@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: वेबोल्यूशन्स की लेब और रायपुर के प्रेस क्लब में पुसदकर जी, संजीत त्रिपाठी और त्रयम्बक शर्मा से भेंट

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

वेबोल्यूशन्स की लेब और रायपुर के प्रेस क्लब में पुसदकर जी, संजीत त्रिपाठी और त्रयम्बक शर्मा से भेंट

पाबला जी के यहाँ पहली रात थी, फिर भी थके होने से नीन्द जल्दी ही आ गई।   सुबह 5-6 बजे के बीच खटपट से नींद खुली तो देखा मोनू कुछ कर रहा था।  मुझे उठा देख उस ने पूछा, अंकल आप के लिए कॉफी बनाऊँ?  मैं ने  आश्चर्य व्यक्त किया कि, तुम जाग भी गए! बोला, अंकल मैं तो कॉफी पी कर दस पन्द्रह मिनट काम करुंगा फिर सोने जाउंगा, मेरा तो यह रूटीन है।  मैं इसी वक्त सोता हूँ और 11-12 बजे तक उठता हूँ।  सारी रात तो मेरा काम ही चलता रहता है।  वह webolutions.in के नाम से वेबसाइट डिजाइन करने और उन्हें संचालित करने का काम करता है।  मैं भी अपनी वेबसाइट उसी से डिजाइन कराने का इरादा रखता था।  मैं ने उसे कहा कि हम अपनी तीसरा खंबा के लिए कब बैठेंगे? अंकल आज शाम तो मेरे पास काम है हाँ आधी रात के बाद बैठ सकते हैं।  मैं ने उसे हाँ कह दिया।   तब तक उस ने मुझे कॉफी दे दी, वह अपना कप ले कर अपनी लेब में चला गया, वही उस के सोने का स्थान भी है। इसी लेब के साथ का टॉयलट मैं ने कल दिन भर प्रयोग किया था।  इस लेब में एक पीसी और एक लेपटॉप था। पीसी पर मोनू का सहायक और लेपटॉप पर खुद मोनू काम करते थे।  पूरे घर में ऐसी व्यवस्था थी कि किसी भी कंप्यूटर या लैपटॉप पर बिना कोई तार के इंटरनेट एक्सेस किया जा सकता था।   
संजीव तिवारी, मैं अभिभाषक वाणी के ताजा अंक हाथ में लिए, 
शकील अहमद सिद्दीकी और बी.एस. पाबला
मेरी सफर और नए शहर की थकान नहीं उतरी थी कॉफी से भी आलस गया नहीं। मैं ने फिर से चादर ओढ़ ली और जल्दी ही नींद फिर से आ गई।  अब की बार पाबला जी ने जगाया तब तक सात से ऊपर समय हो चुका था, वे घोषणा कर रहे थे कि हमें 10 बजे रायपुर के लिए निकलना है।  मुझे तुरंत तैयार होना था।  वे नाश्ते की पूछते इस से पहले ही मैं ने उन से उस के लिए माफी चाही, एक दिन पहले खाए-पिए से ही निजात नहीं मिल सकी थी।  पाबला जी ने कुछ ना नुकर के साथ मुझे माफ कर दिया।  कुछ देर बाद ही पता लगा कि साढ़े नौ बजे संजीव तिवारी के साथ दुर्ग के वकील शकील जो अधिवक्ता संघ दुर्ग के मासिक पत्र अभिभाषक वाणी के संपादक शकील अहमद सिद्दीकी साहब आ रहे हैं।  मैं और वैभव शीघ्रता से तैयार हो गए।  उन्हें आते आते 10 बज गए।  मैं दोनों से पहली बार मिला।  वे ऐसे मिले जैसे बिछड़े परिजन मिले हों।  बीसेक मिनट उन से बात चीत हुई और 30 जनवरी को 2 बजे दुर्ग बार एसोसिएशन पहुँचने का कार्यक्रम तय हो गया।

रायपुर के लिए पाबला जी के घर से निकलते निकलते साढ़े दस बज गए थे।  पाबला जी को वैन में एलाइनमेंट की समंस्या नजर आई। वैन को टायर वाले के यहाँ ले गए।  पाबला जी के कहने पर उसने एलाइनमेंट का काम पन्द्रह मिनट में पूरा कर दिया।  वैन बाहर आई तो अचानक ऐक्सीलेटर ने जवाब दिया।   उसे  दुरुस्त करा कर हम रायपुर के लिए रवाना हुए।  मुझे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि भिलाई से रायपुर तक सड़क के दोनों ओर उद्योगिक इकाइयाँ और खाली भूमि नजर आई लेकिन खेती का नामोनिशान तक न था।  लगता  था दुर्ग से ले कर रायपुर तक सब जगह केवल उद्योग हैं या बस्तियाँ।  भिलाई में जरूर सघन वृक्षावली नजर आती हैं लेकिन वह भिलाई स्टील प्लाण्ट और टाउनशिप के निर्माताओं के प्रारूपण का कमाल है।  भिलाई 52 कारखाने और उन का प्रदूषण होते हुए भी उस का असर इस वृक्षावली के कारण ही कम नजर आता है।  पता नहीं कब नगर नियोजकों को यह गुर समझ आएगा कि नगर में भी बीच बीच में खेती और बागवानी के लिए भूमि आरक्षित की जाए तो प्रदूषण का मुकाबला करना कितना आसान हो सकता है?

 कार्टून वॉच का जनवरी अंक मेरे हाथ में, अनिल पुसदकर, त्रयम्बक शर्मा और वैभव
रायपुर प्रेसक्लब पहुँचे तो एक बज चुके थे।  अनिल पुसदकर जी और संजीत त्रिपाठी कुछ अन्य पत्रकार साथियों के साथ बाहर ही प्रतीक्षा करते मिले।  पुसदकर जी जैसे चित्र में लगते हैं, उस से  कहीं कम उम्र के लगे।  पहले उन्हों ने हमें प्रेस क्लब की पूरी इमारत का अवलोकन कराया।  भूतल के एक हॉल में प्रेस कान्फ्रेंस चल रही थी। पूरी इमारत दिखाने के बाद प्रथम तल के एक बड़े कॉन्फ्रेन्स हॉल में मंच के दाहिनी और हम सब बैठे बतियाने लगे।  सब से परिचय हुआ।  वे बताने लगे कि कैसे उन्हों ने अपने पत्रकारिता जीवन में अनेक समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के लिए पत्रकारिता का कार्य किया है।  पूरे विवरण में जो जरूरी बात नोट की जिसे वे छिपा रहे वह यह कि उन का छत्तीसगढ़ से बहुत लगाव रहा है।  उन्हों ने छत्तीसगढ़, वहाँ की जनता और पत्रकारों के हितों के लिए अनेक बार अपने रोजगार को भी दाँव  पर लगाया मुख्यमंत्री और उस स्तर तक के नेताओं से कभी समझौता नहीं किया।  आज मोतीबाग के बीच प्रेस क्लब की जो शानदार और सुविधाजनक इमारत खड़ी है।  उस में उन का योगदान सर्वोपरि है।

ब्लागरी के बारे में बात चली तो अनिल जी कहने लगे कि यह एक ऐसा माध्यम है जहाँ अपने विचार बिना किसी संकोच, दबाव और प्रभाव के स्वतंत्रता पूर्वक रखे जा सकते हैं।  वहाँ हाजिर सभी व्यक्ति  सहमत थे। वहीं कार्टून वॉच के संपादक त्रयम्बक शर्मा आ गए और चर्चा में सम्मिलित हो गए।  उन्हों ने मुझे और पाबला जी को पत्रिका के जनवरी अंक की एक-एक प्रति भेंट की।  कार्टून वॉच को इंटरनेट पर भी देखा है। लेकिन पत्रिका के रूप में देखना बहुत अच्छा लगा। मुझे बरसों पहले प्रकाशित होने वाली एक मात्र पत्रिका शंकर्स वीकली का स्मरण हो आया।  जिस का मैं नियमित ग्राहक था। यहाँ तक कि उस में प्रकाशित होने वाले कार्टूनों की नकल कर के अपने कार्टून बनाने के प्रयास भी किए।  लेकिन कुछ समय बाद वह पत्रिका बन्द हो गई और हमारे कार्टूनिस्ट कैरियर का वहीं अंत हो गया।  मैं ने त्रयम्बक जी ने बताया कि पत्रिका 12 वर्षों से लगातार निकल रही है और देश की एकमात्र कार्टून पत्रिका है।  मैं इस तथ्य से ही रोमांचित हो उठा। मैं ने त्रयम्बक जी को उसी समय वार्षिक शुल्क दिया।  उन्होंने उस की रसीद देने में असमर्थता जताई।  लेकिन रसीद के रूप में पत्रिका का फरवरी अंक मुझे समय पर मिल गया।  मेरी सोच यह है कि ब्लागरों को इस पत्रिका का शुल्क दे कर इस का ग्राहक बनना चाहिए।  जिस से इस एकमात्र कार्टून पत्रिका को आगे बढ़ने का अवसर मिले। त्रयंबक जी को कहीं और काम होने से वे जल्दी ही चले गए।  ...........आगे अगली कड़ी में
 कार्टून वॉच के लिए संपर्क

17 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सभी से चित्रों सहित परिचय के लिये आभार. आपके यात्रा संसमरण भी बढिया लगे.

रामराम.

P.N. Subramanian ने कहा…

अमीर धरती के गरीब लोगों के बीच आपका समय बहुत अच्छा बीता. अब तक के विवरण के लिए आभार.

Anita kumar ने कहा…

द्विवेदी जी बहुत बड़िया यात्रा वर्णन, फ़ोटो कुछ और लगाते तो अच्छा था। मसलन मोनू की लैब की फ़ोटो। इस बहाने हम भी पाबला जी के घर हो आते। इस कार्टून मैंगजीन के बारे में आप ने अच्छा बताया। हम जरूर उसकी सदस्यता लेगें।

bhuvnesh sharma ने कहा…

आपकी यात्रा के बारे में पाबलाजी से फोन पर पता लगा....काफी समय से आपके ब्‍लॉग की फीड मेल में ही पढ़ रहा हूं...टिप्‍पणी नहीं कर पाया

Arvind Mishra ने कहा…

यह ब्लॉगर यात्रा संस्मरण के साथ ब्लगर मीट का दुहरा आनन्द दे गयी !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Bahut achcha laga aapka anya Hindi Blogger sathiyon se milna .

Aaj kal aap mere Blog per aate nahee ? Aaya kijiye ...

Vaibhav bete ko snehashish.

- Lavanya

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

यात्रा वृतांत पढ़ कर अच्छा लगा..कार्टून वाच की बाबत जानकार और भी खुशी हुई..क्योंकि इस पत्रिका के लिए मैं भी कार्टून भेजने का निरंतर प्रयास करता हूँ...त्र्यम्बक जी स्नेहपूर्वक सहयोगी कार्टूनिस्टों की सूची मुझे भी गिनते हैं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कार्टून वाच का पता बताना तो रह ही गया...http://www.cartoonwatchindia.com/

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लगा आज का लेख, चित्र भी सुंदर लगे,
धन्यवाद

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढ़िया रहा वृत्तांत। पुसदकरजी ऊर्जावान व्यक्ति हैं और लगातार सक्रिय रहते हैं। संजीत के बारे में आपने कम बताया।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@काजल कुमार
कार्टून वॉच का संपर्क जोड़ दिया गया है।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कार्टून वाच का लिंक जोड़ने के लिए आभार .

Science Bloggers Association ने कहा…

यात्रा वृत्‍तांत पढकर अच्‍छा लगा। शुक्रिया।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भाई दिनेशराय द्विवेदीजी, आपने कार्टून वाच की सदस्यता का सुझाव तो दिया है, कहीं सदस्यता लेने के बाद आपके बिल का भी भुगतान तो नहीं करना पडेगा ना। ताऊ जी ने सब को डरा कर जो रख दिया है:)

Smart Indian ने कहा…

चित्रों में रायपुर मिलन देखकर अच्छा लगा. त्र्यम्बक जी के कार्टून वॉच के बारे में जानकार खुशी हुई. उनको और इस पत्रिका को मेरी शुभकामनाएं!

विष्णु बैरागी ने कहा…

पुसदकरजी के बारे में तनिक और विस्‍तार से बताते तो पत्रकारिता की नई पीढी के लोगों को मालूम हो पाता कि पत्रकारिता-धर्म निभाने के लिए क्‍या-क्‍या कर गुजरना होता है और क्‍या-क्‍या झेलना पडता है।
आपकी यह पोस्‍ट में 'एक मे अनेक' है। सबसे भेट और दर्शन कराने के लिए धन्‍यवाद।

ghughutibasuti ने कहा…

आपके साथ साथ हम भी इन सभी हस्तियों से मिलने का आनन्द ले रहे हैं।
धन्यवाद।
घुघूती बासूती