- कौन?
- अरे ! वो ही, जो 'तीसरा खंबा' पे कानूनी बात बतावत हैं, और 'अनवरत' पर भी न जाने क्या क्या लिक्खे हैं।
- हाँ, हाँ वही न, जो सिर से गंजे हो कर भी 'शब्दों का सफर' में सरदार बने बैठे हैं?
- हाँ, वो ही।
- वो दो दिन से कुच्छ भी ना लिख रहे, अनवरत खाली पड्यो है।
- क्या? दो दिन में लिखने को कुच्छ ई ना मिल्यो उन को? आज तो बड़्डे-बड्डे मौके थे जी। एक तो पाबला जी को जनम दिन थो, दूजो करीना कपूर को, तीजो ईद को। कच्छु नाहीं तो मुबारक बाद ही लिक्ख मारते!
-एक दिन तो निकल गयो, शिबराम जी की नाटकाँ की किताबाँ का लोकार्पण में।
-आज दफ्तर में काम करने बैठ गए जी, फेर साम को कोई से मिलने-जुलने निकल गए जी। अब खा पी के लोकार्पण हुई किताब बाँच रहे हैं।
- कौन सी किताब बाँच रिये हैं जी?
- वो, ही जी, का कहत हैं उसे ..... "गटक चूरमा"।
- अब ये गटक चूरमा का होवे जी?
- य्हाँ तो किताब और नाटक को नाम है जी। पर जे एक चूरन होवे, जो मुहँ में फाँके तो खुद बे खुद पानी आवे और गले से निच्चे उतर जावे।
- वो तो ठीक, पर ई किताब में का लिक्खो होगो?
- चल्ल वा वकील साब से ही पूच्छ लेवें।
- चल!
----------------------------------------------
- वकील साब! गटक चूरमा पढ़ो हो। कच्छु हमें ही सुना देब, दो-च्चार लाइन।
- तो सुनो.....
भोपा और भोपी, वे ही जो राजस्थान में फड़ बांच सुनावें। रामचंदर के गांव बड़ौद पहुंच गए हैं। जबरन रामचंदर के बेटी जमाई भी बन लिए। अब रामचंदर ले जा रहा है उन्हें अपने घर। रास्ते में कुत्ता भोंकता है।
रामचंदर- तो ..... तो....... (कहते हुए पत्थर मार कर कुत्ते को भगाता है और कहता है) मेहमान हैं, नालायक कोटा से आए हैं ... (फिर भोपा-भोपी से मुखातिब हो कर) कुत्ते हैं, नया आदमी देखते हैं तो भोंकते हैं। कुत्ते तो कोटा में भी भोंकते होंगे।
भोपी- ना, हमारे यहाँ तो काटते हैं, फफेड़ देते हैं, पेट में चौदह इंजेक्शन लगें। नहीं तो कुत्ते के साथ ही जै श्री राम!
भोपा- नही, ये तो झूठ बोलती है। हमारे यहाँ तो कुत्ते दुम हिलाते हैं और पैर चाटते हैं।
भोपी- चाटते हैं, पर बड़े लोगों के। छोटे लोगों को देख कर तो ऐसे झपटते हैं जैसे पुलिस।
भोपा- ऐ भोपी, तू पालतू कुत्तों की बात कर रही है और यहाँ बात चल रही है गली मोहल्ले के कुत्तों की। समझती नहीं है क्या।
रामचंदर- सच कहते हो भाई। उन कुत्तों की तो किस्मत ही निराली है, जो कोठी-बंगलों में रहते हैं। किसन बता रहा था कि बड़े ठाट हैं भाई उन के। हम से तो वे कुत्ते ही बढ़िया।
भोपा- बढ़िया? पाँचों अंगुली घी में...।
भोपी- अरे! मेरे राजा, पाँचों नहीं दसों अंगुलियाँ घी में। साहब और मेम साहब अपने हाथों मालिस करें, नहलावें-धुलावें, बाथरूम, टॉयलट करावें...।
भोपी- (रामचंदर से) मतलब टट्टी पेशाब करावें।
(रामचंदर हँसता है)
भोपी- फस्सकिलास खाना खिलाएँ और गद्दों पर सुलाएँ।
भोपा- और झक्क सैर कराने ले जाएँ।
भोपी- आगे आगे कुत्ता और पीछे-पीछे साब।
भोपी- वाह! क्या दृश्य बनता है।
पता नहीं चल पाता कि इनमें कुत्ता कौन है और साहब कौन...।
(भोपा और रामचंदर ठठा कर हँस पड़ते हैं)
-बस भाई इत्ता ही। वकील साब बोले। आगे या तो किताब खुद बाँचो या फिर कहीं नाटक खेला जाए तो देखो। नहीं तो किताब मंगाओ और खुद खेलो।
भोपा-भोपी
और अंत में-
सब से पहले टिप्पणीकारों, फिर गैरटिप्पणीकार पाठकों और फिर ब्लागर भाइयों को ईद-उल-फित्र की बधाई और शुभकामनाएँ।
राम! राम!
______________________________________________
17 टिप्पणियां:
क्या बात कही सर ! बहुत उम्दा ।
ईद की मुबारक़बादियाँ क़ुबूल फ़रमाइएगा।
वाह वाह आज तो आप का नया ही अंदाज लगा, बहुत अच्छा, नव रात्रो की आप को शुभकामानये
भोपा भोपी - शायद गुजरात में भी कहा जाता है - संवाद अच्छे लगे -- प्रस्तुति और भी अच्छी रही
पाबला जी को साल गिरह की अनेकानेक बधाईयाँ
घर पर सभी को बहुत स्नेह जय माता दी -
मुस्लिम भाई बहनों को , ईद मुबारक
- लावण्या
ये नया अंदाज वकील साहब..बहुत पसंद आया.
ईद-उल-फित्र की बधाई और शुभकामनाएँ।
गंभीर व्यंग्य उभारा है। पूरा नाटक पढ़ने की इच्छा है.
इस प्रस्तुति के लिए आभार
बढियां संवाद है !
वाह ये गटक चूरमा तो लाजवाब है. क्या भोपा भोपी अब भी आते हैं? या इतिहास मे दफ़न होगये? एक सहज जिज्ञासा है.
रामराम.
वाह..भोपा भोपी संवाद बड़ा मजेदार लगा..
सुंदर प्रस्तुति..बधाई!!!
गटक चूरमा की झलकी पसंद आई !
बड़ी बढिया लगी जी यह झलकी।
शिवराम जी की फोटो तो हमें नीलोत्पल बसु जैसी लगी थी। लगा कहीं साम्यवादी दल का प्रचार न हो!
गज़ब का गटक चूरमा!
बी एस पाबला
गज़ब...
यह अंदाज़ भी खूब भाया...
ब्लॉग जगत के भोपा-भोपियों को मुबारकवाद...
देवेदी जी और कौन कौन से गुन छिपाये बैठे हैं नित नई चीज़ सामने आरहा है ये गटक चूरमा भी कोई धाँसू चीज़ लग रही है श्री शिवराम जी को बहुत बहुत बधाई और आपका भी धन्यवाद इस नाटक के संवादों से रूबरू करवाने के लिये पावला जी को बधाइ दे दी है अपको नवरात्र पर्व की शुभकामनायें आप अपनी पुस्तकें कब छपवा रहे हैं आशा है जल्दी ही अपका लिखा नटक भी पढने को मिलेगा। मेरी कहानी पर आपकी तिप्पणी के लिये धन्यवाद और उस पर अपना स्पश्टी करण भी मैने लिख दिया है ।अपके इससुझाव से लगा कि आप मेरी रचनाओं मे सच मे सुधार चाहते हैं इसी बात से उत्साहित हूँ बहुत बहुत धन्यवाद्
लगता है नाटक खूब बढ़िया होगा। हमें पढ़वाने के लिए धन्यवाद। किन्तु अन्त की ईद की बधाई केवल ब्लॉगर भाइयों को?
घुघूती बासूती
वाह जी वाह
क्या रंग हैं लोक शैली के!!!
सम्वाद पढ़ने मे जब इतना आनंद आ रहा है तो इसका मंचन देखने मे कितना आनन्द आयेगा । वाह ।
टिप्पणीकारों ने कुत्तों को छोड़ दिया है. हमें लगता है कि लेखक ने भोपा-भोपी के विपरीत कुत्तों को केंद्र में रखा है. क्यों ? जवाब कुत्तों की नस्ल (species ) की कायापलटी (metamorphosis ) में निहित है. कुत्ता जो कभी भूरा भेड़िया था, खूंखार था, अपना शिकार खुद करता था. लेकिन मनुष्य की जूठन खाने की ऐसी लत लगी कि अपना स्वाभाविक चरित्र खोकर स्वामिभक्त बन बैठा.
बुद्धिजीवियों पर इस तीखे व्यंग्य के लिए बधाई.
एक टिप्पणी भेजें