आज डायरी में मुकदमे अधिक न थे, लेकिन जितने थे वे सभी समय खपाऊ थे। चार मुकदमों में अंतिम बहस थी और चारों अलग अलग अदालतों में थे। एक मकान मालिक की ओर से किराएदार से मकान खाली कराने का था। दूसरा एक डाक्टर द्वारा बिना मरीज की अनुमति प्राप्त किए और उसे प्रक्रिया और परिणाम बताए बिना ऐंजियोप्लास्टी कर देने का उपभोक्ता विवाद था। तीसरा मजदूर की काम के दौरान दुर्घटना की मृत्यु के कारण मुआवजे का और चौथा एक नौकरी से निकालने का। सुबह साढ़े सात पर अदालत पहुँचा तो वहाँ केवल चार वकील और मिले जब कि पैंतीस अदालतें बाकायदा खुल चुकी थीं और काम चल रहा था। वकीलों के न पहुँचने के कारण वे अपने दूसरे काम निपटा रही थीं। वकीलों के बैठने वाले इलाके में अभी झाड़ू निकाला जा रहा था। मैं अपने मुवक्किल के साथ अदालत पहुँच गया। दूसरे पक्ष के वकील अभी पहुँचे नहीं थे। इंतजार के बाद तकरीबन पौने नौ बजे बहस आरंभ हुई और दस बजते बजते मैं ने उसे समाप्त कर दिया। प्रतिपक्ष की बहस के लिए कल की तिथि दे दी गई।
एक और अदालत में प्रतिपक्ष का वकील ठीक से तैयार नहीं था, उस में तिथि बदल गई। एक अदालत में अभी जज साहब चैंबर में थे तो मैं चौथी में जा पहुँचा। वहाँ अधिकारी अवकाश पर थे। आखिर डेढ़ बजे मुझे एक जज ने मुकदमे में बहस सुनाने के लिए चैम्बर में ही बुलवा लिया। मैं ने बहस सुना दी। प्रतिपक्षी की बहस फिर अधूरी रह गई। इस बीच किसी ने खबर दी कि राजस्थान की राज्यपाल का देहांत हो गया है। जज साहब ने तुरंत ही शोक जाहिर किया और घर फोन लगा कर अपने बेटे को निर्देश दिया कि वह ई-टीवी राजस्थान पर खबर सुन कर तफसील बताए। फिर कहने लगे कि -अब कल का तो अवकाश हो ही जाएगा। परसों फिर शोकसभा के कारण काम स्थगित रहेगा। आधा दिन आज का गया ही समझो। कुल मिला कर ढाई दिन का अवकाश हो गया। अवकाश से वे बहुत राहत महसूस कर रहे थे।
कुछ देर बाद उन्हों ने फिर घर फोन लगाया तब तक यह कन्फर्म हो चुका था कि आज का आधे दिन का और कल का पूरे दिन का अवकाश घोषित हो चुका है। उन्हों ने तुरंत अपने एक रिश्तेदार को फोन लगा कर बताया कि वह कल का अवकाश न ले और वैसे ही अवकाश घोषित हो चुका है। उसे अवकाश ले कर कहीं जाना था। जज साहब ने तुंरत रीडर को हुक्म दिया कि अब तक जो आदेशिकाएँ लिखी जा चुकी हैं उन में उन के हस्ताक्षर करवा लिए जाएँ, जिस से वे तुरंत घऱ जा सकें। शेष फाइलों में नोट लगा दिया जाए कि राज्यपाल के निधन के कारण अवकाश घोषित हो जाने से काम नहीं हो सका। उन फाइलों में अदालत खुलने वाले दिन हस्ताक्षर कर दिए जाएँगे। हस्ताक्षर कर के जज साहब ने अदालत छोड़ दी। रीडर शेष फाइलों में आदेशिका लिखने लगा। वह कहता जा रहा था कि अवकाश तो अफसरों का हुआ है। उन्हें तो उतनी ही फाइलें लिखनी पड़ेंगी जितनी रोज लिखनी पड़ती थीं।
मैं ने तीन बजे बाद अदालत छोडी। बैंक में लेनदेन बंद हो चुका था इस लिए कैश नहीं निकलवा सका। सोचा कल निकलवा लिया जाएगा। (मैं अभी तक एटीएम प्रयोग नहीं करता) घर पहुँचते ही एक इंश्योरेंस कंपनी से फोन आया कि किसी जरूरी मामले पर विमर्श करना है। मैं घंटे भर बाद ही वहाँ के लिए रवाना हो गया। काम की बात के अलावा वहाँ भी इस बात का चर्चा था कि क्या वहाँ भी कल अवकाश रहेगा। एक कर्मचारी कह रहा था कि पिछले राज्यपाल के निधन पर तो अवकाश रहा था। इस बार भी निगोशिएबुल इंस्ट्रूमेंट एक्ट में अवकाश होना चाहिए। मैं ने कहा शायद न हो, पहले वाले राज्यपाल निगोशिएबुल रहे हों और ये वाले न रहे हों।
खैर वहाँ से निकलकर शाम साढ़े छह घर पहुँचा तो वहाँ एक बैंक वाले मौजूद थे। उन्हों ने बताया कि उन के यहाँ भी अवकाश घोषित हो चुका है। जितने भी अफसर और कर्मचारी थे अचानक अवकाश का एक दिन मिल जाने से प्रसन्न थे। उन्हें राजकीय शोक रास आ रहा था।
मैं सुबह पौने पाँच पर सो कर उठा था। दिन भर काम करने पर थक चुका था। आज दिन में भी विश्राम नहीं मिला था। मुझे भी अच्छा लग रहा था कि कल का अवकाश हो चुका है वर्ना किराएदारी वाले मुकदमे के कारण कल फिर पौने पाँच उठ कर साढ़े सात तक अदालत पहुँचना पड़ता। मैं यह भी सोच रहा था कि इस मुकदमे में मकान मालिक कितना अभागा है कि आधी बहस के बाद मुकदमे में फिर अवकाश की अड़चन आ गई। परसों भी शोकसभा के कारण काम नहीं हो सकेगा। उस के बाद के दिन मुकदमा रखवाना पड़ेगा और इस के लिए बुध को फिर जल्दी जाना पड़ेगा। इस बीच यदि जज का ट्रांसफर आदेश आ गया तो..... गई भैंस पानी में।
16 टिप्पणियां:
भारत मै राजकीय शोक बहुत मनाया जाता है ओर छुट्टियां भी खुब, हमारे यहां अगर प्रधानम्त्री भी मर जाये तो दफ़तरो मे कोई छुट्टी नही, स्कूलो मे कोई छुट्टी नही, चलिये आप की मोज.
धन्यवाद
बस, इन्हीं सब बातों से हम आज भी पिछड़े हैं।
ये राजकीय शोक कितनों के शोक का कारण बनेगा, इससे क्या!
जस्टिस डिलेड.........
बिलकुल सही बात है हम शोक नही मनाते बल्कि नेताओं के मरने पर मौज मनाते हैं। अजित जी ने सही कहा है। रोज नही आ पाती ब्लाग पर मगर क्या करूँ व्यस्त हूँ। बहुत बहुत शुभकामनायें
सुबह साढ़े सात पर अदालत पहुँचा
-इतनी सुबह अदालतें खुल जाती हैं..जानकर घोर आश्चर्य हुआ.
हम काम का समय मारने में वर्ल्ड चैंपियन हैं. भले ही एक प्रतियोगिता ओलंपिक में रखवा ली जाये.
रामराम.
शोक में छुट्टी देने की जगह अधिक कार्य कर संवेदना व्यक्त करना उचित ।
शोक तो हमें अपने काम न करने के बहाने ढूँढने पर मनाना चाहिए।
आया है सो जाएगा
परन्तु जो जाते जाते छुट्टी दिला जाए वह महान कहलाता है।
घुघूती बासूती
हमारी व्यवस्था में राजकीय शोक के लिये स्थापित महानुभाव / हस्तियां जनप्रियता की कसौटी पर खरे उतरते हों तो शोक के अवकाश पर प्रसन्नता के हालात पैदा ही नहीं होंगें ! यह द्वैध नहीं है बल्कि प्रशासन /सत्ता द्वारा स्वीकृत तथा जनगण की स्वीकृति के बीच का अंतर है इसलिए इसे ऐसा ही स्वीकार किया जाये ...
@बिलकुल सही बात है हम शोक नही मनाते बल्कि नेताओं के मरने पर मौज मनाते हैं।
Bilkul sahi baat
मजेदार प्रसंग, भीतर की विडंबना को उभारता हुआ।
राजकीय शोक.. कुछ की मौज ..और कुछ के लिए अथाह परेशानी...
शोक...और प्रसन्नता...
बेहतर...
‘‘राजकीय शोक और अचानक अवकाश की प्रसन्नता’’ वाकई शीर्षक ही सब कुछ बंया करता है। राजकीय शोक पर अवकाश की प्रसन्नता, प्रसन्नता का विषय है या शोक का कुछ पक्का कहना मुश्किल है। लेकिन विचारणीय प्रश्न अवश्य है। अब हमारे नेताओं के निधन पर केवल अवकाश की उत्सुकता ही शेष क्यों रह गई?
'पहले वाले राज्यपाल निगोशिएबुल रहे हों और ये वाले न रहे हों।'
सतसैया के दोहरे का आनन्द।
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