शोएब और सानिया के किस्से में अब कोई जान नहीं रही। सिवाय इस के कि शादी की शान क्या होगी? कैसे कपड़े होंगे? अब दुल्हा-दुल्हन करोड़ों के मालिक हैं तो उन की शादी में खर्च होंगे ही। आखिर इस महाद्वीप में धन की शान दिखाने का शादी से अच्छा मौका कोई दूसरा कहाँ?
इस समय भारत में नक्सलवाद फिर से समाचारों के केंन्द्र में है। उसे खत्म करने की तैयारी थी। घोषणा हो गई थी कि तीन बरस में नक्सलवाद का सफाया कर दिया जाएगा। आरंभिक रूप से जो कदम उठाए गए उन में सरकार को सफलता हाथ नहीं लगी। उलटे हाथ और जल गए। देश ने अपने 76 जवान इस हादसे में एक ही बार में खो दिए। उन के शव अब उन के गांवों में पहुँच रहे हैं तो जिन घरों में बेटे के शहीद हो जाने पर जिन माँ-बाप का सीना चौड़ा हो जाता था उन घरों में मायूसी है कि हमारे बेटे, भाई की शहादत बेकार चली गई। ऐसे में इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था कि गृहमंत्री इस हादसे की जिम्मेदारी खुद अपने ऊपर ले लें।
किसी समस्या को हल करने का यह तरीका नहीं हो सकता कि जब वह आप का घर जलने लगे तब आप उसे पानी फेंक कर बुझाने चलें और यह सोचें ही नहीं कि आप का घर जलाने की आग पैदा क्यों हुई, आप के घर तक कैसे पहुँची? और पहुँच भी गई तो उस में घर कैसे जलने लगा। यह आग तो आप किसी तरह बुझा भी लेंगे। लेकिन घर पूरा नहीं तो आधा तो जल ही चुका होगा। आग बुझी हुई दिखने भी लगे तो भी इस बात की क्या गारंटी है कि वह बुझ ही गई है और फिर से नहीं सुलगने लगेगी।
आप को आग बुझानी ही है तो आप को उस के स्रोत तक जाना होगा। देखना होगा कि वह पैदा क्यों होती है? उस के पैदा होने के कारणों को समाप्त करना होगा। जिन समस्याओं ने नक्सलवाद को पैदा किया है उन्हें खत्म करना होगा। अपने घर को ऐसा बनाना होगा कि वह आग पकड़े ही नहीं। पर घर की किसी को सुध भी है? क्या उस की ओर अब भी किसी की निगाह है?
14 टिप्पणियां:
आज देश के सामने भूख, गरीबी, महंगाई और सबसे बड़ी नक्सलवाद की समस्या है... अगर हम सब अपने-अपने मज़हबों को श्रेष्ठ साबित करने के बजाय इंसानियत और मुल्क के लिए काम करें तो हिन्दुस्तान फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है...
क्योंकि हिन्दू मरे या मुसलमान, लेकिन मौत हमेशा इंसानियत की ही होती है...
100% sahmat hoon aapse.. yunki post padhne se pahle mere bhi man me kuchh kuchh yahi khyaal the.
उस के पैदा होने के कारणों को समाप्त करना होगा: बिल्कुल सही कहा आपने..इसके मूल में झांकना होगा!
बेगुनाहों के सामूहिकं संहार से बढ़कर कोई और घृणित कार्य नहीं हो सकता -मूल तो हम तलाश लें मगर उसे पूरे वृक्ष को जड़ से ही उखाड़ फेकना है -इन घटनाओं में विदेशी संसाधनों की भी भूमिका हो सकती है-
आप को आग बुझानी ही है तो आप को उस के स्रोत तक जाना होगा। देखना होगा कि वह पैदा क्यों होती है? उस के पैदा होने के कारणों को समाप्त करना होगा।
@ लेकिन इस देश में तो वोट बेंक के लिए ऐसे स्रोत बनाए जाते है , आग लगाने वाले कारण पैदा किये जाते है , आग लगाने वालों को बचाने के फायदे ढूंढे जाते है |
आप को आग बुझानी ही है तो आप को उस के स्रोत तक जाना होगा। देखना होगा कि वह पैदा क्यों होती है? उस के पैदा होने के कारणों को समाप्त करना होगा। जिन समस्याओं ने नक्सलवाद को पैदा किया है उन्हें खत्म करना होगा। अपने घर को ऐसा बनाना होगा कि वह आग पकड़े ही नहीं। पर घर की किसी को सुध भी है? क्या उस की ओर अब भी किसी की निगाह है?..
सही कह रहे हैं ,इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति के साथ मैदान में ही उतरना होगा.
बहुत सही कहा आपने.
रामराम.
क्षमा करें। बात कडवी है किन्तु हमारे खून में देश कहीं नहीं है। हम सब उपदेश देते हैं जबकि देश को आचरण चाहिए। हम जो भी बात करते हैं, उससे खुद को अलग रख कर करते हैं। जिस दिन हम आत्मपरकता से बात करना शुरु कर देंगे उस दिन से हमारे कष्ट समाप्त होने दूर हो जाऍंगे।
हम नितान्त स्वार्थी समाज बन चुके हैं और स्वार्थी के लिए देश कोई मायने नहीं रखता।
बेजान किस्से से जान निकालना भारतीय मीडिया की विशेषज्ञता है और समस्या की जड़ को छुए बिना पत्तियों की काट छांट सरकार की ! वैसे सतही तौर पर भले ही दिखाई ना दें पर इन हरकतों के वास्तविक मंतव्य कुछ और होते हैं ! कहने का आशय यह है कि मीडिया भी जानता है कि किस्से में जान नहीं और सरकार भी समस्या की जड़ों से बखूबी वाकिफ है लेकिन उनके इरादे / मंसूबे वैसे नहीं हैं जैसा वे कहते , करते और दिखाई देते हैं !
नक्सलियों का इतना मतिभ्रम हो गया है कि अपने ही देश को दुश्मन मान रहे हैं और पड़ोसी देशों में जाकर हथियार खरीद रहे हैं..सरकार को कभी शाहरुख ख़ान की फिल्म रिलीज कराने या सानिया-शोएब मलिक-आएशा प्रकरण में जांच कराने से फुर्सत ही नहीं...मेरी फिक्र आदिवासियों की है जो कभी सरकारी पुलिस और कभी माओवादियों के अत्याचार की चक्की में पिसते रहते हैं...विकास किस चिड़िया का नाम होता है उन्हें पता ही नहीं...
जय हिंद....
सामरिक हल और विकास का मलहम - समान्तर चाहियें।
जरूरी बात...
इस दुनिया की खबर देते देते अपनी बेखबर दुनिया बसा ली है खबरवालों ने ।
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