'कविता'
ख़ौफ तारी था उसका
- दिनेशराय द्विवेदी
उस के नाम से डरा कर, माताएँ
सुलाती थीं अपने बच्चों को
उस के शहर का रुख़ करने की खबर से
खड़े हो जाते थे रोंगटे
शहरवासियों के
उसे देखा जाता था
सिर्फ चित्रों, और वीडियो में
सुनी जा सकती थी उस की आवाज
सिर्फ रिकॉर्ड की हुई।
ख़ौफ तारी था उस का
सारे जहाँ में
जहाँ जहाँ बस्तियाँ थीं
जहाँ जहाँ इन्सान थे
कुछ भी कर सकता था वह
कोई भी हो सकता था
उस का निशाना, बस शर्त इतनी थी
कि इन्सानों पर ख़ौफ तारी रहे
तलाश जारी थी उस की
सारी जहाँ में
जंगलों में, वीरान पहाड़ियों में
हर उस जगह, जहाँ छुप सकता था
इन्सान की निगाहों से बचाकर खुद को
बरसों की तलाश के बाद मिला
इंसानों की एक बस्ती में
एक बंद घर में सुरक्षा की दीवारों के बीच
जवान बीबी के साथ
जवानी बरकरार रखने वाली
दवाइयों की खेप के बीच
अपनी ही तस्वीरें देखते हुए
मिनटों में हो गया तमाम
कहते हैं ... ठेला था जिन्होंने
उसे इस रास्ते पर
उन्होंने ही ठेल दिया उसे
समंदर की गहराइयों में
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14 टिप्पणियां:
usne jo kiya wo jaghanya tha, ise kyon chhod dete hain...
हर खौफ़ का अंत तो होता ही है
गम्भीर भाव, सहज प्रस्तुति।
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ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
आई साइबोर्ग, नैतिकता की धज्जियाँ...
खौफ का अंत तो होना ही है
जहर जहर को मारता है यही अन्त होना था सांम्प ने साँप को डस लिया अच्छा किया। अच्छी रचना।
अंत तो सबका निश्चित है।
दवाब का निष्गमन दयनीय होता है।
मिनटों में हो गया तमाम
कहते हैं ... ठेला था जिन्होंने
उसे इस रास्ते पर
उन्होंने ही ठेल दिया उसे
समंदर की गहराइयों में
अच्छी अभिव्यक्ति । आभाऱ ।
एक नास्तिक हिंदू की उलझनें
अच्छी और सच्ची कविता
भय का भी अंत होता है।
भय और आतंक का भी अंत जरुर होता है ...
paapka ghadaa aek din jarur bharataa hai.laaden ke saath bhi yahi hua.aapne bahut hi achche tarike se yathart batati hui saarthak rachanaa.badhaai aapko.
please visit my blog.thanks.
बहुत खूब .. अंत तो हर किसी का होता है ... और उस अंतिम अवस्था में दयनीय होता है ...
jo jaisa boyega...fal use uska waisa hi milega...sunder shabd diye apni abhivyakti ko.
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