@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शायर और गीतकार जावेद अख़्तर को मिली धमकी की निंदा और धमकी देने वाले के विरुद्ध त्वरित सख्त कार्रवाई की मांग करें।

शनिवार, 15 मई 2010

शायर और गीतकार जावेद अख़्तर को मिली धमकी की निंदा और धमकी देने वाले के विरुद्ध त्वरित सख्त कार्रवाई की मांग करें।

भारत देश का शासन संविधान से चलता है और वह इस देश की सर्वोच्च विधि है। इस विधि के अंतर्गत सभी को अपने विचार अभिव्यक्त करने की आजादी है। किसी भी मुद्दे पर इस देश का कोई भी नागरिक स्वतंत्रता पूर्वक अपने विचार अभिव्यक्त कर सकता है। कुछ दिनों पहले देवबंद के मुफ्तियों ने एक फतवा (कानूनी राय/Legal Opinion) जारी की गई थी कि मुस्लिम महिलाओं को मर्दों के साथ काम नहीं करना चाहिए, यह शरीयत के विरुद्ध है। इस फतवे से पूरे देश में एक बहस छिड़ी कि देश में हजारों महिलाएँ जो विभिन्न ऐसे कामों में नियोजित हैं जहाँ वे पराए मर्दों के संपर्क में रहती हैं, क्या उन्हें अपने काम छोड़ देना चाहिए?
सी प्रश्न पर एक टीवी चैनल ने एक परिचर्चा आयोजित की थी जिस में एक मुफ्ती, एक मुस्लिम महिला, एक अन्य मुस्लिम विद्वान और प्रसिद्ध शायर और गीतकार जावेद अख़्तर  शामिल थे। इस परिचर्चा में जावेद अख़्तर की राय थी कि फतवा शरीयत के अनुसार दी गई एक सलाह मात्र है। उसे मानना या न मानना लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है। उन का यह भी कहना है कि फतवे जारी होते रहते हैं, लेकिन बहुत कम लोग उन का अनुसरण करते हैं। दुनिया बदल गई है और अब लोगों को बदले हुए जमाने के साथ रहना सीख रहे हैं। बहुत सी पुरानी बातें हैं जो आज आम नहीं हो सकती। 
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित समाचार
जावेद अख़्तर साहब ने अपनी स्वतंत्र राय परिचर्चा में रखी। इस में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस से किसी का अपमान होता हो अथवा किसी को ठेस पहुँचती हो। उन्हों ने केवल एक सचाई बयान की थी और अपनी राय प्रकट की थी जो इस देश का नागरिक होने के नाते उन का मूल अधिकार है। लेकिन  इस देश में बहुत लोग हैं जो नहीं चाहते कि इस देश में लोग अपनी निर्भयता से अपनी स्वतंत्र राय रख सकें। वे नहीं चाहते कि भारत के लोग अभिव्यक्ति की आजादी का उपभोग कर सकें। उन्हे आज किसी ने ई-मेल के जरिए  जान से मारने की धमकी दी गई है। यह धमकी जनतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है और एक आतंकवादी हरकत है। मेरा मानना है कि देश के प्रत्येक नागरिक को इस धमकी की कठोर निंदा करनी चाहिए और महाराष्ट्र व  केन्द्र की सरकारों से अपील करनी चाहिए कि वे इस तरह का धमकी भरा मेल भेजने वाले शख्स का जल्द से जल्द पता लगाएँ और सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए त्वरित कार्यवाही करें।

20 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

मैंने यह खबर देखी, पर अब मामला समझ में आया कि धमकी क्यों दी गई?

मैं भी इस पोस्ट के समर्थन में हूँ.

honesty project democracy ने कहा…

ऐसे धमकियों से क्या डरना ,ये कायर लोग हैं जिनको इसके सिवा कोई काम ही नहीं /

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जावेद अख्तर जी न केवल संवेदनशील हैं वरन सामाजिक परिवेश की अच्छी समझ रखते हैं । कुछ न कुछ अर्थ लिये हुये होते हैं उनके वक्तव्य । बौद्धिक विरोध बौद्धिक स्तर पर ही हो तो ठीक ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

देवबन्द तो फतवे देता ही रहता है। न दे तो खबर बने।

Abhishek Ojha ने कहा…

थोड़ी देर पहले खबर दिखी किसी चैनल पर. प्रशांत की तरह २-४ मिनट देखने पर भी असली बात समझ में नहीं आई. अभी पता चला बात क्या थी.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सरजी, जावेद साहब की धर्मपत्नी को भी अल्पसंख्यक होने के नाते मकान नहीं मिल पा रहा था, अब मिल गया क्या???

Unknown ने कहा…

जिहादियों के हौसले यहां तक बढ़ाने में जाबेद अखतर जी का भी योगदान कम नहीं बताओ जरा पुलिस क्यों रक्षा करे इनकी जिन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

"भारत देश का शासन संविधान से चलता है"
देश के हर नागरिक को यह पट्टी अपने गले में लगाकर घूमना चाहिए
बड़ा अच्छा लगता है यह सुन पढ़ कर . जिस देश में हर दूसरे कदम पर कोई किसी को गाली दे रहा है पीट रहा है धमका रहा है वहाँ भी एक सविधान है !!!!!!!!!!!!!
जब किसी बड़े आदमी को धमकी मिलती है तो उसपर खबर बनती है, बहस होती और और और बहुत कुछ होता है . लेकिन आम आदमी ................. ?????????????
फतवा जारी करके खुले आम सविधान की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं तो क्या करती है इस देश की सरकार और न्याय व्यवस्था ?

Baljit Basi ने कहा…

संविधान तो एक देश पर ही लागू रहता है पर यहाँ तो ई-मेल का मसला है, अंतर्जाल पर किसका अंकुश है? अंतर्जाल की आड़ में कोई किसी को कुछ भी लिख सकता है. मसले का यह भी एक पहिलू है.

उम्मतें ने कहा…

सबसे पहले धमकी की निंदा फिर कानूनी कार्यवाही की मांग !

संजय बेंगाणी ने कहा…

जावेदजी को अपनी बात सभ्य-भाषा में रखने का पूरा अधिकार है.

वैसे जब जरूरत पड़ती है इन्हे अपनी अल्पसंख्यकता याद आ जाती है, अतः सहानुभुति इनके साथ नहीं है. शेष, धमकाने वाले को सजा मिले इसमें दो राय नहीं.

अफ़लातून ने कहा…

जावेद अख्तर की अल्पसंख्यक चेतना के हम कायल हैं। बेंगाणी बन्धुओं में जब कभी जैन चेतना जागती है तब भी एक संवेदना होती है ।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

ऊंचे लोग...ऊंची पसंद...
बेहतर प्रस्तुति....

M VERMA ने कहा…

यहाँ तो ऐसे ही होता है
हम सब ऐसे ही पचा जायेंगे

राज भाटिय़ा ने कहा…

भारतीय नागरिक - Indian Citizen से १००% सहमत है जी, कुछ समय पहले ही तो फ़िल्मो की एक हिरोईन जो इन की पत्नी है,ने एक ऎसा व्यान दिया तो उस समय यह नही बोले, अब हमे इन से य इन की बीबी से कोई सहानुभुति नही,इन के अपने धर्म की बात है,यह खुद जाने

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

आपके विचारों से सहमत हूँ.

Smart Indian ने कहा…

दुनिया भर में फ़ैली फतवा अदालतें तो अपनी सीमाओं का हरयाना की खाप अदालतों से ज़्यादा उल्लंघन करती रहती हैं. इन फतवों का मुखर विरोध होना ही चाहिए. शुरूआत सलमान रश्दी से माफी मांगने की मांग से की जा सकती है.

rajkumar bhakkar ने कहा…

dhamkiyan kaayar log hi dete hain........

ghughutibasuti ने कहा…

यह तो होना ही था, न होता तो खबर बनती।
घुघूती बासूती