शनिवार, 16 मई 2009
कौन चुनता है खेतपति? कौन बनाता है सरकारें? : जनतन्तर कथा (29)
हे, पाठक!
प्रातःकाल के नित्यकर्म से निवृत्त हो कर सूत जी और सनत यात्री आवास से बाहर बहुत गर्मी थी। अभी दोपहर होने में समय था लेकिन सूरज प्रखरता पर था हवा गर्म हो चुकी थी। राजधानी में होने वाले खेतपतियों के ठेकेदारों की चहल-पहल बढ़ चली थी। माध्यम सुबह से ही उन की हलचलों की सूचनाओं के साथ अपनी अपनी आंकड़ेबाजी प्रदर्शित करने में लगे थे। उधर महापंचायत में नेतृत्व के इच्छुक आँकड़ेबाजी में व्यस्त थे। कौन सी चिड़िया फाँसी जा सकती है? सूत जी ने कहा -सनत! हम दो माह से घूम रहे हैं। आज हमारा तो मन दिन में यात्री आवास में ही विश्राम करने का है। तुम क्या कर रहे हो?
सनत बोला -मैं जरा ठिकानों की टोह ले कर आता हूँ। कैसे कैसे प्रहसन चल रहे हैं?
दोनों ने एक अच्छे स्थान पर प्रातः कलेवा किया। सूत जी को वापस यात्री आवास छोड़ सनत टोह में निकल लिया।
हे, पाठक!
सायँकाल सनत वापस लौटा, दिन भर के समाचार सुनाने लगा। ये वही समाचार थे जो सूत जी को दिन भर में माध्यमों से प्राप्त हो चुके थे। कुछ नया नहीं था। सनत ने वही प्रश्न फिर सूत जी के सामने रखा। महापंचायत पर किस का आधिपत्य होगा? जनता किसे चुनेगी? क्या कल वही परिणाम देखने को मिलेंगे जिन का अनुमान लगाया जा रहा है?
सूत जी बोले -सनत परिणाम भी एक दिवस भर में आ लेंगे। लेकिन वह महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देता हूँ पर पहले तुम्हें मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर देना होगा।
-गुरुवर पूछें। सनत बोला।
गणतंत्र बनने से ले कर आज तक अनेक चुनाव हुए हैं, सरकारें बनी हैं, बिगड़ी हैं, नयी आई हैं। तुम बताओ कि सब से अधिक लाभ इन सरकारों से या व्यवस्था से किस को हुआ है?
प्रश्न बहुत गंभीर था। सनत देर तक सोचता रहा।
हे, पाठक!
सनत सोच कर बोला -सब से अधिक लाभ तो देश के उद्योगपतियों ने उठाया है। उस से कुछ कम लाभ उन लोगों ने उठाया है जो देश भर में कृषि भूमि और नगरीय भूमि पर आधिपत्य. रखते हैं।
-बस यही मैं तुम से कहलाना चाहता था। वैसे भारत में लगी विदेशी पूँजी के बारे में तुम्हारा क्या सोचना है? सूत जी ने फिर प्रश्न किया।
सनत फिर कुछ देर सोच कर बोला -विदेशी पूँजी भी देश से बहुत लाभ कमा कर ले जाती है।
-तो सर्वाधिक लाभ कमाने वाले हुए उद्योगपति, भू-स्वामी और विदेशी पूँजी के स्वामी। यही, यही तीनों अब तक महापंचायतें चुनते आए हैं और सरकारें बनाते आए हैं। ये ऐसे लोगों को वे सारे साधन उपलब्ध कराते हैं जिस से चुनाव जीता जा सकता है। चुनाव की प्रक्रिया को इतना महँगा और जटिल बना दिया है कि इन तीनों की कृपा के बिना कोई चुनाव जीत कर खेतपति बनने की कल्पना तक नहीं कर सकता। इस लिए जो भी चुन कर खेतपति बनता है वह इन्हीं का होता है। वे इस का भी पूरा ध्यान रखते हैं कि वे उसी के बने रहें। इसलिए यह भ्रम है कि खेतपति को जनता चुनती है, खेतपति महापंचायत में एकत्र हो कर सरकार चुनते हैं और शासन जनता का है। वास्तव में ये तीनों ही मिल कर सब कुछ चुनते हैं।
सनत यह सत्य सुन कर सकते में आ गया।
हे, पाठक!
-पर जनता तो इस भ्रम में है कि सब कुछ वही चुनती है। वह तो समझती है कि यह जनतंत्र है। सनत बोला। हाँ, वह प्रारंभ में यही समझती थी। लेकिन जनता को बहुत काल तक भ्रम में नहीं रखा जा सकता। वह अब समझने लगी है। जब वह इस सत्य को बिलकुल नहीं समझती थी या उस का केवल एक छोटा भाग ही इस सत्य को समझता था, तब लगातार बैक्टीरिया दल को बहुमत मिलता रहा। लेकिन जब उस का भ्रम टूटने लगा तो उस ने बैक्टीरिया दल को कमजोर किया। बहुत उथल-पुथल के उपरांत वायरस दल सामने आया। इस दल का चेहरा भिन्न था इसलिए उस के बारे में जनता को भ्रम रहा। फिर भ्रम टूटा तो उसे भी जनता ने मजबूत नहीं होने दिया वापस कमजोर किया। विकल्पहीनता की स्थिति में बहुत से छोटे-छोटे दल अस्तित्व में आ गए हैं। इन तीनों का काम बढ़ गया है। अब उन्हें इस तरह इन छोटे-छोटे दलों को एकत्र करना है कि महापंचायत और देश के शासन पर उन का अधिकार बना रहे।
सनत चुपचाप सुन रहा था। सूत जी रुके तो बोला -गुरूवर आप ने तो आँखें खोल दीं।
सूत जी बोले बहुत रात हो गई है। कल का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। असली आँकड़ेबाजी तो कल मतसंग्रह यंत्रों से बाहर निकलनी है। तुम्हें बहुत व्यस्त रहना होगा। अब शयन करो।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
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7 टिप्पणियां:
मैं भी नित्य कर्म निवृत्त चला जनतंत्र यग्य के अंतिम हविदान को -गणना सुबह आठ बजे है !
जाने कौन सतारुढ होगा ?
यह कथा,
बहुत सही जा रही है दीनेश भाई जी
- लावण्या
आज तो समापन हो सकता है गुरुश्रेस्ठ .
मन में विचित्र से अनुमान चल रहे हैं..डर कर तीन बार बाथरुम भागा फिर लगा कि अरे, ये तो मेरे मन के ही ख्यालात हैं, अभी तो परिणाम आना बाकी है.
लो जी हमारे आते आते तो हो गया बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
अब तो सब साफ़ है जी.
रामराम.
हो सकता है..लोग समझने लगें कि किसको कितना बहुमत ज़रूरी है...अब तो साठ साल हो गए..मूर्ख बनते बनते.
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