मकर संक्रान्ति के दिन अवकाश था, मैं अंतर्जाल पर जीवित पकड़ा गया, एक ब्लागर साथी के हाथों। उन से चैट हुई। चैट इतनी अच्छी हुई कि बिना उन से पूछे सार्वजनिक करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। चलिए बिना भूमिका के आप पढ़िए....
मैं: नमस्ते
?????? जी! संक्रान्ति की राम राम!
??????: मकर संक्रान्ति की बहुत बहुत बधाई हो आप को भी। सर! क्या हम वर्तमान स्थिति पर कोई बात कर सकते हैं? भारत और पाकिस्तानम के बारे में? यदि आप के पास समय हो?
मैं: आप अपनी बात कहें।
??????:मैं सोचता हूँ कि ये भारत की कायरता है जो उस ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा ही जब संसद पर हमला हुआ था तब भी हुआ था। हमने जितने सबूत थे पाकिस्तान को दिए उस ने सब नकार दिए। यहाँ तक कि आतंकवादियों को सबूतों और गवाहों की कमी को दिखाते हुए रिहा तक कर दिया ( हो सकता है ये मेरी सीमित सोच हो) इस लिए आप इस बात पर रोशनी डालिए।
मैं: आप का कहना कुछ हद तक सही है। लेकिन आज हम कोई दुनिया में अकेले नहीं हैं। पूरा विश्व समुदाय है। हम अपनी जमीन पर कोई भी कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन पाकिस्तान की जमीन पर कोई भी कार्यवाही करने के पहले पूरे विश्व समुदाय में उस के लिए माहौल बनाना आवश्यक है। उस काम को हमारी सरकार बखूबी कर रही है। जल्दबाजी और क्रोध में उठाया गया कदम उल्टा भी पड़ जाता है। हाँ यदि माहौल बनने के उपरांत भी ऐसा न किया जाए तो फिर कायरता है। हमारे देश में तो माहोल है। लेकिन वैश्विक समुदाय में माहौल बनाने में कुछ समय और लग सकता है। अभी तो हमें सरकार का साथ देते हुए उसे आगे कार्यवाही करने के लिए लगातार तत्पर रखना है।
??????:जब अमेरिका किसी की परवाह नहीं करता तो हम क्यों करें?
मैं: सबूत केवल पाकिस्तान को ही नहीं दिये हैं अपितु इसीलिए वैश्विक समुदाय में दिए गए हैं ताकि कोई बाद में पंगा न करे। हम भारत की तुलना अमेरिका से नहीं कर सकते, और परवाह तो उसे भी करनी पड़ती है।
??????:अब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से लगते इलाकों से सेना हटा कर हमारी सीमा के पास लगा दी।
मैं: वह अमरीका की चिंता का विषय है। इस से उस को परेशानी होगी।
??????: वहाँ वजीरीस्तान के कबीलों के सरदारों ने भी पाकिस्तान का साथ देने की हामी भर दी है।
मैं: वह हमारे हित में ठीक है। आप को अमेरिका का अधिक साथ मिलेगा।
??????: कल तक तो अमेरीका का रिप्रेजेण्टेटिव था।
मैं: वे पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे वे वस्तुतः पाकिस्तान को तोड़ना या वहाँ अपनी हुकूमत देखना चाहते हैं।
??????: और आज खिलाफ हो रहा है हाँ जो अमेरीका का मंसूबा है हम वो क्यों नहीं कर सकते?
मैं:पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों से टूटेगा। किसी बाहरी हमले से नहीं।
??????: इंदिरा ने तो जीता जिताया लाहौर तक वापिस दे दिया। कहने का मतलब है कि हम सांस भी लेंगे तो अमेरिका से पूछ कर?
मैं: झगड़े के वक्त पड़ौसी के घर में घुस कर मार करेंगे तो बाद में वापस अपने घर आना तो पड़ेगा न।
??????: आतंकवादियों ने हमारे घर पर आक्रमण किया है, ना कि अमरीका पर?
मैं: आज जमीने युद्ध से नहीं वहाँ के रहने वालों की इच्छा के आधार पर किसी देश में बनी रह सकती हैं।
आप ने सही कहा है। आतंकवाद से निपटना तो हमें ही पड़ेगा। लेकिन दूसरे के घर जा कर मार करने के लिए बहुत तैयारी जरूरी है।
फिर हम मोहल्ले के बदमाश को पीटने के पहले उस के खिलाफ माहोल तो बनना पड़ेगा। वरना खुद ही धुन दिए जाएंगे। और मुकदमा भी आप के खिलाफ ही बनेगा।
??????: ये तो एक्सक्यूज है। अमरीका ने सद्दाम को मारने से पहले, उस के देश को तबाह करने से पहले किसी से पूछा था? लादेन के देश (अफगानिस्तान) में घुस कर उस के देश को तबाह कर दिया?
मैं: वहाँ परिस्थिति भिन्न थी सद्दाम खुद दूसरे देश में सेना ले कर घुसा था और उस देश ने अमरीका की मदद मांगी थी। आज पाकिस्तान जरा घुसने की हिमाकत कर डाले तो काम बहुत आसान हो जाए। उस के लिए देश और सेना तैयार खड़ी है, लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा।
??????: आशा करें कि वह ऐसा करे। ओ.के. सर! आप के साथ चैट कर के अच्छा लगा। मैं आप से सहमत हूँ।
मैं: हाँ तैयारी तो वैसी रखनी चाहिए। पर उस का इंतजार तो नहीं किया जा सकता। इसलिए विश्व में लगातार माहौल बनाना पड़ेगा और अभी तो संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मामले को ऐसे उठाना होगा कि कश्मीर का मामला उठे ही नहीं, और पाकिस्तान उठाने की कोशिश करे तो उस का मुहँ बंद कर दिया जाए।
धन्यवाद!
??????: बहुत धन्यवाद! ओ. के. सर!
मैं:दिवस शुभ हो!
??????:आप का भी दिवस शुभ हो मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
बुधवार, 14 जनवरी 2009
बड़ी संकरात को राम राम!
आज मकर संक्रांति है। पिछले वर्ष मैं ने मकर संक्रान्ति पर हिन्दी की बोलियों में से एक हाड़ौती बोली में आलेख लिखा था। उसे अधिक लोग नहीं पढ़ पाए थे। कुल तीन टिप्पणियाँ प्राप्त हुई थीं। लेकिन यह बोली व्यापक रूप से राजस्थान के चार जिलों कोटा, बाराँ, बून्दी और झालावाड़ में बोली जाती है। आप का इस से परिचय हो इस लिए आज फिर से इस बोली में अपना आलेख लिखा है। हो सकता है आप को यह बोझिल लगे। लेकिन पढ़िए अवश्य ही। इस से हिन्दी की एक बोली से आप का परिचय तो होगा ही। वैसे थोड़ा प्रयास करेंगे तो समझ भी सभी आएगा। विषय भी आप को रोचक लगेगा। आप पिछले वर्ष का आलेख पढना चाहें तो यहाँ चटका लगा कर पढ़ सकते हैं। उस में हाड़ौती में संक्रान्ति के पर्व से संबंधित परंपराओं का उल्लेख है। साथ वाले मानचित्र में देश और राजस्थान में हाड़ौती की स्थिति दिखाई गई है।
राम राम! सभी जणाँ के ताईं बड़ी सँकरात को राम राम!!
बहणाँ बरो न मानँ, के जणाँ के ताईं तो राम राम करी। पण जण्याँ के ताईं न करी। पण जणाँन मँ जण्याँ भी तो सामिल छे।
आज बड़ी संकरात छे। बड़ी अश्याँ, के सँकराताँ तो बारा होवे छे, जद जद भी भगवान सूरजनाराण एक रासी सूँ दूसरी मँ परबेस करे, तो उँ सूँ सँकरात खेवे। आसमान मँ बण्या याँ बारा घराँ का सात मालिक बताया। एक घर तो खुद भगवान सूरजनाराण को, एक घर चन्दरमाँ को, अर बाकी मंगळ जी, बुध म्हाराज, बरहस्पति जी, शुक्कर जी अर् शनि म्हाराज का दो-दो घर।
भगवान सूरजनाराण बरस का बारा म्हींना में हर घर मँ एक म्हीनों रेह छ। अब शनि म्हाराज व्हाँका ही बेटा छ, ज्याँ का दोन्यूँ घर लाराँ लाराँ ही पड़ छ। जी सूँ दो म्हीनाँ ताईं भगवान सूरजनाराण क ताईं बेटा क य्हाँ रेहणी पड़ छ। अब आज व्ह शनि म्हाराज का घर मँ उळगा तो दो म्हीना पाछे मार्च का म्हीनाँ में ही खड़ेगा। सूरजनाराण एक म्हींना सूँ तो गुरू म्हाराज बरहस्पति का घर म्हँ छा, अब दो म्हींना बेटा शनी का घर म्हँ रहेगा, फेर म्हींनों भर बरहस्पति का घर मं रहेगा। फेर एक म्हीनों मंगळ म्हाराज क य्हाँ, फेर एक म्हीनो शुक्कर जी क य्हाँ, फेर एक म्हीनों बुध जी क य्हाँ। ऊँ क बाद एक म्हीनों चन्दरमा जी का घर रेह र आपणा घरणे फूगगा ज्हाँ फेर एक म्हीनों रेहगा। ऊंक पाछे फेर पाछा ई बुध जी, शुक्कर जी, मंगळ जी, बरहस्पति जी ती घराँ में एक एक म्हींना म्हींना भर रेता हुया जद पाछा बेटा का घरणे पधारेगा तो अगला बरस की बड़ी संकरात आवेगी।
उश्याँ बरस को आरंभ मंगळ सूँ होणी छावे नँ, जीसूं तेरा अपरेल नँ जद भगवान सूरजनाराण मंगळ म्हाराज का घर मँ परबेस करे तो ऊँ दन बैसाखी मनावे छे। अर ऊं दन ही सूरजनाराण का बरस को आरंभ होवे छे। ऊँ क आस पास ही आपणी गुड़ी पड़वा भी आवे छे।
दो म्हीनाँ ताईं जद भगवान सूरजनाराण को मुकाम गुरू म्हाराज बरहस्पति जी क य्हाँ रह छ। तो कोई भी आडो ऊँळो काम करबा की मनाही छ। अब आपण परथीबासियाँ का तो सारा काम ही आडा ऊँळा होवे। जीसूँ ही आपण याँ दो म्हीनां क ताईं मळ का म्हीना ख्हाँ छाँ। अर य्हाँ में भगवद् भजन, कथा भागवत अर दान पुण्य का कामाँ क अलावा दूसरा काम न्हँ कराँ। आज ऊ एक म्हींनो पूरो होयो। आज सूँ फेर सारा काम सुरू होता। हर बरस सुरू हो ही जावे छे। पण ईं बरस आज क दन ही बरहस्पति जी खुद भी घरणे फ्हली सूँ ई बिराज रिया छे। अब दोन्यूँ को मिलण अर साथ 10 फरवरी ताँईं रहगो जीसूँ व्हाँ ताईं आडा ऊँळा काम, जासूँ आपण मंगळ काम ख्हाँ छाँ न होवेगा, जश्याँ सादी-ब्याऊ, मुंडन आदी।
बड़ी संकरात पे अतनो ही खेबो छ!
आप को परेमी,
ऊई, दिनेसराई दुबेदी
सोमवार, 12 जनवरी 2009
दुनिया भर की लड़कियों के नाम, ‘यक़ीन’साहब की एक ग़ज़ल,
दुनिया भर की लड़कियों के नाम
'यक़ीन' साहब की एक 'ग़ज़ल'
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
सोज़े-पिन्हाँ को बना ले साज़ लड़की!
बोल ! कुछ तो बोल बेआवाज़ लड़की!
लब सिले हैं और आँखें चीख़ती हैं
कैसी चुप्पी है ये कैसा राज़ लड़की!
क्यूँ बया बन कर रही, बुलबुल बनी तू
काश अपने को बना ले बाज़ लड़की!
फ़ित्रतन ज़ालिम है ये मक्कार दुनिया
क्यूँ है तू मासूम मिस्ले-क़ाज़ लड़की!
इक कबूतर-सी फ़क़त पलकें न झपका
लोग दुनिया के हैं तीरन्दाज़ लड़की!
तू कोई अबला नहीं, पहचान ख़ुद को
और बदल तेवर तेरा अन्दाज़ लड़की!
गूँज कोयल की कुहुक-सी वादियों में
बन्द कर ये सिसकियों का साज़ लड़की!
सोच इस दुनिया को तुझ से बैर क्यूँ है
क्यूँ है इक मोनालिसा पर नाज़ लड़की!
क़त्ल क्यूँ होती है तेरी कोख में तू
क्या हुआ जननी का वो ऐज़ाज़ लड़की!
तू तो माँ है, क्यूँ तुझे समझा खिलौना
पूछ इन मर्दों से ओ ग़मबाज़ लड़की!
तू नहीं दुनिया से, इस दुनिया से मत डर
तुझ से है ये दुनिया-ए-नासाज़ लड़की!
अब स्वयं नेज़ा उठा, लिख भाग्य अपना
कर नए अध्याय का आग़ाज़ लड़की!
कौन तन्हा जीत पाया जंग कोई
मिल के हल्ला बोल यक्काताज़ लड़की!
तेरे स्वागत को है ये आकाश आतुर
खोल कर पर तू भी भर परवाज़ लड़की!
अपने आशिक़ पर नहीं लाज़िम तग़ाफ़ुल
बेसबब मुझ से न हो नाराज़ लड़की!
अपनी कू़व्वत का नहीं अहसास तुझ को
कर ‘यक़ीन’ इस बात पर जाँबाज़ लड़की!
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अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का निश्चित मार्ग है
आज स्वामी जी की जयन्ती है। उन जैसे मार्गदर्शक महापुरुष दुनिया में कम ही हुए हैं। उपनिषदों के दर्शन को जिस विस्तार से शंकराचार्य जी ने व्याख्यायित किया था। उसे और अधिक सरलीकृत और आधुनिक विज्ञान के आलोक में पुनर्व्याख्यायित करने का महान काम स्वामी विवेकानंद ने किया। उन्हों ने विभिन्न दिशाओं की ओर बढ़े जा रहे षडदर्शनों को इस तरह व्याख्यायित किया कि वे एक ही दर्शन के विभिन्न फलक दिखाई देने लगे।
स्वामी जी ने अद्वैत वेदांत के दर्शन को जिस सरल तरीके से दुनिया को समझाया वह अद्भुत ही है। यहाँ तक कि उन्होने भौतिक विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के बीच की बहुत महीन रेखा को भी ध्वस्त कर दिया। मुझे तो उन्हें पढ़ने और समझने के दौरान यह भी समझ आया कि नास्तिकता और आस्तिकता भी कृत्रिम भेद हैं। स्वामी जी तो यहाँ तक भी कह गए कि न कोई चिरंतन स्वर्ग है और न ही चिरंतन नर्क।
मुझे जब ग्यारहवीं कक्षा के इम्तहान में हिन्दी का पर्चा मिला तो उस का पहला प्रश्न गद्यांश था। जिस में कहा गया था कि, 'औरों को देख कर अपने मार्ग का निश्चय न करो, अपने लिए रास्ते का निर्माण खुद करो। स्वामी जी एक स्थान पर कहते हैं...
आज हम जिस तरह अपने आदर्श को ही सब के लिए सर्वोपरि मानने पर चल पड़े हैं उस ने मानव जीवन में अनेक संघर्षों को जन्म दे दिया है। मेरा इशारा ठीक ही धर्म और संप्रदायों के व्यवहार की ओर है। जब कि यहाँ स्वामी जी की आदर्श से तात्पर्य धर्म से ही है। जो अनिवार्यतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होगा, उस के मन,योग्यता और शक्ति के अनुरूप।
स्वामी जी ने अद्वैत वेदांत के दर्शन को जिस सरल तरीके से दुनिया को समझाया वह अद्भुत ही है। यहाँ तक कि उन्होने भौतिक विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के बीच की बहुत महीन रेखा को भी ध्वस्त कर दिया। मुझे तो उन्हें पढ़ने और समझने के दौरान यह भी समझ आया कि नास्तिकता और आस्तिकता भी कृत्रिम भेद हैं। स्वामी जी तो यहाँ तक भी कह गए कि न कोई चिरंतन स्वर्ग है और न ही चिरंतन नर्क।
मुझे जब ग्यारहवीं कक्षा के इम्तहान में हिन्दी का पर्चा मिला तो उस का पहला प्रश्न गद्यांश था। जिस में कहा गया था कि, 'औरों को देख कर अपने मार्ग का निश्चय न करो, अपने लिए रास्ते का निर्माण खुद करो। स्वामी जी एक स्थान पर कहते हैं...
प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपना आदर्श ले कर उसे अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करे। बजाय इस के कि वह दूसरों के आदर्शों को ले कर चरित्र गढ़ने की चेष्ठा करे, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है। संभव है, दूसरे का आदर्श वह अपने जीवन में ढालने में कभी समर्थ न हो। यदि हम किसी नन्हें बालक को एक दम बीस मील चलने को कह दें, तो वह या तो मर जाएगा या हजार में से एक रेंगता रांगता वहाँ तक पहुँचा तो भी वह अधमरा हो जाएगा। बस हम भी संसार के साथ ऐसा ही करने का प्रयत्न करते हैं। किसी समाज के सब स्त्री-पुरुष न एक मन के होते हैं, न एक योग्यता के और न एक ही शक्ति के। अतऐव उनमें से प्रत्येक का आदर्श भी भिन्न भिन्न होना चाहिए; और इन आदर्शों में से एक का भी उपहास करने का हमें कोई अधिकार नहीं। अपने आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक को जितना हो सके यत्न करने दो। फिर यह भी ठीक नहीं कि मैं तु्म्हारे अथवा तुम मेरे आदर्श द्वारा जाँचे जाओ। आम की तुलना इमली से नहीं होनी चाहिए और न इमली की आम से। आम की तुलना के लिए आम ही लेना होगा, और इमली के लिए इमली। इसी प्रकार हमें अन्य सब के संबंध में भी समझना चाहिए।
बहुत्व में एकत्व ही सृष्टि का नियम है। प्रत्येक स्त्री-पुरुष में व्यक्तिगत रूप से कितना ही भेद क्यों न हो, उन सब के पीछे वह एकत्व ही विद्यमान है। स्त्री-पुरुषों के भिन्न चरित्र एवं उन की अलग-अलग श्रेणियाँ सृष्टि की स्वाभाविक विभिन्नता मात्र हैं। अतएव एक ही आदर्श द्वारा सब की जाँच करना अथवा सब के सामने एक ही आदर्श रखना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। ऐसा करने से केवल एक अस्वाभाविक संघर्ष उत्पन्न हो जाता है और फल यह होता है कि मनुष्य स्वयं से ही घृणा करने लगता है तथा धार्मिक एवं उच्च बनने से रुक जाता है। हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम प्रत्येक को उस के अपने उच्चतम आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें, तथा उस आदर्श को सत्य के जितना निकटवर्ती हो सके लाने का यत्न करें।
आज हम जिस तरह अपने आदर्श को ही सब के लिए सर्वोपरि मानने पर चल पड़े हैं उस ने मानव जीवन में अनेक संघर्षों को जन्म दे दिया है। मेरा इशारा ठीक ही धर्म और संप्रदायों के व्यवहार की ओर है। जब कि यहाँ स्वामी जी की आदर्श से तात्पर्य धर्म से ही है। जो अनिवार्यतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होगा, उस के मन,योग्यता और शक्ति के अनुरूप।
शनिवार, 10 जनवरी 2009
अजित वडनेरकर का जन्म दिन और पुरुषोत्तम 'यकीन' की नए साल की बधाई
उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ!
जरा आप भी दीजिएगा!
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इस मौके पर किसी काव्य रचना की तलाश करते करते पुरुषोत्तम यकीन की गज़ल़ पर नज़र पड़ी। नए साल के आगमन पर रची गई इस ग़ज़ल का आनंद लीजिए .....
'ग़ज़ल'
!!! मुबारक हो तुम को नया साल यारो !!!
पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
मुबारक हो तुम को नया साल यारो
यहाँ तो बड़ा है बुरा हाल यारो
मुहब्बत पे बरसे मुसीबत के शोले
ज़मीने-जिगर पर है भूचाल यारो
अमीरी में खेले है हर बदमुआशी
है महनतकशी हर सू पामाल यारो
बुरे लोग सारे नज़र शाद आऐं
भले आदमी का है बदहाल यारो
बहुत साल गुज़रे यही कहते-कहते
मुबारक-मुबारक नया साल यारो
फ़रेबों का हड़कम्प है इस जहाँ में
‘यक़ीन’ इस लिए बस हैं पामाल यारो
पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
मुबारक हो तुम को नया साल यारो
यहाँ तो बड़ा है बुरा हाल यारो
मुहब्बत पे बरसे मुसीबत के शोले
ज़मीने-जिगर पर है भूचाल यारो
अमीरी में खेले है हर बदमुआशी
है महनतकशी हर सू पामाल यारो
बुरे लोग सारे नज़र शाद आऐं
भले आदमी का है बदहाल यारो
बहुत साल गुज़रे यही कहते-कहते
मुबारक-मुबारक नया साल यारो
फ़रेबों का हड़कम्प है इस जहाँ में
‘यक़ीन’ इस लिए बस हैं पामाल यारो
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शुक्रवार, 9 जनवरी 2009
विराम चिन्ह कैसे टंकित करें? विष्णु बैरागी जी का अनुभव
विराम चिन्हों को कैसे टंकित किया जाए? इस विषय पर पहले ही दो आलेख आ चुके हैं। मेरे विचार में उतना लिखा जाना पर्याप्त था। जिस तरीके से टंकित किए जाने की बात उन दो आलेखों, अर्धविराम (;), अल्पविराम (,), प्रश्नवाचक चिन्ह(?) और संबोधन चिन्ह (!) कैसे लगाएँ? और विराम चिन्हों पर फिर से एक विचार
में कही गई थी, उसे लगभग सभी पाठकों की सहमति भी मिली थी। बात इतनी सी थी कि लगी आदत छूटती नहीं।
लेकिन बैरागी जी का ई-पत्र मिला और उसे सार्वजनिक करने का आग्रह भी। मेरे विचार में जिस तरह उन्हों ने अपने विचार प्रकट किए हैं वे अनेक लोगों को पुरानी आदत छुड़ाने में मदद कर सकते हैं। ई-पत्र इस प्रकार है...
में कही गई थी, उसे लगभग सभी पाठकों की सहमति भी मिली थी। बात इतनी सी थी कि लगी आदत छूटती नहीं।
लेकिन बैरागी जी का ई-पत्र मिला और उसे सार्वजनिक करने का आग्रह भी। मेरे विचार में जिस तरह उन्हों ने अपने विचार प्रकट किए हैं वे अनेक लोगों को पुरानी आदत छुड़ाने में मदद कर सकते हैं। ई-पत्र इस प्रकार है...
दिनेशजी,मुझे इस से आगे एक भी शब्द कहने की जरूरत नहीं।नमस्कार,पूर्णविराम से पहले रिक्ति न रखने का आपका सुझाव पूर्णत: उपयोगी रहा। वैयाकरणिकता और व्यावहारिकता का सुन्दर समन्वय है आपका परामर्श।आपके इस परामर्श के बाद आज पहली पोस्ट लिखी/प्रस्तुत की (आपके परामर्श पर अमल करते हुए) और देखा कि यह मेरी ऐसी पहली पोस्ट रही जिसमें पूर्ण विराम, अगली पंक्ति में पृथक शब्द के रूप में नहीं गया। इससे पोस्ट की सुन्दरता और प्रभाव में तो वृध्दि हुई ही, पूर्ण विराम से किसी पंक्ति के प्रारम्भ होने से जो व्याकुलता उपजती थी, उससे भी मुक्ति मिली।मेरी इस टिप्पणी को आप सार्वजनिक कर सकते हैं (अपितु अवश्य कीजिएगा)। सम्भवत:, अन्य मित्रों को भी यह उपाय उपयोगी अनुभव हो।हां, पुरानी आदत, इस पर अमल करने में बाधक बन रही है। नई आदत डालने में समय भी लगेगा और अतिरिक्त श्रम भी। किन्तु जो मिला है, उसके लिए यह बहुत ही कम कीमत है।आपने प्रस्तुति का भोंडापन दूर करने में सहायता की। यह उपकार से कम नहीं है।विनम्र,--
बुधवार, 7 जनवरी 2009
ढाई दिन का किस्सा, नकारात्मक ऊर्जा का शिकार कंप्यूटर अस्पताल में
रविवार, 4 जनवरी 2009,
अनवरत और तीसरा खंबा दोनों पर एक एक आलेख लिखने का मन था। शाम को जैसे ही लिखने बैठा। कंप्यूटर जी ने हथियार पटक दिए, -हम बहुत बीमार हैं, पहले हमारा इलाज कराइए। बात उस की सही थी। बेचारे की एक सिस्टम फाइल कब से नष्ट हो चुकी थी। उस का इलाज हम कर भी चुके होते। लेकिन जैसे ही हम ने सीडी कम्प्यूटर जी के लिपिक को थमाई, पता लगा सीडी को घुमा कर देख ही नहीं रहे हैं। अब तो अस्पताल ही चारा है। आम हिन्दुस्तानी आदत कि कल चलेंगे अस्पताल, पूरा महीना निकल गया। कम्प्यूटर जी जैसे तैसे काम करते रहे। हम आप मिलते रहे।
रविवार शाम को कम्प्यूटर जी के सिस्टम की कुछ फाइलें और गायब हो गई। माई कम्प्यूटर के दरवाजे पर ताला लटक गया। कम्यूटर जी बोलते तो सही, पर हर बार एक ही शब्द हेंग, हेंग, हेंग ............
हम समझ गए, कम्प्यूटर हमारी नकारात्मक ऊर्जा का शिकार हो चुका है। हमने कहा तुम आराम करो, आज अस्पताल की छुट्टी है। कल खुलेगा तो ले चलेंगे।
सोमवार, 5 जनवरी 2009,
सुबह कम्प्यूटर जी को अस्पताल पहुँचा कर अदालत गए। अपने सिस्टम की सीडी घर ही रह गई। अदालत से घर पहुँचे तो, सीडी अस्पताल पहुँचाई। रात को आठ बजे कंप्यूटर जी घर पहुँचे। हमने उन की जाँच परख की तो वे अस्पताल से आ कर नए नए लग रहे थे।
सब से पहले वाइरस रक्षक देखा, कहीं नहीं दिखा। हमने कहा ये वाइरस रक्षक पहनो। उस ने पहना और थोड़ी देर बाद फिर से कहने लगा, हेंग, हेंग, हेंग ............
ध्यान से देखा तो वाइरस रक्षक का एक दूसरे वाइरस रक्षक से युद्ध चल रहा था। कोई नया रक्षक था, था भी दमदार। हमने स्क्रीन पर उन का लोगो तो देखा था और नाम भी। मगर समझे थे कि कोई नया गाने बजाने वाला है। पर वह तो ब्लेक कमांडो निकला। कंप्यूटर फिर हेंग हो कर उन की लड़ाई का आनंद ले रहा था। हमारी क्या सुनता।
हमने सोचा एक रक्षक को निकाल दो। हमने एक रक्षक को निकाल कर बाहर किया तो कम्प्यूटर जी ने सुनना चालू किया। हमने ब्रॉड बैंड चालू किया। मेल पढ़ ही रहे थे कि कम्प्यूटर जी की बत्ती गुल!
अब कोई चारा नहीं, सिवा इस के कि उन्हें फिर से अस्पताल पहुँचाया जाए।
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
कम्प्यूटर जी को फिर से अस्पताल पहुँचाया। फिर से उन का इलाज हुआ। शाम घर आए तो हमारे मुवक्किल हाजिर। देर रात ही कम्प्यूटर जी से बात हो सकी। पहले ढ़ाई दिनों की खबर ली। बैरागी जी पूछ रहे थे, वकील साहब कहाँ हैं? उन का फोन नम्बर भी था, सो उन से बतियाए। कम्प्यूटर जी को सही पाया तो उन की दुकान सजाने का काम करते रहे। जब दुकान कुछ कुछ सज कर तैयार हुई तो सोने का समय हो गया।
बुधवार,7 जनवरी 2009
अब सुबह उठ कर पहले ढ़ाई दिनों की भाई लोगों की कारगुजारियाँ देखीं। एक सज्जन के लिए सलाह लिख तीसरा खंबा को मोर्चे पर रवाना किया। ढाई दिन का ये किस्सा आप को बता दिया है। अदालत जाने का समय हो रहा है और अभी नहाए नहीं हैं। उस के बिना अपनी पंडिताइन सुबह का नाश्ता देती नहीं। वह भी नहीं मिला सुबह से अब तक दो कॉफी मिली है, उसी से काम चल रहा है। पंडिताइन इस से ज्यादा सैंक्शन करने वाली नहीं है। अब उठने के सिवा कोई चारा नहीं है। कम्प्यूटर भी कह रहा है, बस एक दो औजार लटका कर शुरु कर दिया घिसना। मेरे बाकी औजार तो लौटाओ। उसे कह दिया है, आज मुहर्रम मनाओ, कल मुहर्रम की छुट्टी है। आज क़तल की रात अपनी है, उसी में तुम्हारे औज़ार लौटाएँगे।
शाम को मिलते हैं, टिपियाते हुए।
जय! कंप्यूटर जी की !
अनवरत और तीसरा खंबा दोनों पर एक एक आलेख लिखने का मन था। शाम को जैसे ही लिखने बैठा। कंप्यूटर जी ने हथियार पटक दिए, -हम बहुत बीमार हैं, पहले हमारा इलाज कराइए। बात उस की सही थी। बेचारे की एक सिस्टम फाइल कब से नष्ट हो चुकी थी। उस का इलाज हम कर भी चुके होते। लेकिन जैसे ही हम ने सीडी कम्प्यूटर जी के लिपिक को थमाई, पता लगा सीडी को घुमा कर देख ही नहीं रहे हैं। अब तो अस्पताल ही चारा है। आम हिन्दुस्तानी आदत कि कल चलेंगे अस्पताल, पूरा महीना निकल गया। कम्प्यूटर जी जैसे तैसे काम करते रहे। हम आप मिलते रहे।
रविवार शाम को कम्प्यूटर जी के सिस्टम की कुछ फाइलें और गायब हो गई। माई कम्प्यूटर के दरवाजे पर ताला लटक गया। कम्यूटर जी बोलते तो सही, पर हर बार एक ही शब्द हेंग, हेंग, हेंग ............
हम समझ गए, कम्प्यूटर हमारी नकारात्मक ऊर्जा का शिकार हो चुका है। हमने कहा तुम आराम करो, आज अस्पताल की छुट्टी है। कल खुलेगा तो ले चलेंगे।
सोमवार, 5 जनवरी 2009,
सुबह कम्प्यूटर जी को अस्पताल पहुँचा कर अदालत गए। अपने सिस्टम की सीडी घर ही रह गई। अदालत से घर पहुँचे तो, सीडी अस्पताल पहुँचाई। रात को आठ बजे कंप्यूटर जी घर पहुँचे। हमने उन की जाँच परख की तो वे अस्पताल से आ कर नए नए लग रहे थे।
सब से पहले वाइरस रक्षक देखा, कहीं नहीं दिखा। हमने कहा ये वाइरस रक्षक पहनो। उस ने पहना और थोड़ी देर बाद फिर से कहने लगा, हेंग, हेंग, हेंग ............
ध्यान से देखा तो वाइरस रक्षक का एक दूसरे वाइरस रक्षक से युद्ध चल रहा था। कोई नया रक्षक था, था भी दमदार। हमने स्क्रीन पर उन का लोगो तो देखा था और नाम भी। मगर समझे थे कि कोई नया गाने बजाने वाला है। पर वह तो ब्लेक कमांडो निकला। कंप्यूटर फिर हेंग हो कर उन की लड़ाई का आनंद ले रहा था। हमारी क्या सुनता।
हमने सोचा एक रक्षक को निकाल दो। हमने एक रक्षक को निकाल कर बाहर किया तो कम्प्यूटर जी ने सुनना चालू किया। हमने ब्रॉड बैंड चालू किया। मेल पढ़ ही रहे थे कि कम्प्यूटर जी की बत्ती गुल!
अब कोई चारा नहीं, सिवा इस के कि उन्हें फिर से अस्पताल पहुँचाया जाए।
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
कम्प्यूटर जी को फिर से अस्पताल पहुँचाया। फिर से उन का इलाज हुआ। शाम घर आए तो हमारे मुवक्किल हाजिर। देर रात ही कम्प्यूटर जी से बात हो सकी। पहले ढ़ाई दिनों की खबर ली। बैरागी जी पूछ रहे थे, वकील साहब कहाँ हैं? उन का फोन नम्बर भी था, सो उन से बतियाए। कम्प्यूटर जी को सही पाया तो उन की दुकान सजाने का काम करते रहे। जब दुकान कुछ कुछ सज कर तैयार हुई तो सोने का समय हो गया।
बुधवार,7 जनवरी 2009
अब सुबह उठ कर पहले ढ़ाई दिनों की भाई लोगों की कारगुजारियाँ देखीं। एक सज्जन के लिए सलाह लिख तीसरा खंबा को मोर्चे पर रवाना किया। ढाई दिन का ये किस्सा आप को बता दिया है। अदालत जाने का समय हो रहा है और अभी नहाए नहीं हैं। उस के बिना अपनी पंडिताइन सुबह का नाश्ता देती नहीं। वह भी नहीं मिला सुबह से अब तक दो कॉफी मिली है, उसी से काम चल रहा है। पंडिताइन इस से ज्यादा सैंक्शन करने वाली नहीं है। अब उठने के सिवा कोई चारा नहीं है। कम्प्यूटर भी कह रहा है, बस एक दो औजार लटका कर शुरु कर दिया घिसना। मेरे बाकी औजार तो लौटाओ। उसे कह दिया है, आज मुहर्रम मनाओ, कल मुहर्रम की छुट्टी है। आज क़तल की रात अपनी है, उसी में तुम्हारे औज़ार लौटाएँगे।
शाम को मिलते हैं, टिपियाते हुए।
जय! कंप्यूटर जी की !
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