@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: लोगों के अपकारी काम धर्मों को समेट रहे हैं

गुरुवार, 18 मार्च 2010

लोगों के अपकारी काम धर्मों को समेट रहे हैं

कुछ दिनों से ब्लाग जगत में बहस चल रही है कि किस किस धर्म में क्या क्या अच्छाइयाँ हैं और किस किस धर्म में क्या क्या बुराइयाँ हैं। हर कोई अपनी बात पर अड़ा हुआ है। दूसरा कोई जब किसी के धर्म की बुराई का उल्लेख करता है तो बुरा अवश्य लगता है। इस बुरा लगने पर प्रतिक्रिया यह होती है कि फिर दूसरे के धर्म की बुराइयाँ खोजी जाती हैं और वे बताई जाती हैं। नतीजा यह है कि हमें धर्मों की सारी खामियाँ पता लग रही हैं। ऐसा लगता है कि सभी धर्म बुराइयों से भरे पड़े हैं। यह लगना भी उन लोगों के कारण है जो खुद धार्मिक हैं।
मैं खुद एक धार्मिक परिवार में पैदा हुआ। कुछ अवसर ऐसा मिला कि मुझे कोई बीस बरस तक मंदिर में भी रहना पड़ा। मुझे स्कूल में संस्कृत शहर के काजी साहब ने पढ़ाई। उन्हों ने खुद संस्कृत स्कूल में मेरे पिताजी से पढ़ी थी। काजी साहब ने कभी यह नहीं कहा कि कोई मुसलमान बने। उन की कोशिश थी कि जो मुसलमान हैं वे इस्लाम की राह पर चलें। क्यों कि अधिकतर जो मुसलमान थे वे इस्लाम की राह पर मुकम्मल तरीके से नहीं चल पाते थे। वे यही कहते थे कि लोगों को अपने अपने धर्म पर मुकम्मल तरीके से चलने की कोशिश करनी चाहिए। सभी धार्मिक लोग यही चाहते हैं कि लोग अपने अपने धर्म की राह पर चलें। 
मेरे 80 वर्षीय ससुर जी जो खुद एक डाक्टर हैं, मधुमेह के रोगी हैं। लेकिन वे नियमित जीवन बिताते है और आज भी अपने क्लिनिक में मरीजों को देखते हैं। कुछ दिनों से पैरों में कुछ परेशानी महसूस कर रहे थे। मैं ने उन्हें कोटा आ कर किसी डाक्टर को दिखाने को कहा। आज सुबह वे आ गए। मैं उन्हें ले कर अस्पताल गया। जिस चिकित्सक को दिखाना था वे सिख थे। जैसे ही हम अस्पताल के प्रतीक्षालय में पहुँचे तो एक सज्जन ने उन्हें नमस्ते किया। वे दाऊदी बोहरा संप्रदाय के मुस्लिम थे। दोनों ने एक दूसरे से कुछ विनोद किया। डाक्टर ने ससुर जी को कुछ टेस्ट कराने को कहा। जब हम मूत्र और रक्त के सेंपल देने पहुँचे तो सैंपल प्राप्त करने वाली नर्स ईसाई थी। उस ने सैंपल लिए और दो घंटे बाद आने को कहा। एक सज्जन ने जो तकनीशियन थे  ससुर जी के पैरों की तंत्रिकाओं की  जाँच की। इन को मैं ने अनेक मजदूर वर्गीय जलसों में देखा है वे एक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं और किसी धर्म को नहीं मानते।  शाम को सारी जाँचों की रिपोर्ट ले कर हम फिर से चिकित्सक के पास गए उस ने कुछ दवाएँ लिखीं और कुछ हिदायतें दीं। इस तरह सभी धर्म वाले लोगों ने एक दूसरे की मदद की। सब ने एक दूसरे के साथ धर्मानुकूल आचरण किया। न किसी ने यह कहा कि उस का धर्म बेहतर है और न ही किसी दूसरे के धर्म में कोई खामी निकाली। 

मुझे लगता है कि वे सभी लोग जो अपने धर्मानुकूल आचरण कर रहे थे। उन से बेहतर थे जो सुबह शाम किसी न किसी धर्म की बेहतरियाँ और बदतरियों की जाँच करते हैं। धर्म निहायत वैयक्तिक मामला है। यह न प्रचार का विषय है और न श्रेष्ठता सिद्ध करने का। जिस को लगेगा कि उसे धर्म में रुचि लेनी चाहिए वह लेगा और उस के अनुसार अपने आचरण को ढालने का प्रयत्न करेगा। अब वह जो कर रहा है वह अपनी समझ से बेहतर कर रहा है। किसी को उसे सीख देने का कोई अधिकार नहीं है। हाँ यदि वह स्वयं खुद जानना चाहता है स्वयं ही सक्षम है कि उसे इस के लिए किस के पास जाना चाहिए। दुनिया में धर्म प्रचार और खंडन  के अलावा करोड़ों उस से बेहतर काम शेष हैं। 
लते चलते एक बात और कि लोगों के उपकारी कामों ने उन के धर्म को दुनिया में फैलाया था। अब लोगों के अपकारी काम उन्हें समेट रहे हैं।

17 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

शब्द-शब्द से सहमत और खुशी है कि आप जैसो को मैने अपना अग्रज माना है. धारयते इति धर्म:. जो हमारी धारणाये है उनसे हमारे धर्म का पता चलता है. कोई धार्मिक इन्सान कभी नफ़रत नही फ़ैला सकता और नफ़रत करने वाला और कुछ भले ही हो जाये उसे धार्मिक नही कहा जा सकता.

जो लोग मदारी की तरह तोता रटन्त की तरह धर्म धर्म का हल्ला करते है वो अपने धर्म को समझे और अपने आचरण मे लाये तो खुद का और मानवता का वहुतेरा कल्याण हो सकता है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अच्छी सोच है यदि सामने वाला भी ऐसे ही सोचे. अन्यथा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश भारत से ही तोड़ दिये गये. कश्मीर को गया ही समझो.

Unknown ने कहा…

sab kah diya aapne

ab shesh kya rah jaata hai..........


samajhdaaron ko samajh jana chaahiye

संगीता पुरी ने कहा…

विभिन्‍न देश, काल और परिस्थिति के अनुसार कुछ खास नियमों की स्‍थापना के द्वारा असभ्‍य लोगों को सभ्‍य बनाने के लिए धर्म की स्‍थापना की गयी होगी .. पर यह विडंबना ही है कि आज का सभ्‍य मनुष्‍य धर्म के चक्‍कर में ही असभ्‍य होता जा रहा है !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप के एक एक शव्द से सहमत हुं, मेने देखा है जो धर्म धर्म ज्यादा चिल्लते है वो धर्म को बिलकुल नही मानते, हमे अपने धर्म का पालन सही रुप मे करना चाहिये, वो ही सही है, अगर मै दुसरे के धर्म पर के बारे बुराईयां करुग तो शायद मै किसी का कुछ नही बिगाड रहा बस अपनी कुंठित मान्सिकाता को ही दर्शाय जा रहा हुं, हम सब अपने आप मे मगन रहे तो कितनी शांति हो.
धन्यवाद इस अति सुंदर पोस्ट के लिये

ghughutibasuti ने कहा…

अच्छा लेख है। असहमत नहीं हुआ जा सकता।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari ने कहा…

दुनिया में धर्म प्रचार और खंडन के अलावा करोड़ों उस से बेहतर काम शेष हैं

-काश!! लोग समझ पाते..

Ashok Kumar pandey ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Ashok Kumar pandey ने कहा…

यह सच है कि सभी धर्म अपने कट्टर और मूल स्वरूप में अमानवीय हैं। लेकिन मनुष्य इन धर्मों को मानता हुआ भी अपनी सहज मानवीय प्रवृति से ही संचालित होता है। गोलवरकर ने भारत में विजातीय नस्लों के लिये जो शर्तें सुझाईं थीं ( या तो वे हिन्दू धर्म में समाहित हो जायें या फिर विदेशियों की तरह दोयम दर्ज़े की नागरिकता लेकर उनके रहमोकर्म पर रहें) वह भी देश तोड़ने वाली थी और मुस्लिम लीग का द्विराष्ट्रवादी सिद्धांत ( वैसे इसके भी जनक सावरकर थे)भी। समाजवादी आंदोलन और धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक नीतियों ने ही वह माहौल खड़ा किया था जिसमें यह सहकार और एकता दिखती है…लेकिन सावरकर,गोलवरकर और लीग के (असल में हिटलर और मुसोलिनी के) मानस पुत्र इसे छिन्न-भिन्न करने में लगे हैं ताकि 'अन्य' ज़रूरी काम न हो सकें और इनके असली आका, धन्नासेठ, चैन की बंशी बजा सकें

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

कितनी सहजता से आप अपनी बात कह जाते है ! आप स्टार ब्लोगर ऐसे ही नहीं नहीं है.
बिला शक आज के आपके लेख का उद्देश्य बहुत ही अच्छा है, मगर क्या आपको अंदेशा नहीं गुज़रा कि इससे हिंदी ब्लॉग जगत का नुकसान भी हो सकता है?.......सहमती प्रकट करते हुए टिप्पणीकारो को पढ़ते हुए मुझे तो ये अंदेशा हो चला है! क्यों न हो? आपकी बात सबको यूँही गले उतरती चली गयी तो......पचासों ब्लॉग साइट्स ...यूँही ख्वंमाख्वांह ही बंद हो जाएगी...जिनकी अभी पों बारंह है....जिनके पाठको की तादाद हज़ारों में है.
धर्म के ही बहाने...हिंदी साहित्य को फ़रोग तो मिल रहा है.

आप अपने लेख पर पुनर्विचार कर स्पष्टीकरण देवे अन्यथा हिंदी ब्लॉग जगत को होने वाली सम्भावनीय क्षति के लिए आरोपित कर आपके खिलाफ मुकद्दमा लगाने को बाधित होऊंगा...और उस केस में अपना वकील भी मैं आप ही को नियुक्त करूँगा ! देख लीजियेगा ??????

संजय बेंगाणी ने कहा…

धर्म निहायत वैयक्तिक मामला है। यह न प्रचार का विषय है और न श्रेष्ठता सिद्ध करने का।

बिलकुल सही फरमाया. दैनिक व्यवहारों में कभी धर्म नहीं देखा. ऐसा ही होता भी है. यह सर्वसामान्य बात है.

जब कोई आपके धर्म या पूरखों को गाली देता है तब गुस्सा तो आएगा ही ना सा'ब. वह भी तब जब हम किसी को भला बूरा नहीं कहने गए.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

धर्म जब तक व्यक्तिगत होता है - पथप्रदर्शक होता है। जब इंस्टीट्यूशनलाइज होता है तो उससे बड़ा असुर कोई नहीं!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

धर्म सिर्फ वही है जिसे कि जीवन में उतार लिया गया हो---वर्ना तो निस्सार भावुकता है, थोथा बुद्धि विलास है।

शरद कोकास ने कहा…

धर्म निहायत वैयक्तिक मामला है।
यह बात आसानी से समझ मे आने वाली है लेकिन जिनका व्यक्तिगत जीवन दूसरों के जीवन मे पीड़ा उत्पन्न करने से ही संचालित होता है वे इस बात को नही समझ सकते । इन लोगो ने पहले ही धर्म की यह परिभाषा समप्त कर दी है । और इसका वे राजनीतिक शक्ति के रूप मे इस्तेमाल कर रहे हैं । देर तो बहुत हो चुकी है लेकिन हो सकता है अब भी यह स्थिति ठीक हो जाये ।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

द्विवेदी जी,
इंसानियत से बड़ा और कोई धर्म नहीं है...

जय हिंद...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बात तो निष्ठा की है, धर्म कोई भी हो ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

पोस्‍ट के निष्‍‍कर्ष मानो मेरी ही बात कह रहे हों - धर्म नितान्‍त वैयक्तिक प्रकरण है।
आपने जिन लोगों का उल्‍लेख किया है, वे सचमुच में धार्मिक लोग हैं।