@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पानी जुटाएँ, केवल महिलाएँ और लड़कियाँ?

रविवार, 29 मई 2011

पानी जुटाएँ, केवल महिलाएँ और लड़कियाँ?

ल एक यात्रा पर जाना हुआ। 300 किलोमीटर जाना और फिर लौटना। बला की गर्मी थी। रास्ते में हर जगह पानी के लिए मारामारी दिखाई दी। हर घर इतना पानी अपने लिए सहेज लेना चाहता था कि घर में रहने वालों का जीवन सुरक्षित रहे। पानी सहेजने की इस जंग में हर स्थान पर केवल और केवल महिलाएँ ही जूझती दिखाई दीं।  इस जंग में चार साल की लड़कियों से ले कर 60 वर्ष तक की वृद्धाएँ दिखाई पड़ीं। कहीं भी पुरुष पानी भरता, ढोता दिखाई नहीं दिया। क्यों सब के लिए पानी जुटाना महिलाओं के ही जिम्मे है?

ऐसी पनघटें अब बिरले ही दिखाई पड़ती हैं। पानी कुएँ और रस्सी की पहुँच से नीचे चला गया है

अब यही पनघट है





यात्रा में कार की चालक सीट मेरे जिम्मे थी,  चित्र एक भी नहीं ले सका। यहाँ प्रस्तुत सभी चित्र गूगल खोज से जुटाए गए हैं।

22 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत संवेदनशील

Arvind Mishra ने कहा…

ग्रीष्म चित्रावली

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पाणी भरण री जिम्मेवारी तो इण री ही है होकम।
ओ ही समझे लोग।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चित्र अपने आप में सब व्यक्त कर रहे हैं।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

जहां जैसी स्थिति हो..पुरूष दाने के जुगाड़ में जाते होंगे महिलाएँ पानी..
..गरीबी का दंश भयावह है। पानी ने सबको बेपानी कर दिया है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

haan yah bilkul sahi kaha aapne ... yun kahi kahi purush bhi pani bhar late hain , per - kam !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

और हम अब भी नहीं चेत रहे हैं...

रवि रतलामी ने कहा…

सबसे ऊपर के चित्र में महिलाओं ने जो सफेद छल्ले अपने बाजुओं में पहने हुए हैं, वो क्या है. कभी उन पर भी अलग से लेख लिखिए. इस आभूषण के बारे में जानना दिलचस्प होगा. यह भी मुझे बुरके की तरह महिलाओं पर दमन का प्रतीक पारंपरिक आभूषण लगता है.

Shah Nawaz ने कहा…

इसी को दाना पानी की दौड़ कहते हैं... परिवार में कोई दाने की दौड़ लगा रहा है और कोई पानी की...

प्रेमरस.कॉम

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

इस पोस्ट लेखन के लिये आप को और चित्रों के लिये इण्टर्नेट को धन्यवाद!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर चित्र, ्बहुत सी यादे याद दिला दी, मेरी टिपण्णी कहां गई? जो कल रात लिखी थी?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@राज भाटिय़ा
आप ने टिप्पणी बज्ज पर की थी, वहाँ मौजूद है। देखिए यही थी ना?
Raj Bhatia - इस जंग में चार साल की लड़कियों से ले कर 60 वर्ष तक की वृद्धाएँ दिखाई पड़ीं। कहीं भी पुरुष पानी भरता, ढोता दिखाई नहीं दिया। क्यों सब के लिए पानी जुटाना महिलाओं के ही जिम्मे है?.... अजी ऎसी बात नही यह काम मर्द के बच्चे भी करते हे, यानि जब हम छोटे थे, ओर जब हमारा मकान नयी जगह बन रहा था तो घर मे पीने का पानी हमीं के जिम्मे था, यानि यह मर्द का बच्चा( उस समय तो बच्चे थे) ही भरता था:)1:45 am

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हां जी, कन्हैया लोग तो केवल गगरी फोड़ने के लिए ही है ना :)

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत संवेदनशील|

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

इसीलिए तो अच्छे अच्छों को पानी पिला देती हैं महिलाएं ।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

इसीलिए तो अच्छे अच्छों को पानी पिला देती हैं महिलाएं ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

मै तो सोचता था कि बज्ज की टिपण्णी यहां भी दिखाई देगी,आज पता चल गया बज्ज की टिपण्णी यहां नही दिखाई देती, धन्यवाद

Rahul Singh ने कहा…

(ज्‍यादातर चित्रों में) फिर भी खुश.

जीवन और जगत ने कहा…

जहॉं पानी जैसी चीज के लिये ही इतनी मारामारी हो, वहॉं बाकी चीजें पीछे छूट जाती हैं। आने वाला समय पूरे देश में भीषण जलसंकट का है। अभी 'परिकथा' पत्रिका के मार्च-अप्रैल,2011 के युवा कहानी विशेषांक में भी पाया कि उनमें दो कहानियों की विषयवस्‍तु तो जलसंकट ही है। दूसरी बात, हम मर्दों को तो घर के काम करने में शर्म आती है या फिर इसे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। ठीक है कि हम रोजी कमाने घर से बाहर जाते हैं, पर कुछ घर में भी हाथ बंटा दें तो क्‍या बुरा है। कभी-कभी इस विषय पर मैं खुद को भी कटघरे में खड़ा पाता हूँ।

Abhishek Ojha ने कहा…

ओह !

Neeraj Rohilla ने कहा…

बचपन में हमारा परिवार जब शाहजहाँपुर/बरेली से मथुरा गर्मियों की छुट्टियों मे आता था तो शाहजहाँपुर के मीठे पानी के विपरीत जब मथुरा के खारे पानी का सामना होता था तो प्यास ही नहीं बुझती थी। हर से तकरीबन ४०० मीटर पर एक सरकारी हैंडपंप था जिसका पानी मीठा होता था। पूरे दो महीने घर पर पीने का पानी सप्लाई करने की जिम्मेवारी हमारी होती थी।

समाज की अलग अलग परतों के चलते अलग अलग नजारे देखने को मिलते हैं। मथुरा में पानी की किल्लत है और इसके चलते कभी तंगी होने पर तथाकथित सभ्रान्त परिवारों के पुरूष बाल्टी उठाकर पानी ले जाते दिख जाते हैं। अब इसका कारण घर के काम में हाथ बंटाना हो कि घर की महिला पानी भरने निकले तो इज्जत क्या रहेगी हो, महिलाओं को कुछ आराम तो मिल ही जाता है।

अक्सर निम्न/निम्नमध्यमवर्गीय परिवार की स्त्रियों को पानी ले जाते देखा है। पता नहीं कि इसका कारण पुरूषों की आरामखोरी है या फ़िर परिवार में रोजी/रोटी के द्वंद के चलते जिम्मेदारियों का बंटवारा।

http://www.google.com/search?tbm=isch&hl=en&source=hp&biw=1280&bih=806&q=hippo+roller&gbv=2&aq=f&aqi=g2g-m1&aql=&oq=

बिल गेट्स फ़ाउंडेशन ने इस डिवाईस को अफ़्रीका में प्रमोट किया। कई गांवो में हुआ ये कि इस डिवाईस द्वारा पानी ढोने की आसानी के चलते पुरूषों को पानी लाने में मजा आने लगा और इसी बहाने पुरूषों ने इस काम को अपनी जिम्मेवारी मानना शुरू कर दिया।

मीनाक्षी ने कहा…

पहले एक बार इस पोस्ट को पढ़कर लौट गई थी..आज अचानक 'ओपराह' की कही बात को दर्ज करने आ गई...उसने जबसे भारतीय महिलाओं और बच्चियों को दूर दराज से पानी भर कर लाते देखा तब से दांत साफ करने दौरान नल बन्द करना शुरु कर दिया...जाने हममें से कितने हैं जो ऐसा सोचते हों...घर में पानी की सुविधा होते हुए भी कम से कम इस्तेमाल करते हों...