सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
अपना घर खुद साफ करें; मोहल्ले की स्वच्छता मिल बैठ तय करें
सोमवार, 28 सितंबर 2009
कल को खु़र्शीद भी निकलेगा, सहर भी होगी
- पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
शनिवार, 29 अगस्त 2009
पाठक की संवेदना चोटिल होने पर लेखक-प्रकाशक जिम्मेदार नहीं होंगे; पाठक अपनी रिस्क पर पढ़ें
बुधवार, 22 जुलाई 2009
हम भी देखेंगे एनडीटीवी
*बाटी सेक्या! = [यह हमारे हाड़ौती की एक गाली है, जो उन लोगों को इंगित करती है जो किसी के मृत्यु की कामना करते हुए उस के तीसरे (अस्थिचयन) के दिन बाटी सेक कर खाने की कामना करते रहते हैं]
बुधवार, 17 जून 2009
कहाँ से आते हैं? विचार!
अर्थात् - कपिल कहते हैं कि अचेतन आदि-पदार्थ (प्रधान) ही स्वतंत्र रूप में जगत का कारण है।
कल ने बुलाया है!
खामोशियों की छतें
आबनूसी किवाड़े घरों पर
आदमी आदमी में दीवार है
तुम्हें छैनियां लेकर बुलाया है
सीटियों से सांस भर कर भागते
बाजार, मीलों,
दफ्तरों को रात के मुर्दे,
देखती ठंडी पुतलियां
आदमी अजनबी आदमी के लिए
तुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है!
बल्ब की रोशनी रोड में बंद है
सिर्फ परछाई उतरती है बड़े फुटपाथ पर
जिन्दगी की जिल्द के
ऐसे सफे तो पढ़ लिये
तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है!
मैंने नहीं
कल ने बुलाया है!
- हरीश भादानी
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
ब्लागिरी में जरूरी व्यवधान
मेरी ससुराल जयपुर जबलपुर राजमार्ग क्रमांक 12 पर राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित अकलेरा कस्बे में है, यह मध्य प्रदेश सीमा से पहले अंतिम कस्बा है। अब तक तो वहाँ पूछने पर पता लगता था कि वहाँ भी इंटरनेट का प्रयोग आरंभ हो चुका है। लेकिन जब तलाशने की बारी आती थी तो पता लगता था कि कुछ व्यवसायी केवल रिजल्ट आदि देखने के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हुए धनोपार्जन करते हैं। इस बार वहाँ एक साइबर कैफे खुला मिला। इस में चार कम्प्यूटर लगे थे, उनमें से भी एक दो हमेशा और कभी-कभी सभी खाली मिल जाते थे। पूछने पर पता लगा कि अभी छह माह पहले ही आरंभ किया है। वह नैट उपयोग के लिए 20 रुपए प्रतिघंटा शुल्क लेता था। मुझे यह महंगा लगा, मैं ने मालिक को कहा भी। तो उस ने बताया कि अभी तो हम खर्चा भी बमुश्किल निकाल पा रहे हैं। धीरे धीरे लोग इस का उपयोग करने लगें तो सस्ता कर देंगे।
मैं ने वहीं मेल खोल कर देखी। कुछ पोस्टें पढ़ीं। टिप्पणी करना चाहा तो इन्स्क्रिप्ट हिन्दी टाइप करने की सुविधा नहीं थी। रोमन से हिन्दी टाइप करने में मुझे अब परेशानी आने लगी है और समय बहुत लगता है। इस लिए कोशिश की गई कि कम से कम एक कंप्यूटर पर हिन्दी टाइपिंग की व्यवस्था बना ली जाए। संचालक की मदद से वह काम हमने कर लिया। लेकिन विवाह ससुराल का था और मेरे अनेक स्नेही संबंधी वहाँ मौजूद थे। मैं ने नैट का उपयोग करने के स्थान पर अपना दो दिनों का समय उन के सानिध्य में ही बिताने का प्रयत्न किया। यह सुखद भी रहा। इस के कारण मैं अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में रह सका और उन की वर्तमान की समझ को जान सका।
वैसे मैं 18 फरवरी की रात्रि को कोटा पहुँच गया था। इसी दिन मुझे एक मित्र के बेटे के विवाह के समारोह में शामिल होना पड़ा। कल 19 फरवरी को मेरी फुफेरी और भिलाई में पोस्टेड अवनींद्र की बहिन के बेटे के समारोह में भाग लेना था। लेकिन व्यवसायिक कामों से शाम को फुरसत मिली भी तो टेलीफोन ने रात दस बजे तक व्यस्त रखा और विवाह में रात साढ़े दस बजे ही पहुँच सका। तसल्ली यह रही कि तब तक बरात पहुँची ही थी और मैं अधिक देरी से नहीं था।
आज दिन में अदालती कामों को करने के बाद ही आज लिखने बैठ पाया हूँ। सोचा तो था कि भिलाई से आगे का यात्रा विवरण जो बीच में अधूरा छूट रहा उसे ही पूरा किया जाए लेकिन कल का ही दिन बीच में हैं। फिर से रवि-सोम दो दिन बाहर रहना पड़ेगा। उस में फिर से व्यवधान आए इस से अच्छा है उसे अभीस्थगित ही रखा जाए। आज के लिए इतना ही बहुत। कल मिलते हैं एक नए आलेख के साथ।
शनिवार, 19 जुलाई 2008
नीन्द की साँकळ उतारो, किरन देहरी पर खड़ी है।
पिछले आलेख पर अब तक जो टिप्पणियां मिलीं हैं, उन से एक बात पर सहमति दिखाई दी, कि अभी हिन्दी ब्लागिरी का शैशवकाल ही है। अनेक को तो पता भी नहीं कि हिन्दी ने भी एक ब्लागीर बालक को जन्म दे दिया है। लेकिन यह संकेत भी इन टिप्पणियों से मिला कि इस बालक ने अपने शैशवकाल में ही जितनी ख्याति अर्जित की है उस से उस के लच्छन पालने में ही दिखाई पड़ने लगे हैं। हमारे ब्लागीरों ने जो नारे उछाले हैं, जिन शब्दों में साहस बढ़ाने और ढाँढस बंधाने के प्रयत्न किए हैं वे कमजोर नहीं हैं। उन्हें प्रेरणा वाक्यों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जैसे......
- ब्लॉग्गिंग आएगा और जब ये आएगा तो लोग इसी में पिले रहेंगे जैसे हम ब्लॉगर पिले हुए हैं..... :)
- जल्द ही वह दिन आएगा जब आप ब्लागिंग पर अपने इंटरव्यू में बताएँगे ..धीरे धीरे इसका नशा सब पर होगा ..:)
- अजी उन्हे छोड़िए. हम है ना ब्लॉगिंग के बारे में सवाल पूछने के लिए..
- वो सुबह कभी तो आएगी...जब ब्लोगिगं धूम मचाएगी।
- जल्द ही एक बडी संख्या इसे जानने लगेगी।
- सुबह होगी जल्द ही।
ये सभी अच्छे संकेत हैं। अंतरजाल तेजी से बढ़ने वाला है और ब्लागिरी भी। जरूरत है लोगों की जरूरत को समझने की। अगर ब्लागिरी आम लोदों की जरूरत को पूरा करने लगती है तो धीरे-धीरे यह जीवन का आवश्यक अंग बन जाएगी और अच्छे व सिद्धहस्त ब्लागर लोगों को बताने लायक कमाई भी कर सकेंगे। जिस तेजी से हिन्दी ब्लागीरों की संख्या बढ़ रही है। (औसतन 10 चिट्ठे प्रतिदिन) उस से लगता है। कि पाठकों की संख्या भी बढ़ेगी।
जमाना वह नहीं रहा कि हम में काबिलियत है, जिस को जरूरत होगी हमारे पास आएगा। जमाना इस से बहुत आगे जा चुका है। अब लोगों को जरूरत पैदा की जाती है और अपना माल बेचा जाता है। ब्लागीरों को भी जरूरत पैदा कर पाठक पैदा करने पड़ेंगे। एक ब्लागर चाहे तो कम से कम दस नए पाठक ब्लागिरी के लिए नए ला सकता है और उसे लाना चाहिए। उसे इस के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। ब्लागीरों को अपने स्तर को भी सभी प्रकार से उन्नत करते रहना चाहिए, तकनीकी रूप से भी और अपने माल के बारे में भी।
सभी ब्लागीरों को ब्लागिरी से एक लाभ जो हो रहा है वह यह कि वे आपस में जबर्दस्त अन्तरक्रिया कर रहे हैं जिस से उन की क्षमताएँ तेजी से विकसित हो रही हैं। वे लेखन की हों या अपने अपने क्षेत्र की जानकारियों की हों।
आज मेरे स्टूडियों से निकलने के बाद मैं ने कुछ मित्रों को संदेश दिया कि मेरा साक्षात्कार केबल पर प्रसारित होने वाला है। उन में से कुछ ने उसे देखा भी। जिस ने भी देखा उसे खूब सराहा भी। कुछ लोगों ने उसे अनायास देखा। आज अदालत मे अनेक वरिष्ठ वकीलों ने मुझे बधाई भी दी और यह भी कहा कि मेरी क्षमताएँ बहुत विकसित हैं और इस की उन्हें जानकारी नहीं थी। इस साक्षात्कार को सांयकालीन पुनर्प्रसारण में बहुत लोगों ने देखा। पूरे प्रसारण के दौरान और उस के बाद मुझे अनेक मित्रों और परिचितों के फोन आते रहे। आज के एक दिन ने मुझे बहुत बदल दिया। मैंने महसूस किया कि लोगों ने आज मुझे एक भिन्न दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। कल जब मैं अदालत पहुँचूंगा तो मुझे और भिन्न दृष्टिकोण से देखा जाएगा।
लेकिन क्या यह आज से दस माह पूर्व हो सकता था? बिलकुल नहीं क्यों कि तब में एक वकील मात्र था। इस ब्लागिरी ने मुझे एक नया आयाम प्रदान किया, एक नया रूप दिया। यदि मैं ने इन दस माहों में 162 आलेख न लिखे होते उन पर आई सैकड़ों टिप्पणियों और दूसरे ब्लागीरों की सैंकड़ों पोस्टों को पढ़ कर सैंकड़ों टिप्पणियाँ नहीं की होतीं तो यह सब नहीं हो सकता था। ब्लागिरी ने मेरी क्षमताओं को विकसित किया। वह लगातार सभी ब्लागीरों की क्षमताओं को विकसित कर रही है।
ब्लागीरों को समाचार पत्रों में स्थान मिलने लगा है। अनेक ब्लागीरों की रचनाएँ समाचार पत्र पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं। जल्दी ही वह समय भी आने वाला है कि जब ब्लागिरी और ब्लागीरों की चर्चा टीवी और अन्य प्रचार माध्यमों के लिए एक स्थाई स्तंभ होंगे। ब्लाग आज भी ज्ञान और जानकारी के स्रोत हैं इन का दायरा भी बढ़ेगा और वे प्रचार के माध्यम भी बनेंगे। अभी कुछ अभिनेता ब्लागिरी में आए हैं। लालू जैसे नेता इस में आए हैं। समय आने वाला है जब सभी प्रोफेशन के लोगों के लिए ब्लागिरी एक जरूरी चीज बनेगी। उन की ब्लागिरी से ही उन की क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाने लगेगा।
अंत में मैं लावण्या दीदी की टिप्पणी यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस में वे कहती हैं.......
आपसे मेरा सविनय अनुरोध है कि आप ब्लोगिंग पर और सिंदुर पर और अन्य विषयों पर दूसरों की चिन्ता किये बिना लिखिये -"वीकिपीडीया की तरह या डिक्शनरी की तरह ये जानकारियाँ आज नहीं आनेवाले समय तक नेट पर कायम रहेंगी और काम आयेंगी- जब आम का नन्हा बिरवा उगा ही था तब किसे पता था कि यही घना पेड बनेगा जिस के रसीले आम बरसोँ तक खाये जायेँगे -ये मेरा मत है ..कोई विषय ऐसा भी होता है जो भविष्य मेँ आकार लेता है, और वर्तमान उसे हैरत से देखता है ..कम से कम, यह मेरा विश्वास है....
- लावण्या
18 July, 2008 10:39 PM
और अब मुझे स्मरण हो रही हैं राजस्थानी के कवि हरीश 'भादानी' के एक गीत की मुख्य पंक्तियाँ जो सभी ब्लागीरों को कह रही हैं.....
भोर का तारा उगा है,
जाग जाने की घड़ी है।
नीन्द की साँकळ उतारो,
किरन देहरी पर खड़ी है।
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
ब्लागिंग अब भी जनता से दूर की चीज है।
'पीयूष प्रत्यक्ष,' यही नाम है, उस का। एक सप्ताह पहले मेरे निवास पर आया। वह एक स्थानीय केबल चैनल 'एसटीएन' में पत्रकार है। मुझ से बोला कल सुबह साढ़े छह बजे आप को स्टूडियो आना है। पता लगा वह चैनल के लिए परिचर्चा कार्यक्रम में मेरा साक्षात्कार रिकार्ड करना चाहता है। मैं ने हाँ तो कर दी लेकिन किसी और दिन के लिए। अपनी दैनंदिनी देख कर तय किया कि किस दिन जा सकता हूँ। तो शुक्रवार तय हुआ।
बुधवार तक मैं यह भूल गया कि मैंने कौन सा दिन बताया था। बुधवार देर रात ध्यान आया तो पूछने के लिए टेलीफोन करना चाहा तो पीयूष का फोन नम्बर ही नहीं था। गुरूवार भी असमंजस में बीता रात हम फिर निर्देशिकाएँ टटोल रहे थे कि उस का खुद फोन आ गया। मैं ने राहत की साँस ली। वह शुक्रवार ही था। मैं ने उस से पूछा कि किस पर बात करोगे भाई यह तो बता दो। कहने लगा ब्लागिंग पर बात करेंगे। मैंने उसे कुछ ब्लागिंग के बारे में बताया।
शुक्रवार सुबह सदा की भांति 5.30 सुबह उठे। जल्दी-जल्दी तैयार हुए और चल दिए, इंद्रप्रस्थ। ये इंद्रप्रस्थ कोटा का एक वृहत औद्योगिक क्षेत्र है। इसी के एक कोने पर बनी हुई है राजस्थान टेलीमेटिक्स लि. की इमारत। बड़ी सी तीन मंजिला। बिलकुल खाली खाली सी दिखी सुबह-सुबह उसी के दूसरे तल पर प्रधान संपादक का कार्यालय। संपादक जी सुबह सुबह मिल गए, वे जयपुर से लौटे ही थे और कुछ देर बाद प्रसारित होने वाली खबरों पर नजर डाल रहे थे। उन से कुछ बातचीत हुई और उन्हों ने मुझे कॉफी पिलायी। वहीं पीयूष जी आ गए और हमें स्टूडियो ले गए। हम ने पहली बार किसी टीवी चैनल का स्डूडियो देखा था। कुछ खास नहीं। एक बड़ा सा कमरा, जिस के एक और कुछ मॉनीटर और कम्प्यूटर थे, कैमरा था और एक ऑपरेटर। दूसरी और एक दीवार उसी की साइज के नीले रंग के परदे से ढंकी हुई। दो कुर्सियाँ, एक बड़ी सी टेबल। हमें कुर्सी पर बिठा दिया गया। दूसरी पर पीयूष जी।
कैमरा ऑपरेटर ने इशारा किया और साक्षात्कार प्रारंभ हुआ।
सब से पहले राजनैतिक सवाल। वही परमाणु करार, महंगाई, आरक्षण के मुद्दे और वही सियासती पार्टियाँ काँग्रेस, बीजेपी और लेफ्ट। फिर एक अंतराल बोले तो, छोटा सा ब्रेक। फिर सवाल शुरू हुए तो आ गई न्याय व्यवस्था। कोटा में अदालत परिसर की कठिनाइय़ाँ। कोई और विषय नहीं। फिर साक्षात्कार समाप्त। ब्लागिंग बीच में टपकी ही नहीं।
हमने पीयूष जी से पूछा -भाई ये क्या हुआ ब्लागिंग का तो उल्लेख ही नहीं हुआ।
पीयूष जी बोले - वह फिर कभी, मैं ने आप को कह तो दिया। पर मैं ब्लागिंग के बारे में खुद कुछ नहीं जानता तो क्या सवाल करता? अब एक दिन आऊंगा। आप से समझूंगा कि ब्लागिंग क्या बला है। फिर ब्लागिंग वाला इंटरव्यू करूंगा।
लगा ब्लागिंग अब भी जनता से दूर की चीज है। लोगों ने अभी केवल उस का नाम ही जाना है वह भी अमिताभ बच्चन, आमिर और सलमान खान वगैरह की तरह।
मैं इन्तजार में हूँ कब पीयूष जी आते हैं मेरे पास ब्लागिंग के बारे में जानने के लिए।