वाह क्या? सीन है!
महात्मा मोदी चर्चा में हैं, विश्वविद्यालय में क्या गए, उस के कुलपति गद्गद् और कृतार्थ हो गए।
गुरू वशिष्ठ के घर राम पधारते हैं। शिष्य राम के चरण पखारते हैं। राम हैं कि जाते ही गुरू चरण वन्दना में जुट जाते हैं।
विश्वामित्र दशरथ के यहाँ जाते हैं, दशरथ द्वार तक जाते हैं, और ऋषि के चरण पखारते हैं, उच्चासन पर बिठाते हैं खुद नीचे बैठे हैं।
सीन पढ़ कर निर्देशक दहाड़ता है.....
फाड़ कर फेंक दो! सीरियल पिटवाना है क्या? दुबारा लिखो!
स्क्रिप्ट राइटर दुबारा लिखता है...........
गुरू वशिष्ठ के घर राम पधारते हैं। शिष्य राम को माला पहनाते हैं, गुरू जी, महाराजा राम के चरण पखारते हैं। राम हैं कि सीना तान कर सब से बड़े सिंहासन पर खुद आरूढ़ हो जाते हैं। गुरू झुकी मुद्रा में खड़े हैं।
विश्वामित्र दशरथ के यहाँ जाते हैं, दशरथ समाचार सुन कर कहते हैं. स्वागत कक्ष में बिठाओ, कहना अभी प्रांत संचालक से मशविरा चल रहा है। विश्वामित्र डेढ़ घंटे इन्तजार करते हैं। बुलावा आता है। दीवाने खास में विश्वामित्र पहुँच कर सिर झुका कर नमन करते हैं। राम कह रहे हैं। मास्टर जी, हम अब चक्रवर्ती हो गए हैं। जरा समय ले कर आया कीजिए।
सीन पढ़ कर निर्देशक फिर दहाड़ता है.....
इतनी अकल है, तो एक बार में नहीं लिख सकते?
20 टिप्पणियां:
बदल गया है जमाना। विद्वता और तपस्या बैक फुट पर है। राजनीति और बाजर उछाल पर।
स्क्रिप्ट राइटर को रियालिटी पर क्रैश कोर्स करना चाहिये। अन्यथा दहाड़ ही सुनता रहेगा।
ये नयी स्क्रिप्ट सही है।
विषय गंभीर है लेकिन इसका उत्तर इस भाषा में दिया जाए तो मर्म समझा जा सकता है..... नया जमाना है...पुराना स्क्रिप्ट नको चलने का रे बाबा.... झकास कुछ रापचिक मांगता है.....
दुख होता है जब आज के स्वार्थ से रचे हुए युग को देख्ते है जहाँ अधिकाँश लोग इसी आधुनिक राम की तरह बर्ताव करते हैँ -
ये कलियुग है !
- लावन्या
स्क्रिप्ट राईटिंग और लिरिक्स सबने ने नये जमाने में नये आयाम ले लिये हैं. आजकल म्यूजिक और साऊँड ट्रेक सुन कर लिरिक्स लिखना होता है इसीलिये टूं टा बज रहा है. आगे से सब एकटिंग कर जायेंगे और फिर उस हिसाब से कहानी लिखनी होगी.
नये लोग नई पसंद...वैसे ही..ऊँचे लोग ऊँची पसंद..RMD मानिक चंद गुटका.
धन्य हैं ऐसे कुलपति और धन्य है ऐसा बाजारवाद. सही जगह दृष्टि उठाई आपने.
कुलपति जी लोग भी अब एफ़.आइ.आर., निलम्बन, बर्खास्तगी, हाथापाई, कोर्ट-कचहरी और पुलिस सुरक्षा को लेकर सुर्खियाँ बटोर रहे हैं। तो उनके शिष्य राम की परंपरा सीखें तो कहाँ से?
निर्देशक दहाड़ता है क्योंकि वह दहाड़ सकता है. पर स्क्रिप्ट राइटर बेचारा क्या करे? वह उतना ही तो लिखेगा जितने उसे पैसे मिलेंगे. पैसे देते जाओ, जो मर्जी लिखवाते जाओ. और निर्देशक भी क्या करेगा, वह भी तो किसी से पैसे लेकर यह सब कर रहा है. सारा खेल पैसे का है. जो मर्जी लिखो, जो मर्जी दिखाओ, जो चल गया वह महान हो गया. कहीं गड़बड़ हो गई तो कह दिया, 'वही दिखाते हैं जो जनता चाहती है'. यह सब महात्मा मोदी के संधर्भ में कहो या किसी और के, क्या फर्क पड़ता है?
अपनी मर्यादाओं की रक्षा करने अपने हाथ है. गुरू झुके तो शिष्य क्या करे? पहले सर उठाने लायक गुरू बने तो सही...
Sanjya ji ne mere man ki baat kahi hai,shishya se to hame koi ummed nahi thi ...par guru se to rakh sakte hai.
आजकल सब उलट पुलट होता जा रहा है... बाप बेटा बन रहा है, बेटा बाप होता जा रहा है..
बढिया स्क्रिप्टींग है जी..
हम तो बस वी.बी.स्क्रिप्ट और जावा स्क्रिप्ट के बारे में जानते हैं, कभी जरूरत परे तो बता दिजीयेगा.. :)
अच्छी स्क्रीप्ट ... आखिर जमाना बदल गया इंसान...।
संजयजी की बात सौ प्रतिशत सही है.आजकल ऐसे गुरु मिलने कम हो गये हैं जिनके आगे शिष्यों का सिर झुकाने का मन करे.ऊपर से कलियुग के गुरु शिष्य के मायने बदल गये हैं.
कलयुग के गुरु और शिष्य अब ऐसे ही होने लगे है।
बढ़िया है ... वैसे अभी तो 'कलियुगे कलि प्रथम चरणे' ही है... अभी तो बहुत कुछ बाकी है :-)
:) :)
बहुत शानदार...
अच्छा जी, तो आप व्यंग भी इतना बढ़िया लिख लेते हैं ?
bahut badhiya....is script ke maadhyam se aapne jo kahne ki koshish ki hai usme safal rahe hain.
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