भर्तृहरि की शतकत्रयी की तीनों कृतियाँ न केवल काव्य के स्तर पर अद्वितीय हैं, अपितु विचार और दर्शन के स्तर पर भी उस का महत्व अद्वितीय है। अधिकांश संस्कृत की कृतियों में सब से पहला चरण मंगलाचरण का होता है। जिस में कृतिकार अपने आराध्य को स्मरण करते हुए उसे नमन करता है। साथ ही साथ यह भी प्रयत्न होता है कि जो काव्य रचना वह प्रस्तुत कर रहा होता है, उस की विषय वस्तु का अनुमान उस से हो जाए। शतकत्रयी की कृतियों में श्रंगार शतक एक अनूठी कृति है जो मनुष्य के काम-भाव और उस से उत्पन्न होने वाली गतिविधियों और स्वभाव की सुंदर रीति से व्याख्या करती है। युगों से वर्षा ऋतु को काम-भाव की उद्दीपक माना जाता है। वाल्मिकी ने भी रामायण में बालि वध के उपरांत वर्षाकाल का वर्णन करते हुए सीता के विरह में राम को अपनी मनोव्यथा लक्ष्मण को व्यक्त करते हुए बताया है। वैसे भी रामायण की रचना का श्रेय संभोगरत क्रोंच युगल की हत्या से उत्पन्न पीड़ा को दिया जाता है।।
यहाँ श्रंगार शतक का मंगला चरण प्रस्तुत है......
शम्भुः स्वयम्भुहरयो हरिणेक्षणानां
येनाक्रियन्त सततं गृहकर्मदासाः ||
वाचामगोचरचरित्रविचित्रिताय
तस्मै नमो भगवते कुसुमायुधाय || १||
यहाँ भर्तृहरि कुसुम जैसे कोमल किन्तु सुगंधित और सुंदर आयुध का प्रयोग करने वाले कामदेव को नमन करते हुए कह रहे हैं- जिन के प्रभाव से हिरणी जैसे नयनों वाली तीन देवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे तीन महान देवताओं को अपने घरों के काम करने वाले दास में परिवर्तित कर दिया है, जिन की अद्भुत और विचित्र प्रकृति का वर्णन करने में स्वयं को अयोग्य पाता हूँ, उन महान भगवान कुसुमयुधाय (कामदेव) को मैं नमन करता हूँ।।
यह मंगलाचरण श्लोक यहाँ यह भी प्रकट करता है कि मनुष्य ने अपने मानसिक-शारिरीक भावों को जिन के वशीभूत हो कर वह कुछ भी कर बैठता है देवता की संज्ञा दी है, और यह देवता (भाव) इतना व्यापक है कि उस के प्रभाव से सृष्टि के जन्मदाता, पालक और संहारक भी नहीं बच पाए।
इस आलेख को पढ़ने के उपरांत इस श्लोक पर आप के विचार आमंत्रित हैं।
9 टिप्पणियां:
रविवार की सुबह आपका ये ज्ञान याद रहेगा...
इस पोस्ट में जो चित्र है वह क्या इंगित करता है ?इस पर काफी वाद विवाद हो हुका है .पर पहले आप कुछ कहें !
भ्र्तिहारी तो खिअर कालजयी है हीं !
भर्तृहरि जी के नीति और वैराज्ञ शतक को तो पढ़ चुका हूं, पर शृंगार शतक से आपने परिचय कराया। मातृशक्ति की प्रधानता पर कोई संशय है ही नहीं।
Bekar ka lekh hai.Gyan ki koi bhi baat nahi hai.
श्रंगार शतक का परिचय देने का आभार. कभी पढ़ी नहीं. कभी कहीं आलेख बस पढ़ा था.
दिलचस्प और नई जानकारी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दनिश जी
इस श्लोक मेँ , कामदेव को नमस्कार सार्थक है , क्यूँकि शिवजी के तीसरे नेत्र से भस्म होने पे भी कामदेव अनँग रुप से कि, जिसका अँग नहीँ हो -या, शरीर नहीँ फिर भी, हर जीवित प्राणी मेँ "काम गुण" रहता है और उसीके विकास से यह सृष्टी प्राकृतिक रीत से चलती रहती है उसे शृँगर शतक के आरँभ मेँ प्रणाम करना सही है -
-लावण्या
कामदेव की प्रार्थना तो सही ही है.... वैसे भी कामदेव के बिना आधी पौराणिक कहानिया नहीं रह पाएंगी. भगवान शिव के तीसरे नेत्र से प्रद्युम्न तक... विश्वामित्र की तपस्या भंग से शकुंतला के जन्म तक... और फिर भरत के जन्म से भारतवर्ष नामकरण तक.
ऐसे और पोस्ट लिखिए... यही तो फायदा है किताबें न पढ़के भी ज्ञान मिल जाना, इससे अच्छा क्या हो सकता है... धन्य है ब्लॉग जगत.
हमने तो कभी भ्रतहरि की किताबें पढ़ी नहीं अब आप के ब्लोग से जानकारी पा कर अच्छा लग रहा है। किताब ढूढने की भी जहमत नहीं उठानी पड़ी …धन्यवाद
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