भारत देश का शासन संविधान से चलता है और वह इस देश की सर्वोच्च विधि है। इस विधि के अंतर्गत सभी को अपने विचार अभिव्यक्त करने की आजादी है। किसी भी मुद्दे पर इस देश का कोई भी नागरिक स्वतंत्रता पूर्वक अपने विचार अभिव्यक्त कर सकता है। कुछ दिनों पहले देवबंद के मुफ्तियों ने एक फतवा (कानूनी राय/Legal Opinion) जारी की गई थी कि मुस्लिम महिलाओं को मर्दों के साथ काम नहीं करना चाहिए, यह शरीयत के विरुद्ध है। इस फतवे से पूरे देश में एक बहस छिड़ी कि देश में हजारों महिलाएँ जो विभिन्न ऐसे कामों में नियोजित हैं जहाँ वे पराए मर्दों के संपर्क में रहती हैं, क्या उन्हें अपने काम छोड़ देना चाहिए?
इसी प्रश्न पर एक टीवी चैनल ने एक परिचर्चा आयोजित की थी जिस में एक मुफ्ती, एक मुस्लिम महिला, एक अन्य मुस्लिम विद्वान और प्रसिद्ध शायर और गीतकार जावेद अख़्तर शामिल थे। इस परिचर्चा में जावेद अख़्तर की राय थी कि फतवा शरीयत के अनुसार दी गई एक सलाह मात्र है। उसे मानना या न मानना लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है। उन का यह भी कहना है कि फतवे जारी होते रहते हैं, लेकिन बहुत कम लोग उन का अनुसरण करते हैं। दुनिया बदल गई है और अब लोगों को बदले हुए जमाने के साथ रहना सीख रहे हैं। बहुत सी पुरानी बातें हैं जो आज आम नहीं हो सकती।
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