कल फुटबॉल का नशा करने को नहीं मिला। आज तो हेंगोवर का दिन था। रात को जल्दी सो जाना चाहिए था, लेकिन देर तक नींद नहीं आई। मैं आज के अदालत के काम को ले कर परेशान था। कुल छह मुकदमे बहस में लगे थे। मैं सोच रहा था कैसे यह सब होगा। मैं किसी भी मुकदमे में तारीख नहीं चाहता था। जल्दी अदालत पहुँचना चाहता था कि घर से निकलते निकलते कुछ मुवक्किल आ गए। उन की समस्या का तुरंत कुछ हल निकालना था। उन से बात करते करते देरी हो गई और साढ़े ग्यारह पर अदालत पहुँचा। एक में बहस नहीं हो सकी क्यों कि नियोजक संगठन में कोई फेरबदल हुआ है। वकील का उस के मुवक्किल से संपर्क नहीं हो पा रहा है। वास्तव में अदालत के पास भी समय नहीं था। अदालत जिन मुकदमों में बहस सुन चुकी थी, उन में उसे निर्णय लिखाने थे। अब यह तो हो नहीं सकता कि आप दस मुकदमों में बहस सुन कर डाल दें और फिर समय की कमी से फैसला न कर पाएँ। दूसरे मुकदमे में अदालत के आदेश के बाद भी यह प्रकट किया कि आदेशित दस्तावेज उन के कब्जे में नहीं है। आखिर मुकदमे को गवाही के लिए बदल दिया गया। एक अन्य मुकदमे में तीन में से एक वकील का स्वास्थ्य खराब हो गया और बहस टल गई।
एक अदालत में एक साथ बहुत मुकदमे स्थानांतरित हो कर आने के कारण समय के अभाव में पेशी बदल गई। एक में प्रार्थी के वकील ने खुद की हार को देखते हुए बहस के दौरान यह आवेदन प्रस्तुत किया कि वे एक एक्सपर्ट डाक्टर की गवाही कराना चाहते हैं। हमने विरोध किया तो अदालत ने हमें विरोध जवाब के रूप में लिख कर देने के लिए तारीख बदल दी। कुछ मुकदमें अदालत में पिछले छह माह से जज के प्रसूती अवकाश पर होने के कारण ताऱीख बदल गई। यह अदालत पिछले छह माह से सभी मुकदमों में यही कर रही है। एक और मुकदमे पेशी अदालत में जज नियुक्त नहीं होने से बदल गई। कुल मिला कर कागजी प्रभाव का काम तो हुआ, लेकिन वास्तविक प्रभाव का नहीं। वास्तविक प्रभाव का काम ये हुआ कि तीन बार भिन्न भिन्न मित्रों के साथ बैठ कर कॉफी पी गई।
मैं दोपहर का वाकया बताना तो भूल ही रहा हूँ। अचानक लोकल चैनल वाले कैमरा लिए घूम रहे थे, मुझे पकड़ लियाष पूछने लगे कि भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए कोई कानून है क्या। मैं ने कहा कि कानून हो भी तो क्या। भिक्षावृत्ति तो बढ़ रही है और स्वाईन फ्लू की तरह नए नए रूप भी ग्रहण कर रही है। अदालत में जज नियुक्त नहीं है। रीडर को तारीख बदलनी है। लोग सुबह से अदालत में आए बैठे हैं, लेकिन रीडर साहब किसी सरकारी काम से जिला अदालत गए हैं और कैंटीन में बैठ कर किसी वकील के साथ चाय पी रहे हैं। चपरासी न्यायार्थी से कहता है कि रीडर साहब मुकदमों में तारीख बदली कर गए हैं। लिस्ट अंदर रख गए हैं, लेकिन वह बता सकता है। यह कहते हुए उस की आँखें चमक रही थीं। उस ने न्यायार्थी तो तारीख बता दी लेकिन ईनाम की फरमाईश कर दी। न्यायार्थी के सौ रुपए के नोट से कम के जितने नोट थे सब बख्शीश हो गए। शाम तक आई बख्शीश को रीडर व चपरासी ने पूरी ईमानदारी के साथ बांट लिया। बख्शीश न दो तो मांगने वाला इतनी गालियाँ और बद्दुआएँ देता है कि कोष छोटे पड़ने लगते हैं। इस भिक्षावृत्ति को रोकने का कोई कानून नहीं है ......... इतना कहते कहते तो कैमरामैन ने कैमरा बंद कर दिया। मुझे पक्का यकीन है कि वह इस क्लिप को शायद ही कभी दिखाए।
घर पर पत्नी जी से वायदा किया था कि आम ले कर आउंगा। पर भूल गया। घऱ में घुस जाने पर याद आया। एक जूनियर को फोन कर के कहा कि वह आम लेता आए। पत्नी ने चावल बनाए और आम का अमरस। यह डिश आज के दिन बनना जरूरी था। आज रथयात्रा और मेरे दिवंगत पिता जी का जन्मदिन जो था। हमने इस अमरस और बासमती चावलों के साथ आलू के पराठों का आनंद लिया। इस के साथ टीवी देखा। खबर सुन कर तबीयत खुश हो गई कि फ्रांस अब अपने देश में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगाने के करीब है। वहाँ की संसद के निचले सदन में एक के मुकाबले 336 मतों से यह बिल पारित हो गया। दुनिया में ऐसे देश बहुत हैं जहाँ न चाहते हुए भी और उन की संस्कृति का हिस्सा न होते हुए भी औरतों को बुरका पहनना होता है। अब कम से कम एक देश तो इस पृथ्वी के नक्शे पर होगा जहाँ स्त्रियों के बुरका पहनने पर पाबंदी होगी। शायद ही कोई आजाद औरत हो जो किन्हीं भी हालात में बुरका पहनना चाहे। वास्तव में इसी तरह महिलाओं को इस की कैद से आजादी मिल सकती है। वरना वे संस्कृति की कैद में घुटती रहती हैं। इस कैद से निकलने का अर्थ है परिवार और समाज में बहुत कुछ भुगतना।
दूसरी खबर ने तो तबीयत पूरी तरह खुश कर दी। विश्वकप फुटबॉल के हीरो कप्तान गोलकीपर आईकर कैसीलस ने उन का इंटरव्यू लेने आई उन की महिला मित्र सारा कार्बोनेरो को यह सवाल पूछने पर कि पहले मैच में तुम इतना बुरा कैसे खेले? लाइव दिखाए जा रहे इंटरव्यू के बीच चूम लिया। निश्चित ही ताने दे कर भी उन में जीतने का उत्साह पैदा करने वाली अपनी मित्र के लिए इस से बड़ा तोहफा इस जीत पर नहीं हो सकता था। एक चैनल ने पूरा गाना ही सुना ही सुना कर खुश कर दिया ........... मंहगाई डायन काहे खाए जात है.........
बस कल फिर इतने ही मुकदमे हैं, कुछ तैयारी कर ली गई है कुछ सुबह की जाएगी। पर कल आज जैसा नहीं हो सकता। कल कुछ न कुछ हासिल करना ही होगा।
13 टिप्पणियां:
लगता है अभी थॊडा थोडा शुमार है फ़ुट्बाल का, आप यहां आये आप को आलीशान स्टेडियम मै फ़ुट्बाल का मेच दिखायेगे, वेसे स्टेडियम मै मेच का मजा कम आता है, लेकिन रोनक बहुत होती है बस उसी का मजा आता है, आज का लेख आप का ऒर भी ठेर सारे रंग लिये है, बहुत सुंदर लगा. धन्यवाद
uttam aalekh..........
wah waah sir ji !
बहुत उम्दा पोस्ट वकालत से फुटबाल से गृहकार्य तक सब...
दिवंगत पिता जी के जन्मदिन पर उनकी पुण्य याद को नमन!
सुंदर लेख|
वो चुंबन इंटरव्यू खतम होने के बाद था|आपके पास जानकारी भरपूर है|
जश्न तो यहाँ खूब मना था| अभी तक खुमारी उतरी नहीं है|
देखते हैं कि ये चुम्बन अगले विश्व कप तक टिकेगा भी कि नहीं :)
सुखद संभावना ये कि अब फ़्रांस वालों के चुम्बन भी फोटोजेनिक हो जायेंगे :)
बाकी सब तो ठीक लेकिन ये अच्छे अच्छे खाने की बात पोस्ट में नहीं होनी चाहिए :)
सारा के गाल पर दो खरोंचे हैं -वे कैसे आयीं ? जब आप इतना सूक्ष्म अवलोकन कर ही रहे हैं तो बताईये न !
द्विवेदी सर,
माफ़ी चाहता हूं बड़े दिनों बाद कमेंट कर रहा हूं...लेकिन पढ़ता ज़रूर रहा हूं...
गागर में सागर वाली पोस्ट है...अदालत की तो पुरानी कहानी है तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख...
भ्रष्टाचार की भीख लेने वाले खाते भी है, गुर्राते भी है...
मुहब्बत के वर्ल्ड कप की झांकी भी बहुत खूब दिखाई...
जय हिंद...
आपका इंटरव्यू अच्छा लगा ...शुभकामनाएं, शायद दिखा ही दें !
फुटबाल के बहाने अदालतो की कार्यप्रनाळी के बारे मे भी कुछ पता चला। धन्यवाद।
वैसे पोस्ट का शीर्षक खुश कर देने वाली खबरें की जगह खुश कर देने वाले फोटो होते तो ज्यादा अट्रेक्टिव होता।
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पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
आखिरी खब़र तक की रिपोर्टिंग हो गयी।
फुटबाल अपनी समझ से परे है इसीलिए इससे जुडी आपकी तमाम पोस्टें बिना पढे ही डीलिट कर दीं।
बुर्का प्रतिबन्धवाली खबर ने मुझे भी भरपूर आनन्िदत किया।
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