हे, पाठक!
जब भरतखंड के टुकड़े कर के परदेसी बनिया चलता बना तो बड़ा टुकड़ा मिला उसे भरतखंड कैसे कहते सो इस का नाम रखा भारतवर्ष। यह भारतवर्ष भी बहुत ही विवधताओं का देश बना। अनेक प्रकार की संस्कृतियाँ, जीवन पद्यतियाँ, बोलियाँ, भाषाएँ, धर्म, सम्प्रदाय और आर्थिक व सामाजिक विषमताएँ। सब को संतुष्ट रखते हुए इसे विकास पथ पर ले चलना मेंढकों को तराजू में तौलने से भी सहस्तर गुना भीषण काम था। सब से पहली चुनौती तो थी पूरे भारतवर्ष के बड़े खंडों को एक रख पाना, एक विधान के साथ राज चलाना। पर उसे कर लिया गया। बस एक रियासत को विशेष दर्जा देना पड़ा। यह विशेष दर्जा देना ही भारतवर्ष के लिए माइग्रेन बन गया। जैसे माइग्रेन का कोई स्थाई इलाज नहीं, इस समस्या का भी कोई इलाज नहीं। बस यह करते रहो कि जब दर्द हो तब गोली खा लो, पानी पी लो और सो जाओ। दर्द सहन नही हो तो किसी ओझा-मोझा, बाबा-शाबा की शरण ले लो। अब मैं जनतंतर और चुनाव की बात पर आता हूँ। विधान के अनुसार बहुत सारे बड़े खंड बनाए थे। कुछ बाद में बन गए। इन खंडों पर खंड सरकारें राज करती हैं। भारत वर्ष इन खंडो का संघ हुआ। संघ की एक सरकार हुई। संघ को चलाने के लिए एक महापंचायत बनाई गई। इस महापंचायत के दो हिस्से हुए। ऊपर का हिस्सा खंड सभा हुआ हर खंड की आबादी के अनुपात में इस में पंच चुन कर भेजे जाते हैं। एक महासभा हुआ जिस में भारतवर्ष में आबादी के अनुपात में अनेक खेतों में बांट दिया गया है। हर खेत से एक सदस्य निचले सदन में जाता है। यह महासभा कैसे सरकार बनाती है यह मैं कल बता ही चुका हूँ।
हे, पाठक!
आज कल भारतवर्ष में इन खेतों से पंचों का चुनाव किए जाने का समय चल रहा है। बहुत ही पवित्र वेला है। वैसी ही जैसी महाभारत के पहले थी। जैसे दुर्योधन और युधिष्ठिर ने अपनी अपनी पार्टी की ओर से लड़ने को संपूर्ण भरत खंड के राजाओं और योद्धाओं को अपनी अपनी ओर मिलाया था। वैसा ही कुछ अब हो रहा है। लेकिन बहुत सारा अंतर भी है। वहाँ युद्ध दो पार्टियों में था और सारे योद्धा दो भागों में स्पष्ट रूप से बंट गए थे। यहाँ दो से अधिक पार्टियाँ हैं। योद्धा भी अनेक हैं। लेकिन अभी स्पष्ट नहीं है कि कितनी पार्टियाँ हैं? यह भी स्पष्ट नहीं है कि कौन किस ओर है? युद्ध के प्रारंभ तक कौन किस ओर रहेगा? यह भी स्पष्ट नहीं है कि युद्ध की समाप्ति पर कौन किस ओर रहेगा? सब से अनोखी बात तो यह है कि कोई भी पार्टी ऐसी दिखाई नहीं पड़ रही है कि वह युद्ध जीत ले और राज संभाले।
हे, पाठक!
यह युद्ध एक बात में महाभारत से अलग है। वहाँ युद्ध की तारीख तय नहीं थी। यहाँ युद्ध की तारीखें तय हैं कि किस-किस खेत में युद्ध कब-कब होगा? युद्ध सुबह से शाम तक कितने घंटे का होगा? सब कुछ तय है। खेतों में युद्ध समाप्त होने पर उस का नतीजा सारे युद्धों की समाप्ति तक गोपनीय रहेगा। फिर एक साथ नतीजे बताए जाएंगे। युद्ध के नतीजे आने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि किस किस पार्टी ने कितने कितने खेत जीते। जिस के पास सब से ज्यादा खेत होंगे वही राज संभालेगा? युद्ध के नियम तय कर दिए गए हैं। युद्ध की आचार संहिता बना दी गई है। जो भी आचार संहिता को तोड़ेगा उसे सजा दी जाएगी। लेकिन वाह रे जनतंतर तेरी महिमा! आचार संहिता तोड़ने वाले को युद्ध से वंचित नहीं किया जाएगा। वह जेल जा सकता है, पर वहाँ से भी युद्ध में शामिल रह सकता है। कई योद्धा तो ऐसे हैं कि बाहर रह कर जितना घमासान युद्ध कर सकते हैं उस से कहीं अधिक घमासान जेल में जा कर कर सकते हैं।
हे, पाठक!
जनता को भी पता है कि किसी एक पार्टी के योद्धा आधे से अधिक खेत नहीं जीत पाएंगे। पार्टियों के गुटों के योद्धा भी आधे से अधिक खेत नहीं जीत पाएंगे। फिर भी राज चलाने का निर्णय तो होगा ही। फिर जिन पार्टियों के योद्धा अधिक खेत जीतेंगे वे छोटी पार्टियों के योद्धाओं को अपने साथ लाने के लिए जुगाड़ करेंगी। तब कहीं जा कर तय होगा कि राज कौन संभालेगा? पर वह सब बाद की बातें हैं। तुम बोर हो रहे होंगे कि क्या गणित की कक्षा जैसी बोर कथा सुना डाली। पर यह जरूरी था। गणित में जो चतुर होगा वही इस चुनाव युद्ध में पार पा सकेगा।
अब समय हो चला है, इस लिए व्यथा-कथा को आज यहीं विराम ।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
9 टिप्पणियां:
अद्भुत स्टाईल में यह कथा वार्ता चल रही हैं -जारी रखें !
फिर जिन पार्टियों के योद्धा अधिक खेत जीतेंगे वे छोटी पार्टियों के योद्धाओं को अपने साथ लाने के लिए जुगाड़ करेंगी। तब कहीं जा कर तय होगा कि राज कौन संभालेगा? पर वह सब बाद की बातें हैं। तुम बोर हो रहे होंगे कि क्या गणित की कक्षा जैसी बोर कथा सुना डाली। पर यह जरूरी था। गणित में जो चतुर होगा वही इस चुनाव युद्ध में पार पा सकेगा।
बहुत सटीक विश्लेष्ण है गणित के साथ धन और मंत्री पद के लालच का गणित भी खूब चलेगा |
क्षेत्रीय पार्टियों के हावी होने से क्या संघीय ढांचा कमजोर नहीं हो रहा ?
कथा वाचन और मनन -चिंतन जारी है ,हम सब अब मंत्रमुग्ध हैं .
ये नियम तो तोडने के लिए ही जैसे बनाए गये हैं।
-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
सत्य वचन हैं महाराजश्री. इस अदभुत रचना के लिये प्रणाम आपको.
रामराम.
इसे जारी रखें !
सुन्दर आकलन। और हां! चित्र भी उतना ही मुखर है जितना कि आलेख।
आप ने बहुत सही ढंग से समझाया.
धन्यवाद
आपकी इस बोध कथा ने हमारे नेत्र खोल दिए
एक टिप्पणी भेजें