सोमवार से शोभा के बाऊजी, और जीजी हमारे बच्चों के नाना जी और नानीजी साथ हैं तो घर में रौनक है। बच्चों के बाहर रहने से हम दोनों पति-पत्नी ही घर में रहते हैं। कोई भी आता है तो रौनक हो जाती है। बाऊजी अस्सी के होने जा रहे हैं, कोई सात बरस पहले उन्हें मधुमेह ने पकड़ लिया। वे स्वयं नामी ऐलोपैथिक चिकित्सक हैं और इलाके में बालरोग विशेषज्ञ के रूप में विख्यात भी। वे अपने शरीर में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रखते हैं। फिर भी मधुमेह ने शरीर पर असर किया है। अब कमर के निचले हिस्से में सुन्नता का अनुभव करते हैं। उन की तंत्रिकाओँ में संचार की गति कुछ मंद हुई है। कोटा के एक ख्यात चिकित्सक को दिखाने आते हैं। इस बार जीजी को भी साथ ले कर आए। हम ने आग्रह किया तो रुक गए। पिछले दो दिनों से लोग उन से मिलने भी आ रहे हैं। लेकिन इन दो दिनों में ही उन्हें अटपटा लगने लगा है। अपने कस्बे में उन बाऊजी के पास सुबह से मरीज आने लगते हैं। वे परिवार के व्यवसायों पर निगरानी भी रखते हैं। जीजी भी सुबह से ही परिवार के घरेलू और खेती कामों पर निगरानी रखती हैं और कुछ न कुछ करती रहती हैं। यहाँ काम उन के पास कुछ नहीं, केवल बातचीत करने और कुछ घूम आने के सिवा तो शायद वे कुछ बोरियत महसूस करने लगे हों। अब वे वापस घर जाने या जयपुर अपनी दूसरी बेटी से मिलने जाने की योजना बना रहे हैं। मुझे समय नहीं मिल रहा है, अन्यथा वे मुझे साथ ले ही गए होते। हो सकता है कल-परसों तक उन के साथ जयपुर जाना ही हो। सच है काम से विलगाव बोरियत पैदा करता है।
रात को मैं और बाऊजी एक ही कमरे में सो रहे थे, कूलर चलता रह गया और कमरा अधिक ठंडा हो गया। मैं सुबह उठा तो आँखों के पास तनाव था जो कुछ देर बाद सिर दर्द में बदल गया। मैं ने शोभा से पेन किलर मांगा तो घर में था नहीं। बाजार जाने का वक्त नहीं था। मैं अदालत के लिए चल दिया। पान की दुकान पर रुका तो वहाँ खड़े लोगों में से एक ने अखबार पढ़ते हुए टिप्पणी की कि अब महंगाई रोकने के लिए मंदी पैदा करने के इंतजाम किए जा रहे हैं। दूसरे ने प्रतिटिप्पणी की -महंगाई कोई रुके है? आदमी तो बहुत हो गए। उतना उत्पादन है नहीं। बड़ी मुश्किल से मिलावट कर कर के तो जरूरत पूरी की जा रही है, वरना लोगों को कुछ मिले ही नहीं। अब सरकारी डेयरी के दूध-घी में मिलावट आ रही है। वैसे ही गाय-भैंसों के इंजेक्शन लगा कर तो दूध पैदा किया जा रहा है। एक तीसरे ने कहा कि सब्जियों और फलों के भी इंजेक्शन लग रहे हैं और वे सामान्य से बहुत बड़ी बड़ी साइज की आ रही हैं। मैं ने भी प्रतिटिप्पणी ठोकी -भाई जनसंख्या से निपटने का अच्छा तरीका है, सप्लाई भी पूरी और फिर मिलावट वैसे भी जनसंख्या वृद्धि में कमी तो लाएगी ही।
अदालत पहुँचा, कुछ काम किया। मध्यांतर की चाय के वक्त सिर में दर्द असहनीय हो चला। मुवक्किल कुछ कहना चाह रहे थे और बात मेरे सिर से गुजर रही थी। आखिर मेरे एक कनिष्ठ वकील ने एनालजेसिक गोली दी। उसे लेने के पंद्रह मिनट में वापस काम के लायक हुआ। घऱ लौट कर कल के एक मुकदमे की तैयारी में लगा। अभी कुछ फुरसत पाई है तो सोने का समय हो चला है। कल पढ़ा था खुशदीप जी ने सप्ताह में दो पोस्टें ही लिखना तय किया है। अभी ऐसा ही एक ऐलान और पढ़ने को मिला। मुझे नहीं लगता कि पोस्टें लिखने में कमी करने से समस्याएँ कम हो जाएंगी। बात सिर्फ इतनी है कि हम रोजमर्रा के कामों में बाधा पहुँचाए बिना और अपने आराम के समय में कटौती किए बिना ब्लागीरी कर सकें। इस के लिए हम यह कर सकते हैं कि हमारी ब्लागीरी को हम हमारे इन कामों की सहयोगी बनाएँ। जैसे तीसरा खंबा पर किया जाने वाला काम मेरे व्यवसाय से जुड़ा है और मुझे खुद को ताजा बनाए रखने में सहयोग करता है। अनवरत पर जो भी लिखता हूँ बिना किसी तनाव के लिखता हूँ। यह नहीं सोचता कि उसे लिख कर मुझे तुलसी, अज्ञेय या प्रेमचंद बनना है।
18 टिप्पणियां:
दिनेश जी, जो काम करते है उन के लिये सारा दिन खाली बेठना सजा भुगतने के समान है, मेरे माता जी, पिता जी जब यहां आये तो मां का दिल तो लग गया लेकिन पिता जी बहुत बोर हुये थे, मेरा भी यही हाल है जब भी खाली बेठता हुं तो बोर हो जाता हुं, वेसे ब्लांगिग अब मै भी कम करने की सोच रहा हुं, देखे कितनी कम होती है
सही है बिना टेंशन के अपनी नियमित कार्यों की तरह ही ब्लॉगिंग को भी हिस्सा बना लें तो बेहतर. अलग से जुट कर ब्लॉगिंग के टेंशन लेने लायक अभी स्थितियाँ तो नहीं ही हैं.
जब कोई काम न हो और खाली हो तो
मन नेट की तरफ़ ही दौड़ता था।
लेकिन अब दिल नहीं करता है।
आए थे हरि भजन को,ओंटन लगे कपास।
हिस्सा बन ही गयी है यह ब्लॉगिंग !
पोस्ट अपने आप ही निकल आती है ! आवृति का ध्यान किसे है ! लिखी जाने लगीं तो हफ्ते में चार-पाँच भी...न लिखी गयीं तो हफ्ते में एक भी मुश्किल से !
सही बात है, हमें कौन सा अज्ञेय बनना है
सही कह रहे हैं.
द्विवेदी सर,
ब्लॉगिंग वही है जिसे लिखने-पढ़ने में मज़ा आए...लेकिन ब्लॉगिंग से काम को जोड़ना, आप के काम की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है...अगर आप खुद अपने काम के मालिक हैं तो आप अपनी इच्छानुसार रास्ता तैयार कर सकते हैं...लेकिन आप सर्विस से बंधे हैं तो आपको बहुत सी और बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है...ऊपर से ब्लॉगिंग में रोज़ अपने मानदंडों के हिसाब से लिखने का दबाव...ज़ाहिर है लेखन की गुणवत्ता से समझौता करने की जगह मैंने लेखन की आवृत्ति को कम करना बेहतर समझा...वैसे ये व्यक्ति-व्यक्ति की कैपेसिटी पर भी निर्भर करता है...
कामना करता हूं कि आपकी ये ऊर्जा हमेशा बनी रहे और हमें रोज़ आपको पढ़ने का मौका मिलता रहे...
एक बात और, आपको मुझे खुशदीप कहने का पूरा अधिकार है...उसी में मुझे ज़्यादा खुशी होती है...
जय हिंद...
िल्कुल सही कहा आपने.
रामराम.
ब्लॉगिरी काफी कुछ है यदि अपने आप को इसके लिए न बना लिया जाए।
हमारी ब्लागीरी को हम हमारे इन कामों की सहयोगी बनाएँ।
सही कहा है क्यूंकि इसके बिना ना तो ब्लॉगरी हो सकती है और ना ही ब्लागीरी को हम एन्जॉय कर सकते है
आपकी सलाह स्वीकार है । आगे से ध्यान रखेंगे ।
"अनवरत पर जो भी लिखता हूँ बिना किसी तनाव के लिखता हूँ। " ब्लोग्स की लोकप्रियता का ये सबसे बड़ा कारण है.
आप इस उम्र में भी,अपने व्यवसाय से सक्रिय रूप से जुड़े रहकर, सतत तीसरा खम्बा और अनवरत जैसे उपयोगी ब्लाग सफलता पूर्वक चला रहे हो , यह देख कर आश्चर्य होता है ! आज आपका लेख पढ़कर आपके ब्लाग लेखन पर नज़र डालने पर अचंभित हो रहा हूँ ! अपने गिरेवान में झांकने पर लगा कि मैं आपकी इस मेहनत के आगे कहीं नहीं ठहरता भाई जी ! आप प्रेरणा पुरुष ही नहीं ईमानदारी की एक पराकाष्ठा ही हो !
शुभकामनायें ..ईश्वर आपकी यह सक्रियता और ईमानदारी बनाए रखे जिससे इस समाज को सही दिशा लेने में मदद मिल सके !
लम्बे अर्से से ब्लॉग जगत से दूर रहे....लेकिन फिर से इस जगत से जुड़ने की कोशिश ...कुछ नया जानने समझने सीखने की ललक यहाँ खींच लाती है बार बार...बस यही...
दिनेश जी ,पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा अच्छा लगा आपके सार्थक सुझाव को जानकर / वैसे जीवन में हर काम में मानवीय मूल्यों के साथ सार्थकता और ईमानदारी का समावेश कर लिया जाय तो सबके लिए अच्छा ही अच्छा होगा /
बढ़िया विचार...
फोकट में ?
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