जी, उस से हमें बहुत मुहब्बत थी बचपन से ही। स्कूल जाने की उमर के पहले से ही, और वह तब तक प्रेरणा भी बनी रही, जब तक हम किशोर न हो गए। फिर समाज, या यूँ कहिए कि बाजार, एक विलेन की तरह बीच में आ गया। दरअसल हमारी माशूक की उन दिनों बाजार में हालत बड़ी खस्ता थी। हमारी वह मुहब्बत बडी़ ही सफाई से कत्ल कर दी गई। हमें जिन्दा हकीकतों के साथ बांध दिया गया। पर मुहब्बत कत्ल होने पर भी मरती नहीं। वह कहीं दिल में, या जिगर में, या दोनों के बीच कहीं फंस कर जिन्दा रही।
हमें जिन जिन्दा हकीकतों से बांधा गया था, हम उन के न हुए, और वे हमारी। वे जल्दी ही अपनी मीठी-कड़वी यादें छोड़ कर अपने रास्ते चल दीं। हम कानून के पल्ले आ बंधे।
फिर वह न जाने कब, दिल और जिगर के बीच से निकल, हमारे बरअक्स आ खड़ी हुई। अब हमारे पास उस की मुहब्बत तो थी, वहीं दिल में, मगर वस्ल की उम्र विदा हो चुकी थी। हम अब भी उस की मुहब्बत की गिरफ्त में हैं। वस्ल नहीं तो क्या? मुहब्बत वस्ल की मोहताज तो नहीं।
अब हमारी उस मुहब्बत को ले कर हाजिर हैं, "अभिषेक ओझा"। उसे ला रहे हैं अपने चिट्ठे " कुछ लोग... कुछ बातें... !" पर। कल 11 जून को वे जन्मपत्री बांच चुके हैं, हमारी मुहब्ब्त की। इंतजार कर रहे हैं हम, कि कैसे? किस लिबास में? और किस सज्जा के साथ पेश करेंगे, वे हमारी मुहब्बत को? और साथ ही जान पाएंगे, कि हमारी वह मुहब्बत ओझा जी के सानिध्य में किस हालात में जी रही है?
14 टिप्पणियां:
हमने सोचा था गुलेरी जी की "उसने कहा था" छाप निकलेगा कुछ। पर यह तो गणित निकला! खैर वह भी प्रिय था/है!
इन्तजार लगा है हमें!!
किशोर उम्र में मेरी भी इससे दोस्ती हुआ करती थी, लेकिन इसका साथ विश्वविद्यालय में आने के बाद छूट गया। अब अभिषेक जी का हाथ पकड़कर दुबारा आँखे चार करने का अवसर मिलेगा। यह जारी रहना चाहिए।
बाप रे बाप...हमारी हालत बड़ी खस्ता रहती थी गणित में...सीए (इंटर) में अन्तिम बार पढ़ी थी..फिसड्डी थे..वो तो Statistics ने बचा लिया था हमें नहीं तो कभी पास नहीं हो पाते...
वैसे अब इम्तिहान का दबाव नहीं है तो हो सकता है पढ़ लें...:-)
हम भी कुछ ओर ही समझे थे पर कोई बात नहीं इस मुहब्बत से भी हमे बड़ी मुहब्बत है.
इंतजार करेंगे.
वैसे शीर्षक भरमाने वाला है। :)
गणित को तो हम दूर से ही सलाम करते है। :)
धन्यवाद द्विवेदी जी... बहुत देर से आया आपकी पोस्ट पर. पुरी कोशिश करूँगा अपनी (आपकी) मुहब्बत को सही-सलामत पेश करने की. एक पोस्ट 'गणित में वकील' पर भी लिखूंगा... हंगरी के कई बड़े गणितज्ञ वकालत के पेशे से थे.
और पेशे से ध्यान आया.. मैं मानता हूँ की गणित रोजगार दिलाने में अक्षम रहा है अपने देश में, पर अब शायद हालात बहुत हद तक बदल चुके हैं... पुरी सच्चाई तो नहीं पता पर अगर IIT और ISI जैसे संसथानों की बात करें तो रोजगार के सुनहरे अवसर हैं ... कम से कम इन्जिनीरिंग करने वालों से तो बहुत अच्छा है और अगर सैलरी की तुलना करें तो IIT कानपूर में गणित वालों को सामान्य इंजीनियरिंग वालों से २-३ गुना ज्यादा तक पैसे पे कंपनियाँ ले जाती हैं. ये सब बातें लिखने की कोशिश करूँगा.
एक बार फिर धन्यवाद आपका.
वैसे शीर्षक भरमाने वाला है....
गणित से डर कर ही हमने biology ली थी की इस गणित से अब दूर तक वास्ता नही पड़ेगा....
भाई, मेरे तो कुछ पल्ले ही ना पड़ा, ओझा जी क्षमा करें ।
उनकी पोस्ट हम ज़ाहिलों के सिर के ऊपर से निकल गयी ।
शुक्रिया अभिषेक ओझा का लेख पढ़वाने के लिये।
गणित में हमारे पांचवीं में सौ में से चार अंक आए थे। ऐसी मुहब्बत को दूर से सलाम :)
hhhahha math baap re
samjh aa jaaye to theek nahi to bus ho gaya kaam
गणित की बात और शुरुआत कुछ और! चक्कर देने के लिए। गणित तो है ही प्रिय विषय। जीवन में एक यही तो है जो किसी अध्यापक और गणितज्ञ में किसी तरह का मतभेद नहीं रहने देता वरना विज्ञान से लेकर दर्शन तक मतभेदों का महासागर है।
http://baatein.aojha.in/ जैसा लिंक आज इस आलेख से मिला। वहाँ गया और कुछ कुछ देखा। सबसे प्रिय विषयों में है गणित और यह लिंक भी बहुत पसन्द आया। इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। रामानुजन पर पढ़ने को मिला। फिर से बहुत बहुत धन्यवाद।
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