@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जमाना है परेशान, वाकई परेशान!

मंगलवार, 31 मार्च 2009

जमाना है परेशान, वाकई परेशान!

जमाना है परेशान!

जमाना है परेशान
वाकई परेशान!

आमादा भी है
उतर भी आता है
लड़ने पर
करता है प्रहार भी
हम पर

वह हो जाता है
और परेशान
देख कर अपने हाथ
लहूलुहान
और हमारे चेहरे की
नयी ताजी मुस्कान।

जमाना है परेशान।
वाकई परेशान!

यह कोई कविता नहीं है। यह एक प्रतिक्रिया है, जो मैं ने रविकुमार के ब्लाग की ताजा पोस्ट पर प्रकाशित कविता पर की है।  रविकुमार बेहतरीन कवि हैं।  जितने बेहतरीन कवि हैं उस से अधिक बेहतरीन वे चित्रकार हैं।  अनेक पत्रिकाएँ उन के रेखाचित्रों से अटी पड़ी हैं। अनेक पत्रिकाओं के मुख पृष्ठ उन के रेखाचित्रों से सजे हैं। उन्हों ने देश के नामी कवियों की सैंकड़ों कविताओं के साथ प्रासंगिक चित्रांकन कर उन्हें पोस्टरों में बदला है।  पेशे से वे इंजिनियर हैं,  पर प्रकृति से एक संपूर्ण कलाकार।
मैं चाहता हूँ आप उन के ब्लाग "सृजन और सरोकार" पर जाएँ और खुद देखें कि जो कुछ मैं ने उन के बारे में कहा है वह कितना सच है?

11 टिप्‍पणियां:

L.Goswami ने कहा…

प्रतिक्रिया ही कभी कविता होती है , कभी कहानी ..तो कभी चित्र ..मन के भाव अभिव्यक्ति का साधन खोजतें हैं

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बडी सुंदर प्रतिक्रिया है. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

sandeep sharma ने कहा…

वह हो जाता है
और परेशान
देख कर अपने हाथ
लहूलुहान
और हमारे चेहरे की
नयी ताजी मुस्कान।

जमाना है परेशान।
वाकई परेशान!

बहुत खूब...

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

कविता और चित्रकला का अनूठा संगम। इसे ही शायद कहते हैं मणि-कांचन संयोग।

अनूप शुक्ल ने कहा…

आप काहे परेशान हो जी। कसाब का केस तो उनको लड़ना है। :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

सुँदर कविता के साथ जुगलबँदी भली लगी

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

जमाना है परेशान।
वाकई परेशान!..
सही चित्रण किया है .रचनाकार को बधाई .

shama ने कहा…

Dinesh ji,
Any blogparse aapka link leke yahan pohochi hun.."abhiwyakti" kabhi khulta nahee, aisa kyon?
Khair, aapne ateev sundar kalakaarse parichit karaya...bohot dhanywad!
"kuchh to kora rahe", is alfazonpe aapki pratikriya padhee...halanki, apse sehmat hun...phirbhi, meree pratikriya,un panktiyonko padh kuchh aisee huee," ham kitnaahee chahen ,ki znidageeka ek to kona bedag rahe, par mumkin nahee hota, kahee na kaheense, ye daag use pakad hee letaa.."yaa kuchh isitarahse likha hai...

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद द्विवेदी जी,
इस नाचीज़ खा़कसार की हौसलाअफ़ज़ाई के लिये..

कविता ने आपके कवि मन को उद्वेलित किया...
और एक सुन्दर सी कविता फूट पडी़.....

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही सुंदर