रविवार, 4 जनवरी 2009,
अनवरत और
तीसरा खंबा दोनों पर एक एक आलेख लिखने का मन था। शाम को जैसे ही लिखने बैठा। कंप्यूटर जी ने हथियार पटक दिए, -हम बहुत बीमार हैं, पहले हमारा इलाज कराइए। बात उस की सही थी। बेचारे की एक सिस्टम फाइल कब से नष्ट हो चुकी थी। उस का इलाज हम कर भी चुके होते। लेकिन जैसे ही हम ने सीडी कम्प्यूटर जी के लिपिक को थमाई, पता लगा सीडी को घुमा कर देख ही नहीं रहे हैं। अब तो अस्पताल ही चारा है। आम हिन्दुस्तानी आदत कि कल चलेंगे अस्पताल, पूरा महीना निकल गया। कम्प्यूटर जी जैसे तैसे काम करते रहे। हम आप मिलते रहे।
रविवार शाम को कम्प्यूटर जी के सिस्टम की कुछ फाइलें और गायब हो गई। माई कम्प्यूटर के दरवाजे पर ताला लटक गया। कम्यूटर जी बोलते तो सही, पर हर बार एक ही शब्द हेंग, हेंग, हेंग ............
हम समझ गए, कम्प्यूटर हमारी
नकारात्मक ऊर्जा का शिकार हो चुका है। हमने कहा तुम आराम करो, आज अस्पताल की छुट्टी है। कल खुलेगा तो ले चलेंगे।
सोमवार, 5 जनवरी 2009,
सुबह कम्प्यूटर जी को अस्पताल पहुँचा कर अदालत गए। अपने सिस्टम की सीडी घर ही रह गई। अदालत से घर पहुँचे तो, सीडी अस्पताल पहुँचाई। रात को आठ बजे कंप्यूटर जी घर पहुँचे। हमने उन की जाँच परख की तो वे अस्पताल से आ कर नए नए लग रहे थे।
सब से पहले वाइरस रक्षक देखा, कहीं नहीं दिखा। हमने कहा ये वाइरस रक्षक पहनो। उस ने पहना और थोड़ी देर बाद फिर से कहने लगा, हेंग, हेंग, हेंग ............
ध्यान से देखा तो वाइरस रक्षक का एक दूसरे वाइरस रक्षक से युद्ध चल रहा था। कोई नया रक्षक था, था भी दमदार। हमने स्क्रीन पर उन का लोगो तो देखा था और नाम भी। मगर समझे थे कि कोई नया गाने बजाने वाला है। पर वह तो ब्लेक कमांडो निकला। कंप्यूटर फिर हेंग हो कर उन की लड़ाई का आनंद ले रहा था। हमारी क्या सुनता।
हमने सोचा एक रक्षक को निकाल दो। हमने एक रक्षक को निकाल कर बाहर किया तो कम्प्यूटर जी ने सुनना चालू किया। हमने ब्रॉड बैंड चालू किया। मेल पढ़ ही रहे थे कि कम्प्यूटर जी की बत्ती गुल!
अब कोई चारा नहीं, सिवा इस के कि उन्हें फिर से अस्पताल पहुँचाया जाए।
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
कम्प्यूटर जी को फिर से अस्पताल पहुँचाया। फिर से उन का इलाज हुआ। शाम घर आए तो हमारे मुवक्किल हाजिर। देर रात ही कम्प्यूटर जी से बात हो सकी। पहले ढ़ाई दिनों की खबर ली। बैरागी जी पूछ रहे थे, वकील साहब कहाँ हैं? उन का फोन नम्बर भी था, सो उन से बतियाए। कम्प्यूटर जी को सही पाया तो उन की दुकान सजाने का काम करते रहे। जब दुकान कुछ कुछ सज कर तैयार हुई तो सोने का समय हो गया।
बुधवार,7 जनवरी 2009
अब सुबह उठ कर पहले ढ़ाई दिनों की भाई लोगों की कारगुजारियाँ देखीं। एक सज्जन के लिए सलाह लिख
तीसरा खंबा को मोर्चे पर रवाना किया। ढाई दिन का ये किस्सा आप को बता दिया है। अदालत जाने का समय हो रहा है और अभी नहाए नहीं हैं। उस के बिना अपनी पंडिताइन सुबह का नाश्ता देती नहीं। वह भी नहीं मिला सुबह से अब तक दो कॉफी मिली है, उसी से काम चल रहा है। पंडिताइन इस से ज्यादा सैंक्शन करने वाली नहीं है। अब उठने के सिवा कोई चारा नहीं है। कम्प्यूटर भी कह रहा है, बस एक दो औजार लटका कर शुरु कर दिया घिसना। मेरे बाकी औजार तो लौटाओ। उसे कह दिया है, आज मुहर्रम मनाओ, कल मुहर्रम की छुट्टी है। आज क़तल की रात अपनी है, उसी में तुम्हारे औज़ार लौटाएँगे।
शाम को मिलते हैं, टिपियाते हुए।
जय! कंप्यूटर जी की !