@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जुगाड़
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सोमवार, 9 अगस्त 2010

माफी गलती का हल नहीं, गलती के कारणों को खुद अपने अंदर तलाशना चाहिए

ल बोधि भाई का मेल मिला, उन्हों ने विनय पत्रिका पर अपने आलेख "बोलने पर जीभ और छीकने पर नाक काटने वाले शब्द हीन समाज में आपका स्वागत है" पढने का आग्रह किया था। मैं ने इस विषय पर लिखा बहुत पढ़ा है लेकिन मैं इस तरह के विवादों पर राय प्रकट करने से बचता रहा हूँ और उन से तब तक दूर रहने की कोशिश की है जब तक पानी सर से न गुजर जाए। हमेशा जुगाड़ों में विवादों की जड़ें छुपी रहती हैं। मैं कभी जुगाड़ी नहीं हो सका। पिता जी चाहते थे मैं नौकरी कर लूँ, वह भी सरकारी होनी चाहिए। पर जब राज्य सेवा जैसी नौकरी का वक्त आया तो घबरा गया कि यदि साक्षात्कार में किसी तरह चुन लिया गया तो नौकरी कैसे कर पाउंगा। जब न्यायिक सेवा में जाने का अवसर आया तो एक वरिष्ठ वकील साहब ने बैठ कर घंटे भर वक्तव्य दिया कि मैं कितनी भारी गलती कर रहा हूँ कि वकालत में मेरे जैसा कोई न होने पर भी मैं खुला मैदान छोड़ कर भाग रहा हूँ। मैं वकालत में बना रहा और वक्तव्य देने वाले वरिष्ठ वकील साहब कुछ माह बाद ही उच्च न्यायालय के जज हो गए। वकालत में भी मुझे सुझाव मिलते रहे कि मैं संस्थानिक वकालत करूँ। एक साथी की बदौलत जीवन बीमा निगम का वकील नियुक्त हुआ और आज तक अपने काम के आधार पर वहाँ टिका हूँ और इस लिए भी कि वहाँ जुगाड़ का कोई महत्व नहीं है। लेकिन यह जानता हूँ कि यदि मैं जरा भी जुगाड़ी होता और अपनी कमाई हुई शुल्क में से कुछ संस्थानिक अधिकारियों पर खर्च करने या फिर उन के साथ बांटने की चतुराई दिखाता तो बहुत सारे संस्थानों का सम्मानित वकील हो सकता था। ऐसे में जुगाड़ों का महत्व मैं अधिक जानता हूँ। विभूति जी आज जहाँ हैं जुगाड़ों के कारण हैं, यह वे भी जानते हैं और देश भी। वर्ना जहाँ वे हैं वहाँ होने के लायक और उन से बेहतर देश में दर्जनों व्यक्ति हैं। यदि वे जहाँ हैं वहाँ न होते तो उन का साक्षात्कार न तो नया ज्ञानोदय प्रकाशित करता और न ही प्रकाशन के उपरांत इतना हंगामा खड़ा होता। हो सकता था उन की कही बात का नोटिस भी न लिया जाता। 
मैं इस विवाद पर शायद चुप रहना चाहता हूँ। क्यों कि मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि गलती से भी विभूति जी ने जिन लेखिकाओं को छिनाल कहा वह किस संदर्भ में कहा? और वे लेखिकाएँ कौन हैं? इस तरह से संदर्भ को छिपा कर उन्हों ने सभी लेखिकाओं पर कीचड़ उछाल डाला।  यह भी विचित्र बात है कि आप बिना संदर्भ बताए किसी को किसी उपाधि से विभूषित कर दें और फिर उसे गलती बता कर माफी मांग लें। मैं समझता हूँ कि ऐसी गलती तब तक नहीं हो सकती जब तक कि अवचेतन में कुछ कुसंस्कार न छुपे हुए हों या फिर आप इरादतन कुछ कहना चाहते हों।
मैं ने ऐसे बहुत लोग देखे हैं जो ईमानदारी के साथ वामपंथी हैं और बने रहना चाहते हैं, लेकिन अपने पारिवारिक सामंती संस्कारों से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सके हैं और यदा-कदा इन संस्कारों की झलक अपने व्यवहार में प्रदर्शित करते रहते हैं। जब उन्हें खुद पता लगता है कि वे क्या कर गए हैं? तो उस व्यवहार को छुपाने का प्रयत्न करते हैं। नहीं छुपा सकने पर गलती मान कर माफ कर देने को कहते हैं। ऐसे लोगों के पास प्रायश्चित के अलावा कोई मार्ग नहीं है। वे केवल प्रायश्चित कर के ही इन बीमारियों से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।

विभूति जी ने गलती की, यह उन की समस्या है। उस गलती से बहुत सारी समस्याएँ खड़ी हो गई हैं, यह भी उन की समस्या है। उन्हों ने माफी मांग ली, इस से समस्या हल नहीं होती। उन्हें उस गलती के कारणों को खुद अपने अंदर तलाशना चाहिए, कि उन से गलती क्यों हुई?  क्या यह गलती उन के उन संस्कारों के कारण  हुई जिन्हें वे छोड़ना चाहते थे लेकिन नहीं छोड़ सके या फिर उन्होंने इरादतन किसी और इरादे से यह सब कहा था, यह तो वे ही बेहतर जानते हैं। उन्हें स्वयं आत्मालोचना करनी चाहिए औऱ गलती होने के कारण तलाश करना चाहिए। उस कारण से निजात पाने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए।
हा सवाल इस बात का कि वे विश्वविद्यालय के कुलपति पद को छोड़ दें या उन्हें हटा दिया जाए तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। खुद पद छोड़ देने और हटा देने के बाद भी जुगाड़ी व्यक्ति हैं तो कुछ न कुछ ऐसा ही या इस से कुछ बेहतर जुगाड़ कर लेंगे। फिर उन के जाने के उपरांत विश्वविद्यालय में एक और कोई जुगाड़ी आ बैठेगा। हो सकता है आने वाला व्यक्ति अब सावधानी से व्यवहार करे और उन से निकृष्ठ होते हुए भी उन पर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दे। वस्तुतः इस साक्षात्कार में की हुई गलतियों से जो कुछ उन्हों ने खोया है उस का शायद उन्हें या किसी अन्य को अनुमान भी नहीं है।
हाँ, एक बात विनम्रता पूर्वक मैं यह और कहना चाहता हूँ कि इतिहास में महान वे नहीं हुए जिन्हों ने कोई गलती नहीं की,अपितु वे हुए जिन्हों ने गलतियाँ कीं और पश्चताप की ज्वाला में जलते हुए खुद को कुंदन की तरह खरा बना लिया।

शनिवार, 27 मार्च 2010

जुगाड़ बंद, जुगाड़ चालू, जुगाड़ ही जुगाड़

राजस्थान के कोटा संभाग के झालावाड़ जिले के मदर इंडिया एसटीसी बीएड कॉलेज के छात्र-छात्राएँ  विशेष बस से शैक्षणिक यात्रा पर थे। 14 मार्च को जब बस सवाई माधोपुर जिले में सूखी मोरेल नदी के पुल से गुजर रही थी तो अचानक एक जुगाड़ सामने आ गया। टक्कर बचाने के लिए बस चालक ने जो कुछ भी युक्ति की वह नहीं चली और बस पुल से सूखी नदी में गिर पड़ी। इस दुर्घटना मे कुल 30 मौतें हुई। मरने वाले सभी 20 से 25 वर्ष की उम्र के नौजवान लड़के लड़कियाँ थे। बहुत दुखद घटना थी। पूरे संभाग में एक दम मातम छा गया। ऐसा लगता था कि हर मोहल्ले में मरने वाले का कोई न कोई रिश्तेदार मौजूद था। नौजवानों की मृत्यु ने लोगों पर गहरा प्रभाव डाला।
सारा गुनाह जुगाड़ पर धऱ दिया गया। सबसे पहले असर हुआ दुर्घटना के जिले सवाई माधोपुर के पुलिस अधीक्षक पर उन्हों ने आनन फानन कलेक्ट्रेट में जिले के सब विभागों के अधिकारियों की बैठक बुला कर घोषणा कर दी कि वे जिले की सड़कों पर जुगाड़ नहीं चलने देंगे और ट्रेफिक को सुधार डालेंगे। अब तक आराम से चल रहे जुगाड़ों की शामत आ गई। सारे अखबार उन पर टूट पड़े। विधान सभा चल रही थी तो बात वहाँ तक पहुँची और बाद में हाईकोर्ट भी। हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने स्वप्रेरणा से इस घटना पर जुगाड़ों के खिलाफ प्रसंज्ञान ले कर गाँवों की मारूति के खिलाफ आदेश दिया कि जुगाड़ अवैध है और सरकार इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही है, उसे इस का जवाब चार हफ्तों में देना होगा। अखबारों ने खबरें छापी -चार हफ्ते में तय हो जाएगा जुगाड़ों का भविष्य,  थानों के सामने दौड़ रहे हैं जुगाड़, आदेश आते ही बंद हुए जुगाड़ आदि आदि।
जैसे ही हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया सरकार की निद्रा भंग हो गई उस ने भी आदेश की पालना में आदेश जारी किया -जुगाड़ देखते ही जब्त कर लिया जाए। अखबारों ने सड़कों का जायजा लिया और दो दिन बाद खबर छापी -अब भी चल रहे हैं जुगाड़। अब तक जुगाड़ के मालिक और चालक चुप थे। आखिर उन पर भारी आरोप जो था। अब जब उन की रोजी-रोटी पर संकट आया तो वे उठ खड़े हुए। उन्होंने मीटिंग की और संगठित होने की ठान ली। उन्हों ने जुगाड़ों का रजिस्ट्रेशन कर संचालन फिर से शुरू कराए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर डाला। उधर राज्य परिवहन आयुक्त जुगाड़ों और ओवरलोड वाहनों को जब्त करने के आदेश देते रहे। इधर अखबार कहते रहे -नहीं रुक रहे हैं जुगा़ड़ और ओवरलोड वाहन।
धर जुगाड़ वालों ने पुलिस के डर से फिलहाल जुगाड़ चलाना बंद कर दिया। किसानों और ग्रामीणों को परेशानी आने लगी। वे भी प्रदर्शन पर उतर आए। स्थान स्थान पर वे प्रदर्शन कर मांग करने लगे कि जुगाड़ को बंद नहीं किया जाए। बात फिर विधानसभा में पहुँच गई। सवाल उठा तो गृह मंत्री ने कहा कि गांवों में जुगाड़ बंद नहीं किए जाएंगे। नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर जुगाड़ों को नहीं चलने दिया जाएगा। गाँव वाले आश्वासन पर कैसे भरोसा करते वे इधर जुगाड़ को बचाने में महापड़ाव आयोजित कर रहे हैं।

ह जुगाड़ एक-दम नहीं पैदा हो गया। कहते हैं राजस्थान में इस वक्त एक लाख से भी अधिक जुगाड़ हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के होते हुए भी सामान्य मिस्त्रियों द्वारा बनाए गए बिना किसी पंजीयन के जुगाड़ों की संख्या इतनी यूँ ही नहीं पहुंच गई। सरकारी मशीनरी, पुलिस और परिवहन विभाग इतने दिन क्यों चुप बैठी रहे? जवाब सीधा है जो लोग जुगाड़ से जुगाड़ बना सकते हैं वे यह जुगाड़ भी कर सकते हैं। जब जुगाड़ स्कूल बस बन सकते हों तो बंद कैसे हो सकते हैं?  अब तो कोई मार्ग ही शेष नहीं रहा है जुगाड़ों को बंद करने का। कुल मिला कर जुगाड़ों को किसी तरह नियमन करने का जुगाड़ करना होगा। यह कैसे होगा? इस का भी कोई न कोई जुगाड़ तो बनेगा ही।