@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बालिकाओं से बलात्कार की शर्मनाक घटनाएँ और नागरिकों की सकारात्मक भूमिका।

शनिवार, 14 मार्च 2009

बालिकाओं से बलात्कार की शर्मनाक घटनाएँ और नागरिकों की सकारात्मक भूमिका।

मेरे नगर कोटा में धुलेंडी की रात को घटी दो बहुत शर्मनाक घटनाएँ सामने आईं।  दोनों बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ।  नगर के कैथूनीपोल थाना क्षेत्र के कोलीपाडा इलाके में बुधवार को एक अधेड ने सात वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार किया।  लेकिन पुलिस ने अभियुक्त को शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार किया जिस से  गुरूवार को उसकी जमानत हो गई।   अभियुक्त ने गुरूवार को पीडिता के परिजनों को धमकाया।   इससे लोगों का आक्रोश फूट पडा और उन्होंने महिला संरक्षण समिति की अध्यक्ष संगीता माहेश्वरी के नेतृत्व में थाने में प्रदर्शन किया।  बाद में पुलिस द्वारा बलात्कार मामला दर्ज करने पर ही लोग शांत हुए।
दूसरी घटना रेलवे कॉलोनी थाना क्षेत्र में हुई जिस में एक ठेकेदार ने उस के यहाँ नियोजित श्रमिक की नाबालिग पुत्री का अपहरण कर बलात्कार किया।  अर्जुनपुरा के पास बारां रोड पर एक ठेकेदार ने सडक का पेटी ठेका ले रखा है।  एक श्रमिक दम्पती अपनी नाबालिग पुत्री के साथ ठेकेदार के पास रहकर मजदूरी करते हैं।  बुधवार रात ठेकेदार श्रमिक की नाबालिग पुत्री को बहला-फुसलाकर भगा ले गया।  पुलिस को जब घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने उसकी खोज शुरू की।  इस बीच श्रमिक व उसके साथी ठेकेदार को तलाशते हुए बून्दी जिले के इन्द्रगढ के केशवपुरा गांव पहुंच गए।  गांव में ठेकेदार के छिपे होने की जानकारी पर लोगों ने गांव को घेर लिया।  ठेकेदार एक घर में किशोरी के साथ छिपा मिला जिसे लोगों ने पुलिस को सौंप दिया।  किशोरी की शिकायत पर पुलिस ने धारा 303, 366 व 376 में मामला दर्ज कर लिया।

ये दोनों घटनाएँ बहुत शर्मनाक हैं और दोनों ही घटनाओं में बालिकाएँ कमजोर वर्गों से आती हैं।  लेकिन इन दोनों घटनाओं में नागरिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  पुलिस की भूमिका पहली घटना में अपराधी को बचाने और मामले को रफा-दफा करने की रही लेकिन नागरिकों की सजगता और तीव्र प्रतिक्रिया ने पुलिस को कार्यवाही करने को बाध्य. कर दिया।  दूसरी घटना में भी नागरिकों ने खुद कार्यवाही कर अभियुक्त को पकड़ लिया और बालिका को उस के पंजों से छुटकारा दिलाया।  नागरिक इस तरह जिम्मेदारी उठाने लगें तो समाज में बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।   वे सभी नागरिक अभिनन्दनीय हैं जिन्हों ने इन दोनों घटनाओं में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा की है।   इन दोनों घटनाओं की आगे की कड़ियों पर भी नागरिक नजर रखेंगे तो अपराधी बच नहीं पाएँगे।

16 टिप्‍पणियां:

Archana Chaoji ने कहा…

जानकर दुख होता है कि लोग इतने वहशी होते हैं,वही सुखद पहलू यह है कि लोग जाअगरूक हो रहे है ।सही दिशा मे पहल करने से सफ़लता जरूर मिलेगी ।दोनो घटनाओं मे पीडित पक्ष को न्याय मिले यही ईश्व्रर से प्रार्थना ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

दुखद है यह सब! मुश्किल यह भी है कि पकड़े जाने के बाद नागरिक उस तरफ़ ध्यान न दे पायेंगे और वे लोग जुगाड़ करके छूट सकते हैं!

Smart Indian ने कहा…

भविष्य में इस सकारात्मक पहल के अच्छे पारिणाम सामने आयेंगे!

रेवा स्मृति (Rewa) ने कहा…

Aise logon ko to chodna hi nahi chahiye balki aisi mout marni chahiye ki jo kisi ko na mila ho. Darinde hain.


http://rewa.wordpress.com/2009/01/10/is-there-any-strong-punishment-available/

अजित वडनेरकर ने कहा…

शर्मनाक है...

ghughutibasuti ने कहा…

दुखद बात यह है कि ये घटनाएँ चहुँओर घट रही हैं। यहाँ के समाचार पत्र में भी एक सात वर्षीय बच्ची के साथ न केवल बलात्कार अपितु चाकू से उसके यौनांगों को काटने व फिर पत्थर मार मारकर उसकी हत्या कर उसके शव को दफनाने की भी खबर है। यह व्यक्ति बच्ची का रिश्तेदार था व मेहमान बन उनके घर आया था।
प्रश्न यह उठता है कि न तो जरा सी बच्ची में यौनाकर्षण रहा होगा, न ही उसने किसी संस्कृति के नियमों को तोड़ा होगा, न ही उसने भड़कीले (?)वस्त्र पहने होंगे। क्या स्त्री होना ही इन अपराधों को बुलावा देना है? कड़े कानून माँगने का कोई अर्थ नहीं है। यदि जो कानून हैं उनके अनुसार ही अधिक से अधिक अपराधियों को सजा दी जाए तो पकड़े जाने व सजा मिलने के भय से समस्या कुछ कम हो जाएगी।
मेडिकल जाँच न करवाने वाले व अपराध न दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों को भी अपराधी ही माना जाना चाहिए।
घुघूती बासूती

Shiv ने कहा…

घटनाएं शर्मनाक हैं. पुलिस द्बारा अपराधी को बचाना और शर्मनाक है.
नागरिकों द्बारा किया गया काम सराहनीय है. आशा है प्रशासन और पुलिस पर नागरिकों द्बारा दबाव बनाया रखा जायेगा. अपराधी को सज़ा मिले, यह देखना बहुत ज़रूरी है.

bhuvnesh sharma ने कहा…

नागरिक तो हमेशा ही अभिनन्‍द‍नीय हैं जी....ये तो आजकल के तथाकथित बुद्धिजीवियों के प्रभाव के कारण चहुंओर हवा उड़ रही है कि जनता ही वर्तमान परि‍स्थितियों के लिए जिम्‍मेदार है...जनता को गाली देने का फैशन है जी....जबकि आप इतने सालों से वकालात में रहे हैं आपने स्‍वयं देखा होगा कि कानून व्‍यवस्‍था लागू कराने वाली एजेंसियां और प्रशासन अपना काम सही ढंग से करें तो किसी की हिम्‍मत नहीं है कि चूं भी कर सके....पर चूंकि अपराध नहीं होंगे तो पुलिस क्‍या करेगी, जेब कैसे भरेगी...इसलिए अपराधों का होना बहुत जरूरी है...या यों कहें कि समाज के अपराधीकरण में पुलिस, प्रशासन और सरकार का ही हाथ है....जबकि अब लोग तक ये कहते मिल जायेंगे कि नहीं साहब वो तो जनता ही दुष्‍ट है वरना तो सब जगह राम-राज्‍य होता.....जनता ने तो नहीं कहा था कि मनमोहन जैसे 10 जनपथ के सेवक को हमारे सर पर बैठाओ....आगे देखिए जी आचार संहिता लग ही चुकी है...चुनाव आयोग का महीने-भर का चुस्‍त प्रशासन इनके 50 साला कुशासन पर भारी पड़ेगा.....पर शहाबुद्दीन जैसों और मुलायम-अमर जैसे देशद्रोहियों की कृपा पर जहां सरकारें चलती हों वहां कानून-व्‍यवस्‍था की बात भी मजाक है....फिर भी गुस्‍सा तब आता है जब लोग इसके लिए उल्‍टा जनता को ही गाली देने लगते हैं....

बेनामी ने कहा…

we should be ashamed of such conducts but on the contrary once these culprits are out they will be boasting of their .....

अनिल कान्त ने कहा…

लोग अब जागरूकता दिखा रहे हैं ...न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं ये जानकार बहुत अच्छा लगा

विष्णु बैरागी ने कहा…

समूचा विवरण यही बताता है कि अन्‍याय के विरूघ्‍द लोगों को खुद ही मैदान मे आना पडेगा। 'व्‍यवस्‍था' की मनमनी पर अंकुश लगाने का और कोई उपाय नहीं है। जो 'कुछ' पाना चाहते हैं उन्‍हें 'बहुत कुछ' खोने के लिए और जो 'जीना' चाहते हैं उन्‍हें 'मरने' के लिए तैयार होकर मैदान में आना पडेगा।

आपका यह विवरण लोक शक्ति का न केवल 'परिणामदायी प्रभाव' साबित करता है अपितु उसकी सक्रियता की आवश्‍यकता भी उजागर करता है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शर्मिंदगी की बात है और लोग जागरुक हो रहे हैं ये शुकुन की बात है.

रामराम.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ऐसे ही जागरूक नागरिक चाहियें देश को।

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

नागरिकों की जागरूकता ही ऐसी घटनाओं और भृष्ट पुलिस वालों की लीपापोती पर लगाम लगा सकती है।

Anita kumar ने कहा…

जनता को अपराधी के साथ साथ पुलिस वालों को भी पत्थर मार मार कर अधमरा कर देना चाहिए था, ताकि पुलिस कर्मियों को याद रहे कि राजनैतिक आकाओं के सिवा कोई और भी आका है उनके

दर्पण साह ने कहा…

dukh kshob aur usse zayada gussa aata hai....

....kya isi dharti main peda hue the ram?