हे, पाठक!
जैसे वामन ने दो चरणों में ब्रह्मांड नाप दिया था, वैसे ही चुनाव आयोग ने पाँच चरणों में भारतवर्ष नाप दिया। मतसंग्राहक यंत्रों में भारतवर्ष के आने वाले वर्षों का वर्षफल लिख दिया गया है। परिणाम की प्रतीक्षा है। लेकिन जिन्हें आस लगी है वे अविलंब शुरू हो चुके हैं। अपने बल पर कोई भी महापंचायत का मुखिया बनने लायक नहीं लग रहा है। आंकड़ेबाजी और आंकड़े बाजी शुरू हो गई है। दूरभाष खड़काए जा रहे हैं। पिछले दिनो जो लोग एक दूसरे के निन्दा रस का आनंद बरसा रहे थे, वे अब आपस में प्रेम की पींगें बढ़ा रहे हैं। एक ओर पतंगें आसमान में उड़ने की तैयारी कर रही हैं, दूसरी ओर लोग मोटे मोटे धागों में पत्थर बांध कर डालने को लंगर तैयार कर रहे हैं। किस रंग की पतंग पर लंगर डाला जाए? पतंग को हवा लगे उस से पहले ही लंगर डाल दिया जाए। कहीं कोई दूसरा न डाल ले।
हे, पाठक!
सनत और सूत जी ने संध्या विश्राम में बिताई। प्रातः उठ कर सनत सूत जी की डाक देखते देखते जोर से बोला -गुरुवर, बरेली से किसी कायचिकित्सक अमर कुमार संदेसा है....
क्या? पढ़ कर सुनाओ!
सनत पढ़ने लगा ......
हे ज्ञानश्रेष्ठ, इन क्षणभँगुर आवत जावत नट व नटनियों पर आप पर्याप्त मसि व्यय कर चुके,
अब त्राहिमाम के असफ़ल जाप से दुःखार्त जन की सुधि लेय ।
उनकी पीड़ा का यदि कोई श्रवण भर कर ले, यही उनका सँतोष है ।
पीड़ा को सह , उपजे सँतोष व निराश आशाओं पर जीवित रहने के अनोखे सुख के प्रसँग का समावेश कर, हे ज्ञानश्रेष्ठ !
संदेसा सुन सूतजी मुसकाए, बोले - वाकई अमर है। याज्ञवल्क्य का शिष्य ऐसी बात कर सकता है। अब इस ने कहा है तो बात माननी पड़ेगी। शिष्य तैयार हो जाओ आज बस्ती चलते हैं।
शिष्य ने दूरभाष खड़काया, वाहन का प्रबंध किया। प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त हो चल दिए बस्ती में।
हे, पाठक!
एक स्थान पर भीड़ लगी थी। लोग पुराने, मैले कपड़े पहने खड़े थे। वाहन रोका गया। यह इन्सानों की मंडी थी। सैंकड़ों लोग दिन भर को बिकने को तैयार थे। खरीददारों की कमी थी। इन में बेलदार, कुली थे, और औजार लिए राजगीर थे। लोग निकट आए, उन की आँखों में आस थी।
आप से मतदान किस किस ने किया। कुछ पूछते ही वापस दूर हो लिए।
एक बोला -मैं ने किया है। काम बंद था। लोग घर बुलाने आए मैं चला गया मत दे आया।
बुलाने न आते तो? सनत ने पूछा।
-तो न जाता। मत देने से हम को मिलता क्या है। साल में दस पन्द्रह दिन की मजदूरी कोई भी खा जाता है। मजदूरी दिला दे ऐसा तो कोई इंतजाम किसी पंचायत ने आज तक नहीं किया।
-ये लोग दूर क्यों चले गए? सनत ने पूछा।
-उन ने वोट नहीं डाला। उन का नाम यहाँ नहीं गाँव में है। अब मत देने कोई गाँव कैसे जाएगा?
काम कितने दिन मिलता है?
कभी मिलता है, कभी नहीं मिलता। कभी बीमारी-सीमारी से नहीं जा पाते। महीने में पन्द्रह-बीस दिन कर लेते हैं।
इस संक्षिप्त साक्षात्कार के उपरांत सनत और सूत जी आगे चल दिए। एक बस्ती में पहुँचे। बस्ती में गंदगी में खेलते बच्चे थे और झुग्गियों के बाहर बैठे कुछ बूढ़े। सनत ने एक वृद्ध से पूछा -जवान लोग नजर नहीं आ रहे। वृद्ध ने सनत को अजीब निगाहों से घूरा, फिर बोला -सब काम पर गए हैं।
-काम पर कहाँ गए हैं?
-जिन के पास काम है वे अपने अपने काम पर गए हैं। जिन के पास नहीं है वे तलाश करने गए हैं। कहीं सड़क किनारे भीड़ में दिख जाएंगे।
आप ने मत डाला?
क्यों न डालेंगे? हम हर बार मत डालते हैं। उधर उस्ताद रहता है वही हर बार नेताओं से बात करता है। जिस को कहता है डाल देते हैं। घंटा भर में डाल कर वापस आ जाते हैं। कभी दो दिन की, कभी तीन दिन की मजूरी मिलती है।
-मत पैसा लेकर डालते हैं आप?
-सब डालते हैं। उस दिन कोई काम पर नहीं जाता। काम पर सिर्फ एक दिन की मजूरी मिलती है। नेता मत के दिनों में ही आते हैं। फिर कोई इधर नहीं आता। काम होने पर हम जाते हैं तो सूरत नहीं पहचानते। उस्ताद हमारे हमेशा काम आता है।
सनत सूत जी आगे चल दिए।
हे, पाठक!
दोनों एक बहुमंजिला भवनों के पास एक पान की गुमटी पर रुके। पान वाले से बात की - इधर चुनाव का क्या हाल रहा?
-कुछ खास नहीं। आधे लोग भी मत देने नहीं गए। जो गए उन में दोनों तरफ के थे। किस ने किस को मत डाला पता नहीं पर लगता है इधर का मामला 19-20 ही रहा होगा। सब डाल आते तब भी यही रहता।
दोनों दिन भर घूमते रहे। साँझ को वापस लौटे तो नतीजा वही था। लोग अनमने थे। या तो मत देना नहीं चाहते थे, या फिर सोचते थे कि किसी को डाल दो क्या फऱक पड़ता है। उन पर तो कोई फरक पड़ना नहीं है। जीवन जैसे चल रहा है वैसे ही चलेगा।
हे, पाठक!
रात को भोजन कर विश्राम करने लगे तो सनत ने पूछा -गुरूवर, मैं ने पूछा था, जनता किस को वरेगी तो आप हँस दिए थे कहा था कुछ दिन में पता लग जाएगा। तो आप क्यों हँसे थे? और आप का आशय क्या था? आज तो बता दें।
सूत जी बोले -सनत! जनता किसी को नहीं वरती। वरे तो तब जब वरने के लिए विकल्प हों। नीली, पीली, हरी लाल सब पर्चियों में एक ही नाम लिखा है। किसी को उठा लो चुना तो वही जाएगा।
-गुरुवर बात पल्ले नहीं पड़ी।
-बहुत रात हो गई, अब सो लो। कल बात करेंगे।
सूत जी कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगे। सनत देर तक सोचता रहा कि गुरूवर क्या कहना चाहते हैं?
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
8 टिप्पणियां:
अब पूर्णाहुति का समय आ पहुंचा है !
ठीक है..कल और बात कर लेना उठ कर..फिर बात करने को कुछ बचेगा नहीं..बस, तमाशा देखने को बचेगा. :)
अब कथा के समापन बेला में हवन किससे करायेंगे गुरुश्रेस्ठ .
पंडितजी जरा ध्यान रखियेगा कथा की पुर्णाहुति के बाद विप्रभोज मय दक्षिणा कराया जाता है. हम तो उसी की आशा मे बिना नागा अनवरत कथा मे उपस्थित रहते हैं.:)
रामराम.
छोटे छोटे प्रहसनों के बहाने बडी बडी बातें कह डाली आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
'किसी को उठा लो चुना तो वही जाएगा।' सत्य वचन.
हमारी भी उत्सुकता अभी सनत की तरह विद्यमान है ।
होई है वही जो राम ………………………………………………॥
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