लॉन में पाबला जी के पिताजी से और बैठक में माता जी से भेंट हुई। बहुत ही आत्मीयता से मिले। मुझे लगा मेरे माताजी पिताजी बैठे हैं। उन के चरण-स्पर्श में जो आनंद प्राप्त हुआ कहा नहीं जा सकता। जैसे मैं खुद अपने आप के पैर छू रहा हूँ। पाबला जी ने बैठक में बैठने नहीं दिया। बैठक के दायें दरवाजे से एक छोटे कमरे में प्रवेश किया जहाँ डायनिंग टेबल थी और उस के पीछे एक छोटा सा कमरा। जिस में एक टेबल पर पीसी था। पीसी पर काम करने की कुर्सी, और एक तखत। एक अलमारी जिस में किताबें सजी थीं। पाबला जी बोले, बस यही हमारी सोने और काम करने की जगह है। अब भिलाई प्रवास तक आप के हवाले। फिर पूछा, क्या? चाय या कॉफी? मैं ने तुरंत कॉफी कहा, चाय मैं ने पिछले सोलह साल से नहीं पी।
कॉफी के बाद हमें टायलट दिखा दी गई। हमने उन का उपयोग किया और प्रातःकालीन सत्कार्यों से निवृत्त हो लिए। तब तक टेबल पर नाश्ता तैयार था। दो पराठे हमने मर्जी से लिए, तीसरा पाबला जी के स्नेह के डंडे से। उस के तुरंत बाद पाबला जी हमें ले कर स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. के भिलाई स्टील प्लांट के मानव संसाधन भवन पहुँचे। हमें वहाँ अपने कुछ सह कर्मियों और अधिकारियों से मिलाया। फिर पुस्तकालय दिखाया। पुस्तकालय में बहुत किताबें थीं। तकनीकी तो थी हीं, कानून की महत्वपूर्ण और नई पुस्तकें भी वहाँ मौजूद थीं। रीडिंग रूम में दुनिया भर की महत्वपूर्ण पत्रिकाएं और जर्नल मौजूद थे। बहुत कम सार्वजनिक उपक्रमों में ऐसे पुस्तकालय होंगे। पुस्तकालय घूमते हुए किसी बात पर जरा जोर से हँसी आ गई। पाबला जी ने मुझे तुरंत टोका। मुझे अच्छा लगा कि वहाँ लोग अनुशासन बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं। उस दिन वैभव के पंजीकरण का काम नहीं होना था, यह पाबला जी पहले ही बता चुके थे। कुछ आवश्यक कारणों से यह काम कुछ दिनों से केवल सोमवार को होने लगा था। इस समाचार को जानते ही मैं बिलकुल स्वतंत्र हो गया था। वैभव का जो भी होना था मेरे वहाँ से लौटने के बाद होना था। हम घूम फिर कर वापस घर आ गए।
घर पहुँचे तब तक माता जी दोपहर के भोजन की तैयारी कर चुकी थीं। मेरे जैसे केवल दो बेर खाने वाले प्राणी को यह ज्यादती लगी। अभी तो सुबह के पराठों ने पेट के नीचे सरकना शुरू ही किया था। माता जी ने बनाया है तो भोजन तो करना पड़ेगा, पाबला जी की इस सीख का कोई जवाब हमारे पास नहीं था। फिर याद आयी दादा जी की सीख, कि बने भोजन और मेजबान का अनादर नहीं करते। हम चुपचाप टेबल पर बैठ गए। सोचा केवल दो चपाती खाएंगे। इस बार माता जी के आग्रह पर फिर तीन हो गईं। भोजन के बाद कुछ देर अपनी मेल देखी और पाबला जी के तख्त पर ढेर हो गए। वैभव बैठक के दूसरी ओर बने मोनू के कमरे में चला गया। यहाँ तो बाकायदे गर्मी थी। सर्दी का नामोनिशान नहीं। पंखा चल रहा था। नींद आ गई।
आँख खुली तो डॉगी चुपचाप मेरी गंध ले रही थी। मन तो कर रहा था उसे सहला दूँ। पर सोच कर कि यह चढ़ बैठेगी, चुप रहा। तभी पाबला जी ने कमरे में प्रवेश किया। उन्हें देख कर वह तुरंत कमरे से निकल गई। पाबला जी ने पूछा, परेशान तो नहीं किया? -नहीं केवल पहचान कर रही थी। बाहर देखा तो शाम होने को थी। मैं ने पूछा- अवनींद्र के यहाँ कब चलेंगे? बोले छह बजे के बाद चलेंगे, तब तक वे ऑफिस से भी आ लेंगे। अवनींद्र, मेरा भाई, मेरी बुआ का पुत्र, भिलाई में ही बीएसएनएल में अधिकारी है। मैं उस को कोटा से रवाना होने के पहले सूचित करना चाहता था। पर पाबला जी ने मना कर दिया था, कि उस के घर सीधे जा कर बेल बजाएँगे। सरप्राइज देंगे तो आनंद कुछ और ही होगा। मैं उन से सहमत हो गया। समय था, इस लिए कॉफी पी गई और मैं तैयार हो गया। मैं, वैभव और पाबला जी तीनों पैदल ही अवनींद्र के घर की ओर चले।
चित्र
1. पाबला जी के घर की बाउंड्रीवाल, 2. पाबला जी के पिता जी और माता जी, 3. भिलाई स्टील प्लाण्ट, 4. पाबला जी का घर बाहर से और 5. पाबला जी का पुत्र गुरूप्रीत सिंह (मोनू)और यहाँ नीचे देख सकते हैं मोनू और डॉगी का शानदार वीडियो।
14 टिप्पणियां:
शुरू से पढ़ते हुये मैं सोच रहा था की अंत में उलाहना दूंगा की डॉगी का फोटो नहीं लगाये.. मगर अंत में आने पर पूरा का पूरा विडीयो ही मिल गया.. :)
आज पाबला जी ने मुझसे और मैंने पाबला जी से फोन पर संपर्क साधने की बहुत कोशिश की, मगर सफल नहीं हो सका.. लेकिन चैट पर खूब बातें हुई.. :)
पता नहीं क्यूँ, विडियो नहीं दिखा. अच्छा लगा पाबला जी मेहमाननवाजी के बारे में जानकर. सोचता हूँ भिलाई जाकर पराठें खा ही आयें. बचपन भी याद कर लूँगा जब एक साल भिलाई में पढ़े. :)
पाबला जी के परिवर के साथ बितए क्षण और डागी से मुलाकात अच्छी रही !
पाबला जी के परिवार के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगा। उनके माता पिता जी का चित्र प्रस्तुत कर आपने इस वर्चुअल परिवार के सामान्यत प्रकाश में आने वाले सदस्यों के बारे में बता कर भी सही किया।
सीनियर सिटीजन की पीढ़ी को जितनी अहमियत मिल रही है, उससे कहीं अधिक की जरूरत है। उनके सम्मान में ही भारत का सांस्कृतिक पुनरुत्थान निहित है।
बीएसपी के पुस्तकालय और उसकी व्यवस्था के बारे में जान अच्छा लगा. वरना ऐसे संस्थानों में पुस्तकों की ओर भला कौन देखता है!
पाबलाजी के माताजी-पिताजी के बारे में जानकर और उनका चित्र देख कर अच्छा लगा। अधिक अच्छा यह लगा कि घर मे प्रवेश करते ही वे बैठे मिले। अन्यथा, बूढों को तो सबसे पीछे वाले कमरे में जगह दी जाती है-आगन्तुकों की नजरों से बचाने के लिए।
मोनू और डागी का वीडियो अच्छा है।
और हां, केसरिया फूलों से लदी-ढंकी दीवाल सचमुच में 'दर्शनीय' है।
सबकुछ बढ़िया ! और विडियो सच में शानदार.
'उड़न तश्तरी' भिलाई में !?
सुखद आश्चर्य
विवरण बढ़िया लिखते हैं द्विवेदी जी।
पराठें……………
बॉस भिलाई लपकना पड़ेगा मुझे तो ;)
बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख ओर पाबला साहब की खातिरदारी,पाबला जी के माता पिता मे तो हमे अपने ही माता पिता दिखे.
धन्यवाद
ये भी बढिया रहा !
- लावण्या
पाबलाजी के माताजी-पिताजी के बारे में जानकर और उनका चित्र देख कर बहुत अच्छा लगा.....
कोटा में 'अटकने' का कारन अब समझ में आ रहा है धीरे धीरे.
पर......मैं तो खलनायिका का रोल प्ले करून्गीच.ऐसिच हूँ मैं तो
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