राजस्थान के कोटा संभाग के झालावाड़ जिले के मदर इंडिया एसटीसी बीएड कॉलेज के छात्र-छात्राएँ विशेष बस से शैक्षणिक यात्रा पर थे। 14 मार्च को जब बस सवाई माधोपुर जिले में सूखी मोरेल नदी के पुल से गुजर रही थी तो अचानक एक जुगाड़ सामने आ गया। टक्कर बचाने के लिए बस चालक ने जो कुछ भी युक्ति की वह नहीं चली और बस पुल से सूखी नदी में गिर पड़ी। इस दुर्घटना मे कुल 30 मौतें हुई। मरने वाले सभी 20 से 25 वर्ष की उम्र के नौजवान लड़के लड़कियाँ थे। बहुत दुखद घटना थी। पूरे संभाग में एक दम मातम छा गया। ऐसा लगता था कि हर मोहल्ले में मरने वाले का कोई न कोई रिश्तेदार मौजूद था। नौजवानों की मृत्यु ने लोगों पर गहरा प्रभाव डाला।
सारा गुनाह जुगाड़ पर धऱ दिया गया। सबसे पहले असर हुआ दुर्घटना के जिले सवाई माधोपुर के पुलिस अधीक्षक पर उन्हों ने आनन फानन कलेक्ट्रेट में जिले के सब विभागों के अधिकारियों की बैठक बुला कर घोषणा कर दी कि वे जिले की सड़कों पर जुगाड़ नहीं चलने देंगे और ट्रेफिक को सुधार डालेंगे। अब तक आराम से चल रहे जुगाड़ों की शामत आ गई। सारे अखबार उन पर टूट पड़े। विधान सभा चल रही थी तो बात वहाँ तक पहुँची और बाद में हाईकोर्ट भी। हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने स्वप्रेरणा से इस घटना पर जुगाड़ों के खिलाफ प्रसंज्ञान ले कर गाँवों की मारूति के खिलाफ आदेश दिया कि जुगाड़ अवैध है और सरकार इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही है, उसे इस का जवाब चार हफ्तों में देना होगा। अखबारों ने खबरें छापी -चार हफ्ते में तय हो जाएगा जुगाड़ों का भविष्य, थानों के सामने दौड़ रहे हैं जुगाड़, आदेश आते ही बंद हुए जुगाड़ आदि आदि।
जैसे ही हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया सरकार की निद्रा भंग हो गई उस ने भी आदेश की पालना में आदेश जारी किया -जुगाड़ देखते ही जब्त कर लिया जाए। अखबारों ने सड़कों का जायजा लिया और दो दिन बाद खबर छापी -अब भी चल रहे हैं जुगाड़। अब तक जुगाड़ के मालिक और चालक चुप थे। आखिर उन पर भारी आरोप जो था। अब जब उन की रोजी-रोटी पर संकट आया तो वे उठ खड़े हुए। उन्होंने मीटिंग की और संगठित होने की ठान ली। उन्हों ने जुगाड़ों का रजिस्ट्रेशन कर संचालन फिर से शुरू कराए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर डाला। उधर राज्य परिवहन आयुक्त जुगाड़ों और ओवरलोड वाहनों को जब्त करने के आदेश देते रहे। इधर अखबार कहते रहे -नहीं रुक रहे हैं जुगा़ड़ और ओवरलोड वाहन।
इधर जुगाड़ वालों ने पुलिस के डर से फिलहाल जुगाड़ चलाना बंद कर दिया। किसानों और ग्रामीणों को परेशानी आने लगी। वे भी प्रदर्शन पर उतर आए। स्थान स्थान पर वे प्रदर्शन कर मांग करने लगे कि जुगाड़ को बंद नहीं किया जाए। बात फिर विधानसभा में पहुँच गई। सवाल उठा तो गृह मंत्री ने कहा कि गांवों में जुगाड़ बंद नहीं किए जाएंगे। नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर जुगाड़ों को नहीं चलने दिया जाएगा। गाँव वाले आश्वासन पर कैसे भरोसा करते वे इधर जुगाड़ को बचाने में महापड़ाव आयोजित कर रहे हैं।
यह जुगाड़ एक-दम नहीं पैदा हो गया। कहते हैं राजस्थान में इस वक्त एक लाख से भी अधिक जुगाड़ हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के होते हुए भी सामान्य मिस्त्रियों द्वारा बनाए गए बिना किसी पंजीयन के जुगाड़ों की संख्या इतनी यूँ ही नहीं पहुंच गई। सरकारी मशीनरी, पुलिस और परिवहन विभाग इतने दिन क्यों चुप बैठी रहे? जवाब सीधा है जो लोग जुगाड़ से जुगाड़ बना सकते हैं वे यह जुगाड़ भी कर सकते हैं। जब जुगाड़ स्कूल बस बन सकते हों तो बंद कैसे हो सकते हैं? अब तो कोई मार्ग ही शेष नहीं रहा है जुगाड़ों को बंद करने का। कुल मिला कर जुगाड़ों को किसी तरह नियमन करने का जुगाड़ करना होगा। यह कैसे होगा? इस का भी कोई न कोई जुगाड़ तो बनेगा ही।
9 टिप्पणियां:
ये आविष्कार और उसकी जननी का उदहारण है. इसे बंद तो नहीं ही होना चाहिए... बाकी चलेगा कैसे ये तो कुछ दिनों में साफ़ हो ही जाएगा.
सच कहुं तो इसे आज से ही बन्द हो जाना चाहिये, लेकिन भारत मै जुगाड हो या कार सभी गलत चलाते है, अब उस जुगाड की जगह कोई कार वाला होता तो?? गलती तो बस वाले की है.
देखते चलें, कोई तो जुगाड़ बनेगा जुगाड़ चालू रहने का. मगर है तो खतरनाक.
आश्चर्य है की यह जुगाड़ पूर्वांचल में नहीं है.
हमारे हरयाणा का जुगाड भी देखने लायक है.
रामराम.
यंहा जुगाड़ जैसी गाडियां तो नही है मगर बारात ढोने के लिये ट्रेक्टर का इस्तेमाल होता है और ट्रेकटर मे ही मज़दूरों को ढोया जाता है।जब कोई दुर्घटना होती है तो हल्ला मचता है और उसके बाद समय फ़िर अपनी रफ़तार पकड़ लेता है जैसे कुछ हुआ ही नही।दुःखद है इस तरह का लचीलापन और लापरवाह रवैया।
जुगाड़ और उन्हे चलाने वालों की ड्राइविंग स्किल, दोनो खतरनाक हैं ।
जिस देश में सरकारें जुगाड से चल रही हों वहॉं इन जुगाडों को बन्द करनेवाला कोई माई का लाल कभी पैदा नहीं होगा।
ये इसी तरह न केवल चलते रहेंगे बल्कि वर्धित/विस्तारित भी होते रहेंगे।
पहली बार " जुगाड़ " के दर्शन होते ही मेरे मन में भारतीय मेघा के प्रति एक विस्मयकारी श्रद्धा उमड़ी । यह भी गर्व हुआ कि उन्होंनें अपने इस समवेत सँकलन को कोई भारी-भरकम नाम न देकर इसका जुगाड़ होना स्वीकार किया । एक आश्चर्यमिश्रित हर्ष यह कि यह उपकरण अभी तक किसी पूँजीवादी हस्तक्षेप से बचा हुआ है ।
यह सब पढ़ने के बाद लगता है कि यदि यह ऎसे किसी हस्तक्षेप और अनाप-शनाप मानकों से लदा फँदा होता, तो बेदाग निकल जाता !
जिस कानून के तहत मार्ग-दुर्घटना के आरोपी व्यवसायिक चालक मात्र 500 रुपये का हर्जाना भर कर बरी हो सकते हैं.. इस " जुगाड़ " पर ऎसी गाज़ गिराना नाज़ायज़ है । क्योंकि यह सवाल ग्रामीणों की सुविधाओं से जुड़े होने के अलावा स्वरोजगार से जीवनयापन के हक़ को चुनौती दे रहा है । पँजीकरण या नो पँजीकरण.. अभी इनको ओवरलोडिंग न करने के निजी मुचलकों पर चलाने की फ़ौरी राहत दी जानी चाहिये ।
अगर पँडित जी हमरा खवावैं पियावैं का जुगाड़ बनावैं, तो हमहूँ क्षेत्र का एकु दौरा मारि लेई !
जुगाड़ की दुनिया के बल पर अपना ब्लॉग चलाने वालों को इनका समर्थन करना ही चाहिये,
" जुगाड़ वालों " सँघर्ष करो, निट्ठल्ला तुम्हारे साथ है ।
एक टिप्पणी भेजें