अनवरत की यह 500वीं प्रस्तुति है। जब मैं ने अपना पहला ब्लाग 'तीसरा खंबा' आरंभ किया था तो मैं ने सोचा भी न था कि मैं कोई दूसरा ब्लाग जल्दी ही आरंभ कर दूंगा। लेकिन यहाँ बातचीत का जो माहौल था, उस ने मुझे प्रेरित किया कि मैं कानूनी विषयों के अतिरिक्त भी कुछ लिखूँ। तीसरा खंबा में उसे लिखा जाना उपयुक्त नहीं लगा। और अनवरत का जन्म हुआ।
जैसा कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है। वह पैदा होते ही कुछ सीखना आरंभ करता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। बोलना आरंभ करने के साथ ही वह कहना सीखता है। जो कुछ वह देखता है, अनुभव करता है, पढ़ता है उसे विद्यमान परिस्थितियों पर लागू करता है। तब उस के पास कुछ कहने को होता है, वही सब कुछ वह किसी न किसी माध्यम से अभिव्यक्त करता है। मैं ने भी अनवरत पर जो कुछ लिखा है वह सब यह अभिव्यक्ति है। अपनी स्वयं की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त मैं ने जो कुछ मुझे पसंद था वह भी प्रस्तुत किया। इस में कुछ मित्रों की रचनाएँ थीं। लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो मैं ने पढ़ा है और जिस ने मुझे प्रभावित किया है, जिस से मैं ने कुछ सीखा है। मैं चाहता था कि वह सब भी हिन्दी अंतर्जाल के पाठकों को उपलब्ध हो। मैं ने इस के लिए भी प्रयत्न किया और लगातार करता रहूँगा। मुझे जिन चीजों ने प्रभावित किया है उन में से एक कार्ल मार्क्स का दर्शन भी है। जिसे आजकल मार्क्सवाद, या मार्क्सवाद-लेनिनवाद, या फिर माओवाद के माध्यम से जाना-पहचाना जाता है वह मार्क्स के दर्शन का विस्तार है। उसे जाँचने , परखने और उस पर बहस की पर्याप्त गुंजाइश है।
मेरी नजर में मार्क्स का दर्शन, जिसे द्वंदात्मक भौतिकवाद भी कहा जाता है, जैसा कि मैं ने उसे जाना है और समझा है, वस्तुतः वह पद्यति है जिस से दुनिया चल रही है। मुझे वह इस भौतिक जगत के तमाम व्यवहारों को समझने का आज तक का सब से बेहतर तरीका प्रतीत होता है। इस पद्यति का निर्माण स्वयं मार्क्स ने नहीं किया। यह तो वह पद्यति है जिस से दुनिया चल रही है, मार्क्स ने तो उसे सिर्फ खोज निकाला है। मार्क्स की खोज निकाली हुई इस पद्यति को किसी भी रुप में आज तक कोई चुनौती मिली हो ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। सारे विवाद उस पद्यति का प्रयोग करते हुए दुनिया के बदलने के उपायों के संबंध में है। जो भी व्यक्ति या व्यक्ति समूह इस पद्यति को समझ लेता है वह अपने अनुसार दुनिया के व्यवहारों का मूल्यांकन करता है और दुनिया की परिवर्तन में अपने तरीके से योगदान करना चाहता है। यहीं वे त्रुटियाँ होती हैं जो आलोचना का कारण बनती हैं। दुनिया के व्यवहारों का मूल्यांकन करते समय उन के बारे में जुटाए गए तथ्यों की पर्याप्तता और सत्यता सदैव ही निष्कर्षों को प्रभावित करती है। यदि तथ्य पर्याप्त और सही नहीं हैं तो निष्कर्ष कभी भी सही नहीं हो सकते। आम तौर पर जो गलती होती है वह यहीं होती है। भारत में तो इस से आगे एक और बात है कि जो इस दर्शन को समझ कर यह सोच लेता है कि केवल दर्शन से दुनिया को बदला जा सकता है, वह तथ्यों को जुटाने पर कम से कम श्रम करता है और दर्शन की मदद से उन की कल्पना करने लगता है। फिर इन कल्पित तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालता है। अब आप अनुमान कर सकते हैं कि कल्पित तथ्यों के आधार पर काम करने वाला क्या कर सकता है?
मसलन किसी वैज्ञानिक प्रयोग में आप को किसी खास तापमान पर कोई अभिक्रिया आरंभ करनी है, उस से कम या अधिक तापमान पर नहीं। आप तापमान का अनुमान कर अभिक्रिया आरंभ कर देते हैं और तापमान कम या अधिक हुआ तो दोनों ही स्थितियों में इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते। आप अपने सारे प्रयोग और उस के लिए जुटाई गई सामग्री को नष्ट कर देते हैं और साथ ही समय भी नष्ट करते हैं।
खैर! वह सब विवाद का विषय है। आप समाज या दुनिया को बदलने न भी जाएँ तब भी मार्क्स का यह दर्शन किसी भी व्यक्ति के जीवन में रोजमर्रा के व्यवहारों को समझने और निर्णय लेने में सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होता है। क्यों कि इस के कारण आप सही सही तरह से यह जान पाते हैं कि आप के आस पास जो घटनाएँ और परिघटनाएँ घट रही हैं वे क्यों घट रही हैं और वे आगे क्या रूप ले सकती हैं। आप को अपने निर्णय लेने में बहुत सुविधा होती है। हालांकि यहाँ भी परिणाम इसी बात पर निर्भर करते हैं कि आप ने मूल्यांकन के लिए पर्याप्त और सही तथ्यों को जुटाया है अथवा नहीं।
इस समय अनवरत पर मैं एंगेल्स की पुस्तिका "वानर से नर बनने में श्रम की भूमिका" प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे समाप्त होने में दो सप्ताह लग सकते हैं। इस के साथ ही यहाँ यादवचंद्र जी के प्रबंध काव्य " परंपरा और विद्रोह" का एक एक सर्ग भी प्रस्तुत किया जा रहा है। दोनों ही बहुमूल्य निधियाँ हैं। पूरा हो जाने के उपरांत इन्हें ई-बुक के रूप में अंतर्जाल पर सहेजने की योजना है। जिस से हिन्दी के इच्छुक पाठकों को इस का लाभ मिल सके। इस से निश्चय ही अंतर्जाल पर स्थाई रूप से उपलब्ध हिन्दी सामग्री की वृद्धि में मेरा भी कुछ योगदान हो सकेगा।
मुझे विश्वास है कि आप इस ब्लाग पर आते रहेंगे।
21 टिप्पणियां:
aapko 500vi post ke liye hardik badhai
बहुत-बहुत बधाई सर.. ये निश्चय ही एक उपलब्धि है.. अगर मैं सही हूँ तो हिंदी ब्लॉगजगत में अगर पत्रकारिता के ब्लोगों को छोड़ दें तो इतनी पोस्ट किसी और ने एक ब्लॉग पर पोस्ट नहीं कीं.. मैं सही हूँ क्या?
वाह! बधाई पांचवा सैकड़ा लगाने के लिये। आगे के लिये भी मंगलकामनायें।
@ दीपक मशाल,
सवाल ५०० पोस्ट का नहीं होना चाहिए, सवाल होना चाहिए की आप लिख क्या रहे हैं ? वकालत जैसे पैसे वाले पेशे से जुड़े होने के वावजूद दिनेश राय द्विवेदी जो कार्य कर रहे हैं वह अद्वितीय ही है ! मेरे ख़याल से मुख्या वधाई अनवरत लिखना और स्वच्छ लिखना है !
शुभकामनायें स्वीकार करें द्विवेदी जी ....यह मील का पहला पत्थर है !
आपको ढेर सारी शुभकामनाएं 500वीं पोस्ट की।
हार्दिक बधाई,यह सफ़र अनवरत जारी रहे।
पांच सौवीं चिट्ठी पर बधाई।
बहुत बहुत मुबारकबाद सर बहुत बहुत बधाई । वाह अभी तो ये सब अनवरत चलना है , हम सदैव आपको पढना चाहेंगे हमेशा ही । शुभकामनाएं ।
५०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई. आप हिंदी ब्लॉग्गिंग के स्तम्भ है. इसी तरह ज्ञानवर्धक लेख लिखते रहे, ऐसी मेरी शुभकामना है.
आपने वकालत को IT के आधुनिक रूप में ढालकर एक महत्वपूर्ण काम किया है. समय के साथ चलने वाले और वर्तमान से भी आगे जाकर सोचने वाले आप जैसे प्रेरणा दायी लोग ही वर्तमान पीढ़ी को सच्चे अर्थो में आगे ले जाने के द्योतक हो सकते है. जैसा की ब्लॉग का नाम है, अनवरत चलता ही रहे आपका लेखन :)
राम त्यागी
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/
500 वीं पोस्ट के लिये बधाई । आपकी पोस्ट में समय लगता है लेकिन अच्छा भी लगता है ।
सक्सेना जी से सहमत ! शुभकामनायें !
badhai saheb, aapne is blog ka naam bahut soch samajh kar rakha ho ya bas ek pal me, lekin hai yah anvarat hi.
aapki pichhali kai post se kafi kuchh jana, sikha-samjha....
isliye jaari rahe yah anvarat hi...
bas yahi shubhkamnayein hai, hujur...
सब से पहले आप को ५०० वी पोस्ट की बधाई.फ़िर इस सुंदर लेख के लिये धन्यवाद
बधाई हो पञ्च-शतक की !
वह भी अनवरत ! अनथक !
प्रेरणा-प्रद ! सार्थक !
.......
'अनवरत' पर मैं अनवरत नहीं रहा पर
पर जितना भी जाना-समझा उसके आधार पर
आपकी क्रान्तिधर्मी यात्रा को लाल सलाम !
बहुत बेहतरीन सफर रहा वकील साहब!! ५०० पोस्ट पूरी करने की बधाई और हजारे के लिए शुभकामनाएँ.
बहुत बधाई। किसी विचार के प्रति इस स्तर की प्रतिबद्धता, जैसी आप की है, बहुत कम दीखती है।
बढ़िया पोस्ट!
आदरणीय द्विवेदी जी,
५०० वां चरण पूर्ण करने के लिए बहुत-बहुत बधाई!
सादर!
It's Party time !
Congratulations and best wishes for another 500 posts.
Divya
अरे वाह, 500वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई।
बधाई हो द्विवेदी जी,
नवम्बर 2007 से मई 2010 यानी ढाई साल में 500 पोस्ट॥ मतलब एक साल में दो सौ। अजी हम तो एक साल में सौ पर भी नहीं पहुंच पाते।
पांचसौ वीं पोस्ट की बधाईयों के बीच दर्शन और पद्धति की महत्वपूर्ण बात पर बात होने से रह गई...
एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात उठाई है आपने...आभार...
जब से हूँ यहाँ निरन्तर पढ़ रहा हूँ आपको ! सार्थक और समर्पित यात्रा है ५०० प्रविष्टियों की !
हार्दिक बधाई !
परंपरा और विद्रोह को ई-बुक के रूप में पा सकना संतोष देता है !
आभार ।
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