सुनामी बच्ची
- यादवचंद्र
नहीं जानती सुनामी बच्ची
अपना माँ-बाप, गाँव-घर
नहीं जानती सुनामी बच्ची
अपना देश-जाति, धर्म-ईश्वर
नहीं जानती सुनामी बच्ची
राग-विराग, नेह-संवेदना
नहीं जानती सुनामी बच्ची
शुभ-अशुभ, सुन्दर-असुन्दर
उस के होठों पर चुपड़ी है
मौत-सी सख्त बर्फ
नहीं जानती सुनामी बच्ची
दूध और जहर का फर्क
जब गर्भ में थी-
भूडोल के पालने पर डोलती रही
जब जानलेवा दरारों ने उगला....
तो दूध के लिए
ज्वार की छातियाँ टटोलती रही
भाई तस्करों के साथ रावलपिंडी के दौरे पर था
बाप डिस्टीलरी से
वापस नहीं लौटा था
बहन होटलों में
पर्यटकों के साथ लिपटी पड़ी थी
और नंगी लाशों पर सुनामी लहरें
मुहँ बाए खड़ी थीं
शेष कोई न था वहाँ
शेष कोई न था वहाँ
बची थी सिर्फ-
सुनामी बच्ची
और अब
सब कुछ ठण्डा पड़ चुका है
गर्म हैं सिर्फ
भविष्यवक्ताओं की वाणियाँ
गर्म हैं सिर्फ
राष्ट्राध्यक्षों के तूफानी वक्तव्य
गर्म हैं सिर्फ
सिने तारिकाओं के
नेकेड तूफानी कल्चरल प्रोग्राम
गर्म हैं सिर्फ
पर्यटक होटलों में
कहकहाँ की वापसी की शानदार मुहिमें
गर्म हैं सिर्फ
थाई बेटियों के देह-व्यापार में
महताब फिट करने की लामिसाल कोशिशें
लेकिन याद रखो
कल सुनामी बच्ची की मुट्ठी में
बन्दूक होगी
और तुम्हारे मुहँ पर थूकने के लिए
हर जुबान पर थूक होगी
आ...क.............थू !
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10 टिप्पणियां:
बहुत गहरी बाते कही कवि ने, समझ सके तो ! चित्र बड़ा मार्मिक जोड़ा है
लेकिन याद रखो
कल सुनामी बच्ची की मुट्ठी में
बन्दूक होगी
और तुम्हारे मुहँ पर थूकने के लिए
हर जुबान पर थूक होगी
आ...क.............थू !
आक्रोश जायज है.
रामराम.
झकझोरती कविता---- आभार।
Jeevan kee trasdiyon ko rekhankit kartee rachnaa.
{ Treasurer-T & S }
अच्छी कविता
हूँ !
गहरी संवेदनाओं के साथ, गहरा आक्रोश...
यादवचंद्र जी की रचनाएं सीधे दिमाग़ से सवाल करती हैं....
दुखद सच्चाई!
झकझोर देने वाली आग उगलने वाली रचना और रचनाकार को सलाम
यादवचंद्र जी की कविताओं से रु-बा-रु करवाने के लिए धन्यवाद |
कड़वा सच कहती है ये कविता |
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