ऐसा नहीं है कि ब्लाग जगत में वृद्धजनों की उपेक्षा और उन की समस्याओं पर विचार न हुआ हो। पहले भी समय समय पर विचार होता रहा है। हो सकता है कोई ब्लाग भी केवल वृद्धजनों पर बना हुआ हो। लेकिन अनवरत की पोस्ट मेरा सिर शर्म से झुका हुआ है और कैसी होगी, नई आजादी? के बाद इस विषय पर अनेक ब्लागों पर पोस्टें लिखी गई और एक बहस इस बात पर छिड़ गई कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इस के पीछे क्या कारण हैं। हम इस विषय पर अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। लेकिन वे एकांगी ही होंगे। क्यों कि हम अपनी अपनी दृष्टि से उन पर विचार करेंगे। वास्तविकता तो यह है कि भारत एक विशाल देश है और इस देश में अनेक वर्ग हैं। हर वर्ग में इस समस्या के अनेक रूप हैं। लेकिन हर जगह पर कमोबेश हमें वृद्धजनों की उपेक्षा दिखाई पड़ती है। वास्तव में इस समस्या पर समाजशास्त्रीय शोध होना चाहिए। शोध में आए निष्कर्षों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उस पर विचार करते हुए समस्या की जड़ों को खोजने का प्रयत्न होना चाहिए। इस दिशा में हो सकता है कुछ शोध हो भी रहे हों। यदि हम समस्या की जड़ों तक पहुँचें तो फिर उन्हें नष्ट करने का सामाजिक प्रयास किया जा सकता है।
उक्त दोनों पोस्टों में जिस घटना का उल्लेख किया गया है वह एक सामान्य निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बीच घटित हुई थी। लेकिन इसी नगर में तीन दिन बाद ही एक दूसरी घटना सामने आई जो इस समस्या का दूसरा पहलू दिखा रहा है। आप को उस की बानगी दिखाए देते हैं ...
हुआ यूँ कि प्रभात मजदूर वर्ग से है। उस ने कड़ी मेहनत से कमाई की और किसी तरह बचत करते हुए यहाँ छावनी इलाके में एक दो मंजिला मकान बना लिया। भूतल के चार कमरों में किराएदार रखे हुए हैं और प्रथम तल उस के स्वयं के पास है। उस के तीन बेटियाँ और एक बेटा राजेश है। सभी बेटियाँ शादीशुदा हैं और भोपाल में रहती हैं। प्रभात भी अक्सर अपनी बेटियों के पास ही रहता है। कभी कभी कुछ समय के लिए कोटा आ कर रहता है। किराएदारों से किराया वसूलता है और वापस भोपाल चला जाता है। राजेश को शराब की लत लग गई। पिता ने उसे घर से निकाल दिया। राजेश उदयपुर जा कर मजदूरी करने लगा। वहाँ उसे शराब पीने से रोकने वाला कोई नहीं था। वह अधिक पीने लगा। धीरे-धीरे शराब ने उस के शरीर को इतना जर्जर कर दिया कि वह बीमार रहने लगा और आखिर डाक्टरों ने उसे जवाब दे दिया। इस बीच उस की पिता से बात हुई होगी तो पिता ने उसे कह दिया कि वह कोटा आ कर क्यों नहीं रहता है। हो सकता है उस ने पिता को शराब के कारण हुई अपनी असाध्य बीमारी के बारे में न बताया हो।
अचानक 13 वर्ष बाद राजेश अपनी पत्नी चंद्रिका के साथ कोटा पहुँच गया। उन के कोई संतान नहीं है। पिता ने बेटे-बहू को आया देख कर उन्हें घर में घुसने नहीं दिया और खुद मकान के ताला लगा कर कहीं निकल गया। हो सकता है वह बेटियों के पास भोपाल चला गया हो। दो दिन तक राजेश-चंद्रिका घर के बाहर ही बैठे रहे। इस बीच लगातार बारिश होती रही। दोनों ने सामने के मकान के छज्जे के नीचे पट्टी पर सोकर उन्हों ने रात गुजारी। सुबह जब तेज बारिश में दरवाजे के बाहर लोगों ने उन्हें बैठे देख पूछताछ की। उन्होंने लोगों सारा घटनाक्रम बताया दिया। उनका कहना था कि पिता जब तक मकान में घुसने नहीं देंगे, तब तक वो यहीं बैठे रहेंगे। इस पर लोगों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस बेटे-बहू को समझा कर थाने लेकर गई। वहां बेटे ने पिता के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। फिलहाल पिता वापस नहीं लौटे है। पिता की तलाश जारी है।
यह परिवार पहले वाले परिवार से भिन्न है। यहाँ बेटे को इकलौता होते हुए भी पिता ने घर से निकाल दिया। बेटा भी ऐसा गया कि उस ने 13 वर्ष तक घर का मुहँ नहीं देखा। शराब ने उस के शरीर को जब जर्जर कर दिया और डाक्टरों ने उसे जवाब दे दिया। उसे लगने लगा कि अब वह जीवित नहीं रहेगा तो अपनी पत्नी को ले कर अपने पिता के पास आ गया। उस की मंशा शायद यह रही हो कि अब उस की हालत देख कर उस के पिता उस पर रहम करेंगे और उस का इलाज ही करा देंगे। यदि इलाज न हो सका तो कम से कम उस के मरने के बाद उस की पत्नी को रहने का ठिकाना तो मिल ही जाएगा। यहाँ यह लग सकता है कि बेटा जब कुपथ पर चला गया तो घर से उसका निष्कासन करना सही था। लेकिन आज जब बेटा बीमारी से मरने बैठा है तो उसे घर में न घुसने देना कितना उचित है? एक पुत्र अपने पिता के संरक्षण में कुपथ पर कैसे चला गया? पिता सिर्फ अपनी कमाई को जोड़ कर घर बनाता रहा और पुत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया और वह कुपथ पर गया तो उसे सुधारने का प्रयत्न किए बिना उस का घर से निष्कासन कर देना क्या उचित कहा जा सकता है? बेटे ने 13 वर्ष कैसे गुजारे किसी को पता नहीं। बेटे का विवाह बेटे ने स्वयं किया है या उस के पिता ने उस का विवाह निष्कासन के पहले कर दिया था, यह पता नहीं है।
पर इस सब में बेटे की पत्नी का क्या कसूर है? उस के पास तो इस के सिवा कोई सहारा नहीं है कि वह मजदूरी करे और अपना जीवन यापन करे। कम से कम कानून उसे अपने पति के पिता से कोई मदद प्राप्त करने का अधिकार प्रदान नहीं करता। चूंकि वह अपने ससुर के साथ नहीं रही है। इस कारण से घरेलू हिंसा कानून भी उस की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिर परिवार का क्या अर्थ रह गया है?
14 टिप्पणियां:
राजेश को स्वीकार कर लेना चाहिये, क्रोध सुधारने तक ही हो।
yeh sb jo qaanun bne hue hain unhen laagu nhin krne ka ntijaa hai ..akhtar khan akela kota rajsthan
एसा तो नहीं हो सकता कि बाप ने बेटे को कुपथ की और जाने से रोका नहीं हो, मेरे आस पास ऐसे बहुत से उदाहरण है जिनमे लोग शराब की लत के शिकार है परिजन ने समझाने की सुधारने की काफी कोशिशे की पर वे सब बेकार, ऐसे ही एक व्यक्ति ने शराब की लत के चलते अपनी पत्नी का इलाज नहीं कराया परिजनों को उसकी पत्नी की बीमारी का पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी परिजनों (सगे भाई व चचेरे भाइयों) ने उसकी पत्नी का इलाज कराया फिर भी पत्नी चल बसी.उसके घर में देखा तो खाने के लिए अनाज तक नहीं परिजनों ने वो दिया | अब भी परिजन उसके बच्चों के लिए हर जरुरत पूरी करने की कोशिश करते है पर उस व्यक्ति ने शराब अभी तक नहीं छोटी | उल्टा परिजनों को इमोशनल ब्लैक मेल करता है उसे पता है उसकी बच्चियों की शादियाँ उसके परिजन अपनी साख बचाने हेतु अपने आप करेंगे,बच्चे भूखे रहेंगे तो उसके परिजन उनके लिए अपने आप व्यवस्था करेंगे पर उसे नहीं सुधरना |
हो सकता है इस मामले में भी बाप ने पहले कोशिश की होगी तब बेटे ने जवानी के जोश में बाप की सलाह नहीं मानी होगी | तभी बाप ने उसे अपने घर से निष्कासित किया होगा,घर से निष्कासित होने के बावजूद इस व्यक्ति ने अपनी आदतें नहीं सुधारी ,इसका खामयाजा हो इसको भुगतना ही पड़ेगा | इसमें बाप की कोई गलती नहीं |
हाँ बाप से सिर्फ मानवीयता के नाते इसकी सहायता के लिए उम्मीद की जा सकती है |
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जहाँ एक पुत्र की प्राप्ति के लिए पता नहीं कितने व्रत उपवास एवं पूजा अर्चना की जाती है ऐसे में अपने इकलौते पुत्र से कोई पिता अकारण ही विमुख नहीं हो सकता ! निश्चित रूप से कुपथ पर बढे हुए पुत्र के कदमों को वापिस मोड़ने के पिता के सारे प्रयत्न निष्फल हो गये होंगे तभी इतना कठोर निर्णय पिता ने अपने ह्रदय पर पत्थर रख कर लिया होगा ! यह पुत्र की स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है कि अपनी ज़रुरत के समय उसे पिता की याद आयी ! उस समय वह कहाँ था जब पिता अपनी विवाहित बेटियों के यहाँ अपनी देख भाल के लिए शरण लेने के लिए विवश था ! क्या उसका अपने पिता के लिए कोई दायित्व नहीं था ?
जिसको जिस बात में मज़ा या फ़ायदा मिला , उसने वही किया।
प्यारी माँब्लॉग के रूप में एक अर्से से आंदोलन चल रहा है जो कि आपके सहयोग के दो बोल की प्रतीक्षा में आज भी है ।
दुनिया का क़ानून इंसाफ़ क्या दे पाएगा ?
इन सबका फ़ैसला मालिक ही कर सकता है, दुनिया के हाकिमों को इन सब फ़ालतू की बातों दिलचस्पी ज़रा कम है आजकल ।
हर मौक़े पर अपनी मालदारी ज़ाहिर करने वाले ज़रदार अब आएं सामने और दिलाएं इस ग़रीब को किराये पर घर वर्ना भूल जाएं अपनी दौलतिया हेकड़ी को !!!
समाज से संवेदनायें, संस्कार खत्म हो रहे हैं जिसके लिये हम सब जिम्मेदार हैं और इसका फल हमे ही भुगतना है। लेकिन सजा हमेशा कसूरवार को नही मिलती। ससुर को बहु के जावन का ख्याल करके अपना लेना चाहिये अगर बहु अपने पति का कसूर मानती है तो\ कहीं ऐसा तो नही कि पहले घर वालों की उपेक्षा करके अब बाप की जायदाद के लिये ही बेटा, बहु आये हों? ऐसे मे बाप का गुस्सा भी जायज़ लगता है फिर भी मानवता के लिये बेटे की सहायता जरूर करनी चाहिये।
धन-दौलत ज्ञान-विज्ञान.. कितना भी विकास क्यों न हो जाए...अगर संस्कारों की जड़ों में मानवीय गुणों का खाद पानी न होगा...ऐसा ही होता रहेगा...
दिनेशराय द्विवेदी@ जी कोई पिता अपनी औलाद को इतनी आसानी से नहीं निकालता और पिता से अधिक पुत्र को प्रेम कोई भी नहीं कर सकता. बहु की ज़िम्मेदारी उस शराबी पुत्र की है जिसने बुरी लत होते हुए भी शादी की और उस बहु की जिसने उसे पति बनाया. बेटे को चाहिए की शराब का त्याग करे और वादा करे सब के सामने और पिता को चाहिए यदि बेटा सच मैं ऐसा करता है तो बेटे और बहु दोनों को वापस ले ले. और यह संभव है .करवा के देख लें. पिता और पुत्र का प्रेम बड़ा गहरा होता है.
kabhi yah palda niche , kabhi wah .... kabhi idhar ka prashn mahatwpurn, kabhi udhar ka ...
गुरुवर जी,उपरोक्त पोस्ट एक ही सिक्का का दूसरा पहलू है.आज समाज में खोती जा रही है इंसानियत,छोटों द्वारा अपने से बडों का आदर सम्मान करना हुआ पुराने ज़माने की बात. आधुनिक संचार माध्यमों और भौतिक वस्तुओं की चाह में अच्छे संस्कार धन-दौलत की भेंट चढ़ गए हैं.
प्रायः लोगों में यह मानसिकता देखी गई है कि ‘मेरा दामाद अच्छा है, मेरी बेटी बोले जैसा सुनता है, मेरा बेटा बदमाश हो गया है, जोरू बोले जैसा करता है’:)
जब तक हम ये मान कर चलेंगे की सारा दोष हर हाल में नई पीढ़ी का ही है तब तक इस समस्या का कोई हल नहीं हो सकता है | जब संतान माँ बाप के रोज रोज के झगड़ो से बुरे व्यवहार तंग आ कर घर छोड़ दे तो लोग कहते है की संतान ने ठीक नहीं किया कैसे भी थे थे तो माँ बाप बुढ़ापे में उन्हें अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था , किन्तु जब किसी बुराई के कारण माँ बाप बच्चो को घर से निकाल दे और मुसीबत में भी माँ बाप बच्चो को घर में न घुसने दे तो भी दोष बच्चो का ही है जरुर इतने बुरे रहे होंगे तभी माँ बाप ने निकाला | यहाँ तो हर हाल में संतान का ही दोष निकाला जा रहा है अब आप समझ सकते है की क्या इस रुख से कभी भी इस समस्या का कोई भी हल निकलेगा |
लोग पिता द्वारा बेटे को निकालने और फिर से घर में नहीं घुसने देने के लिए अपनी तरफ से सही ठहराने के लिए तर्क दे रहे है किन्तु पिछली पोस्ट में किसी ने भी बच्चो की बात को सही ठहराने के लिए कोई तर्क नहीं दिया उसकी वजह नहीं जानने की जरुरत नहीं समझी | बनारस में मेरी परिचित है बी एच यु में प्रोफ़ेसर है पति नहीं है सो अपनी माँ के और १५ वर्षीय बेटी के साथ रहती है रोज कालेज जाते समय घर में ताला लगा जाती है एक चाभी माँ के पास भी होती है उन्हें पता है माँ को घर से कही बाहर जाना नहीं है किन्तु उनकी सुरक्षा के लिए ये जरुरी है | कल को कोई सेल्स मैन बन कर या किसी भी बहाने से घर में घुस कर लुट के लिए उन्हें मार न दे साथ ही दुनिया जहान का सामान बेचने वाले घंटी न बजाये उनकी माँ को नीचे आने में तकलीफ होगी | मुंबई दिल्ली जैसे कई घरो में माँ बाप बच्चो को आया के भरोसे छोड़ कर बाहर से ताला बंद कर जाते है डर होता है वही लुट का या खुद आया की नियत न ख़राब हो जाये बच्चो की सुरक्षा का | अभी कुछ साल पहले खबर आई थी की आर डी वर्मन की माँ वृद्धा आश्रम में है आशा जी को फोन किया गया चैनल वालो द्वारा आशा भोसले ने कहा हा मै जब भी किसी विदेशी टुर पर जाती हूँ तो उन्हें वृद्धा आश्रम में भेज देती हूँ वहा उनकी अच्छी देखभाल होती है मेरी गैरहाजरी में, विदेश से वापस आने पर ले कर आती हूँ | तो उनसे पूछ गया की आप तो हफ्ते भर पहले आ गई थी फिर आप की सास अभी तक घर पर क्यों नहीं आई तो उन्होंने जवाब दिया क्योकि मुझे दो दिन बाद फिर से विदेश जाना है | इतना कुछ साफ कहने के बाद भी चैनल वाले इसी बात पर अड़े रहे की बेचारी आर डी वर्मन की माँ को वृद्धा आश्रम में रहना पड़ता है |
जब लोगो का नजरिया ये रहेगा तो किसी समस्या का कोई भी हल नहीं निकलेगा | ताली एक हाथ से नहीं बजती है दोनों तरफ से कही न कही गलतिया होती है पर मानता कोई भी नहीं है चाहे वो माँ बाप द्वारा अपने बच्चो को अच्छे संस्कार न देना हो या बचपन से ही उनसे मानसिक जुड़ाव की जगह खाली माँ बाप होने को धौस जमाते पालते रहने की गलती हो | जहा दोनों का मन जुदा होगा वहा ये समस्या होगी ही |
ये बाप लोग बेटों से इतनी अपेक्षा और आशा रखते ही क्यों हैं ? ज़माना बदल गया है !
हर तरह की घटनाएं देखने को मिलती हैं समाज में .. यदि पिता ने ही बुलाया था की कोटा आ कर रहो तो पिता को मान लेना चाहिए ..और यदि बेटा स्वार्थवश आया है स्वयं ..तो पिता ने जो किया सही ही है ..
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