कोटा में जिला अदालत नयापुरा क्षेत्र में स्थित है। यहाँ नीचे पीली रेखाओं के बीच जिला अदालत कोटा का परिसर दिखाई दे रहा है। किसी को भी इस क्षेत्र की हरियाली देख कर ईर्ष्या हो सकती है। लेकिन अब यह परिसर आवश्यकता से बहुत अधिक छोटा पड़ रहा है। इतना अधिक कि अब तक या तो निकट के किसी परिसर को इस में सम्मिलित कर के इस का विस्तार कर दिया जाना चाहिए था। या फिर जिला अदालत के लिए किसी रिक्त भूमि पर नया परिसर बना दिया जाना चाहिए था। लेकिन अभी सरकार इस पर कोई विचार नहीं कर रही है। शायद वह यह निर्णय तब ले जब इस परिसर में अदालतें संचालित करना बिलकुल ही असंभव हो जाए।
कोटा जिला अदालत परिसर का उपग्रह चित्र
अधिक अदालतों के लिए अधिक इमारतों की आवश्यकता के चलते इस परिसर में अब कोई स्थान ऐसा नहीं बचा है जिस में और इमारतें बनाई जाएँ। यही कारण है कि कुछ अदालतें सड़क पार पश्चिम में कलेक्टरी परिसर में चल रही हैं तो कुछ अदालतों के लिए निकट ही किराए के भवन लिए जा चुके हैं। परिसर में वाहन पार्किंग के लिए बहुत कम स्थान है, जिस का नतीजा यह है कि अदालत आने वाले आधे से अधिक वाहन बाहर सड़क पर पार्क करने पड़ते हैं। मुझे स्वयं को अपनी कार सड़क के किनारे पार्क करनी पड़ती है। इस परिसर में पहले एक इमारत से दूसरी तक जाने के लिए सड़कें थीं और शेष खुली भूमि। लेकिन बरसात के समय यह खुली कच्ची भूमि में पानी भर जाया करता था और मिट्टी पैरों पर चिपकने लगती थी। इस कारण से परिसर में जितनी भी खुली भूमि थी उस में कंक्रीट बिछा दिया गया। केवल जिला जज की इमारत के सामने और सड़क के बीच एक पार्क में कच्ची भूंमि शेष रह गई। लोगों को चलने फिरने में आराम हो गया।
सूखा हुआ नीम वृक्ष
कंक्रीट बिछाने पर हुआ यह कि जहाँ जहाँ वृक्ष थे उन के तने कंक्रीट से घिर गए। इस वर्ष देखने को मिला कि अचानक एक जवान नीम का वृक्ष खड़ा खड़ा पूरा सूख गया। सभी को आश्रर्य हुआ कि एक जवान हरा भरा वृक्ष कैसे सूख गया। मै ने कल पास जा कर उस का अवलोकन किया तो देखा कि वृक्ष के तने को अपनी मोटाई बढ़ाने के लिए कोई स्थान ही शेष नहीं रहा है। होता यह है कि वृक्षों को जड़ों से पोषण पहुँचाने वाला तने पुराना क्षेत्र जो वलय के रूप में होता है वह अवरुद्ध हो जाता है और हर वर्ष एक नया वलय तने की बाहरी सतह की ओर बनता है जो पुराने वलय के स्थान पर वृक्ष को जड़ों से पोषण पहुँचाता है। लेकिन इस नीम के वृक्ष का तना सीमेंट कंक्रीट बिछा दिए जाने के कारण अपने नए वलय का निर्माण नहीं कर पाया और वृक्ष को मिलने वाला पोषण मिलना बंद हो गया। वृक्ष को भूमि से जल व पोषण नहीं मिलने से वह सूख गया। असमय ही एक वृक्ष मृत्यु के मुख में चला गया।
कंक्रीट से घिरा तना
इस .युग में जब धरती पर से वृक्ष वैसे ही कम हो रहे हैं। इस तरह की लापरवाही से वृक्ष की जो असमय मृत्यु हुई है वह किसी मनुष्य की हत्या से भी बड़ा अपराध है। यदि कंक्रीट बिछाने वाले मजदूरों, मिस्त्रियों और इंजिनियरों ने जरा भी ध्यान रखा होता और वृक्ष के तने के आस-पास चार-छह इंच का स्थान खाली छोड़ दिया जाता तो यह वृक्ष अभी अनेक वर्ष जीवित रह सकता था। जीवित रहते वह सब को छाया प्रदान करता, ऑक्सीजन देता रहता। कंक्रीट बिछाने का काम राज्य के पीडब्लूडी विभाग ने किया था। कागजों में खोजने से यह भी पता लग जाएगा कि यहाँ कंक्रीट बिछाने का काम किस इंजिनियर की देख-रेख मे हुआ था। लेकिन इतना होने पर भी किसी को इस वृक्ष की हत्या के लिए दोषी न ठहराया जाएगा। यदि ठहरा भी दिया जाए तो उसे कोई दंड भले ही दे दिया जाए, लेकिन इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि भविष्य में इस तरह की लापरवाही से कोई वृक्ष नहीं मरेगा। इस के लिए तो मनुष्यों में वृक्षों के लिए प्रेम जागृत करना होगा। जिस से लोग अपने आस पास वृक्षों के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों पर निगाह रखें और कोई वृक्ष मृत्यु को प्राप्त हो उस से पहले ही उस विपत्ति को दूर कर दिया जाए। मेरे घर के सामने भी मेरे लगाए हुए दो वृक्ष हैं एक नीम का और एक कचनार का। यहाँ भी कंक्रीट बिछाया गया था। लेकिन मोहल्ले में रहने वाले और स्वैच्छा से सामने के पार्क की देखभाल रखने वाले रामधन मीणा जी ने मुझे बताया कि इन वृक्षों के आस पास के कंक्रीट के तोड़ कर स्थान बनाना चाहिए अन्यथा यह सूख जाएंगे। हमने ऐसा ही किया और वे वृक्ष बच गए। अदालत में भी वृक्षों पर किसी का ध्यान रहा होता तो मरने वाला वृक्ष बचाया जा सकता था।
10 टिप्पणियां:
जघन्य अपराध । दिमाग लगाने से वृक्ष बचाया जा सकता था ।
विल्कुल सही कदम..
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छोटी छोटी बातें कितना मायने रखती हैं
बी एस पाबला
सर इस मामले में कम से कम हमारी कडकडडूमा अदालत परिसर काफ़ी धनी है ..हालांकि नए भवनों के निर्माण की सुगबुगाहट ने वहां भी अतिक्रमण तो शुरू हो ही चुका है ..मैं भी कुछ तस्वीरें लगाता हूं वहां की शायद आपको पसंद आए
अजय कुमार झा
वकील साहब, किसी पेड को काटो तो सजा हो सकती है लेकिन किसी हरे पेड को सुखाकर पीला कर्ने पर कोई सजा नही होती.
डा कुवर बेचैन याद आते है -
मौत के मारे हुए को तो कई कान्धे मिले
क्य कभी बैठे हो पल भर बक्त के मारे के साथ
अरे बाप रे.... छोटी छोटी बाते न्हमारे इन ठेके दारो के दिमाग मै क्यो नही आती, हमारे यहां आप जब शहर मै जाये तो आप को चारो ओर पक्की सिमेंट की ओर कारतोल से बनी सडके ही मिलेगी,लेकिन हरियाली चारो ओर दिखेगी, १०० साल पुराने पेड भी ओर उन की देख भाल भी बहुत होती है, जब सीमेंट की पटरी बनती है तो पेड के आस पास की जमीन खाली छोडी जाती है, ओर समय समय पर उन को पानी खाद भी दिया जाता है, साथ साथ मै उन्हे सर्दी से बचाने के लिये सर्दियो मै खास कर लपेता भी जाता है, ओर किसी के आंगन मै या खेत मै किसी का चाहे अपना पेड हो उसे काटना सख्त मना है,भारत मै अन्य बातो पर तो हम विदेशियो की खुब नकल करते है, लेकिन ऎसी बातो पर हम नकल क्यो नही करते.
दिनेश जी आप इस नीम को अब भी बचा सकते है, ब्स इस के आस पास की जमीन से उस ककंईट की सफ़ाई करवा दे, यह नीम अगले साल फ़िर सॆ ठीक हो सकता है,
बहुत ही जागरुक लेख लिखा आप ने, काश भारत मै बहुत से लोग आप की तरह सोच रखे तो हम देश का कितना फ़ायदा कर सकते है.
धन्यवाद
इस आलेख के सम्मुख :
1. हो सकता है, भाई लोग इस पेड़ को ताड़े हों, और लकड़ी से निकलने वाले पटरों का बँटवारा तक हो चुका हो ।
2. यदि निर्माण से पहले ही एक ट्री-गार्ड लगाया गया होता, तो उतनी परिधि सीमेन्ट से ढके होने से बच जाती ।
3. भाड़े के टट्टू इतना दिमाग नहीं रखते, और ऎसे पक्केकरण का कार्य का निरीक्षण करना इंजीनियर साहब के गरिमा के प्रतिकूल हो ।
4. ठेकेदार का अपने पेमेन्ट लेने का पक्का इरादा, कार्य सँपादन में दूरदृष्टि का अभाव, यदि यह निर्माण मार्च में निपटाया गया हो, तो सुभान-अल्लाह !
एक सुझाव :
सँबन्धित अधिकारी को ज्ञापन देकर खानापूर्ति की अपेक्षा, यदि बार काउँसिल के कुछ वरिष्ठ सदस्य अपनी देखरेख में पेड़ के तने से दो फुट त्रिज्या की व्यास को उखड़वा दें, और उसमें मोटी मौरंग भरवा दें, ताकि वह अपने सार्वजनिक पीकदान बनाये जाने की स्थिति को झेल सके !
सीमेंट की परत से ढकी जा रही शहरी जमीनों पर खड़े पेड़ों की यह त्रासदी आए दिन व्यथित करती है। पढ़े-लिखे लोगों की देखरेख में यह जघन्य काम होता देख कर दुख होता है।
हर्ष और चैतन्य की स्कूल के पास एक तिराहे पर बहुत सारे पेड़ हैं। एक नीम का पेड़ जो कि गली के मुहाने पर है,के नीचे सिमेन्ट से बरसों एक गोल कमरा सा बना हुआ है। जिसमें पानी पूड़ी और भेल की स्टॉल चलती है।
कमरा बनाने वले ने इस बात का ध्यान रका कि पेड़ को कोई तकलीफ ना हो। यानि छत पर भी उतनी जगह छोड़ी दी थी।
पिछले महीने अचानक ही उस कम से कम ४० फुट के बरसों पुरने नीम के पेड़ को काट दिया गया। मेरा मन उस पेड़ को काटने पर बहुत "छीजा"। पर मैं कुछ नहीं कर पाया।
बहुत दुख होता है इस तरह पेड़ के कट जाने या सूख जाने पर।
आपने सवाल उठाया और आप ही ने जवाब भी दे दिया। इस वृक्ष की हत्या के अपराधी वे सब लोग हैं जो नीम को सीमेण्ट से जकड दिए जाने के बाद भी देखते रहे। एक ने भी जहमत नहीं उठाई कि सीमेण्ट की जकडन को दूर कर दिया जाए।
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