@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: लाल फ्रॉकों को वायरस-बैक्टीरिया विहीन मंडल की आस : जनतन्तर कथा (24)

मंगलवार, 5 मई 2009

लाल फ्रॉकों को वायरस-बैक्टीरिया विहीन मंडल की आस : जनतन्तर कथा (24)


हे, पाठक!
प्रातः सनत की निद्रा टूटी तो देखा गुरूवर कक्ष में नहीं हैं।  घड़ी में सुबह के साढ़े नौ बज रहे थे।   यह विजया का असर था जो वह देर तक सोया रहा।  कई दिनों से प्रातः उठने पर भी वह थका थका सा महसूस करता था।  लेकिन आज थकान बिलकुल गायब थी।  यह सब विजयारानी का असर था।  पर गुरूवर कहाँ गए?  शायद स्नानघर में हों? पर उस का द्वार खुला था और वहाँ कोई नहीं था। वह शैया से उतरा तो देखा जलपात्र के नीचे एक पत्र लगा है। वह पढ़ने लगा......

वत्स!   
चिरजीवी हो!
तुम्हारे साथ सायंकाल और रात्रि अच्छी बीती।  लेकिन कर्म का मोह से नाता ठीक नहीं। प्रातः विमान उपलब्ध है उसी से बंग देश जा रहा हूँ।  यात्रीआवास में नगर में रहो तब तक रह सकते हो। वहाँ का भुगतान नैमिषारण्य करेगा।  दूरभाष का क्रमांक तुम्हारे पास है।  वार्तालाप करते रहना।  ..... सूत

हे, पाठक! 
उधर सूत जी लाल फ्रॉक वाली बहनों के क्षेत्र में पहुँच चुके थे।  विमानपत्तन से यात्री आवास की राह में देखा तो यहाँ वैसी ही रौनक थी, जैसी पिछले पच्चीस वर्षों से चली आ रही थी।  नयापन कुछ नहीं दिखा।  केवल यह दिखाई दिया कि बैक्टीरिया दल से नाता तोड़ चुकी बहना फिर से बैक्टीरिया दल के साथ कंधा भिड़ा रही थी।  चुनाव प्रचार में वही पुराने लटके-झटके थे।  सूत जी जानते थे कि सब परेशान हैं लेकिन लाल फ्रॉकों का यह किला नहीं टूट रहा है।  इस बार कुछ जरूर कुछ बातें ऐसी हो गई हैं कि जिन के चलते उन के किले में सेंध लगने की संभावना कही जा रही है।  लेकिन ऊपर से तो नहीं लगा कि बहुत अधिक अंतर आएगा।  यात्री आवास पहुँचते ही वहाँ का प्रबंधक उन के कक्ष में आ गया।  प्रणाम कर बोला -महाराज आप के लिए श्रेष्ठतम व्यवस्था जो हम से हो सकती थी कर दी है, फिर भी हमें महसूस हो रहा है कि कुछ कमी जरूर है।  लेकिन अब चुनाव के इस समय में हम अधिक कुछ नहीं कर पाए हैं।  आप को कुछ कमी लगे तो बताइयेगा, हम उसे दूर करने का प्रयत्न करेंगे। 

हे, पाठक!

सूत जी तुरंत समझ गए, अब प्रबंधक मस्का लगा रहा है।  बोले -भैया थकान तो कल शिष्य उतार चुके हैं, हमें मालिश की आवश्यकता नहीं है।  तुम तो यह बताओ चुनाव का माहौल कैसा है?
- कोई बड़ा अंतर तो नहीं लग रहा है पर एक उद्योग लगते-लगते चला गया उस का मलाल जरूर है, पर उस के लिए तो ममता ब्हेन को ही दोषी माना जा रहा है। 
-पर नन्दीग्राम?
-हाँ, वह बदनामी जरूर हाथ लगी है पर उस का असर वहीं रहेगा, अन्यत्र नहीं।  और वहाँ भी ताकत बराबर की लग रही है।  फिर इस बार जो छोटे दलों के साथ मोर्चा लगाया है, उस से लाल बहनें बहुत उत्साहित हैं, उन के बच्चे भी।  उन को लगता है कि पिछली बार की संख्या में कुछ वृद्धि कर लें।
- तुम भी लाल फ्राक के दल में तो नहीं?
प्रबंधक खिसियानी हँसी हँसता हुआ बोला।  -महाराज! आप तो अन्तर्यामी हैं।  सब जानते हैं।  हम इधर यात्री आवास के प्रबंधक हैं हमें अपना आवास गृह चलाना है।
सूत जी समझ गए, इस तिल से तेल नहीं निकलेगा। बोले - ठीक है, ठीक है।   किसी दिन लाल फ्रॉक को हटना पड़ेगा तो तुम्हारे जैसे लोगों का उस में सर्वाधिक योगदान होगा।  हमें स्नान, ध्यान से निवृत्त होने में दो घड़ी समय लगेगा, फिर कलेवा करेंगे और नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे।
-जो, आदेश महाराज! प्रबंधक करीब करीब पैरों तक झुक आया था, फिर पीछे मुड़ कर कक्ष के बाहर निकल गया।

हे, पाठक! 
सूत जी कलेवा कर यात्री आवास से निकले तो सीधे बड़े दल के कार्यालय पहुँचे।  दल के किसी वरिष्ठ से मिलना चाहते थे।  लेकिन सब वरिष्ठ चुनाव प्रचार में लगे थे। मुख्यालय में केवल प्रवक्ता मिला।  उस ने सूत जी का स्वागत किया।
-महाराज! बहुत दिनों में पधारे।  हम से कोई भूल हुई जो बिसर ही गए?
-नहीं वत्स! हम न किसी को बिसरते हैं और न ही किसी को स्मरण करते हैं।  जब जन को जैसी आवश्यकता होती है वैसी कथाएँ लिखते हैं, छापते हैं और सुनाते हैं।  तुम यह बताओ कि कैसा चल रहा है?
-हम अपने कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहे हैं, जैसा हमने दल के 1964 के राजनैतिक कार्यक्रम में निश्चित किया था और बाद के प्लेनमों में जैसा उसे आगे बढ़ाया है।  हम ने पहले समान विचार वालों का मोर्चा बनाया, उस की शक्ति बढ़ाई, अब नजदीकी साथियों को अपने साथ खड़ा करने की राह पर हैं।
-पर तुम्हारे ही बंधु कहते हैं कि राजनैतिक कार्यक्रम तो डब्बे में बंद कर दिया गया है।  कोई न तो जनवादी क्राँति को स्मरण करता है और न ही जनता के जनवाद को।  वे कहते हैं प्लेनम से कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ाया है, अपितु संशोधित कर दिया है और दल संशोधनवाद के रास्ते जा कर पूरी तरह संसदवादी हो गया है।  क्या अब यह समझ बन चुकी है कि संसदीय रीति से क्राँति होगी?
-महाराज! अब आप मुझे संकट में डाल रहे हैं। इतने गंभीर प्रश्नों का उत्तर मेरा जैसा साधारण प्रवक्ता कैसे दे सकेगा? इन का उत्तर देने के लिए तो पॉलित ब्यूरो की बैठक करनी होगी।  वैसे भी अभी क्राँति का विषय स्थगित है। अभी तो चुनाव के माध्यम से संसद में ही अपनी शक्ति वृद्धि करनी है।  उस के लिए भूमि तैयार है।
-लेकिन, जो दल साथ लगे हैं, उन से कैसे लाभ होगा?
 -होगा क्यों नहीं? देखिए, इन सब दलों का हमारे खंड में कुछ न कुछ प्रभाव तो है ही।  बूंद बूंद से सागर भरता है। हम खंड में आगे न भी बढ़ पाए तो भी जो प्रभाव ममता ब्हेन और बैक्टीरिया दल के अवसरवादी गठबंधन से हुआ है, वह तो नष्ट हो ही लेगा। हम वर्तमान स्थिति को तो बनाए रख सकते हैं। उधर इन स्थानीय दलों के प्रभाव से उन के राज्यों में कुछ पंच हमारे ले आएँगे।  हमें पूरा विश्वास है कि इस बार हमारी शक्ति पहले से अधिक होगी।  साथी दलों को मिला कर हमारी संख्या बैक्टीरिया और वायरस दलों से अधिक नहीं तो बराबर तो हो ही सकती है।  फिर प्वाँर जी से डेटिंग चल रही है, चुनाव उपरांत साइकिल, लालटेन और बंगला भी हमारे साथ आने को ललचाएगा।  हमें पंचायत प्रधानी का शौक है नहीं, किसी को भी प्रधानी देंगे तो बात बन सकती है। वायरस-बैक्टीरिया विहीन मंडल बनाने का अवसर तो है ही। 
- अच्छा हम चलेंगे, हमें दक्खिन भी जाना है। सूत जी उठने लगे तभी एक कार्यकर्ता रसगुल्ले और गन्ने का रस ले कर आ पहुँचा।

हे, पाठक! 
प्रवक्ता ने सूत जी को फिर से बिठा लिया।  रसगुल्ले चखने का लालच तो उन्हें भी था।  रसगुल्ले पा कर वे पुनः यात्री आवास पहुँचे।  कक्ष में ही भोजन मंगवाया और सायँ सूर्यास्त पूर्व जगाने के लिए प्रबंधक को आदेश दे विश्राम करने लगे।  रात्रि को ही दक्षिण के लिए जो निकलना था।

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

7 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

कितने ही राजनीतिक यथार्थों और निहितार्थों को समेतेहुये हैं यह जन्तन्तर कथा !

ghughutibasuti ने कहा…

आजकल समय का अभाव व नेट की नाराजगी चल रही है। ऐसे में क्या आपके लेखों के बारे में मेल से जानकारी मिल सकती है ?
घुघूती बासूती

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सटीक बैठाई आज तो.



रामराम.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

अब रोचक मोड़ आने वाला है। हम तो जल्दी से शंख बजने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बार जनतन्तर का असली मन्तर किसकी ताजपोशी कराएगा, यह जानने की उत्सुकता है।

कथा निरन्तर जारी रखी जाय। धन्यवाद।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

लाल फ्राकों की को आंचल की तरह फैला रखा है गूलर के फूल बटोरने को!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

आज की कथा तो और भी रोचक रही गुरु जी .

Abhishek Ojha ने कहा…

लाल किला टूटना इतना आसन नहीं दिखता! अब तो कुछ दिनों की ही बात है. दक्षिण के हालात की खबर लेने आते हैं अगली पोस्ट में.