हे, पाठक!
अगले दिन जब अखबार देखा तो पता लगा वाकई प्रान्त के भूतपूर्व और वर्तमान मुख्यमंतरी नगर में पधारे थे, एक वायरस पार्टी का तो दूसरा बैक्टीरिया पार्टी का। बैक्टीरिया पार्टी वाला कह रहा था कि वायरस पार्टी की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर था। उस को को फिजूलखर्ची बहुत सुहाती थी सरकार के स्तर पर भी और व्यक्तिगत स्तर पर भी। नतीजा हुआ कि भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच गया। वायरस पार्टी के लोग ही अपनी सरकार पर पाँच हजार करोड़ का घोटाला करने के आरोप लगाते रहे। वायरस मुख्यमंतरी ने अपने चुनाव क्षेत्र के नगर में कंक्रीट की सड़कें बिछा कर विकास किया, जिस से हर गली में वायरस की कार को जाने में परेशानी न हो। लेकिन सड़कों के किनारे बनी नालियाँ सड़ती रहीं। वायरस मुख्यमंतरी प्रान्त भर में अपने बड़े-बड़े मुस्कुराते चित्रों के बच्चे को रोज एक गिलास दूध पिलाने की हिमायत करता रहा, लेकिन दारू की दुकानें इतनी खोल दीं कि पिताओं का पैसा दारू में चला गया, बच्चे का दूध कहाँ से आता? बैक्टीरिया पार्टी का ताजा मुख्य मंतरी पार्टी के प्रान्तीय अध्यक्ष को भी साथ लाया था जिस के चेहरे पर मात्र एक वोट से हार जाने की मायूसी पसरी थी। दोनों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक की। अभी तक वे क्षेत्र से पार्टी का उम्मीदवार तय नहीं कर पाए थे, इस लिए घोषणा नहीं कर सकते थे। वे कार्यकर्ताओं को परख रहे थे कि किस उम्मीदवार के साथ वे सब खड़े हो सकेंगे?
हे, पाठक!
आज कल इन पार्टी वालों को एक अजीब संकट है। पार्टी जिसे अपना उम्मीदवार बनाती है, वह कुछ को पसंद आता है, ज्यादातर को नहीं। कार्यकर्ता को जिस समय उम्मीदवार का प्रचार करना होता है, उसे उसी वक्त उम्मीदवारी का विरोध करने में श्रम करना होता है। धीरे-धीरे जब गुस्सा शांत होता है, तो वे पार्टी का झंडा तो अपने घर-द्वार पर लटका देते हैं पर मन में निमोलियाँ फूटती रहती हैं। दिखाने को उम्मीदवार के काफिले में भी चलते हैं, लेकिन मन ही मन सोच रहे होते हैं कि यह हार जाए तो संकट टले। अब की बार अपने गुरू का नंबर लगे। इस संकट से बचने को बैक्टीरिया पार्टी ने नई तरकीब अपनाई। उस ने पहले कार्यकर्ताओं को प्रचार में झोंक दिया, अब उम्मीदवार की तलाश जारी है।
हे, पाठक!
वायरस पार्टी ने उम्मीदवार की घोषणा में बाजी मार ली। सरकारी दफ्तर से बिलकुल नया उम्मीदवार पकड़ निकाला। देखो! हम कैसा सुंदर उम्मीदवार आप के लिए लाए हैं। अब तक राजनीति से बिलकुल अछूता, भ्रष्ट करने वाला दाग नहीं; जैसे पार्टी उम्मीदवार के प्रचार के स्थान पर सेब बेच रही हो। यह भ्रष्ट हो ही नहीं सकता, राजनीति में था ही नहीं। पर आप सोच सकते हैं कि सरकारी दफ्तर का इंजिनियर अफसर हो, और लोगों को विश्वास हो जाए कि वह भ्रष्ट नहीं रहा होगा, यह संभव ही नहीं है। आप ही बताइए, वेश्याओं के मुहल्ले से आई किसी खूबसूरत औरत पर, जो नाज-नखरे दिखा-दिखा कर आप को रिझा रही हो, क्या कोई यह विश्वास कर सकता है क्या कि वह आप के साथ सातों वचन निभाएगी? वायरस मुख्यमंतरी अपनी पार्टी के बेदाग सेब जैसे उम्मीदवार के भव्य चुनाव कार्यालय का उद्घाटन करने पहुँचा। उद्घाटन के ठीक पहले बिजली चली गई, अंधेरा छा गया। बैक्टीरिया की नई सरकार पर षड़यंत्र कर के बिजली गुल करने के आरोप लगाए जाने लगे। बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। इंतजार होने लगा कि बिजली आ जाए। कोई-कोई इसे अपशगुन भी कहने लगा। पर पण्डित जी बोले मुहूर्त निकला जा रहा है। वायरस मुख्यमंतरी ने अंधेरे में ही फीता काट दिया।
हे, पाठक!
यह नमूना है, उस तंत्र का जिसे जनतन्तर कहते हैं, लेकिन जो जनतन्तर है नहीं। जनतन्तर होता तो पार्टी में मेंबर बनाने की कुछ तो योग्यता होती, कुछ तो दायित्व होते? पर यहाँ तो कुछ भी नहीं। कोई आया और फारम भर गया, मेंबर हो गया। फारम भी दिखाने को भरने पड़ते हैं जिस से मेंबरशिप दिखा सकें। मेंबर को उस के बाद कोई पूछता तक नहीं, नगर पालिका मेंबर की उम्मीदवारी किसे दें यह तक उस से पूछा नहीं जाता। सब कुछ ऊपर बैठे टॉप वायरस-बैक्टीरिया ही तय कर लिया करते हैं, बरसों के मेंबर झाँकते रह जाते हैं। बिना मेंबर बने ही सेब-नाशपाती को टिकट मिल जाता है। असली जनतन्तर तो अभी सात समुंदर पार दिखता है, जहाँ पार्टी की उम्मीदवारी के लिए पहले पार्टी में काम करना पड़ता है और फिर मेंबरों के वोट तय करते हैं कि कौन उम्मीदवार होगा? जैसे बालक घर में टीचर-स्टूडेंट का खेल खेलते हैं, वैसे ही भारतवर्ष के बालिग लोग जनतंतर-जनतंतर खेल रहे हैं।
हे पाठक!
कुछ दिन यह जनतंतर-जनतंतर का खेल खेला जाएगा। इस में जनता को वोट देने को भी कहा जाएगा। लेकिन जनता किसे वोट दे? एक तरफ बैक्टीरिया तो दूसरी तरफ वायरस। ये दोनों रहेंगे तो हरारत भी होगी और बुखार भी झेलना पड़ेगा।
समय हो चला है, आज की कथा को यहीं विराम।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
7 टिप्पणियां:
आनन्दम - आनन्दम
सही कह रहे है । इस बैक्टीरिया और वायरस से बचने का कोई उपाय नही है ।
हल बदतर हैं -क्या किया जाये .सभी संक्रमित होने वालें हैं .
हे कथावाचक,
जनतंतर-मनतंतर की जन्म-जन्मान्तर, युग-युगांतर कथा हमें बहुत सोहायी. सो, हे कथावाचकश्रेष्ठ, हम आगे की कथा की प्रतीक्षा में बैठे हैं. आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है जनतंतर अनंत जनतंतर कथा अनंता. अतः हे वाचकश्रेष्ठ, आप पुनः आईये और आगे की कथा सुनाईये....:-)
हम यह जानने के लिए व्याकुल हैं कि वैक्टीरिया ने ज्यादा काट-काट मचाई या वायरस ने.
वेश्याओं के मुहल्ले से आई किसी खूबसूरत औरत पर, जो नाज-नखरे दिखा-दिखा कर आप को रिझा रही हो, क्या कोई यह विश्वास कर सकता है क्या कि वह आप के साथ सातों वचन निभाएगी?
वाह कया बात कही आप ने सॊ टके की... अच्छा है इन मै से किसी भी कमीने को वोट मत दो, लेकिन सब मिल कर वोट ना दे...
धन्यवाद
संक्रमण काल चल रहा है। बच सकते हैं तो बचा लें अपने आप को
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे किम कुर्वत वायरस बैक्टीरियाश्च?!
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