेगा। सुबह सुबह ही पुलिस वालों की टोलियाँ सड़क पर आ निकली थीं। जिस किसी ने दुकान खोल दी थी उसे बंद करवा रहे थे। कह रहे थे अपना नुकसान करवाओगे और हमारे कलंक लगाओगे, कि पुलिस ने कुछ नहीं किया। मैं ने उसे कहा कि यह तो बड़ी अजीब बात है पुलिस बंद करवा रही है? तो उस का जवाब था कि यहाँ बीजेपी की सरकार जो है। 
म अदालत के लिए निकले तो ट्रेफिक रोज की तरह चलता नजर आया। हाँ ऑटो इक्का दुक्का नजर आ रहे थे। सिटी बसें नहीं थीं और दुकानें एक सिरे से बंद थीं। हम बड़े मजे में गाड़ी चलाते हुए अदालत पहुँचे तो दूर से हमारा पार्किंग पूरी तरह खाली देख प्रसन्नता हुई, कि आज किसी पेड़ की छाया के  नीचे कार पार्क कर सकेंगे। लेकिन यह खुशी पास जाने पर टूट गई। पुलिस वाले अस्पताल और अदालत के बीच वाली सड़क के किनारे वाले पार्किंग में गाड़ी पार्क करने ही नहीं दे रहे थे। हमने पार्किंग के लिए दूसरी जगह तलाशी तो सभी पार्किंग  पहले से भरे हुए थे। फिर परेशान हुए तो एक जूनियर साथी ने हमें सलाम ठोकी। हम ने गाड़ी रोक दी। उस ने कहा कि आज उस की कार अंदर पार्किंग में फँस गई है। मुझे पत्नी को अस्पताल ले जाना है। मैं गाड़ी से उतर गया और अपनी गाड़ी की चाबी उसे दे दी। मुझे पार्किंग तलाशने से मुक्ति मिली। 
दालत में जा कर अपना काम संभाला। अदालतों में गए। कुछ अदालतों ने मुकदमों में तारीखें बदल दी थीं। कुछ अदालतें जहाँ नए न्यायिक अधिकारी तबादला हो कर आए थे, तारीखें नहीं बदल रही थीं। शायद नए अधिकारी मुकदमों की पत्रावलियों से परिचित होना चाह रहे थे, या फिर वे कोटा की उस परंपरा से वाकिफ न थे, जिस के अनुसार अधिवक्ता परिषद की काम लंबित होने की चिट्ठी आने पर उन्हें प्रसन्न होना था। पर मैं जानता था कि उन की यह असामान्यता सिर्फ दोपहर के विश्राम तक ही टिकेगी। क्यों कि तब चाय पर वे पुराने अधिकारियों से मिलेंगे और उन से मिली सीख उन्हें सामान्य कर देगी। बंद के दिन भी कुछ तो मुवक्किल आ ही गए थे। कुछ उन से बातचीत की, कुछ उन्हें सलाहें दीं, कुछ टाइप का काम करवाया। एक नया मुकदमा मिला तो फीस भी मिली। इस के अलावा दो बार बैठ कर कॉफी भी पी। कुल मिला कर शाम के साढे़ चार बज गए। तब तक शहर में कुछ भी असामान्य होने की खबर नहीं थी। सब कुछ वैसे ही चल रहा था जैसे हर बंद में चलता है। दुकानें स्वतः ही बंद थीं। कुछ नुकसान होने के डर से और कुछ इस लिए कि व्यापारियों को रूटीन में सप्ताह में एक ही अवकाश मिलता है। जब कभी बंद की घोषणा होती है तो वे बड़े खुश होते हैं कि उन्हें एक दिन का अवकाश और मिला और पहले से ही पिकनिक का कार्यक्रम बना लेते हैं। फिर आज तो मौसम इस के लिए बहुत अनुकूल था। पिछले दो-तीन दिनों हुई बरसात ने वातावरण को भीगा-भीगा और कुछ कुछ सर्द तो कर ही दिया था। आज नगर के आस-पास के सभी पिकनिक स्पॉट आबाद थे। सभी महाराज भोजन बनाने के लिए पहले से बुक थे। 
शाम घर पहुँचने पर टीवी खोला तो न्यूज चैनलों पर बहसें चल रही थीं। विपक्ष इसे जनता का बंद साबित करने पर तुला हुआ था तो कांग्रेस कह रही थी कि विपक्ष सरकार में होता तो इस से भी बुरी हालत होती। विपक्षी दलों के प्रतिनिधि सोच रहे थे कि रोना ही यही है कि वे सरकार में नहीं हैं। यदि होते तो काँग्रेसी ये सब कर रहे होते जो उन्हें करना पड़ रहा है। जनता टीवी देखने में व्यस्त थी। हम सोच रहे थे कि गाड़ी कीचड़ में फँस गई है। निकाले नहीं निकल रही है। निकालने में एक और खतरा है कि कहीं टूट नहीं जाए। कोई एकाध पहिया कीचड़ में फंसा रह जाए तो और मुश्किल हो जाए। दूसरी कोई गाड़ी दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही है कि इसे छोड़ उस में सफर किया जाए। अब ऐसे में क्या किया जाए?  कीचड़ सूखने का इंतजार ही किया जाए। कीचड़ सूखे शायद उस से पहले कोई अच्छा वाहन ही नजर आ जाए।

रविवार, 4 जुलाई 2010

जर्मनी की असली परीक्षा होगी स्पेन के साथ भिड़ंत में

फुटबॉल विश्वकप 2010 का आखिरी मुकाबला पराग्वे का स्पेन से था। स्पेन को पराग्वे के मुकाबले एक काफी मजबूत टीम माना जा रहा था और लोगों की आकांक्षाएँ ऐसी थीं कि स्पेन पराग्वे की अच्छी धुलाई करेगा। लेकिन हुआ ये कि पराग्वे पूरे मैच में स्पेन को गोल के लिए तरसाता रहा। जिस तरह से मैच का आरंभ हुआ था ऐसा लग रहा था कि कहीं पहला गोल करने में पराग्वे सफल न हो जाए। आरंभ में पराग्वे ने स्पेनी गोल पर अच्छे हमले किए। लेकिन स्पेन की मजबूत टीम जो शायद पराग्वे को आसान समझ कर पूरी ताकत और योजना के साथ नहीं खेल रही थी जल्दी ही होश में आ गई। स्पेनी खिलाड़ियों ने जब तालमेल के साथ खेलना आरंभ किया तो पराग्वे के लिए गोल पर हमले करना मुश्किल हो गया। पराग्वे के खिलाड़ी पूरी तरह रक्षात्मक हो गए। लेकिन जब वे रक्षा पर उतरे तो स्पेनी खिलाड़ियों को गोल तक गेंद पहुँचाना असंभव लगने लगा। पराग्वे के खिलाड़ियों ने स्पेन को पूरे मैच में छकाया और मौका पड़ने पर गोल पर हमले भी बोले जो स्पेनी खिलाड़ियों को आतंकित करते रहे। 
गोल के बाद जश्न मनाते स्पेनी खिलाड़ी
प इसी बात से पराग्वे की चुनौती का अनुमान कर सकते हैं कि विश्वकप की प्रबल दावेदार टीम को पराग्वे के खिलाड़ियों ने मैच का समय पूरा होने के आठ मिनट पहले तक गोल बनाने से वंचित रखा। स्पेनी इस मैच का पहला और अंतिम गोल मैच के बयासीवें मिनट में कर पाए। पराग्वे के खिलाड़ी पहले से जानते थे कि वे स्पेन को हरा नहीं सकेंगे। लेकिन जब स्पेन अपना पहला गोल करने में असफल रही तो उन का जोश बढ़ता गया और इसी ने स्पेनियों को बहुत परेशान किया। गोल हो जाने के बाद के आठ मिनटों में भी उन्हों ने स्पेनी खिलाड़ियों को चैन नहीं लेने दिया। ऐसा लग रहा था कि शायद मैच का निर्णय अतिरिक्त समय या पैनल्टी शूट से ही हो पाएगा। पराग्वे की हार के साथ ही लारिसा रिक्वेल का सपना भी टूटा। पर वे अपना करतब दिखाने के लिए और अवसर तलाश लेंगी।
हरहाल क्वार्टर फाइनल मुकाबले हो चुके हैं और सेमी फाइनल की टीमें निश्चित हो चुकी हैं। अब नीदरलेंड (हॉलेंड) का मुकाबला विश्वकप मैदान में बची रही एक मात्र गैर यूरोपीय दक्षिणी अमेरीकी उरुग्वे से है। ऐसा लग रहा है कि हॉलेंड को उरुग्वे से निपटने में अधिक मुश्किल नहीं होगी। लेकिन खुद हॉलेंड यही समझ बैठा तो उस के लिए मुश्किल हो सकती है और यह भी कि वह फाइनल खेलने से वंचित हो जाए। दूसरा मुकाबला निश्चित रूप से शानदार होने वाला है। जर्मन टीम विश्वकप के लिए जितना दावा जता रही है, स्पेन के दावे को उस से कम कर के नहीं आँका जा सकता। जर्मन  टीम का असली परीक्षण इसी सेमीफाइनल में होने वाला है। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच हुए मुकाबले में कुछ गड़बड़ जरूर हुई है। अर्जेंटीना के खिलाड़ियों तक जर्मनी की एप्रोच की बातें भी चल रही हैं। लेकिन यह तो हमेशा होने वाली बातें हैं। यदि इन में सचाई हुई तो ये बातें निकल कर जल्दी ही निकल कर चौपाल पर आ जाएँगी। हम जुटते हैं दो दिन बाद सेमीफाइनल देखने की तैयारी में।