@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पुणे के स्थान पर बल्लभगढ़ और पाबला जी का गुस्सा

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

पुणे के स्थान पर बल्लभगढ़ और पाबला जी का गुस्सा

विनोद जी और अनिता जी

अभिषेक ओझा बता रहे थे कि मैं पूर्वा से बात कर लूंगा कि वह किस बस से कहाँ उतरेगी।  हम ने दोनों ही स्थितियाँ पूर्वा की माताजी को बता दीं।  वे तनिक आश्वस्त हो गयीं।  अगले दिन सुबह आठ बजे मैं ने पूर्वा को फोन लगाया तो वह बस में थी।  उस ने बताया कि विनोद अंकल उस के इंस्टीट्यूट पर आकर उसे बस में बिठा गए थे।  उस का अभिषेक से भी संपर्क हो चुका था।  शाम को जब दुबारा फोन पर बात हुई तो  पता लगा कि वह साक्षात्कार दे कर मुम्बई वापस भी पहुँच चुकी थी।  जब उस की बस पूना पहुँची तो अभिषेक बस स्टॉप पर उस का इंतजार करते मिले।  उसे केईएम अस्पताल छोड़ा।  साक्षात्कार आधे घंटे में ही पूरा हो लिया।  वह बाहर आई तो अभिषेक अभी गए नहीं थे।   दोनों ने किसी रेस्तराँ में नाश्ता किया और पूर्वा को मुम्बई की बस में बिठा कर ही अभिषेक अपने काम पर लौटे।  इस खबर को जान कर शोभा प्रसन्न हो गईं।  उन की बेटी पहली बार पूना गई थी और उसे अकेला नहीं रहना पड़ा था।

कुछ दिन बाद पता लगा कि पूना केईएम अस्पताल में जिस स्थान के लिए पूर्वा ने साक्षात्कार दिया था वैसा ही एक स्थान बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) के सिविल अस्पताल में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) हरियाणा सरकार और एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था इण्डेप्थ नेटवर्क के संयुक्त प्रयासों से चल रहे व्यापक जन स्वास्थ्य सेवाओं के प्रोजेक्ट में भी स्टेटीशियन/ डेमोग्राफर का स्थान रिक्त है।  उस ने वहाँ के लिए आवेदन किया और एक टेलीफोनी साक्षात्कार के उपरांत यह तय हो गया कि पूर्वा को पूना के स्थान पर बल्लभगढ़ में ही यह पद मिल जाएगा।  वह अपने नियुक्ति पत्र की प्रतीक्षा करने लगी।  उस का नियुक्ति पत्र किन्हीं कारणों से विलंबित हो गया जिस का लाभ यह हुआ कि उस ने आश्रा प्रोजेक्ट के उस के जिम्मे के सभी कामों को पूरा कर दिया जिस से उस की अनुपस्थिति से आश्रा प्रोजेक्ट को कोई हानि न हो। बाद में यह तय हुआ कि वह 2 फरवरी को बल्लभगढ़ में अपनी नयी नियुक्ति पर उपस्थिति देगी।  इधर वैभव को भी जनवरी के अंत तक अपना प्रोजेक्ट और ट्रेनिंग शुरू करनी थी।
बलविंदर सिंह पाबला
 
वैभव की स्थिति यह थी कि वह खुद भिलाई जा कर अपना प्रोजेक्ट और ट्रेनिंग प्रारंभ कर सकता था।   लेकिन पाबला जी का आग्रह यह था कि उस के साथ मैं  भी भिलाई पहुँचूँ और कम से कम तीन-चार दिनों के लिए वहाँ रुकूँ।  उस में मेरा स्वार्थ भी था कि मैं वहाँ पाबला जी के पुत्र से तीसरा खंबा की अपनी वेबसाइट डिजाइन करवा लेता।  लेकिन पूर्वा के साथ मुझे और शोभा को वल्लभगढ़ जाना आवश्यक था।  उस के लिए वहाँ मकान तलाशना जो उस के निवास के लिए उपयुक्त हो।  मैं ने इस परिस्थिति का उल्लेख पाबला जी से किया और कहा कि मैं एक दिन से अधिक नहीं रुक सकूंगा।  तो वे गुस्सा हो गए, कहने लगे आप के आने की भी क्या आवश्यकता है।  वैभव को भेज दीजिए काम हो जाएगा।  उन के गुस्से ने यह तय किया कि मैं भिलाई तीन दिन और दो रात रुकूंगा।   कोटा से भोपाल और भोपाल से दुर्ग तक का व वापसी का दुर्ग से भोपाल तक के आरक्षण करवा लिए गए।  अब हमें 26 जनवरी की रात को कोटा से चल कर 28 जनवरी सुबह दुर्ग पहुंचना था।  दुर्ग से मुझे 30 की शाम चल कर 31 को सुबह भोपाल और फिर बस या किसी अन्य साधन से कोटा पहुंचना था।  आखिर 2 फरवरी को मुझे, शोभा और पूर्वा को बल्लभगढ़ के लिए भी रवाना होना था।  जारी

20 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुनाते चलिये..बड़ी जल्दी संस्मरण खत्म हो गया. बहुत अच्छा लग रहा है ये सब अनुभव पढ़ना.

अनूप शुक्ल ने कहा…

पाबलाजी को गुस्सा क्यों आता है?

Gyan Darpan ने कहा…

अच्छे संस्मरण है सुनाते जाईये !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बढिया यादें. मजा आया सुनकर.

रामराम.

Smart Indian ने कहा…

गुस्सा दिखाने से कार्यक्रम बदल जाते हैं तो फ़िर क्यूं न आए गुस्सा?

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढ़िया रही आपकी धुआंधार यात्रा...

अच्छा चल रहा है संस्मरण...

डॉ .अनुराग ने कहा…

अच्छे संस्मरण है सुनाते जाईये !

वैसे हमारा भी यही सवाल है ....पाबलाजी को गुस्सा क्यों आता है?

Abhishek Ojha ने कहा…

मुझे पता होता की अगर आप पुणे आ जाते तब तो मैं कभी तैयार न हुआ होता :-) या फिर कम से कम पबलाजी की तरह गुस्सा तो कर ही सकता था !

रंजू भाटिया ने कहा…

रोचक यादे बन गई यह तो ..:) अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा

mamta ने कहा…

दिलचस्प !
आगे की कड़ी का इंतजार है ।

P.N. Subramanian ने कहा…

वल्लाभ्गद का काम तो पूरा हो ही गया होगा. अग्रिम बधाई. बाकी सब कुछ रोचक लगीं.आभार.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

यह तो कुछ वैसा है कि खटिया पर बैठ चाय की चुस्की के साथ यात्रा वृत्त सुना जाये। सुन्दर।

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी देख लिया पंजाबियो का प्यार, पाबला जी धन्यवाद आप के गुस्से मै भी बहुत सा प्यार छुपा है, ओर सच मै बहुत अच्छा लगा, दिनेश जी आप का भी धन्यवाद इस सुंदर यात्रा वृत्त के लिये, अगली कडी का इन्तजार है.

गौतम राजऋषि ने कहा…

थोड़ा जल्द खत्म हो गया ये वाला हिस्सा....
अगले का इंतजार है

विष्णु बैरागी ने कहा…

पाबलाजी का गुस्‍सा पूरी तरह वाजिब है। 'आम्‍बा की भूख आमली से नी जाय' राय साब!

Anil Pusadkar ने कहा…

रोचक,अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।

मीनाक्षी ने कहा…

नमस्कार द्विवेदी जी, पूर्वा बेटी तो हमारे ननिहाल पहुँच गई... पूर्वा को हमारा प्यार और आशीर्वाद

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छे लग रहे ये संस्मरण !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बच्चोँ के साथ आप अन्य ब्लोग साथोयोँ से इसी तरह मिलते और मिलवाते रहेँ
बडा अच्छा लगा -
- लावण्या

बेनामी ने कहा…

ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म तो ये आपकी और दिनेश भैया के प्यार और दोस्ती की गहराई की,शुरुआत की,प्रेम कहानी की दास्ताँ की झलक......ओके ओके बताते जाइए.देखूं तो सही आखिर ऐसा कौन है जिसके कारन हमारा दिन उनके हिस्से में देने का फैसला कर लिया.
ही हां