@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सब से बड़ा अंतर्विरोध शासक शक्तियों और जनता के बीच : जनतन्तर कथा (30)

रविवार, 17 मई 2009

सब से बड़ा अंतर्विरोध शासक शक्तियों और जनता के बीच : जनतन्तर कथा (30)

हे, पाठक! 
सनत और सूत जी प्रातः नित्य कर्म से निवृत्त होते उस के पूर्व ही माध्यमों ने परिणामों के रुझान दिखाना आरंभ कर दिया।  प्रारंभिक सूचनाओं से ही अनुमान हो चला था कि सरकार तो बैक्टीरिया दल का गठबंधन ही बनाएगा।  वायरस दल पिछड़ने लगा और उन के एक नेता से पूछा गया कि यह क्या हो रहा है? तो वे कहने लगे अभी तो पूरब और दक्खिन के परिणाम आ रहे हैं, हिन्दी प्रदेशों के आने दीजिए।  लेकिन उधर के परिणामों ने भी उन्हें निराशा ही परोसी।  बैक्टीरिया दल में उत्साह का वातावरण छा गया, भक्तगण फुदकने लगे।  नाना प्रकार के वाद्ययंत्र बजाने वाले स्वतः ही आ गए बजाने लगे। बहुत से लोग नृत्य करने लगे।  ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उन्हें कुबेर की नगरी लंका या इन्द्रलोक का साम्राज्य मिल गया हो।  जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया वैसे वैंसे उन की प्रफुल्लता बढ़ती गई। 


हे, पाठक!
इधर उत्सव मनाया जा रहा था उधर दूसरे शिविरों में बहुत मायूसी थी।  वायरस दल को तो साँप सूंघ गया था। पहले जहाँ बढ़-चढ़ कर माध्यमों के अभिकर्ताओं का स्वागत किया जाता था, आज उन से अनायास ही चिढ़ पैदा हो रही थी।  अनेक लोग जनता को ही कोस रहे थे।  उन्हें छोटी-छोटी बातें भी गालियाँ जैसी प्रतीत हो रही थीं।  बैक्टीरिया दल का साथ छोड़ कर अपना राग अलापने वाले सब घाटे में रहे थे, उन का सफाया हो गया था।  कल तक जो सरकार बनाने के स्वप्न देख रहे थे, आज वहाँ सन्नाटा था।  वायरस दल का साथ छोड़ जिन ने बैक्टीरिया दल का हाथ थामा था उन के पौ-बारह हो गए थे।  लाल फ्रॉक वाली बहनों के घर भी मातम था।  जनता का साथ छोड़ने का उन्हें भी बहुत नुकसान उठाना पड़ा था।  पहले अपनी धीर-गंभीर बातों से जिस तरह वे लोगों का मन मोह लेती थीं। आज उस का भी अभाव हो गया था।  अपनी ऊपरी मंजिल पर बहुत जोर डालने पर भी वह प्रकाशवान नहीं हो रही थी।  कोई सिद्धान्त ही आड़े नहीं आ रहा था जिस के पीछे मुहँ छुपा लेतीं।


हे, पाठक!
परम आदरणीय माताजी और गंभीर हो गई थीं, उन की गंभीरता ने उन के सौन्दर्य को चौगुना बढ़ा दिया था।  वे घोषणा कर चुकी थीं कि महापंचायत में उन का नेता अर्थशास्त्री ही रहेगा और जनता से किए गए सब वादे पूरे किए जाएँगे।  अर्थशास्त्री जी राजकुमार की चिरौरी कर रहे थे कि महापंचायत के बाहर उन्हों ने जो कौशल प्रदर्शित किया है उस से अब वे अंदर भी नेतृत्व करने के योग्य हो गए हैं।  लेकिन राजकुमार को आखेट की सफलता ने मत्त कर दिया था। वह वन को हिंस्र पशुओं से हीन कर उसे उपवन बनाने की शपथ ले रहा था।  सब से अधिक धूम थी तो परामर्श की थी।  विजय वरण करने वाले कह रहे थे कि वह सब को एकत्र कर मंत्रणा करेंगे।  तो पराजय स्वीकारने वाले भी सब को एकत्र कर मंत्रणा करने की इच्छा रखते थे।  जिस से अगले युद्ध के लिए अभी से तैयारी आरंभ की जाए।  अगले दिन दक्खिन की रानी यान से राजधानी आने वाली थी उस का कार्यक्रम स्थगित हो गया था।  उस से पहले साँय उस से मिलने जाने वाले वीर बाहुबली के पूरे दिन दर्शन ही नहीं हुए।  वह कहाँ?  किस ?  अनुष्ठान में व्यस्त थे पता नहीं लग रहा था। 


हे, पाठक! कब दुपहरी हुई पता ही नहीं लगा।  बाहर गर्मी कितनी बढ़ गई थी? इस का अहसास नहीं था।  दोपहर का भोजन वहीं कक्ष में ही मंगा लिया गया था।  वहीं दिन अस्त हो गया।  रात के भोजन  लिए सूत जी सनत के साथ भोजनशाला पहुँचे तो स्थान रिक्त होने की प्रतीक्षा करनी पड़ी।  भोजनशाला  ने आज विशिष्ठ व्यंजन बनाए थे।  दोनों भोजन कर बाहर नगर में निकले तो जलूसों का शोर देखने को मिला। विजय के अतिरेक में कोई दुर्घटना न हो ले इस लिए बहुत लोगों ने अपनी दुकानें शीघ्र ही बन्द कर दी थीं।  आखिर दुकान की हानि होती तो कोई उस की भरपाई थोड़े ही करता।  दोनों शीघ्र ही वापस यात्री आवास लौट आए।  सनत पूछने लगा -गुरूवर! यह क्या हुआ?  इस की तो कल्पना ही नहीं थी?
-ऐसा नहीं कि कल्पना ही नहीं थी।  वास्तव में जनतंत्र में सब से बड़ा अतर्विरोध शासक शक्तियों और जनता के बीच ही रहता है।  शासक शक्तियों को कुछ अंतराल के उपरांत जनता से स्वीकृति लेनी होती है जिस की एक पद्यति बना ली जाती है। पद्यति शासक शक्तियों के अनुकूल होते हुए भी जनता उसे भांप लेती है।  वह शासक की शक्ति को सीमित रखने का प्रयत्न करती है।  जैसे शासक जनता को बाँट कर रखना चाहता है वैसे ही वह भी शासक शक्ति के प्रतिनिधियों को बाँट कर रखना चाहता है।  जिस से वह जितनी शासक शक्तियों से अधिक  से अधिक राहत प्राप्त कर सके।
इतना कहते कहते सूत जी अपनी शैया पर विश्राम की मुद्रा में आ गए।  सनत कुछ पूछना चाहता था।  लेकिन फिर यह सोच कर कि सुबह पूछेगा स्वयं भी अपनी शैया पर विश्राम के लिए चला गया।

बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....

15 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

जन्त्तन्तर कथा का सूत्रधार यह जानता होगा कि भारतीय मनीषा सदैव करुणा और त्याग को नमन करती रही है -आपके वायिरसों ने यह त्याग दिया -और बैक्टेरिया इस सनातन धर्म के अनुसार अपने को ढालता गया ! कहाँ एक गद्दी सँभालने को आतुर और कहाँ एक सब कुछ त्यागने पर आमादा -भारतीय मनीषा ने दे दिया निर्णय !

Himanshu Pandey ने कहा…

सत्य ही है, विनम्रता और दम्भ में स्वीकृत कौन है, जनता ने इसका निर्णय दे दिया ।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

सही कथा -बोलो- हे कृष्ण , गोविन्द, हरे मुरारी .....

अजित वडनेरकर ने कहा…

बेहद दिलचस्प और अर्थगर्भित वृत्तांत...

राजनीति के इस खण्ड का ब्लागीकरण के बाद समुचित विस्तार के साथ, सुविचारित दृष्यबंध के साथ उपन्यासीकरण भी होना चाहिए...सुझाव पर गौर फर्माएं...राजनीतिक उपन्यासों की श्रंखला में दिलचस्प कड़ी होगा यह कथा-विन्यास। इस बहाने बहुत कुछ कहने का अवसर भी मिलेगा। ज़रूरी नहीं कि शैली यही हो।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वडनेरकर जी की बात पर गौर किया जाये.


बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....


रामराम.

Unknown ने कहा…

सुंदर व्यंग्य-कथा....
लाल फ्राक वाली बहन जी....गज़ब है..

ये पंक्तियां तो गज़ब टिप्पणी बन पड़ी हैं....

अनिल कान्त ने कहा…

dilchasp !!

vijay kumar sappatti ने कहा…

dwij ji

bahut hi shaandar prastuti .. bhai , maan gaye aapko ..

badhai


pls read my poems : http://poemsofvijay.blogspot.com

Regards,

Vijay

Abhishek Ojha ने कहा…

जनादेश का ब्लैक बॉक्स अंततः खुल ही गया. अब तो पांच साल बाद ही ये उथल पुथल देखने को मिलेगी.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बैक्टीरिया बढ़ने का समय और वाइरस अब अपने को री-इन्वेण्ट करे तो बचेगा। :)

हर्ष प्रसाद ने कहा…

दिनेश जी, शादी की सालगिरह की बधाई स्वीकारें. इस सालगिरह की स्वर्ण जयंती का इंतज़ार है.

RAJ SINH ने कहा…

अरविन्द जी ,
आप्से असहमत होने का मन कर रहा है बन्धु .काहे की मनीषा और काहे की कोइराला ! ये सब चुनाव ही है गड्बडझाला.२२% वोटोन से १००% सर्कार .और थीक से देखेन तो अब भी जति धर्म भाशा को ही वोट मिला है .विभाजित राश्त्र की विभाजित प्रतिक्रिया का समायोजन भर अप्ने स्वार्थोन की तराज़ू पर .

बहर्हाल द्विवेदी जी तथ्योन के साथ गज़ब की रोचकता है .अब तो वर्तमान तक आ गये .आप्की रुन्निन्ग कमेन्तरी का आनन्द ले रहे हैन.वैरस बक्तिरिया झेलते .

Science Bloggers Association ने कहा…

Hamesha ki rochak aur gyaanvardhak.

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ghughutibasuti ने कहा…

गजब शैली में लिखी गई यह श्रृंखला सदा याद रहेगी।
घुघूती बासूती

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आज अभी-अभी शब्दावली पर आपके बारे में पढ़ा। उसी समय पता चला आपकी शादी की वर्षगाँठ का........
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हमारी ओर से बधाई स्वीकारें, आप दोनों जन और कामना शुभकामनाओं के रूप में यही कि हम छोटों को आशीष देने के लिए सदैव साथ रहें, मार्गदर्शन करते रहें।