न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर |
मुझे नहीं लगता कि न्यायाधिपति अल्तमश कबीर के इस आव्हान महिला वकीलों ने बहुत गंभीरता के साथ ग्रहण किया होगा, यह भी हो सकता है कि खुद न्यायाधिपति भी अपने भाषण में कहे हुए शब्दों को बहुत देर तक गंभीरता के साथ न लें और केवल सोचते रह जाएँ कि वे एक अच्छा भाषण दे कर आए हैं जिस पर बहुत तालियाँ पीटी गई हैं। लेकिन उन्हों ने जो कुछ कहा है वह केवल महिला वकीलों को ही नहीं सभी वकीलों को गंभीरता के साथ लेना चाहिए, यहाँ तक कि इस बात को सरकारों और उन के विधि व महिला मंत्रालयों को गंभीरता से लेना चाहिए और इस दिशा में अभियान चलाया जाना चाहिए। अभी तो हालत यह है कि महिलाओं से संबंधित कानून और उन की सरल व्याख्याएँ हिन्दी और भारत में बहुसंख्यक महिलाओं द्वारा बोली-समझी जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
यूँ तो मान्यता यह है कि जो भी देश का कानून है उस की जानकारी प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिए। इस लिए सरकारों का यह भी जिम्मा है कि वे हर कानून की जानकारी जनता तक पहुँचाएँ। लेकिन शायद सरकारें इस काम में कोई रुचि नहीं रखतीं। जब कि होना तो यह चाहिए कि हर राज्य की अपनी वेबसाइट पर उस राज्य में बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में उस राज्य में प्रभावकारी सभी कानून और नियम उपलब्ध हों। कम से कम हिन्दी जो कि राजभाषा है उस में तो उपलब्ध हों हीं। लेकिन इस ओर राज्य सरकारों की ओर से इस तरह की कोई पहल होती दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसी हालत में सर्वोच्च न्यायालय स्वप्रेरणा से सभी सरकारों को यह आदेश दे सकता है कि वे निश्चित समयावधि में सभी कानूनों, नियमों और उन के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों को अपनी वेबसाइट पर अंग्रेजी, हिन्दी और राज्य की भाषा में उपलब्ध कराएँ और जब भी नए कानून, नियम और आदेश प्रभावी हों, उस से पूर्व उन्हें अपने-अपने राज्य की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए।