तुम्हारी जय!
- महेन्द्र 'नेह'
ओ धरा गतिमय
तुम्हारी जय !
सृजनरत पल पल
निरत अविराम नर्तन
सृष्टिमय कण-कण
अमित अनुराग वर्षण
विरल सृष्टा
उर्वरा मृणमय
तुम्हारी जय !
कठिन व्रत प्रण-प्रण
नवल नव तर अनुष्ठन
चुम्बकित तृण तृण
प्रकाशित तन विवर्तन
क्रान्ति दृष्टा
चेतना मय लय
तुम्हारी जय !
- महेन्द्र नेह
8 टिप्पणियां:
नेहजी की इस कविता के लिए अनेकानेक विशेष धन्यवाद। सुन्दर भावों के आनन्द के साथ ही साथ, कई 'गुम' शब्द मिल गए।
शुक्रिया इस कविता को पढ़वाने के लिए
बहुत आभार आपका.
रामराम.
अच्छी प्रस्तुति! शुक्रिया।
जरा हट के एक बहुत बेहतरीन रचना.
आप का बहुत धन्यवाद इसे हम तक पहुचाने के लिये
बहुत सुंदर कविता पढवाया....महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
वाह, जय शंकर प्रसाद जी की याद हो आई।
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