हे, पाठक!
जैसे वामन ने दो चरणों में ब्रह्मांड नाप दिया था, वैसे ही चुनाव आयोग ने पाँच चरणों में भारतवर्ष नाप दिया। मतसंग्राहक यंत्रों में भारतवर्ष के आने वाले वर्षों का वर्षफल लिख दिया गया है। परिणाम की प्रतीक्षा है। लेकिन जिन्हें आस लगी है वे अविलंब शुरू हो चुके हैं। अपने बल पर कोई भी महापंचायत का मुखिया बनने लायक नहीं लग रहा है। आंकड़ेबाजी और आंकड़े बाजी शुरू हो गई है। दूरभाष खड़काए जा रहे हैं। पिछले दिनो जो लोग एक दूसरे के निन्दा रस का आनंद बरसा रहे थे, वे अब आपस में प्रेम की पींगें बढ़ा रहे हैं। एक ओर पतंगें आसमान में उड़ने की तैयारी कर रही हैं, दूसरी ओर लोग मोटे मोटे धागों में पत्थर बांध कर डालने को लंगर तैयार कर रहे हैं। किस रंग की पतंग पर लंगर डाला जाए? पतंग को हवा लगे उस से पहले ही लंगर डाल दिया जाए। कहीं कोई दूसरा न डाल ले।
हे, पाठक!
सनत और सूत जी ने संध्या विश्राम में बिताई। प्रातः उठ कर सनत सूत जी की डाक देखते देखते जोर से बोला -गुरुवर, बरेली से किसी कायचिकित्सक अमर कुमार संदेसा है....
क्या? पढ़ कर सुनाओ!
सनत पढ़ने लगा ......
हे ज्ञानश्रेष्ठ, इन क्षणभँगुर आवत जावत नट व नटनियों पर आप पर्याप्त मसि व्यय कर चुके,
अब त्राहिमाम के असफ़ल जाप से दुःखार्त जन की सुधि लेय ।
उनकी पीड़ा का यदि कोई श्रवण भर कर ले, यही उनका सँतोष है ।
पीड़ा को सह , उपजे सँतोष व निराश आशाओं पर जीवित रहने के अनोखे सुख के प्रसँग का समावेश कर, हे ज्ञानश्रेष्ठ !
संदेसा सुन सूतजी मुसकाए, बोले - वाकई अमर है। याज्ञवल्क्य का शिष्य ऐसी बात कर सकता है। अब इस ने कहा है तो बात माननी पड़ेगी। शिष्य तैयार हो जाओ आज बस्ती चलते हैं।
शिष्य ने दूरभाष खड़काया, वाहन का प्रबंध किया। प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त हो चल दिए बस्ती में।
हे, पाठक!
एक स्थान पर भीड़ लगी थी। लोग पुराने, मैले कपड़े पहने खड़े थे। वाहन रोका गया। यह इन्सानों की मंडी थी। सैंकड़ों लोग दिन भर को बिकने को तैयार थे। खरीददारों की कमी थी। इन में बेलदार, कुली थे, और औजार लिए राजगीर थे। लोग निकट आए, उन की आँखों में आस थी।
आप से मतदान किस किस ने किया। कुछ पूछते ही वापस दूर हो लिए।
एक बोला -मैं ने किया है। काम बंद था। लोग घर बुलाने आए मैं चला गया मत दे आया।
बुलाने न आते तो? सनत ने पूछा।
-तो न जाता। मत देने से हम को मिलता क्या है। साल में दस पन्द्रह दिन की मजदूरी कोई भी खा जाता है। मजदूरी दिला दे ऐसा तो कोई इंतजाम किसी पंचायत ने आज तक नहीं किया।
-ये लोग दूर क्यों चले गए? सनत ने पूछा।
-उन ने वोट नहीं डाला। उन का नाम यहाँ नहीं गाँव में है। अब मत देने कोई गाँव कैसे जाएगा?
काम कितने दिन मिलता है?
कभी मिलता है, कभी नहीं मिलता। कभी बीमारी-सीमारी से नहीं जा पाते। महीने में पन्द्रह-बीस दिन कर लेते हैं।
इस संक्षिप्त साक्षात्कार के उपरांत सनत और सूत जी आगे चल दिए। एक बस्ती में पहुँचे। बस्ती में गंदगी में खेलते बच्चे थे और झुग्गियों के बाहर बैठे कुछ बूढ़े। सनत ने एक वृद्ध से पूछा -जवान लोग नजर नहीं आ रहे। वृद्ध ने सनत को अजीब निगाहों से घूरा, फिर बोला -सब काम पर गए हैं।
-काम पर कहाँ गए हैं?
-जिन के पास काम है वे अपने अपने काम पर गए हैं। जिन के पास नहीं है वे तलाश करने गए हैं। कहीं सड़क किनारे भीड़ में दिख जाएंगे।
आप ने मत डाला?
क्यों न डालेंगे? हम हर बार मत डालते हैं। उधर उस्ताद रहता है वही हर बार नेताओं से बात करता है। जिस को कहता है डाल देते हैं। घंटा भर में डाल कर वापस आ जाते हैं। कभी दो दिन की, कभी तीन दिन की मजूरी मिलती है।
-मत पैसा लेकर डालते हैं आप?
-सब डालते हैं। उस दिन कोई काम पर नहीं जाता। काम पर सिर्फ एक दिन की मजूरी मिलती है। नेता मत के दिनों में ही आते हैं। फिर कोई इधर नहीं आता। काम होने पर हम जाते हैं तो सूरत नहीं पहचानते। उस्ताद हमारे हमेशा काम आता है।
सनत सूत जी आगे चल दिए।
हे, पाठक!
दोनों एक बहुमंजिला भवनों के पास एक पान की गुमटी पर रुके। पान वाले से बात की - इधर चुनाव का क्या हाल रहा?
-कुछ खास नहीं। आधे लोग भी मत देने नहीं गए। जो गए उन में दोनों तरफ के थे। किस ने किस को मत डाला पता नहीं पर लगता है इधर का मामला 19-20 ही रहा होगा। सब डाल आते तब भी यही रहता।
दोनों दिन भर घूमते रहे। साँझ को वापस लौटे तो नतीजा वही था। लोग अनमने थे। या तो मत देना नहीं चाहते थे, या फिर सोचते थे कि किसी को डाल दो क्या फऱक पड़ता है। उन पर तो कोई फरक पड़ना नहीं है। जीवन जैसे चल रहा है वैसे ही चलेगा।
हे, पाठक!
रात को भोजन कर विश्राम करने लगे तो सनत ने पूछा -गुरूवर, मैं ने पूछा था, जनता किस को वरेगी तो आप हँस दिए थे कहा था कुछ दिन में पता लग जाएगा। तो आप क्यों हँसे थे? और आप का आशय क्या था? आज तो बता दें।
सूत जी बोले -सनत! जनता किसी को नहीं वरती। वरे तो तब जब वरने के लिए विकल्प हों। नीली, पीली, हरी लाल सब पर्चियों में एक ही नाम लिखा है। किसी को उठा लो चुना तो वही जाएगा।
-गुरुवर बात पल्ले नहीं पड़ी।
-बहुत रात हो गई, अब सो लो। कल बात करेंगे।
सूत जी कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगे। सनत देर तक सोचता रहा कि गुरूवर क्या कहना चाहते हैं?
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
शुक्रवार, 15 मई 2009
गुरुवार, 14 मई 2009
बिजली कटौती के बाद
सुबह उठे, कॉफी पी है। अखबार को श्रीमती जी ले कर बैठ गई हैं। हम ने कम्प्यूटर चालू किया। पढ़ने को चिट्ठे खोले। पहला पढ़ना शुरू किया ही था कि बाहर से श्रीमती जी बोल उठीं। 7 बजे से बिजली कटौती है 10 बजे तक। सात बजने वाली है। ..........
.............बस इतना लिखा ही था कि ध्यान कंप्यूटर जी की घड़ी पर गया तो केवल दो मिनट शेष थे। बिना कोई देरी किए हम ने जितना लिखा था पोस्ट कर दिया। जैसे ही ब्लागर जी ने सूचना दी कि आलेख पोस्ट हो गया है, बिजली चली गई। हम ने अखबार पढ़ना शुरू किया .... उन्नाव-बरेली, इलाहाबाद-मैनपुरी, बल्लभगढ़-नोएडा और बल्लभगढ़-महारानी बाग की 400 केवी तथा बरेली-पंतनगर और बरेली-दोहना की 220 केवी लाइनों के खंबे बड़ी संख्या में अंधड़ के कारण गिर गए हैं। जिस से उत्तरी ग्रिड से राजस्थान को मिलने वाली बिजली में अचानक कमी आ गई है। तकनीकी कारणों से राजस्थान की अनेक इकाइयों में उत्पादन अवरोध के कारण पहले ही बिजली की कमी थी। अब बिजली की सप्लाई मिलने तक कटौती जारी रहेगी। राजधानी जयपुर में कितनी कटौती की गई है यह नहीं बताया गया था। लेकिन संभाग मुख्यालयों पर 3 घंटे, जिला मुख्यालयों पर 4 घंटे, नगरपालिका क्षेत्रों में 5 घंटे और 5 हजार से अधिक की आबादी के कस्बों में 6 घंटे की बिजली कटौती रहेगी। गाँवों के बारे में क्या निर्णय किया गया बताया नहीं गया है।
वैसे पिछले साल की बरसात के बाद यह पहली बार बिजली की कटौती हुई है। आज कल सुबह की अदालतें हैं। लेकिन मैं नौ बजे के बाद ही घर से निकलता हूँ। बिजली कटौती के कारण मैं इस बीच एक दम काम विहीन हो गया। तसल्ली से घर आने वाले तीनों अखबार पढ़े, स्नान किया, नाश्ता किया और अदालत के लिए रवाना हो गया। एक बजे वहाँ से लौटा हूँ तो फिर से दुनिया से जुड़ पाया हूँ।
बिजली जाने के बाद कुछ देर तो गर्मी का अहसास हुआ। खूब पसीना आया। फिर सब खिड़कियाँ दरवाजे खोले। हवा ठीक चल रही थी। पसीने संपर्क में आई तो बदन शीतल कर गई। मुझे बचपन याद आने लगा। क्या क्या स्मृति कोष से निकला? यह आप को बताउंगा तो अजित वडनेरकर नाराज हो लेंगे कि फिर बकलम का क्या होगा? इस लिए आगे कुछ नहीं लिखूंगा। उधर दिल्ली में आँकड़े बाजी शुरू हो गई है। लोग ताक में हैं कि किस पर आँकड़ा डालें? कौन फँस सकता है कौन नहीं? पहले मित्रों के बीच भी विरोधी नजर आते थे। अब विरोधियों के बीच मित्र तलाशे जा रहे हैं। मैं फिर अतिलंघन कर रहा हूँ, बिजली की बात तो कभी की समाप्त हो चुकी है। यह जनतन्तर कथा बीच में कहाँ से आए जा रही है। अच्छा तो चलते हैं। मिलते हैं शाम की सभा में जनतन्तर कथा के साथ। जै सियाराम !
.............बस इतना लिखा ही था कि ध्यान कंप्यूटर जी की घड़ी पर गया तो केवल दो मिनट शेष थे। बिना कोई देरी किए हम ने जितना लिखा था पोस्ट कर दिया। जैसे ही ब्लागर जी ने सूचना दी कि आलेख पोस्ट हो गया है, बिजली चली गई। हम ने अखबार पढ़ना शुरू किया .... उन्नाव-बरेली, इलाहाबाद-मैनपुरी, बल्लभगढ़-नोएडा और बल्लभगढ़-महारानी बाग की 400 केवी तथा बरेली-पंतनगर और बरेली-दोहना की 220 केवी लाइनों के खंबे बड़ी संख्या में अंधड़ के कारण गिर गए हैं। जिस से उत्तरी ग्रिड से राजस्थान को मिलने वाली बिजली में अचानक कमी आ गई है। तकनीकी कारणों से राजस्थान की अनेक इकाइयों में उत्पादन अवरोध के कारण पहले ही बिजली की कमी थी। अब बिजली की सप्लाई मिलने तक कटौती जारी रहेगी। राजधानी जयपुर में कितनी कटौती की गई है यह नहीं बताया गया था। लेकिन संभाग मुख्यालयों पर 3 घंटे, जिला मुख्यालयों पर 4 घंटे, नगरपालिका क्षेत्रों में 5 घंटे और 5 हजार से अधिक की आबादी के कस्बों में 6 घंटे की बिजली कटौती रहेगी। गाँवों के बारे में क्या निर्णय किया गया बताया नहीं गया है।
वैसे पिछले साल की बरसात के बाद यह पहली बार बिजली की कटौती हुई है। आज कल सुबह की अदालतें हैं। लेकिन मैं नौ बजे के बाद ही घर से निकलता हूँ। बिजली कटौती के कारण मैं इस बीच एक दम काम विहीन हो गया। तसल्ली से घर आने वाले तीनों अखबार पढ़े, स्नान किया, नाश्ता किया और अदालत के लिए रवाना हो गया। एक बजे वहाँ से लौटा हूँ तो फिर से दुनिया से जुड़ पाया हूँ।
बिजली जाने के बाद कुछ देर तो गर्मी का अहसास हुआ। खूब पसीना आया। फिर सब खिड़कियाँ दरवाजे खोले। हवा ठीक चल रही थी। पसीने संपर्क में आई तो बदन शीतल कर गई। मुझे बचपन याद आने लगा। क्या क्या स्मृति कोष से निकला? यह आप को बताउंगा तो अजित वडनेरकर नाराज हो लेंगे कि फिर बकलम का क्या होगा? इस लिए आगे कुछ नहीं लिखूंगा। उधर दिल्ली में आँकड़े बाजी शुरू हो गई है। लोग ताक में हैं कि किस पर आँकड़ा डालें? कौन फँस सकता है कौन नहीं? पहले मित्रों के बीच भी विरोधी नजर आते थे। अब विरोधियों के बीच मित्र तलाशे जा रहे हैं। मैं फिर अतिलंघन कर रहा हूँ, बिजली की बात तो कभी की समाप्त हो चुकी है। यह जनतन्तर कथा बीच में कहाँ से आए जा रही है। अच्छा तो चलते हैं। मिलते हैं शाम की सभा में जनतन्तर कथा के साथ। जै सियाराम !
तीन घंटे की बिजली कटौती ?
सुबह उठे, कॉफी पी है। अखबार को श्रीमती जी ले कर बैठ गई हैं। हम ने कम्प्यूटर चालू किया। पढ़ने को चिट्ठे खोले। पहला पढ़ना शुरू किया ही था कि बाहर से श्रीमती जी बोल उठीं। 7 बजे से बिजली कटौती है 10 बजे तक। सात बजने वाली है।
मंगलवार, 12 मई 2009
लालटेन भभका क्यों? मर्दुआ लपका क्यों? : जनतन्तर कथा (28)
हे, पाठक!
अगला दिन राजधानी में मतदान का दिन था। सूतजी सनत के साथ दिन भर राजधानी में मतदान के नजारे करते रहे। राजधानी में अधिक उत्साह दिखाई नहीं दिया। राजधानी में अनेक महत्वपूर्ण राजनेता अपने अपने क्षेत्र छोड़ कर मतदान करने पहुँचे। माध्यम दिन भर उन के चित्र दिखाते रहे। बैक्टीरिया दल के मुखिया की बेटी जो सारे चुनाव परिदृश्य में जो साड़ी पहने भारतीय महिला की छवि परोसती रही, मतदान के दिन अपने जीवनसाथी के साथ नए फैशन की पोशाक में दिखाई दी। जैसे दौड़ में भाग लेने आई हो। सूत जी ने सनत से कहा, "तुम्हारा मीडिया की मुख्य खबर आज यह पोशाक बनने वाली है।" राजधानी का दूसरा बड़ा समाचार यह भी था कि चुनाव कराने कराने वाले विभाग के मुखिया का नाम ही मतदाता सूची से अन्तर्ध्यान हो गया। हड़कम्प मचा तो तत्काल किसी दूसरी सूची में उन का नाम तलाश कर उन का मत डलवा दिया गया। संभवतः उन्हें अहसास हुआ हो कि आम मतदाता का क्या हाल होता होगा?
हे, पाठक!
उधर बैक्टीरिया दल के मुखिया के बेटे के श्री मुख से आपत्कालीन मसाला बत्ती की तारीफ सुनी तो दल के गायकों ने एक स्वर से राग दरबारी में कोरस आरंभ कर दिया। राजकुमार तो मात्र जिन का साथ चाहता था उन्हें बताना चाहता था कि उन के पास बैक्टीरिया दल के अलावा कोई मार्ग शेष नहीं है। पर कोई पड़ोसी की मसाला बत्ती की तारीफ करे तो घर की लालटेन को तो भभकना ही था। उधर दो पत्तियों की तारीफ हुई तो दक्खिन में सूरज उगते उगते बादलों की ओट चला गया। रैली स्थगित हो गई। मसाला बत्ती अपनी तारीफ सुन कर गदगद हो उठी, उसने दाँत बर्राए और सफाई दी कि देखिए हमरी सरकार गठबंधन की हैं, उसे छोड़ कर कइसे जा सकत हैं। अइसे तो हमरा घर बार ही बरबाद नहीं न हो जाई। हम कहीं नहीं जा रहे हैं। इस से अभिनय से जिन की त्योरियाँ चढ़ी थीं वापस यथा स्थान आ गईं। उधर वायरस दल में भी हलचल हो चली सारे छत्रप एक साथ एक ही यान में इकट्ठा किए। घोषणा की गई कि हमारा यान भरा भरा है और अब चलने ही वाला है। हम चल ही देते जो पाँचवा दौर बीच में पहाड़ सा न खड़ा होता। मसाला बत्ती जिस से सब से अधिक दूर भागती थी उसी मरदुआ ने उस का हाथ पकड़ कह दिया- जे हमरी साथी हैल देखो हम एकई सीट मैं धँसे हैं साथ साथ। मसाला बत्ती ने वहाँ भी दाँत बर्रा दिए। फोटू खिंच गए। क्या फोटू था? बहुतों को तुरंत बरनॉल की जरूरत पड़ गई। वायरस दल में शीतलता की लहर दौड़ पड़ी। लगा जैसे बहुत सारे वातानुकूलक एक साथ चला दिए गए हों। मन फुदकने लगा, पुष्पवर्षा होने लगी, प्रशस्तिगान के स्वर ऊँचे हो गए।
हे, पाठक!
मसाला बत्ती वापस घर पहुँची तो पड़ोसी पूछने लगे -यह क्या हुआ ? तुम तो कहती थी जहाँ वह मरदुआ होगा तुम फटकोगी भी नहीं, जहाँ वह होगा हम उस देहरी पर नहीं चढेंगी। मरदुआ ने सब के सामने तुम्हारा हाथ पकरा, तुमने सारी बत्तीसी दिखा दी।
मसाला बत्ती बोली -हम क्या करती? हमें थोड़े ना पता था, मरदुआ उधर जा धमकेगा। हम ने तो बुलाया नहीं था। मरदुआ पिच्छे से आ धमका टप्प से बइठ गवा हमरी बगल में अउर हमरा हाथ पकर कै ऊँचा कर दीन, ऊपर से फोटू भी खींच रहीन। अब हम सब के सामने रोने तो बैठने से रहीं। फिर रिस्तेदारी देखीं। हम कुछ कहतीं तो रिस्तेदारी न बिगड़ती। हमरा घर ही दाँव पे न लग जाता। मसाला बत्ती कहते कहते रुआँसी हुई तो
देख कर लालटेन को तसल्ली हुई गई, उस का भभकना बंद हुआ गया। वह फिर से जलने लगी पर तब तक लालटेन का गोला काला पड़ गया था। रोशनी अंदर ही घुट रही थी।
हे, पाठक!
इस सारे प्रहसन को देख सनत ने सूत जी से पूछा -इस का अर्थ क्या हुआ, गुरूवर?
सूत जी बोले -इस का अर्थ यह हुआ कि न तो लालटेन को रोशनी करने से मतलब है न मसाला बत्ती को अंधेरा मिटाने से। इन्हें मतलब है सिर्फ खुद को अच्छी दुकान में सजे रहने से।
-गुरूवर! समझ गया, सब समझ आ गया। दुकानों को मतलब है कि उन के पास इतना माल सजा रहे कि ग्राहक बाहर से न सटक ले। पर इस बार समझ नहीं आ रहा कि कौन महापंचायत को वरेगा? जनता किस को इस लायक समझेगी? -सनत ने फिर प्रश्न किया। इस प्रश्न को सुन कर सूत जी को हँसी आ गई। बोले -एक दो दिन में इस प्रश्न का उत्तर भी तुम्हें मिल जाएगा। अभी कुछ प्रतीक्षा करो।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
अगला दिन राजधानी में मतदान का दिन था। सूतजी सनत के साथ दिन भर राजधानी में मतदान के नजारे करते रहे। राजधानी में अधिक उत्साह दिखाई नहीं दिया। राजधानी में अनेक महत्वपूर्ण राजनेता अपने अपने क्षेत्र छोड़ कर मतदान करने पहुँचे। माध्यम दिन भर उन के चित्र दिखाते रहे। बैक्टीरिया दल के मुखिया की बेटी जो सारे चुनाव परिदृश्य में जो साड़ी पहने भारतीय महिला की छवि परोसती रही, मतदान के दिन अपने जीवनसाथी के साथ नए फैशन की पोशाक में दिखाई दी। जैसे दौड़ में भाग लेने आई हो। सूत जी ने सनत से कहा, "तुम्हारा मीडिया की मुख्य खबर आज यह पोशाक बनने वाली है।" राजधानी का दूसरा बड़ा समाचार यह भी था कि चुनाव कराने कराने वाले विभाग के मुखिया का नाम ही मतदाता सूची से अन्तर्ध्यान हो गया। हड़कम्प मचा तो तत्काल किसी दूसरी सूची में उन का नाम तलाश कर उन का मत डलवा दिया गया। संभवतः उन्हें अहसास हुआ हो कि आम मतदाता का क्या हाल होता होगा?
हे, पाठक!
उधर बैक्टीरिया दल के मुखिया के बेटे के श्री मुख से आपत्कालीन मसाला बत्ती की तारीफ सुनी तो दल के गायकों ने एक स्वर से राग दरबारी में कोरस आरंभ कर दिया। राजकुमार तो मात्र जिन का साथ चाहता था उन्हें बताना चाहता था कि उन के पास बैक्टीरिया दल के अलावा कोई मार्ग शेष नहीं है। पर कोई पड़ोसी की मसाला बत्ती की तारीफ करे तो घर की लालटेन को तो भभकना ही था। उधर दो पत्तियों की तारीफ हुई तो दक्खिन में सूरज उगते उगते बादलों की ओट चला गया। रैली स्थगित हो गई। मसाला बत्ती अपनी तारीफ सुन कर गदगद हो उठी, उसने दाँत बर्राए और सफाई दी कि देखिए हमरी सरकार गठबंधन की हैं, उसे छोड़ कर कइसे जा सकत हैं। अइसे तो हमरा घर बार ही बरबाद नहीं न हो जाई। हम कहीं नहीं जा रहे हैं। इस से अभिनय से जिन की त्योरियाँ चढ़ी थीं वापस यथा स्थान आ गईं। उधर वायरस दल में भी हलचल हो चली सारे छत्रप एक साथ एक ही यान में इकट्ठा किए। घोषणा की गई कि हमारा यान भरा भरा है और अब चलने ही वाला है। हम चल ही देते जो पाँचवा दौर बीच में पहाड़ सा न खड़ा होता। मसाला बत्ती जिस से सब से अधिक दूर भागती थी उसी मरदुआ ने उस का हाथ पकड़ कह दिया- जे हमरी साथी हैल देखो हम एकई सीट मैं धँसे हैं साथ साथ। मसाला बत्ती ने वहाँ भी दाँत बर्रा दिए। फोटू खिंच गए। क्या फोटू था? बहुतों को तुरंत बरनॉल की जरूरत पड़ गई। वायरस दल में शीतलता की लहर दौड़ पड़ी। लगा जैसे बहुत सारे वातानुकूलक एक साथ चला दिए गए हों। मन फुदकने लगा, पुष्पवर्षा होने लगी, प्रशस्तिगान के स्वर ऊँचे हो गए।
हे, पाठक!
मसाला बत्ती वापस घर पहुँची तो पड़ोसी पूछने लगे -यह क्या हुआ ? तुम तो कहती थी जहाँ वह मरदुआ होगा तुम फटकोगी भी नहीं, जहाँ वह होगा हम उस देहरी पर नहीं चढेंगी। मरदुआ ने सब के सामने तुम्हारा हाथ पकरा, तुमने सारी बत्तीसी दिखा दी।
मसाला बत्ती बोली -हम क्या करती? हमें थोड़े ना पता था, मरदुआ उधर जा धमकेगा। हम ने तो बुलाया नहीं था। मरदुआ पिच्छे से आ धमका टप्प से बइठ गवा हमरी बगल में अउर हमरा हाथ पकर कै ऊँचा कर दीन, ऊपर से फोटू भी खींच रहीन। अब हम सब के सामने रोने तो बैठने से रहीं। फिर रिस्तेदारी देखीं। हम कुछ कहतीं तो रिस्तेदारी न बिगड़ती। हमरा घर ही दाँव पे न लग जाता। मसाला बत्ती कहते कहते रुआँसी हुई तो
देख कर लालटेन को तसल्ली हुई गई, उस का भभकना बंद हुआ गया। वह फिर से जलने लगी पर तब तक लालटेन का गोला काला पड़ गया था। रोशनी अंदर ही घुट रही थी।
हे, पाठक!
इस सारे प्रहसन को देख सनत ने सूत जी से पूछा -इस का अर्थ क्या हुआ, गुरूवर?
सूत जी बोले -इस का अर्थ यह हुआ कि न तो लालटेन को रोशनी करने से मतलब है न मसाला बत्ती को अंधेरा मिटाने से। इन्हें मतलब है सिर्फ खुद को अच्छी दुकान में सजे रहने से।
-गुरूवर! समझ गया, सब समझ आ गया। दुकानों को मतलब है कि उन के पास इतना माल सजा रहे कि ग्राहक बाहर से न सटक ले। पर इस बार समझ नहीं आ रहा कि कौन महापंचायत को वरेगा? जनता किस को इस लायक समझेगी? -सनत ने फिर प्रश्न किया। इस प्रश्न को सुन कर सूत जी को हँसी आ गई। बोले -एक दो दिन में इस प्रश्न का उत्तर भी तुम्हें मिल जाएगा। अभी कुछ प्रतीक्षा करो।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
रविवार, 10 मई 2009
पादुका प्रहार का फैशन और नयी महापंचायत की चौसर : जनतन्तर कथा (27)
हे, पाठक!
यात्री-निवास पहुँच कर सूत जी ने स्नान-ध्यान किया। भोजनशाला पहुँचे तब वहाँ भोजन का अंतिम दौर चल रहा था। भोजन पा कर वापस अपने कक्ष पहुँचे तो अर्धरात्रि हो चुकी थी। तभी चल-दूरभाष से आरती का स्वर उभरा -जय जगदीश हरे.... दूसरी ओर सनत था।
-गुरुवर कहाँ हो? सूत जी ने बताया कि वे रात्रि विश्राम स्वामी पद्मनाभ की विश्राम स्थली तिरुवनंतपुरम में कर रहे हैं।
सनत-गुरुवर, समाचार देखे सुने?
सूत जी-नहीं आज तो समय नहीं मिला, कुछ विशेष है क्या?
सनत-चौथे दौर का प्रचार अभियान थमते ही महा पंचायत की चौसर शुरू हो चुकी है। चाचा वंश के राज कुमार ने बैक्टीरिया दल की और से पासा फैंक दिया है। लालटेन की प्रतिद्वंदी आपत्कालीन मसाला-बत्ती की प्रशंसा कर दी कि यह सीधे विद्युत से ऊर्जा प्राप्त करती है और उसे सहेज कर रखती है, जिसे आपत्काल में काम लिया जा सकता है। यह कोसी की बाढ़ के बाद लोगों के बहुत काम आई। यह भी कहा कि बैक्टीरिया दल लाल फ्रॉक का सहयोग प्राप्त कर सकता है। इस से लालटेन भभक उठी है, उस का कांच का गोला कभी भी तड़क सकता है। मैं राजधानी पहुँच गया हूँ। यहाँ का मतदान भी देख लेंगे और आगे का सारा खेल तो यहीं होना है। आप राजधानी कब पहुँच रहे हैं?
सूत जी- बस, कल प्रातः स्वामी के दर्शन कर आगे की योजना को अंतिम रूप देता हूँ फिर भी कोशिश रहेगी कि मतदान आरंभ होते होते राजधानी पहुँच लूँ।
सनत- ठीक है गुरूवर आप विश्राम कीजिए। मैं राजधानी में आप की प्रतीक्षा करूंगा।
हे, पाठक!
सूत जी बुरी तरह थके हुए थे, शैया पर जा लेटे। सोचने लगे, सत्तावन वर्ष पूर्व आरंभ हुई भारतवर्ष के गणतंत्र की यह यात्रा आज कहाँ पहुँच चुकी है? भारतीय गंणतंत्र यथार्थ में एक अनूठा प्रयोग स्थल हो गया है, जहाँ मानव समाज के विकास की कथा कुछ पृथक रीति से अंकित हो रही है। वे आज यहाँ केरल में आर्थिक विकास के स्तर और लोगों की सामाजिक-राजनैतिक चेतना के स्तर को देख कर बहुत प्रभावित हुए थे। वे सोच रहे थे कि शायद पूरे भारतवर्ष मे ऐसा हो सकता था। यदि गणराज्य और उस के दूसरे प्रान्तों की पंचायतों ने भी यहाँ की भांति भूमि सुधार और शिक्षा के मामलों में आजादी के आंदोलन के दौरान घोषित नीति को दृढ़ता से लागू करने के लिए वैसी प्रतिबद्धता दिखाई होती जैसी केरल की पहली प्रान्तीय सरकार ने दिखाई थी। यद्यपि उस प्रतिबद्धता के कारण ही उस पहली पंचायत का ही वर्ष में जबरन अवसान कर दिया गया। लेकिन पंचायत की प्रतिबद्धता ने जनता को उस स्तर तक शिक्षित कर दिया था कि आने वाली पंचायतें इन दोनों पक्षों की उपेक्षा नहीं कर पाई। तब शायद देश में भी यहाँ की तरह दो ही राजनैतिक दल या ध्रुव होते। .... विचारते विचारते ही सूत जी निद्रामग्न हो चुके थे।
हे, पाठक!
सूत जी दूसरे दिन साँयकाल राजधानी पहुँच गए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। सन्यास धारण कर लेने के उपरांत भी उसे किसी का साथ तो चाहिए ही। सनत पहले ही राजधानी पहुँच चुका था। उन्हों ने उसे भी अपने पास ही बुला लिया। अब दोनों साथ हो लिए थे। अगले दिन राजधानी के सभी खेतों के प्रतिनिधियों के लिए मतदान होना था। यहाँ पिछले दिनों बहुत अनूठी घटनाएँ हुई थीं। चुनाव के आरंभ में ही बैक्टीरिया दल के एक नेता पर पादुका प्रहार हुआ था। जिस का असर ये हुआ कि राजधानी क्षेत्र में बैक्टीरिया दल ने अपने दो सशक्त उम्मीदवारों को बदल दिया था। एक तरह से बैक्टीरिया दल ने अपने पूर्व अपराध की स्वीकारोक्ति कर ली थी। सूत जी जानते थे कि मतदाता की स्मृति बहुत क्षीण होती है। वे अवश्य ही इस स्वीकारोक्ति के उपरांत बैक्टीरिया दल को माफ कर देंगे और बैक्टीरिया दल माफी का लाभ प्राप्त करने में सफल हो लेगा। इस पादुका प्रहार ने फैशन की जगह ले ली थी। अब तक के चुनाव प्रचार में उस के अनोखे उदाहरण सामने आए। यहाँ तक कि महापंचायत के वर्तमान मुखिया और वायरस दल के घोषित मुखिया भी इस के प्रहारों से न बच सके। पर पादुका प्रहार का यह फैशन अहिंसक ही बना रहा और उस ने किसी को भी भौतिक चोट नहीं पहुँचाई। यद्यपि बहुत से मीमांसकारों ने इस पर चिंताएँ प्रकट करते हुए पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ रंग डाले। पर सूत जी जानते थे कि पादुका प्रहार एक फैशन की तरह आया है और फैशन की तरह चला जाएगा। एक फैशन और चला कि पहले पहल पादुका प्रहार के लक्ष्य बने नेताओं ने इसे अपनी अहिंसा की नीति के अंतर्गत प्रहारकों को क्षमा कर दिया। लेकिन इस महानता का कार्य करने में वायरस दल के नेता पिछड़ गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
यात्री-निवास पहुँच कर सूत जी ने स्नान-ध्यान किया। भोजनशाला पहुँचे तब वहाँ भोजन का अंतिम दौर चल रहा था। भोजन पा कर वापस अपने कक्ष पहुँचे तो अर्धरात्रि हो चुकी थी। तभी चल-दूरभाष से आरती का स्वर उभरा -जय जगदीश हरे.... दूसरी ओर सनत था।
-गुरुवर कहाँ हो? सूत जी ने बताया कि वे रात्रि विश्राम स्वामी पद्मनाभ की विश्राम स्थली तिरुवनंतपुरम में कर रहे हैं।
सनत-गुरुवर, समाचार देखे सुने?
सूत जी-नहीं आज तो समय नहीं मिला, कुछ विशेष है क्या?
सनत-चौथे दौर का प्रचार अभियान थमते ही महा पंचायत की चौसर शुरू हो चुकी है। चाचा वंश के राज कुमार ने बैक्टीरिया दल की और से पासा फैंक दिया है। लालटेन की प्रतिद्वंदी आपत्कालीन मसाला-बत्ती की प्रशंसा कर दी कि यह सीधे विद्युत से ऊर्जा प्राप्त करती है और उसे सहेज कर रखती है, जिसे आपत्काल में काम लिया जा सकता है। यह कोसी की बाढ़ के बाद लोगों के बहुत काम आई। यह भी कहा कि बैक्टीरिया दल लाल फ्रॉक का सहयोग प्राप्त कर सकता है। इस से लालटेन भभक उठी है, उस का कांच का गोला कभी भी तड़क सकता है। मैं राजधानी पहुँच गया हूँ। यहाँ का मतदान भी देख लेंगे और आगे का सारा खेल तो यहीं होना है। आप राजधानी कब पहुँच रहे हैं?
सूत जी- बस, कल प्रातः स्वामी के दर्शन कर आगे की योजना को अंतिम रूप देता हूँ फिर भी कोशिश रहेगी कि मतदान आरंभ होते होते राजधानी पहुँच लूँ।
सनत- ठीक है गुरूवर आप विश्राम कीजिए। मैं राजधानी में आप की प्रतीक्षा करूंगा।
हे, पाठक!
सूत जी बुरी तरह थके हुए थे, शैया पर जा लेटे। सोचने लगे, सत्तावन वर्ष पूर्व आरंभ हुई भारतवर्ष के गणतंत्र की यह यात्रा आज कहाँ पहुँच चुकी है? भारतीय गंणतंत्र यथार्थ में एक अनूठा प्रयोग स्थल हो गया है, जहाँ मानव समाज के विकास की कथा कुछ पृथक रीति से अंकित हो रही है। वे आज यहाँ केरल में आर्थिक विकास के स्तर और लोगों की सामाजिक-राजनैतिक चेतना के स्तर को देख कर बहुत प्रभावित हुए थे। वे सोच रहे थे कि शायद पूरे भारतवर्ष मे ऐसा हो सकता था। यदि गणराज्य और उस के दूसरे प्रान्तों की पंचायतों ने भी यहाँ की भांति भूमि सुधार और शिक्षा के मामलों में आजादी के आंदोलन के दौरान घोषित नीति को दृढ़ता से लागू करने के लिए वैसी प्रतिबद्धता दिखाई होती जैसी केरल की पहली प्रान्तीय सरकार ने दिखाई थी। यद्यपि उस प्रतिबद्धता के कारण ही उस पहली पंचायत का ही वर्ष में जबरन अवसान कर दिया गया। लेकिन पंचायत की प्रतिबद्धता ने जनता को उस स्तर तक शिक्षित कर दिया था कि आने वाली पंचायतें इन दोनों पक्षों की उपेक्षा नहीं कर पाई। तब शायद देश में भी यहाँ की तरह दो ही राजनैतिक दल या ध्रुव होते। .... विचारते विचारते ही सूत जी निद्रामग्न हो चुके थे।
हे, पाठक!
सूत जी दूसरे दिन साँयकाल राजधानी पहुँच गए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। सन्यास धारण कर लेने के उपरांत भी उसे किसी का साथ तो चाहिए ही। सनत पहले ही राजधानी पहुँच चुका था। उन्हों ने उसे भी अपने पास ही बुला लिया। अब दोनों साथ हो लिए थे। अगले दिन राजधानी के सभी खेतों के प्रतिनिधियों के लिए मतदान होना था। यहाँ पिछले दिनों बहुत अनूठी घटनाएँ हुई थीं। चुनाव के आरंभ में ही बैक्टीरिया दल के एक नेता पर पादुका प्रहार हुआ था। जिस का असर ये हुआ कि राजधानी क्षेत्र में बैक्टीरिया दल ने अपने दो सशक्त उम्मीदवारों को बदल दिया था। एक तरह से बैक्टीरिया दल ने अपने पूर्व अपराध की स्वीकारोक्ति कर ली थी। सूत जी जानते थे कि मतदाता की स्मृति बहुत क्षीण होती है। वे अवश्य ही इस स्वीकारोक्ति के उपरांत बैक्टीरिया दल को माफ कर देंगे और बैक्टीरिया दल माफी का लाभ प्राप्त करने में सफल हो लेगा। इस पादुका प्रहार ने फैशन की जगह ले ली थी। अब तक के चुनाव प्रचार में उस के अनोखे उदाहरण सामने आए। यहाँ तक कि महापंचायत के वर्तमान मुखिया और वायरस दल के घोषित मुखिया भी इस के प्रहारों से न बच सके। पर पादुका प्रहार का यह फैशन अहिंसक ही बना रहा और उस ने किसी को भी भौतिक चोट नहीं पहुँचाई। यद्यपि बहुत से मीमांसकारों ने इस पर चिंताएँ प्रकट करते हुए पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ रंग डाले। पर सूत जी जानते थे कि पादुका प्रहार एक फैशन की तरह आया है और फैशन की तरह चला जाएगा। एक फैशन और चला कि पहले पहल पादुका प्रहार के लक्ष्य बने नेताओं ने इसे अपनी अहिंसा की नीति के अंतर्गत प्रहारकों को क्षमा कर दिया। लेकिन इस महानता का कार्य करने में वायरस दल के नेता पिछड़ गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
शुक्रवार, 8 मई 2009
सूत जी पद्मनाभस्वामी की विश्रामस्थली में : जनतन्तर कथा (26)
हे, पाठक!
विचरण की थकान से निद्रा गहरी आई, उठने का मन नहीं था फिर भी सूत जी ने स्वभावगत् रुप से सूर्योदय पूर्व ही शैया त्याग दी। प्रातःकालीन नित्यकर्म से निवृत्त हो छनी हुई तमिल कॉफी का आनंद लिया। अब चेन्नई में रुकना निरर्थक था। सोचा, जब यहाँ तक आ ही गए हैं तो तिरुअनंतपुरम चल कर पद्मनाभस्वामी के दर्शन भी कर लिए जाएँ। हालांकि वहाँ लोग बहुत पहले ही मतदान कर चुके थे। लेकिन उस से क्या इस दक्षिणी तटखंड और उस के लोगों का साक्षात तो हो ही सकता था। जानकारी की तो पता लगा दस बजे नित्य ही वहाँ के लिए विमान है, मात्र तीन-चार घड़ी की यात्रा। सूत जी दोपहर होने के पहले ही पद्मनाभ स्वामी के विश्राम स्थल पहुँच गए। कहते हैं परशुराम के फरसे को समुद्र में डुबोने पर यह धरती जल से बाहर आ गई थी। विमान से स्वामी का मंदिर देख कर ही मन प्रसन्न हो गया।
हे, पाठक!
विश्राम के लिए मंदिर के निकट ही यात्री आवास भी मिल गया। पहुँच कर भोजन किया, तनिक विश्राम और फिर स्वामी के दर्शन। फिर निकले नगर भ्रमण को। लोग काम में लगे थे। विचित्र नगर था। स्त्रियाँ खूब दिखाई पड़ती थीं, लगभग पुरुषों के बराबर। हर काम में और हर स्थान पर। नगर का प्रत्येक प्राणी सजग दीख पड़ता था। बहुत जानकारियाँ मिली। नगर शिक्षा का बड़ा केन्द्र है, प्राचीन काल से ही। नगर में एक प्राचीन वेधशाला भी है। सूत जी ने नगर और खंड के बारे में और जानना चाहा तो पता लगा उष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ यहाँ की विशेषता हैं। सच ही यह अपने नाम की तरह ईश्वर का घर प्रतीत हुआ। आदिकालीन भारतीय द्रविड़ों के अतिरिक्त आर्य, अरबी, यहूदी, मिश्रित वंश तथा आदिवासी यहाँ की जनसंख्या का निर्माण करते हैं और लगभग सभी शिक्षित। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम,बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख और बहाई धर्मावलम्बी यहाँ मिल जाएँगे। अद्वैत के आचार्य आदिशंकर की जन्म स्थली। शेष भारतवर्ष से ढाई गुना अधिक लगभग 819 जन प्रति वर्ग किलोमीटर की सघन जनसंख्या में स्त्री-पुरुष बराबर हैं अपितु कुछ स्त्रियाँ ही अधिक हैं। स्त्री-प्रधान समुदाय आज भी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन में तृतीय विश्व का सब से अग्रणी खंड बना। जनसंख्या की स्थिरता प्राप्त यह खंड आज विश्व के अग्रणीय देशों के साथ खड़ा है। क्या नहीं था इस खंड में?
हे, पाठक!
भारतवर्ष की स्वतंत्रता के दस वर्ष उपरांत पहली बार खंडीय पंचायत गठित हुई और पहली ही बार जन ने लाल फ्रॉक को राज्य चलाने का अधिकार दिया। वे लाए तीव्र विकास के लिए तीव्र परिवर्तन। महापंचायत को यह सब रास नहीं आया। लाल फ्रॉक की खंडीय पंचायत को हटा दिया गया। लेकिन बीज नष्ट नहीं हो सका। उस के बाद मिश्रित जन ने जो इतिहास रचा वह अद्वितीय है। इसी से इस खंड को राजनीति की प्रयोगशाला का नाम मिला। गठबंधनों का शासन जो आज पूरे भारतवर्ष का भाग्य है, वह इस खंड मे पहली बार हुआ और फिर एक परंपरा बन गया। स्पष्ट रूप से दो मुख्य गठबंधन सामने आए। यदि इन गठबंधनों को हम दल मान लें तो एक द्विदलीय प्रणाली यहाँ विकसित है। जब भी जन को कोई पाठ पढ़ाना होता है तो वह एक गठबंधन को अस्वीकार कर दूसरे को अवसर प्रदान करते हैं। दोनों के मध्य प्रतियोगिता ने खण्ड को विश्व में मान दिलाया।
हे, पाठक!
सूत जी को देर रात्रि तक यह सारी जानकारी मिली। उन की रुचि वर्तमान महापंचायत के लिए हो रहे चुनाव के परिणामों की थी। उन्हों ने अनेक लोगों से पूछताछ की। सभी दलों के लोगों से मिले। लेकिन आश्चर्य कि लगभग सभी लोग परिणाम के प्रति आश्वस्त और सब की राय एक जैसी। ऐसा कहीं नहीं हुआ था। सब स्थानों पर लोग अपने अपने दलों के बढ़चढ़ कर प्रदर्शन करने की आशा रखते थे, लेकिन यहाँ सब कुछ विपरीत था। सब लोगों का एक ही मत था 19-20, अर्थात बहुत अंतर दोनों गठबंधनों के मध्य नहीं रहेगा। या तो दो खेतपति इसके अधिक, या फिर दो खेतपति उस के अधिक।
विचरण की थकान से निद्रा गहरी आई, उठने का मन नहीं था फिर भी सूत जी ने स्वभावगत् रुप से सूर्योदय पूर्व ही शैया त्याग दी। प्रातःकालीन नित्यकर्म से निवृत्त हो छनी हुई तमिल कॉफी का आनंद लिया। अब चेन्नई में रुकना निरर्थक था। सोचा, जब यहाँ तक आ ही गए हैं तो तिरुअनंतपुरम चल कर पद्मनाभस्वामी के दर्शन भी कर लिए जाएँ। हालांकि वहाँ लोग बहुत पहले ही मतदान कर चुके थे। लेकिन उस से क्या इस दक्षिणी तटखंड और उस के लोगों का साक्षात तो हो ही सकता था। जानकारी की तो पता लगा दस बजे नित्य ही वहाँ के लिए विमान है, मात्र तीन-चार घड़ी की यात्रा। सूत जी दोपहर होने के पहले ही पद्मनाभ स्वामी के विश्राम स्थल पहुँच गए। कहते हैं परशुराम के फरसे को समुद्र में डुबोने पर यह धरती जल से बाहर आ गई थी। विमान से स्वामी का मंदिर देख कर ही मन प्रसन्न हो गया।
हे, पाठक!
विश्राम के लिए मंदिर के निकट ही यात्री आवास भी मिल गया। पहुँच कर भोजन किया, तनिक विश्राम और फिर स्वामी के दर्शन। फिर निकले नगर भ्रमण को। लोग काम में लगे थे। विचित्र नगर था। स्त्रियाँ खूब दिखाई पड़ती थीं, लगभग पुरुषों के बराबर। हर काम में और हर स्थान पर। नगर का प्रत्येक प्राणी सजग दीख पड़ता था। बहुत जानकारियाँ मिली। नगर शिक्षा का बड़ा केन्द्र है, प्राचीन काल से ही। नगर में एक प्राचीन वेधशाला भी है। सूत जी ने नगर और खंड के बारे में और जानना चाहा तो पता लगा उष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ यहाँ की विशेषता हैं। सच ही यह अपने नाम की तरह ईश्वर का घर प्रतीत हुआ। आदिकालीन भारतीय द्रविड़ों के अतिरिक्त आर्य, अरबी, यहूदी, मिश्रित वंश तथा आदिवासी यहाँ की जनसंख्या का निर्माण करते हैं और लगभग सभी शिक्षित। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम,बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख और बहाई धर्मावलम्बी यहाँ मिल जाएँगे। अद्वैत के आचार्य आदिशंकर की जन्म स्थली। शेष भारतवर्ष से ढाई गुना अधिक लगभग 819 जन प्रति वर्ग किलोमीटर की सघन जनसंख्या में स्त्री-पुरुष बराबर हैं अपितु कुछ स्त्रियाँ ही अधिक हैं। स्त्री-प्रधान समुदाय आज भी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन में तृतीय विश्व का सब से अग्रणी खंड बना। जनसंख्या की स्थिरता प्राप्त यह खंड आज विश्व के अग्रणीय देशों के साथ खड़ा है। क्या नहीं था इस खंड में?
हे, पाठक!
भारतवर्ष की स्वतंत्रता के दस वर्ष उपरांत पहली बार खंडीय पंचायत गठित हुई और पहली ही बार जन ने लाल फ्रॉक को राज्य चलाने का अधिकार दिया। वे लाए तीव्र विकास के लिए तीव्र परिवर्तन। महापंचायत को यह सब रास नहीं आया। लाल फ्रॉक की खंडीय पंचायत को हटा दिया गया। लेकिन बीज नष्ट नहीं हो सका। उस के बाद मिश्रित जन ने जो इतिहास रचा वह अद्वितीय है। इसी से इस खंड को राजनीति की प्रयोगशाला का नाम मिला। गठबंधनों का शासन जो आज पूरे भारतवर्ष का भाग्य है, वह इस खंड मे पहली बार हुआ और फिर एक परंपरा बन गया। स्पष्ट रूप से दो मुख्य गठबंधन सामने आए। यदि इन गठबंधनों को हम दल मान लें तो एक द्विदलीय प्रणाली यहाँ विकसित है। जब भी जन को कोई पाठ पढ़ाना होता है तो वह एक गठबंधन को अस्वीकार कर दूसरे को अवसर प्रदान करते हैं। दोनों के मध्य प्रतियोगिता ने खण्ड को विश्व में मान दिलाया।
हे, पाठक!
सूत जी को देर रात्रि तक यह सारी जानकारी मिली। उन की रुचि वर्तमान महापंचायत के लिए हो रहे चुनाव के परिणामों की थी। उन्हों ने अनेक लोगों से पूछताछ की। सभी दलों के लोगों से मिले। लेकिन आश्चर्य कि लगभग सभी लोग परिणाम के प्रति आश्वस्त और सब की राय एक जैसी। ऐसा कहीं नहीं हुआ था। सब स्थानों पर लोग अपने अपने दलों के बढ़चढ़ कर प्रदर्शन करने की आशा रखते थे, लेकिन यहाँ सब कुछ विपरीत था। सब लोगों का एक ही मत था 19-20, अर्थात बहुत अंतर दोनों गठबंधनों के मध्य नहीं रहेगा। या तो दो खेतपति इसके अधिक, या फिर दो खेतपति उस के अधिक।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
गुरुवार, 7 मई 2009
माला के मनकों को जुड़ा रखने के लिए मजबूत धागे का सूत्र कहाँ मिलेगा : जनतन्तर कथा (25)
हे, पाठक!
अगली प्रातः सूत जी द्रविड़ चेतना के केन्द्र चैन्नई में थे। सभ्यता विकसित होते हुए भी बर्बर आर्यों से पराजय की कसक को यहाँ जीवित थी। लेकिन उसे इस तरह सींचा जा रहा था जिस से इस युग में सत्ता की फसलें लहलहाती रहें। प्रकृति के कण कण को मूर्त रूप से प्रेम करने वाला आद्य भारतीय मन उस पराजय को जय में बदलने को आज तक प्रयत्नशील है। सब से पहले तो उस ने विजेता के नायक देवता को इतना बदनाम किया वह देवराज होते हुए भी खलनायक हो गया। उस के स्थान पर लघुभ्राता तिरुपति को स्थापित करना पड़ा। यहाँ तक कि जो थोडा़ बहुत सम्मान वर्षा के देवता के रूप में उस का शेष रह गया था उसे भी तिरुपति के ही एक अवतार ने अपने बचपन में ही गोवर्धन पूज कर नष्ट कर डाला। पूरा अवतार चरित्र फिर से उसी मूर्त प्रेम को स्थापित करने में चुक गया। वह मूर्त प्रेम आज भी इस खंड में इतना जीवन्त है कि अपने आदर्श को थोड़ी भी आंच महसूसने पर अनुयायी स्वयं को भस्म करने तक को तैयार मिलेंगे।
हे, पाठक!
सुबह कलेवा कर नगर भ्रमण को निकले तो सूत जी को सब कहीं चुनाव श्री लंकाई तमिलों के कष्टों के ताल में गोते लगाता दिखाई दिया। दोनों प्रमुख दल तमिलों के कष्ट में साथ दिखाई देने का प्रयत्न करते देखे। लेकिन यहाँ भी स्वयं कर्म के स्थान पर विपक्षी का अकर्म प्रदर्षित करने वही चिरपरिचित दृष्य दिखाई दिया जो अब तक की भारतवर्ष यात्रा में सर्वत्र दीख पड़ता था। दोनों ही दलों में सब तरह से घिस चुका वही पुराना नेतृत्व था। जिस में अब कोई आकर्षण नहीं रह गया था। कोई नया नेतृत्व जो द्रविड़ गौरव में फिर से प्राण फूँक दे, दूर दूर तक नहीं था। हर कोई पेरियार और अन्ना का स्मरण करता था। लेकिन वह ज्ञान और सपना दोनों अन्तर्ध्यान थे। सूत जी दोनों दलों के मुख्यालय घूम आए। सारी शक्ति यहाँ भी मुख्यतः निष्प्राण प्रचार में लगी थी। दोनों ही अपनी जीत के प्रति आश्वस्त और हार के प्रति शंकालु दिखे। आत्मविश्वास नाम को भी नहीं था।
हे, पाठक!
जहाँ सत्तारूढ़ दल अपनी उपलब्धियाँ गिना रहा था वहीं विपक्षी उन की कमियों को नमक मिर्च लगा कर बखान कर रहे थे। पर जनता? वह स्तब्ध थी, तय ही नहीं कर पा रही थी कि वह किसे चुने और किसे न चुने? सभी राशन की दुकान पर रुपए किलो का चावल देने का वायदा कर रहे थे। एक मतदाता कह रही थी कि चावल तो हम रुपए किलो राशन दुकान से ले आएंगे, लेकिन नमक का क्या? वही सात रुपए किलो? और एक कप चाय तीन रुपए की? क्यूँ नहीं कोई ऐसी व्यवस्था करने की कहता कि जितना दिन भर में कमाएँ उस से दो दिन का घर चला लें। कम से कम कुछ तो जीवन सुधरे। उस औरत के प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं था। नगर और औद्योगिक बस्तियों में मतदान के लिए कोई उत्साह नहीं था। मतसूची में दर्ज आधे लोग भी मतदान केन्द्र तक पहुँच जाएँ तो ठीक वरना जो मत डालेंगे वे ही आगे का भविष्य लिख देंगे।
हे, पाठक!
सूत जी, आस पास के कुछ ग्रामों में घूम-फिर अपने यात्री निवास लौटे तो बुरी तरह थक चुके थे। भोजन कर सोने को शैया पर आए तो दिन भर की यात्रा पर विचार करते रहे। ग्रामों में चुनाव के प्रति तनिक उत्साह तो था। लेकिन निराशा वहाँ भी दिखाई दी। स्थानीय समस्याओं के हल और विकास के प्रति राजनेताओं की उदासीनता की कथाएँ हर स्थान पर आम थीं। सूत जी भारतवर्ष में अब तक जहाँ जहाँ गए थे वहाँ यह एक सामान्य बात दिखाई दे रही थी कि विकास की भरपूर आकांक्षाएँ लोगों के मन में थीं। लेकिन उस के लिए मौजूदा राजनैतिक ढ़ाँचे पर विश्वास उतना ही न्यून था। विश्वास की हिलोरें भारतवर्ष को किस ओर ले जाएंगी इस का संकेत तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। सब कहीं जनता की आकांक्षाएँ एक जैसी थीं। लेकिन उन आकांक्षाओं को कहाँ दिशा और राह मिलेगी? यह कहीं नहीं दिखाई देता था। लगता था पूरा भारतवर्ष अब भी खंड खंड में बंटा हुआ था। वे सोचने लगे। इस माला का धागा इतना कमजोर है कि कहीं टूट न जाए। किस तरह वह सूत्र मिलेगा जिन से एक नया मजबूत धागा बुना जा सके, जिस में इस माला के धागे के टूटने और बिखर जाने के पहले माला के मनकों को फिर से एक साथ पिरो दे। सोचते सोचते निद्रा ने उन्हें आ घेरा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
अगली प्रातः सूत जी द्रविड़ चेतना के केन्द्र चैन्नई में थे। सभ्यता विकसित होते हुए भी बर्बर आर्यों से पराजय की कसक को यहाँ जीवित थी। लेकिन उसे इस तरह सींचा जा रहा था जिस से इस युग में सत्ता की फसलें लहलहाती रहें। प्रकृति के कण कण को मूर्त रूप से प्रेम करने वाला आद्य भारतीय मन उस पराजय को जय में बदलने को आज तक प्रयत्नशील है। सब से पहले तो उस ने विजेता के नायक देवता को इतना बदनाम किया वह देवराज होते हुए भी खलनायक हो गया। उस के स्थान पर लघुभ्राता तिरुपति को स्थापित करना पड़ा। यहाँ तक कि जो थोडा़ बहुत सम्मान वर्षा के देवता के रूप में उस का शेष रह गया था उसे भी तिरुपति के ही एक अवतार ने अपने बचपन में ही गोवर्धन पूज कर नष्ट कर डाला। पूरा अवतार चरित्र फिर से उसी मूर्त प्रेम को स्थापित करने में चुक गया। वह मूर्त प्रेम आज भी इस खंड में इतना जीवन्त है कि अपने आदर्श को थोड़ी भी आंच महसूसने पर अनुयायी स्वयं को भस्म करने तक को तैयार मिलेंगे।
हे, पाठक!
सुबह कलेवा कर नगर भ्रमण को निकले तो सूत जी को सब कहीं चुनाव श्री लंकाई तमिलों के कष्टों के ताल में गोते लगाता दिखाई दिया। दोनों प्रमुख दल तमिलों के कष्ट में साथ दिखाई देने का प्रयत्न करते देखे। लेकिन यहाँ भी स्वयं कर्म के स्थान पर विपक्षी का अकर्म प्रदर्षित करने वही चिरपरिचित दृष्य दिखाई दिया जो अब तक की भारतवर्ष यात्रा में सर्वत्र दीख पड़ता था। दोनों ही दलों में सब तरह से घिस चुका वही पुराना नेतृत्व था। जिस में अब कोई आकर्षण नहीं रह गया था। कोई नया नेतृत्व जो द्रविड़ गौरव में फिर से प्राण फूँक दे, दूर दूर तक नहीं था। हर कोई पेरियार और अन्ना का स्मरण करता था। लेकिन वह ज्ञान और सपना दोनों अन्तर्ध्यान थे। सूत जी दोनों दलों के मुख्यालय घूम आए। सारी शक्ति यहाँ भी मुख्यतः निष्प्राण प्रचार में लगी थी। दोनों ही अपनी जीत के प्रति आश्वस्त और हार के प्रति शंकालु दिखे। आत्मविश्वास नाम को भी नहीं था।
हे, पाठक!
जहाँ सत्तारूढ़ दल अपनी उपलब्धियाँ गिना रहा था वहीं विपक्षी उन की कमियों को नमक मिर्च लगा कर बखान कर रहे थे। पर जनता? वह स्तब्ध थी, तय ही नहीं कर पा रही थी कि वह किसे चुने और किसे न चुने? सभी राशन की दुकान पर रुपए किलो का चावल देने का वायदा कर रहे थे। एक मतदाता कह रही थी कि चावल तो हम रुपए किलो राशन दुकान से ले आएंगे, लेकिन नमक का क्या? वही सात रुपए किलो? और एक कप चाय तीन रुपए की? क्यूँ नहीं कोई ऐसी व्यवस्था करने की कहता कि जितना दिन भर में कमाएँ उस से दो दिन का घर चला लें। कम से कम कुछ तो जीवन सुधरे। उस औरत के प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं था। नगर और औद्योगिक बस्तियों में मतदान के लिए कोई उत्साह नहीं था। मतसूची में दर्ज आधे लोग भी मतदान केन्द्र तक पहुँच जाएँ तो ठीक वरना जो मत डालेंगे वे ही आगे का भविष्य लिख देंगे।
हे, पाठक!
सूत जी, आस पास के कुछ ग्रामों में घूम-फिर अपने यात्री निवास लौटे तो बुरी तरह थक चुके थे। भोजन कर सोने को शैया पर आए तो दिन भर की यात्रा पर विचार करते रहे। ग्रामों में चुनाव के प्रति तनिक उत्साह तो था। लेकिन निराशा वहाँ भी दिखाई दी। स्थानीय समस्याओं के हल और विकास के प्रति राजनेताओं की उदासीनता की कथाएँ हर स्थान पर आम थीं। सूत जी भारतवर्ष में अब तक जहाँ जहाँ गए थे वहाँ यह एक सामान्य बात दिखाई दे रही थी कि विकास की भरपूर आकांक्षाएँ लोगों के मन में थीं। लेकिन उस के लिए मौजूदा राजनैतिक ढ़ाँचे पर विश्वास उतना ही न्यून था। विश्वास की हिलोरें भारतवर्ष को किस ओर ले जाएंगी इस का संकेत तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। सब कहीं जनता की आकांक्षाएँ एक जैसी थीं। लेकिन उन आकांक्षाओं को कहाँ दिशा और राह मिलेगी? यह कहीं नहीं दिखाई देता था। लगता था पूरा भारतवर्ष अब भी खंड खंड में बंटा हुआ था। वे सोचने लगे। इस माला का धागा इतना कमजोर है कि कहीं टूट न जाए। किस तरह वह सूत्र मिलेगा जिन से एक नया मजबूत धागा बुना जा सके, जिस में इस माला के धागे के टूटने और बिखर जाने के पहले माला के मनकों को फिर से एक साथ पिरो दे। सोचते सोचते निद्रा ने उन्हें आ घेरा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
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