@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शिवराम जी के बाद, उन के घर .....

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

शिवराम जी के बाद, उन के घर .....

जीवनसाथी शोभा परसों से मायके गई हुई है। आज लौटना था, लेकिन सुबह फोन आ गया, अब वह कल सुबह आएगी। कल-आज और कल अवकाश के दिन हैं। मैं घर पर अकेला हूँ। चाहता तो था कि इन दिनों में मैं मकान बदलने से बिखरी अपने पुस्तकालय और कार्यालय को ठीक करवा लेता। पर अकेले यह भी संभव नहीं था। जिन्हें इस काम में साथ देना था वे भी अवकाश मना रहे हैं। शिवराम जी के बाद ब्लागीरी पर जो विराम लगा था, कल उसे तोड़ने का प्रयास किया। आज पूरे पाँच दिन के अन्तराल के बाद आज शिवराम जी के घर जाना हुआ। भाभी पहले तीन दिनों तक खुद को संभाल नहीं पा रही थीं। आज कुछ सामान्य दिखाई पड़ीं। मुझ से बात कर के  फिर से उन का अवसाद गहरा न जाए इस कारण उन से बात नहीं की। वे अपनी तीनों बहुओं और ननद के साथ बैठी बातें कर रही थीं और साथ दे रही थीं।
न के ज्येष्ठ पुत्र ब्लागर रवि कुमार और कनिष्ट पुत्र पवन से मुलाकात हुई। रवि बहुत सयाना है, उस में एक बड़ा कलाकार जीता है। सभी कोण से वह शिवराम जी से कम प्रतिभाशाली नहीं है। उसी से कुछ देर बात करता रहा। उसी ने बताया कि माँ अब अवसाद से धीरे-धीरे बाहर आ रही हैं। मैं ने पत्रिका अभिव्यक्ति की बात छेड़ दी। आपातकाल के ठीक पहले शिवराम जी से मेरी मुलाकात हुई थी। हम बाराँ में दिनकर साहित्य समिति चलाते थे और एक पत्रिका प्रकाशन की योजना बना रहे थे। शिवराम जी ने उसे आसान कर दिया। पत्रिका आरंभ हुई तो अनियमित रूप से प्रकाशित होती रही। लेकिन वह चल रही है और लघुपत्रिकाओं में अपना विशिष्ठ स्थान रखती है। शिवराम जी ही इस का संपादन करते रहे, सहयोग कई लोगों का रहा। लेकिन मूल काम और जिम्मेदारियाँ वही देखते थे। मैं ने रवि से अभिव्यक्ति में अपना योगदान बढ़ाने को कहा। उस ने बताया कि वह भी इस बारे में सोच रहा है। अभी तो वह शिवराम जी के कागजों को संभाल रहा है जिस से पता लगे कि वे कितने कामों को अधूरा छोड़ गए हैं, और उन्हें कैसे संभाला जा सकता है।
मैं ने रवि से उल्लेख किया कि घर आर्थिक रूप से तो संभला हुआ है। इस लिए पटरी पर जल्दी आ जाएगा, लेकिन जो सामाजिक जिम्मेदारियाँ शिवराम जी देखते थे, सब से बड़ा संकट वहाँ उत्पन्न हुआ है। उसे पटरी पर लाने में समय लगेगा। रवि ने प्रतिक्रिया दी कि यह तो मैं भी कह रहा हूँ कि अपने परिवार और घर के लिए तो वे सूचना मात्र रह गए थे, उन का सारा समय और जीवन तो समाज को ही समर्पित था। रवि ने ही बताया कि कुछ सांस्कृतिक संगठन कल शोक-सभा रख रहे हैं, जिस में कोटा के बाहर के कुछ महत्वपूर्ण लोग भी होंगे। यह मेरे लिए सूचना थी। मेरा मन तो कर रहा है कि इस सभा में रहूँ,  शिवराम जी के बाद उन से साक्षात्कार का यह अवसर मैं छोड़ना नहीं चाहता था। लेकिन मुझे पहले से तय जरूरी काम से जयपुर जाना होगा। रवि ने कल की सभा की छपी हुई सूचना मुझे दी। हरिहर ओझा की एक कविता इस पर छपी है, जो महत्वपूर्ण है।  मैं उस सूचना का चित्र यहाँ लगा रहा हूँ।  आर्य परिवार संस्था कोटा ने शिवराम को एक आँसू भरी श्रद्धांजलि पर्चे के रूप में छाप कर वितरित की है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। शिवराम ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले कम्युनिस्ट थे, लेकिन धर्मावलंबी जो उन के संपर्क में थे किस तरह सोचते थे, यह श्रद्धांजलि पर्चा उस की एक मिसाल है। दोनों को ही आप चित्र पर चटका लगा कर बड़ा कर के पढ़ सकते हैं।
 

 


7 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

समय सब घावों को भर देता है ....धीरे धीरे सब पटरी पर आ जायेगा -हाँ उनका शून्य थोड़े ही भरेगा

शरद कोकास ने कहा…

यह तो सचमुच अद्भुत और आश्चर्यजनक है कि शिवराम जी को एक ऐसी संस्था श्रद्धांजलि दे रही है जिसके आंतरिक कार्यों के लिये शिवराम जी का शायद ही कभी सहयोगात्मक रवैया रहा हो । यह इस बात का द्योतक है कि वे मनुष्य और समाज के सम्बन्धों की पड़ताल कर चुके थे और धर्म जाति जैसी मान्यताओं से ऊपर उठकर एक सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य मे इस समाज का हित करने मे जुटे हुए थे । आर्य समाज संस्था का यह पर्चा यही साबित करता है ।
आप की मनस्थिति हम समझ सकते है , लेकिन शिवराम जी के साथी होने के कारण अब आपके कन्धों पर भी एक महती ज़िमेदारी है ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

ईश्‍वर का अस्तित्‍व नकारनेवाले शिवरामजी को आर्य समाजवाले अपना माने हैं। यह शिवरामजी के व्‍यक्तित्‍व और चरित्र का अनूठा पहलू है। दूसरों की आस्‍थाओं को आहत किए बिना आदमी अपनी आस्‍थाओं पर कैसे अडिग रह सकता है, यह उसका सुन्‍दर उदाहरण है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सामाजिक निर्वात उत्पन्न हो जायेगा।

निर्मला कपिला ने कहा…

दिवेदी जी उनका स्थान तो कोई नही भर सकता बस वक्त ही भरेगा। मगर किसी को जरूर उनके अधूरे काम पूरे करने होंगे। साहस रख्गिये। शुभकामनायें।

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिवेदी जी इंसान तो चला जाता हे ओर हम भी धीरे धीरे समान्य होने लगते हे, लेकिन उन की यादे, उन की कमी बार बार खलती हे....भगवान उन्हे शांति दे ओर आप सब को ओर उन के परिवार को होसल्ला दे.

उम्मतें ने कहा…

शरद कोकास जी से सहमत हूं !