@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

रविवार, 22 मार्च 2020

महापुरुष


एक तरह के लोग सोचते हैं-
कोई है जिसने दुनिया बनाई
फिर दुनिया चलाई
वही है जो दुनिया चला रहा है
वे उसे ईश्वर कहते हैं।

दूसरी तरह के लोग सोचते हैं-
ऐसा कोई नहीं जो दुनिया बनाए और उसे चलाए
दुनिया तो खुद-ब-खुद है
हमेशा से और हमेशा के लिए
वह चलती भी खुद-ब-खुद है
उसके अपने नियम हैं जिनसे वह चलती है
ये लोग जो सोचते हैं
उसे कहते भी हैं और जीते भी हैं।

कुछ तीसरी तरह के लोग हैं
जो सोचते हैं कि कभी कोई ईश्वर रहा होगा
जिसने दुनिया बनाई और चलाई
पर वो कभी का मर चुका है
जीवन ने कीड़े से लेकर वानर तक
और वानर से लेकर पुरुष तक की यात्रा
खुद ही तय की है

वानर के लिए कीड़े का कोई महत्व नहीं
पुरुष के लिए वानर का कोई महत्व नहीं
पुरुष को महापुरुष बनना है
महापुरुष के लिए पुरुषों का कोई महत्व नहीं
वे एक दिन महापुरुष बनेंगे
वे महापुरुष बन रहे हैं
वे महापुरुष बन चुके हैं।

बन चुके महापुरुष सोचते हैं कि मेरे सामने
किसी पुरुष का कोई महत्व नहीं
वे सोचते हैं और अपने इस विचार को जीते भी हैं
लेकिन वे इसे कहते नहीं

वे लोगों को कहते हैं-
ईश्वर कभी नहीं मरता
वह कभी नहीं दिखता
वह कहीँ नहीं आता जाता

मैं उसका पुत्र हूँ
मैं उसका दूत हूँ
मैं उसका अवतार हूँ
तुम मेरे सामने झुको
तुम्हें मेरे सामने झुकना होगा
तुम्हें मेरे सामने झुका दिया जाएगा

ये जो तीसरा व्यक्ति है
खुद-ब-खुद बना हुआ महापुरुष
दुनिया की सबसे खतरनाक चीज है।
कोटा, 22.03.2020
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शनिवार, 21 मार्च 2020

गणगौर एडवाइजरी जारी करे सरकार


'भँवर म्हाने पूजण दो गणगौर'

यह उस लोक गीत का मुखड़ा है जो होली के अगले दिन से ही राजस्थान भर में गाया जा रहा है। राजस्थान में वसंत के बीतते ही भयंकर ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। आग बरसाता हुआ सूरज, कलेजे को छलनी कर देने और तन का जल सोख लेने वाली तेज लू के तेज थपेड़े बस आने ही वाले हैं। अनवरत पसीना टपकाने वाले ऐसे निकट भविष्य के पहले राजस्थान में अगले शुक्रवार 27 मार्च को गणगौर का त्यौहार मनाया जाने वाला है।

गणगौर प्रतिमाएँ अनेक घरों पर बिठा दी गयी हैं। रोज उनकी पूजा की जा रही है। गीत गाए जा रहे हैं। यह अभी व्यक्तिगत स्तर पर है। पर अगले शुक्रवार को यही सब सामुहिक रूप ले लेने वाला है। उस से पहले गणगौर पर बनने वाले पकवान गुणे बनना आरंभ हो चुके हैं। कल मुझे भी हुकुम हुआ कि गुड़ लाना है, गुणे बनाने के लिए। गुड़ आया तो दो घण्टे बाद ही टेबल पर गुड़ और गेहूँ के आटे के बने गुणे नजर आने लगे। रात तक वे तले जा कर खुले में रख दिए गए, जिस से उन की बची खुची नमी भी निकल ले। सुबह वे डिब्बे में बंद हो चुके हैं। किसी को भी इनका स्वाद अगले शुक्रवार गणगौर के दिन पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा।

गणगौर के दिन अर्थात अगले शुक्रवार 27 मार्च को सुबह से ही मुहल्ले में स्त्रियों की हलचल बढ़ जाएगी। वे सजेंगी-सँवरेंगी, बेसन के आटे से शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के लिए गहने गढ़ेंगी, फिर पूजा का थाल सजा कर उस घर को जाएंगी जहाँ मुहल्ले मे गणगौर घाली हुई है। वे पूजा के लिए अकेले ही नहीं जातीं। दो-दो चार-चार के समूह में पूजा के लिए जाती हैं। वहाँ एकत्र हो कर गीत गाती हैं, नाचती हैं। आमोद प्रमोद चलता है। साँयकाल गणगौर की प्रतिमाओँ को सरानेसामुहिक रूप से जलूस बना कर नदी तालाब पर जाती हैं। इस जलूस के आगे बैंड-बाजा होता है। कुछ नहीं तो एक ढोली ढोल बजाता हुआ जरूर चलता है। नदी पर वे प्रतिमाओं को सराने के पहले और बाद में गीत गाती हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करती हैं। देर रात तक यह काम चलता रहता है। पहले तो सारी व्यवस्थाएँ पुरुष ही करते थे। अब यह कमान लगभग पूरी तरह स्त्रियों के हाथों में है। पुरुष इन कामों में केवल वान्छित सहयोग करते हैं। राजस्थान में स्त्रियों के लिए इस त्यौहार का बहुत महत्व है। पुरुषों के लिए भी यह त्यौहार अपनी प्रियाओं को प्रसन्न रखने, रूठी प्रियाओं को मनाने और वैवाहिक जीवन में सूख चुके रोमांस को तरलता प्रदान करने का होता है। इस त्यौहार में पुराने वक्त में मनाए जाने वाले मदनोत्सव के अवशेष मौजूद हैं।

त्यौहार तो आ चुका है। लेकिन उसके साथ ही राजस्थान में वायरस कोविद-19’ की भयानक उपस्थिति एक बड़े संकट का कारण हो सकती है। इस वायरस से फैली बीमारी को संयुक्त राष्ट्र संघ महामारीघोषित कर चुका है। ऐसे में इस त्यौहार के समय सतर्कता बहुत आवश्यक हो गयी है। इस त्यौहार में स्त्रियों का समूह में एकत्र होना पर्याप्त समय तक साथ रहना। पुरुषों का सहयोग के लिए नजदीक बने रहना। फिर समारोह है तो अपरिचित भी इसमें सम्मिलित होते हैं। ऐसे में सामुहिक रूप से इसे मनाना वायरस के प्रसार के लिए बहुत मुफीद हो सकता है। आज ही खबर है कि भीलवाड़ा में तीन चिकित्सक और तीन नर्सिंग छात्र इस कोरोना की चपेट में हैं। उन में लक्षण दिखाई देने के पहले वे सैंकड़ों लोगों के संपर्क में आए होंगे और उनमें से अनेक को वायरस स्थानान्तरित हुए हो सकते हैं। इसी कारण से इस नगर को पूरी तरह से लॉक डाउनकी स्थिति में लाने की कवायद चल रही है। आशा है प्रशासन और भीलवाड़ा की जनता इस लॉक डाउन को सहयोग करेंगे और वायरस का विस्तार रुक सकेगा।

इस घटना को देखते हुए आगामी दिन बहुत ऐहतियात रखने के होंगे। गणगौर पूजा वास्तव में शिव-पार्वती पूजा है। जिन परिवारों की स्त्रियाँ इस त्यौहार को मनाती हैं उन के घरों में शिव-पार्वती प्रतिमाएँ या तस्वीरें अवश्य होती हैं। सभी स्त्रियाँ अपने अपने घरों में रह कर इन प्रतिमाओं/ तस्वीरों की पूजा कर के त्यौहार मना सकती हैं। उन्हें इस के लिए बाहर निकलने की जरूरत नहीं होगी। इस अवसर पर जो मीठे और चरपरे गुणे बनाए जाते हैं उन्हें आपस में बदला भी जाता है। इस बार यह काम न किया जाए तो बेहतर है। क्यों कि इस अदला-बदली में वायरस स्थानान्तरण भी हो सकता है। आज कोरोना वायरस से फैली इस विश्वव्यापी महामारी के समय में गणगौर के त्यौहार को भी निबन्धित रीति से मनाना पड़ेगा। यह निबन्धित रीति क्या हो, यह बताने के लिए राज्य सरकार को तुरन्त एडवाइजरी जारी करनी चाहिए।


कोरोना लॉक डाउन


अदालतों में लगभग पूरा ही लॉक डाउन हो गया है। 31 मार्च तक कोर्ट जाने का कोई मतलब नहीं रहा। आज मेरा सहायक शिव प्रताप यादव अदालत गया था। आज बहुत सारे मुकदमे कलेक्ट्री आदि में थे। जिनकी अगली तारीख वेबसाइट पर अपलोड नहीं होती। उसे कलेक्ट्री परिसर में प्रवेश करने में परेशानी आई। खुद अफसर दरवाजे पर खड़े होकर लोगों को अंदर नहीं जाने दे रहे थे। उसे भी रोका गया। कुछ जद्दोजहद के बाद वह अंदर जा सका। उसे कहा गया था कि भाई किसी के मुकदमों को कोई नुकसान नहीं होगा। आप अपनी तारीखें 31 मार्च के बाद नोट कर लेना।

कल और परसों तो छुट्टी है। सोमवार को देखना पड़ेगा कि क्या हालात रहते हैं।  वैसे  अदालतें ऐसा स्थान है जहाँ हजारों लोग रोज एकत्र होते हैं। जिसमें गाँवों से आए लोग भी होते हैं और विभिन्न नगरों से पेशियों पर आए ऐसे लोग भी जो विदेश से हाल में देश लौटे लोगों के संपर्क में आए हुए भी हो सकते हैं। इस कारण अदालत परिसर को   बंद करना ही उचित है। मेरे विचार में तो सरकार को ऑन लाइन सुनवाई की व्यवस्था को तेजी से विकसित करना  चाहिए जिस से अदालतो में अनावश्यक भीड़ को कम किया जा सके।
आज मुझे कहीं नहीं जाना था। लेकिन सुबह मोटे अनाज लेने बाजार गया। ज्वार, मक्का, जौ और बाजरा लेकर आया हूं। कुछ महीनों से मैंने अपनी रोटी में गेहूं के आटे की मात्रा 15 परसेंट के लगभग रहने दी है। उसका बड़ा लाभ भी मिला मुझे। वजन कम करने में मदद मिली। इसके अलावा मैंने यह किया था कि चीनी और चीनी से बने तमाम खाद्य पदार्थों का प्रयोग करना बंद कर दिया। पिछले 6 महीने में तकरीबन 8 किलो वजन कम किया है। २-३ तरह की दालें और चना शाम को लेकर आया।
दिन में शहर में यातायात बहुत कम था। दुकानें सभी खुली थी। कहीं कोई भीड़ नहीं थी। लोग केवल जरूरी चीजें खरीदने के लिए बाजार में निकले थे। इस बात की भी तैयारी थी महीने में 15 दिन का राशन पूरा कर लिया जाए।
अगले सप्ताह गणगौर का त्यौहार है। राजस्थान में स्त्रियां इसे खूब मनाती हैं। गणगौर के दिन गणगौर की पूजा के लिए काफी स्त्रियां एक साथ इकट्ठा होती है। शाम को गणगौर की मूर्तियां सराने के लिए जुलूस बनाकर नदी-तालाब जाती हैं। इस तरह का एकत्रीकरण इस वक्त वायरस के विस्तार केलिए अच्छा मौका देगा।
राजस्थान सरकार को इस त्यौहार के मौके पर विशेष व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी और स्त्रियों को घर से बाहर निकलने से रोकना होगा। देखना है कि राजस्थान सरकार का प्रशासन कैसे इस त्यौहार से निपटने के लिए क्या तैयारियां कर रहा है?
कोटा,   20.03.2020 , रात्रि 09ः30 

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कोविद-19 का नेग


17 मार्च तक अदालत में कामकाज सामान्य था। 18 को जब अदालत गया तो हाईकोर्ट का हुकम आ चुका था, केवल अर्जेंट काम होंगे। अदालत परिसर को सेनीटाइज करने और हर अदालत में सेनीटाइजर और हाथ धोने को साबुन का इन्तजाम करने को कहा गया था, वो नदारद था। काम न होने से हम मध्यान्ह की चाय के लिए 1.30 के बजाय 12.40 पर ही चले गए। वापस लौटे तब तक अदालत के तीनों गेट बंद थे। केवल एक गेट की खिड़की चालू थी। अब अन्दर जाने के लिए गेट नंबर-1 से ही जाना होता जो दूर था। सब मुकदमों में पेशियाँ हो चुकी थीं। परिसर के अंदर वाले एक सहायक से बैग मंगाया, बाउंड्री के ऊपर से उसने दिया। मैं 2 बजे के पहले घर आ गया।

कल मैं नहीं, केवल मेरा सहायक अदालत गया। कोई आधे घण्टे में ही मोबाइल एप पर सारे मुकदमों की पेशियाँ मिल गयीं। घण्टे भर में तो सहायक भी वापस लौट कर आ गया। उसने बताया कि केवल गेट नं.1 की खिड़की खुली थी, वहाँ एक पुलिसमेन और एक अदालत कर्मचारी तैनात था। मात्र अदालत स्टाफ, वकील और उनके क्लर्कों के अलावा किसी  ही अदालत परिसर में आने दिया जा रहा था।

यूँ मेरे पास वकालत का काम हमेशा पैंडिंग रहता है, मैंने सोचा उसी को निपटाया जाए। पर मन नहीं लगा। टीवी पर फिल्म देखने बैठ गया। सालों बाद पूरी फिल्म देखी, जितेन्द्र-जया की "परिचय"। उत्तमार्ध ने सूची बना रखी थी बाजार से लाने वाले सामानों की। मैंने उसके दो हिस्से किए। कैश काउंटर से लाने वाले सामान कल ले आया। उसके यहां हमारी जरूरत वाला चाय का ब्रांड उपयुक्त साइज का नहीं था। आज उसके और कुछ और चीजों के लिए दुबारा बाजार जाना पड़ेगा। बाजार सामान्य था। बस भीड़ कम थी, इतनी कि रामपुरा बाजार और उसकी गलियों में बिना किसी से टकराए आसानी से निकला जा सकता था।

दवा वाले की दुकान से दो दवाएँ लानी थीं। उनमें से एक नहीं थी। मैं दोनों नहीं लाया। सोचा शाम को ले लूंगा, पर दुबारा बाजार जाना नहीं हुआ। उसके पास एक सेनेटाइजर जेल उपलब्ध था। लेकिन बहुत महंगा। इस कारण मैं नहीं लाया। मुझे लगा कि उसके बिना काम चलाया जा सकता है। साबुन से हाथ धोकर वे कम से कम एक माह की जरूरत के पहले से घर पर मौजूद थे। कुछ दूसरी जरूरी चीजें लेने के लिए जो घर पर लगभग खत्म होने की स्थिति में हैं आज फिर बाजार जाना पड़ेगा।

अखबार में खबर है कि नगर में विदेश से आए 112 लोगों की स्क्रीनिंग की गयी है। तीन सन्दिग्ध हैं इनमें से दो अस्पताल में भर्ती हैं, शेष एक को घर पर आइसोलेट किया गया है। अब तक आइसोलेट किए जाने वाले लोगों की संख्या 107 हैं। 7 संदिग्धों के आइसोलेशन के 28 दिन पूरे हो चुके हैं। फिलहाल 127 लोग चिकित्सा विभाग की निगरानी में हैं। अच्छी बात यह है कि अभी तक कोई कोविद-19 का पोजिटिव नहीं पाया गया है। फिर भी नगर जिस तरह से एहतियात बरत रहा है वह अच्छा है।

अखबार में यह भी खबर है कि इटली में कोविद-19 से हुई मौतों की संख्या 3405 ने चीन में हुई मौतों की संख्या 3245 को पीछे छोड़ दिया है। यह बहुत बुरी खबर है। सबसे अधिक आबादी वाला चीन ने इस कोविद-19 के विजय अभियान को बिना कोई हल्ला किए सफलता पूर्वक रोक दिया है। इटली में अभी वायरस का विजय अभियान जारी है। बाकी विश्व बुरी तरह आतङ्कित है। हमारी अपनी तैयारी को देख कर बहुत बुरा महसूस हो रहा है। हैंड सेनेटाइजर, हैंड वाश और मास्क पर जम कर कालाबाजारी हो रही है। पैनिक में खाने-पीने की वस्तुएँ बाजार से गायब हो गयी हैं। विशेष रूप से पीएमओ की नाक के नीचे एनसीआर में यह संकट है। वहाँ से जो खबरें आ रही हैं वे अच्छी नहीं हैं। नोएडा में बेटी को तीन दिन से मल्टीग्रेन आटा नहीं मिल रहा था। कल सामान्य गेहूँ आटा खऱीद कर लाना पड़ा। एक और मित्र ने कहा कि गाजियाबाद में आटा बाजार से गायब है। निश्चित रूप से गलियों में यही ऊंचे दामों पर मिल रहा होगा वह भी सीमित मात्रा में। साहेब, आप कितना ही कहें कि मास्क और सेनेटाइजरों की, घरेलू सामानों की कोई कमी नहीं है। पर जब ग्राउण्ड रिपोर्ट विपरीत आ रही हो तो साहेब की बात पर विश्वास हो तो कैसे? इसबीच खबर ये भी है कि डॉलर 76 रुपए का हो चला है।

खैर¡ आप तो इतवार के कर्फ्यू के लिए तैयार हो जाइए। बाहर कतई न निकलें। निकलेंगे तो सोच लीजिए आपके साथ क्या-क्या हो सकता है? मैं ने बताने का ठेका नहीं ले रखा। बस वेलेंटाइन-डे के अगले दिन के अखबार की खबरों को याद रखें। हाँ, थाली या ताली बजाना तो मूर्खता लगती है। मैंने सुना है और बचपन में देखा भी है कि थाली घर में बेटा होने पर बजाई जाती थी और शाम तक ताली बजाने वाले पहुँच जाते थे, अपना नेग वसूलने के लिए। आप भी तैयार हो जाइए नेग तो वसूला जाएगा ही। आखिर आपके घर कोविद-19 पैदा हुआ है।

- दिनेशराय द्विवेदी, कोटा-20.03.2020

रविवार, 15 मार्च 2020

मरीजों की दवा कौन करे


दुखते हुए जख्मों पर हवा कौन करे,
इस हाल में जीने की दुआ कौन करे,
बीमार है जब खुद ही हकीमाने वतन,
तेरे इन मरीजों की दवा कौन करे ...
 
किस शायर की पंक्तियाँ हैं ये, पता नहीं लग रहा है। पर जिसने भी लिखी होंगी, जरूर वह जख्मी भी रहा होगा और मुल्क के हालात से परेशान भी। आज भी हालात कमोबेश वैसे ही हैं।
 
कोरोना वायरस ने दुनिया भर को हलकान कर रखा है। दुनिया के सभी देश कोरोना वायरस को परास्त करने के लिए मुस्तैदी से कदम उठा रहे हैं। लेकिन हम नाटकीय लोग हैं। हम नाटक करने में जुट गए हैं। बरसात होने के बाद गड्ढों में पानी भर जाता है तो मेंढ़क बाहर निकल आते हैं, यह उनके प्रजनन का वक्त होता है। वे अंडे देने और उन्हें निषेचित कराने को अपने साथी को बुलाने के लिए टर्र-टर्र की आवाज करने लगते हैं। इसे ही हम मेंढ़की ब्याहना कहते हैं। कुछ लोग समझते हैं कि बरसात मेंढ़की के ब्याहने से होती है। फिर जब कभी बरसात नहीं होती तो हम  समारोह पूर्वक मेंढ़की ब्याहने का नाटक करते हैं, जैसे उस से बरसात होने लगेगी। हम सब जानते हैं, ऐसा नहीं होता। लेकिन फिर भी नाटक करने में क्या जाता है। वैसे इन नाटकों से बहुत लोगों की रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता है। बल्कि कुछ लोग तो इन्हीं नाटकों के भरोसे जिन्दा हैं। जिन्दा ही नहीं बल्कि राज तक कर रहे हैं।
 
कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए हम क्या कर रहे हैं? लगभग कुछ नहीं। हम अपने घटिया धर्मों, परंपराओँ और अन्धविश्वासों के हथियारों से उसे हराने की बात कर रहे हैं, जिनसे इंसान के अलावा कोई परास्त नहीं होता। गोबर और गौमूत्र थियरियाँ फिर से चल पड़ी हैं। यही नहीं उससे नाम से कमाई भी की जा रही है। कुछ सौ रुपयों में गौमूत्र पेय और गोबर स्नान उपलब्ध करा दिए गए हैं। गाय को उन्होंने कब से माँ घोषित कर रखा है। जो खुद की माँ को न तो कभी समझ सके हैं और न कभी समझेंगे। यदि वे उसे समझते तो शायद गाय, गौमूत्र और गोबर के फेर में न पड़ते। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि ज्यादातर वायरल बीमारियाँ पालतू जानवरों से ही मनुष्यों में फैली हैं। लेकिन हम उन्ही पालतू जानवरों के मल-मूत्र से उसकी चिकित्सा करने में जुटे पड़े हैं।
 
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उधर बचाव के लिए जरूरी चीजें बाजार से गायब हो चुकी हैं। मास्कों, सैनिटाइजरों और हैंड-वाशों  की बाजार में कोई कमी नहीं होती। टीवी पर खूब विज्ञापन रोज चलते दिखाई देते रहे हैं। लगभग जितना स्टॉक होता है वह कम भी नहीं होता। लेकिन मांग बाजार में आने के पहले ही ये सब चीजें बाजार से गायब हो चुकी हैं। जिससे इन चीजों के दाम बढ़ाए जा सकें और मुनाफा कूटा जा सके। हम दसों दिशाओँ से मुनाफाखोरों से घिरे हैं।   
 
हमारे देश के मौजूदा आका भी कम नहीं। जब जनता मुसीबत में है तब इस वक्त में भी वे मुनाफा कूटने में लगे हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव से काफी समय बाद अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें गिरी हैं। जब तेल के दाम बाजार से जोड़ दिए गए हैं तो होना तो यह चाहिए था कि इस का लाभ सीधे उपभोक्ताओं को मिलता। लेकिन सरकार को तेल के दाम गिरना कहाँ मंजूर है? जितने दाम गिरने चाहिए थे उतना उस पर टैक्स बढ़ा दिया है। जब जनता सब तरफ से मर रही है तब सरकार अपना खजाना भर रही है। क्यों न भरे? जनता मरे तो मरे उन्हें क्या? जब जनता भक्ति में लीन हो तो भगवान के लिए वही मौका होता है तब भक्त की जेब काट कर अपने ऐश के सामान जुटा ले। तो आपके भगवान इस वक्त की सब से बड़ी आफत के समय इसी में लगे हैं। फिलहाल विदेश यात्राएँ बंद हैं। आफत से बचने के लिए भगवान बंकर में जमींदोज हैं। खजाना भर रहा है। लेकिन कभी तो ये संकट टलेगा। जैसे ही पता लगेगा कि कोरोना अब आफत नहीं है। फिर निकलेंगे विदेश यात्रा के लिए।


शुक्रवार, 13 मार्च 2020

नई पैकिंग


मान मेराज के घराने का नित्य का आहार था, जिसे वह मंडी में एक खास दुकान से लाता था। कभी वह मंडी की सब से बड़ी दुकान हुआ करती थी। उसका बाप भी उसी दुकान से लाता था। ऐसा नहीं कि मान केवल उसी दुकान पर मिलता हो। मंडी में और भी दुकानें थीं। उसकी बुआएँ दूसरी जगह से मान लेती थीं। बाप मर गया फिर भी वह उसी दुकान से सामान लेता रहा। दूसरी दुकानों वाले कम दाम पर मान देने की पेशकश कर के उसे बार बार आकर्षित करने की कोशिश करते थे। फिर अचानक उसकी वाली दुकान के ग्राहक कम होने लगे। उसने देखा कि मंडी में प्रतिद्वंदी दुकान वाले ने अपना सारा सैट-अप चेन्ज कर दिया है। दुकान का पूरी तरह आधुनिकीकरण कर दिया। यहाँ तक कि केवल फोन या एप पर आर्डर मिलते ही मान घर पहुंचने लगा। मेराज ने भी एप ट्राइ किया। उसे लगा कि पड़ोसी दुकानदार की दुकान पर भी कीमतें कमोबेश वही हैं जो वह अपनी स्थायी दूकान पर चुकाता है। पर उसके प्रतिद्वंदी की दुकान नवीकरण के बाद से चमकती है, पैकिंग चमकती है, दुकानदार भी खूब चमकता है।
कभी-कभी उसे लगता कि उसकी पुरानी दुकान को जितना दाम वह चुकाता है उस के मुकाबले उसे कम और दूसरों को अधिक मान दिया जा रहा है। कभी कभी उसकी बुआएँ भी कहती थीं अब वह दुकान छोड़ तू भी हमारी वाली दुकान पर आ जा। पर खून के रिश्तों पर व्यवसायिक रिश्ते भारी पड़ते ही हैं। वह मुस्कुरा कर बुआओं को जवाब दे देता कि उस दुकान से उसका रिश्ता बाप के वक्त से है, कैसे छोड़ दे? दुनिया बातें जो बनाएगी, लोग फजीहत करेंगे वगैरा वगैरा। लेकिन वह लगातार यह परखता रहता कि कहीं वह ठगा तो नहीं जा रहा है? जाँच करने पर पता लगता कि दाम में भी और मान में भी दोनों ही तरफ कोई खास फर्क नहीं है। वह पुरानी दुकान पर ही बना रहा।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: पक्षी
चित्र : सुरेन्द्र वर्मा से साभार
फिर एक दिन प्रतिद्वंदी दुकानदार ने पासा फैंका। अपने यहाँ उसे भोजन पर न्यौता। उस ने सोचा इतने मान से वह न्यौता दे रहा है तो जाने में क्या बुराई है। वह चला गया। उसे खूब मान मिला। यह आश्वासन भी मिला कि यदि वह उस की दुकान पर आ जाए तो निश्चित रूप से उसे विशिष्ट ग्राहक का मान मिलेगा। पुराना दुकानदार उस का मान तो करता है, लेकिन विशिष्ट नहीं। वह दूसरों का भी उतना ही मान करता है। वह वापस लौट कर पुराने दुकानदार के पास पहुँचा उस ने अपनी मांग रख दी कि उसे दूसरे ग्राहकों से अधिक मान मिलना चाहिए और मान भी कुछ डिस्काउंट के साथ मिलना चाहिए। दुकानदार ने उसे कहा कि हमने आप के मान में कभी कमी नहीं रखी। हम अपने स्थायी ग्राहकों को बराबर मान देते हैं। अब दूसरों से अधिक आपको देंगे तो दूसरों को लगेगा कि उनका अपमान कर रहे हैं। रहा सवाल डिस्काउंट का तो जिन जिन्सों में डिस्काउंट सम्भव है उनमें दिया ही जा रहा है, वे सभी ग्राहकों को देते हैं। उनको भी दे रहे हैं। यदि संभव होगा तो कुछ डिस्काउंट बढ़ा देंगे लेकिन देंगे सभी ग्राहकों को, वे ग्राहक-ग्राहक में भेद नहीं कर सकते।
बस फिर क्या था। मेराज की फौरन सटक गई। उसने कह दिया कि उसे प्रतिद्वंदी दुकानदार वह सब देने को तैयार है जो उस की मांग है। इसलिए वह सोचेगा कि वह इस दुकान से मान खऱीदना बंद कर प्रतिद्वंदी की दुकान से क्यों न खऱीदने लगे। उधर जिस दिन से वह न्यौते पर हो कर आया था उसी दिन बाजार में कानों-कान खबर उड़ गयी थी कि मेराज भी अब पुरानी वाली दुकान छोड़ नयी दुकान से मान लेने की सोच रहा है। मेराज शहर के बड़े आसामियों में से था तो खबर को खबरची ले उड़े। अखबारों में भी बात छप गयी। पुरानी दुकान के ग्राहक सतर्क हो गए। वे एक-एक कर दुकानदार के पास पहुँचकर बोलने लगे। मेराज को सुविधाएँ देने में उनको कोई आपत्ति नहीं है पर उन्हें भी वैसी ही सुविधाएँ चाहिए। पुराना दुकानदार सब को सहता रहा और कहता रहा। वह ऐसा नहीं कर सकता। वह सब ग्राहकों को समान समझता है और समान ही व्यवहार करेगा। इस के सिवा वह और कहता भी क्या? उसे पता था, प्रतिद्वंदी दुकानदार ने उस के व्यवसाय को खासा चोट पहुंचाई है। बाजार में नम्बर एक का स्थान तो उस से कभी का छिन चुका है। अभी भी वह नम्बर दो बना हुआ है तो इन्हीं पुराने ग्राहकों की बदौलत। उस के नए ग्राहक भी इन पुराने ग्राहकों की बदौलत ही आते हैं। वह इन ग्राहकों को कतई चोट नहीं पहुँचा सकता। उस ने मेराज को अलग से कोई सुविधा दी तो उसकी बची-खुची दुकानदारी को बत्ती लग जाएगी। वह चुप्पी खींच कर बैठ गया।
जल्दी ही मेराज पुरानी दुकान पहुँचा और उसका हिसाब-किताब कर आया। बाजार तो बाजार ठहरा। वहाँ चर्चाएँ चलीं। मेराज अब खुद की अपनी दुकान खोल लेगा। कुछ ने कहा उसे दुकानदारी करनी होती तो पहले ही कर लेता। उसका धंधा दूसरा है वह इस धंधे में क्यों पड़ेगा, वह जरूर नई दुकान पकड़ेगा। दो दिन तक ये सारी गपशप बाजारों, अखबारों, चैनलों के साथ साथ फेसबुक और व्हाट्सएप गलियारों में भी खूब चलीं। तीसरे दिन दोपहर को अचानक मेराज अपने घर से निकला और सीधे नई दुकान पर पहुंच गया। दुकान पर न नया दुकानदार था और न ही उसका मुनीम। बस कारिन्दे थे। लेकिन कारिन्दों ने उस का खूब जोर शोर से स्वागत किया। ये सब चैनलों ने लाइव दिखाया।
मेराज का दुकान बदलने का उत्साह ठंडा पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब वह दुकान पर पहुँचा तब दुकानदार को नहीं तो उस के मुनीम को तो वहाँ होना ही चाहिए था। दोनों नहीं थे, और यह सब चैनलों ने लाइव दिखा दिया। यह तो उस की भद्द हो गयी, डैमेज हो गया। नयी शुरुआत और वह भी डैमेज से। वह दुखी हुआ। उसने तुरन्त नए दुकानदार को काल लगवाई। पता लगा नए दुकानदार के सभी फोन एंगेज आ रहे हैं। मेराज के कारिन्दों ने मुनीम के फोन खंगाले तो उन पर घंटी जाती रही, किसी ने उठाया ही नहीं। थक हार कर कारिन्दे बैठ गए। सोचा कुछ देर बार फिर ट्राई करेंगे। कोई बीस मिनट ही बीते होंगे कि फोन आ गया। नई दुकान के मुनीम का था। फोन तुरन्त मेराज को पकड़ाया गया। मुनीम बोला- वो बाथरूम में था और किसी कारिन्दे को आप का फोन उठाने की हिम्मत न हुई। उसे मेराज के दुकान पर आने की खबर बहुत देर से हुई वर्ना दुकानदार और वह खुद दुकान पर ही उस का स्वागत करते। वे दोनों जहाँ थे वहाँ से दुकान पर तुरन्त पहुँचना मुमकिन नहीं था। अब वह खुद और दुकानदार फ्री हैं। वे चाहेँ तो मिलने आ सकते हैं।
मुनीम के फोन से मेराज की साँस में साँस आई। वह शाम को दोनों से मिलने गया। ध्यान रखा कि जब वह मिले वहाँ चैनल वाले जरूर हों। कुछ ही देर में चैनलों पर दुकानदार और मुनीम से मेराज की मुलाकात के वीडियो आ गए। कुछ हद तक डेमेज कंट्रोल हो चुका था। रात को मेराज ने अपने कारिन्दे को बुलाया और पूछा- नई दुकान से जो मान आया था उसके बिल चैक किए? मान चैक किया? कारिन्दे ने जवाब दिया- मान में तो कोई खास फर्क नहीं है, कुछ बीस है तो कुछ उन्नीस है। मान की कीमत कम लगाई है, पर पैकिंग अलग से चार्ज की है उसे मिला दें तो पुराने दुकानदार के मान से दाम कुछ अधिक ही लगे हैं। पर ये जरूर है कि मान जूट के बोरों की जगह खूबसूरत रंगे-पुते गत्तों  में आया है। ड्राइंगरूम में भी कुछ घंटे रखा रह जाए तो बुरा नहीं लगता।
मेराज सोच रहा था कि यह तो दो चार महीने के बाद पता लगेगा कि मान कैसा है और दाम कितने। दुकानदार और मुनीम दोनों मिल लिए हैं। चैनलों में वीडियो आ गए हैं। अभी तो मान की भर्ती पूरी हो गयी है। सुबह का डैमेज कंट्रोल कर लिया है। आगे की आगे देखेंगे।

सोमवार, 9 मार्च 2020

समानता के लिए विशाल संघर्ष की ओर



तरह-तरह के दिवस मनाना भी अब एक रवायत हो चली है। हमारे सामने एक दिन का नामकरण करके डाल दिया जाता है और हम उसे मनाने लगते हैं। दिन निकल जाता है। कुछ दिन बाद कोई अन्य दिन, कोई दूसरा नाम लेकर हमारे सामने धकेल दिया जाता है। कल सारी दुनिया स्त्री-दिवस मना रही थी। इसी महिने की आखिरी तारीख 31 मार्च को ट्रांसजेंडर-डे मनाने वाली है। अभी चार महीने पहले 19 नवम्बर को पुरुष दिवस भी मना चुकी है।

इस तरह दुनिया ने इंसान को तीन खाँचों में बाँट लिया है। यह पुरुष, वह स्त्री और शेष ट्रांसजेंडर। यह सही है कि ये तीनों प्रकार प्रकृति की देन हैं। स्त्री-पुरुष प्रकृति में  मनुष्य जाति की जरूरतों के कारण पैदा हुए और तीसरा प्रकार प्रकृति या मनुष्य की खुद की खामियों से जन्मा। पर प्रकृति अपनी गति से आगे बढ़ती है। वह कभी एक सी नहीं बनी रहती। यह संपूर्ण यूनिवर्स, हमारी धरती एक क्षण में जैसे होते हैं, अगले ही क्षण वैसे नहीं रह जाते। यहाँ तक कि जीवन के सबसे छोटे सदस्य वायरस तक भी लगातार बदलते रहते हैं। अभी जिस 'नोवल कोरोना' वायरस ने दुनिया में कोहराम मचाया हुआ है। रिसर्च के दौरान उसकी भी दो किस्में सामने आ गयी हैं। एक 'एल टाइप' और दूसरा 'एस टाइप'। चीन के वुहान नगर में जहाँ सब से पहले इस वायरस ने अपना बम फोड़ा। उसी नगर में 70 प्रतिशत रोगी 'एल टाइप' वायरस से संक्रमित थे जो अधिक जानलेवा सिद्ध हुआ है। दूसरा 'एस टाइप' कम खतरनाक कहा जा रहा है। अब यह कहा जा रहा है कि यह 'उत्प्रेरण' (म्यूटेशन) के कारण हुआ है। यह भी कहा जा रहा है कि वायरसों में अक्सर 'उत्प्रेरण' होते रहते हैं। यह भी कि कमजोर वायरस 'सरवाइवल ऑफ दी फिटेस्ट' के विकासवादी नियम से नष्ट हो जाते हैं और केवल अपनी जान बचा सकने वाले शक्तिशाली ही बचे रहते हैं। यह भी कि जो टीका 'एल' टाइप वायरस से बचाव के लिए तैयार होगा वही उससे कमजोर टाइपों के लिए भी काम करता रहेगा।

यहाँ कोरोना वायरस का उल्लेख केवल जगत और जीव जगत में लगातार हो रहे परिवर्तनों और उसके सतत परिवर्तनशील होने के सबूत के रूप में घुस गया था। बात का आरंभ तो 'स्त्री-दिवस' से हुआ था और साथ ही मैंने 'ट्रांसजेंडर दिवस' और 'पुरुष दिवस' का उल्लेख भी किया था। हम मनुष्यों के भिन्न प्रकारों के आधार पर इस तरह के दिवस बना सकते हैं और उन्हें सैंकड़ों यहाँ तक कि हजारों प्रकारों में बाँट सकते हैं और हर दिन तीन-चार प्रकारों के दिवस मना सकते हैं।

जब भी इस तरह का कोई दिवस सामने आता है तो मैं सोचता हूँ इस पर अपने विचार लिखूँ। जैसे ही आगे सोचने लगता हूँ, धीरे-धीरे एक अवसाद मुझे घेर लेता है। कल भी यही हुआ। मैं ने दिन में तीन-चार बार फेसबुक पोस्ट लिख कर मिटा दी। एक बार तो पोस्ट प्रकाशित करके अगले कुछ सैकण्डों में ही उसे हटा भी दिया। बस एक ही तरफ सोच जाती रही कि हम कब तक इस तरह इंसान को इन खाँचों में बाँट कर देखते रहेंगे। जब गुलाब की बगिया में गुलाब खिलते हैं तो कोई दो गुलाब एक जैसे नहीं होते। ऊपर की टहनी पर खिलने वाला गुलाब ज्यादा सेहतमंद हो सकता है और नीचे कहीं धूप की पहुँच से दूर कोई गुलाब कम सेहतमंद। लेकिन माली उनमें कोई भेद नहीं करता। वह सभी की सुरक्षा करता है, सभी को सहेजता है और आखिर सभी को एक साथ तोड़ कर बाजार में उपयोग के लिए भेज देता है। बाजार में जा कर व्यापारी उसमें भेद करता है। बड़े फूल सजावट और उपहार के लिए निकाल दिए जाते हैं तो शेष को इत्र, गुलाब जल और गुलकंद आदि बनाने के लिए कारखानों में भेज देता है।

ठीक यही बात मैं इंसानों के लिए भी कहना चाहता हूँ कि मनुष्य में जो भेद करने वाले लोग हैं वे असल में इन्सान नहीं रह गए हैं और व्यापारी हो गए हैं। वे उपयोग के हिसाब से मनुष्य और उनके प्रकारों के साथ व्यवहार करने लगते हैं। जिनके “खून में ही व्यापार है”  मनुष्य उनके लिए वस्तु मात्र रह जाता है।  समय के साथ और भी अनेक प्रकारों में हमने मनुष्य को बाँटा है। जैसे कुछ लोग स्वामी थे तो कुछ लोग दास, कुछ लोग जमींदार हो गए तो कुछ लोग जमीन से बांध कर किसान बना दिए गए। फिर कुछ लोग पूंजीपति हो गए और बहुत सारे मजदूर हो गए। हमने उन्हें काम के हिसाब से जातियों में बाँट दिया। कुछ उच्च जातियाँ हो गयी तो कुछ निम्न जातियाँ। इन भेदों के हिसाब भी हमने दिन बना रखे हैं। लेकिन दिवस सिर्फ कमजोरों के लिए बनाए गए। ताकि उन्हें एक दिन दे दिया जाए जिससे वे एक कमतर जिन्दगी से पैदा अवसाद को कुछ वक्त के लिए भुला सकें। दुनिया में एक मजदूर दिवस है लेकिन पूंजीपति दिवस नहीं है। लुटेरों को दिवस मनाने की क्या जरूरत? उनके लिए तो हर दिन ही लूट का दिवस है। इसी तरह कुछ वक्त पहले तक पुरुष दिवस का कोई अस्तित्व नहीं था। लेकिन जब से स्त्री के प्रति भेदभाव को समाप्त करने वाले कानून अस्तित्व में आए और उसने लड़ना आरंभ किया तब से एक स्त्री-दिवस अस्तित्व में आ गया। मेरे अवसाद का कारण भी यही है।

मजदूर दिवस केवल मजदूरों के अवसाद को दूर नहीं करता बल्कि उन्हें उस लड़ाई के लिए भी प्रेरित करता है जिस से वे दुनिया के तमाम दूसरे मनुष्यों के समान व्यवहार प्राप्त कर सकें। उसी तरह स्त्री-दिवस भी उस लड़ाई के लिए प्रेरित करता है जिस से स्त्रियाँ दुनिया में पुरुषों के समान व्यवहार प्राप्त कर सकें। हर मनाए जाने वाले 'दिवस' और हर 'उचित और सच्चे संघर्ष' के पीछे मुझे मनुष्य और मनुष्य के बीच समानता के व्यवहार की का संघर्ष दिखाई देता है। इन संघर्षों को हमने 'मनुष्य-मनुष्य'  के बीच असमान व्यवहार को जन्म देने और उसे बनाए रखने वाले शैतानों द्वारा किए गए 'शैतानी वर्गीकरण' वाले नाम ही दे दिए हैं। इस तरह हमारी समानता के लिए चल रही लड़ाई अनेक रूपों में बँट गयी है। जिसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि हम अपने लक्ष्यों से भटक कर लड़ रहे हैं और ज्यादातर आपस में ही लड़ रहे हैं और अपनी शक्ति को व्यर्थ करने में लगे हैं। आज हमारे देश में हमें तुरन्त बेरोजगारी से मुक्ति, हर एक को समान शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के लिए लड़ना चाहिए। लेकिन शैतानों ने उस लड़ाई को कानून पास करके हिन्दू-मुसलमान की लड़ाई में बदल दिया है। हम उस लड़ाई के मोहरे बना दिए गए हैं।

आज जरूरत यही है कि इन छोटी-बड़ी लड़ाइयों को उसी तरह आपस में मिला दिया जाए, जैसे आसपास की सब नदियाँ एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं और पानी सागर की ओर बढ़ता रहता है। हमें भी अपनी समानता की लड़ाई को इसी तरह आपस में जोड़ कर बड़ी बनाना चाहिए। जिस से मनुष्य और मनुष्य के बीच असमान व्यवहार से मुक्त बेहतर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।