@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सभी कानून, नियम और आदेश प्रभावी होने के पहले सरकारें अपनी-अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध क्यों न कराएँ

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

सभी कानून, नियम और आदेश प्रभावी होने के पहले सरकारें अपनी-अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध क्यों न कराएँ

न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर
ह वास्तव में बहुत बड़ी बात है कि हम देश की सारी महिलाओं के पास यह जानकारी पहुँचा पाएँ कि उन के कानूनी अधिकार क्या हैं? ऑल इंडिया वूमन लायर्स कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अल्तमश कबीर ने महिला वकीलों को यही कहा कि उन्हें देश की महिलाओं में उन के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए काम करना चाहिए, जिस से वे यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से अपना बचाव कर सकने में सक्षम हो सकें। उन्हों ने यह भी कहा कि उन्हें महिलाओं को यह भी बताना चाहिए कि वे अपने अधिकारों को प्राप्त करने के संघर्ष में कानून को किस तरह से एक सहायक औजार के रूप में उपयोग कर सकती हैं। उन का कहना था कि जागरूकता के इस अभियान में ग्रामीण महिलाओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।
मुझे नहीं लगता कि न्यायाधिपति अल्तमश कबीर के इस आव्हान महिला वकीलों ने बहुत गंभीरता के साथ ग्रहण किया होगा, यह भी हो सकता है कि खुद न्यायाधिपति भी अपने भाषण में कहे हुए शब्दों को बहुत देर तक गंभीरता के साथ न लें और केवल सोचते रह जाएँ कि वे एक अच्छा भाषण दे कर आए हैं जिस पर बहुत तालियाँ पीटी गई हैं। लेकिन उन्हों ने जो कुछ कहा है वह केवल महिला वकीलों को ही नहीं सभी वकीलों को गंभीरता के साथ लेना चाहिए, यहाँ तक कि इस बात को सरकारों और उन के विधि व महिला मंत्रालयों को गंभीरता से लेना चाहिए और इस दिशा में अभियान चलाया जाना चाहिए। अभी तो हालत यह है कि महिलाओं से संबंधित कानून और उन की सरल व्याख्याएँ हिन्दी और भारत में बहुसंख्यक महिलाओं द्वारा बोली-समझी जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
यूँ तो मान्यता यह है कि जो भी देश का कानून है उस की जानकारी प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिए। इस लिए सरकारों का यह भी जिम्मा है कि वे हर कानून की जानकारी जनता तक पहुँचाएँ। लेकिन शायद सरकारें इस काम में कोई रुचि नहीं रखतीं। जब कि होना तो यह चाहिए कि हर राज्य की अपनी वेबसाइट पर उस राज्य में बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में उस राज्य में प्रभावकारी सभी कानून और नियम उपलब्ध हों। कम से कम हिन्दी जो कि राजभाषा है उस में तो उपलब्ध हों हीं। लेकिन इस ओर राज्य सरकारों की ओर से इस तरह की कोई पहल होती दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसी हालत में सर्वोच्च न्यायालय स्वप्रेरणा से सभी सरकारों को यह आदेश दे सकता है कि वे निश्चित समयावधि में सभी कानूनों, नियमों और उन के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों को अपनी वेबसाइट पर अंग्रेजी, हिन्दी और राज्य की भाषा में उपलब्ध कराएँ और जब भी नए कानून, नियम और आदेश प्रभावी हों, उस से पूर्व उन्हें अपने-अपने राज्य की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए।

11 टिप्‍पणियां:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

आपने बहुत सही कहा है. हमें देश में लागु सभी कानूनों की जानकारी राजभाषा हिंदी मिलनी ही चाहिए. आपका उपरोक्त लेख काफी अच्छा है. आपने सच कहा जज साहब को खुद याद नहीं रहा होगा की उन्होंने क्या भाषण दिया है. मेरे शब्दों में कहते हैं कि-कथनी और करनी में फर्क होना.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

एकदम सहमत.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhaai jaan desh men vidhik saakshrta qaanun bna he snvidhan men hindi ko raaj bhaasha or anususchiyon ke qaanunon men hindi men prchar prsaar ki badhytaa he aedvocate act or niymon men 20 prtisht maamle muft men ldne or vidhik sakshrta ka pravdhaan he srkar is mishn pr hr saal arbon rupye pani men bhati he lekin yeh sb qaanuni triqe se koi nhin krta kevl rsm nibhta he isliyen yeh sb ho rha he aapne bhut khub likhaa he . akhtar khan akela kot rajthan

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बात गम्भीर है और लागू की जानी चाहिये।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपने एकदम सही लिखा है... आपसे सहमति है.. दो पोस्ट पहले रोहित जोशी ने आपका स्वागत किया है ब्लाग जगत में आपके आगमन पर... उन्हें धन्यवाद दे दीजिये.. :)

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@भारतीय नागरिक - Indian Citizen
मैं रोहित जोशी के रफ-टफ पर हो कर आ चुका हूँ।

Rahul Singh ने कहा…

वह दिन शायद बहुत दूर नहीं.

उम्मतें ने कहा…

सुझाव अच्छा है !

Satish Saxena ने कहा…

बिलकुल ठीक कहा आपने ..... यह बेहद आवश्यक है!
शुभकामनायें !

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपकी अपेक्षा 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' है। यह होना ही चाहिए।

ghughutibasuti ने कहा…

सहमत.
घुघूती बासूती